RE: Thriller Sex Kahani - सीक्रेट एजेंट
तभी बीच पर उसे रोमिला दिखाई दी ।
उसने रेत पर एक टॉवल बिछाया हुआ था और बिकिनी स्विमसूट पहने उस पर चित्त लेटी हुई थी । उसने आंखों पर काले गागल्स चढ़ाये हुए थे जिनके पीछे जरुर उसकी आंखें बंद थीं वर्ना उसे मालूम होता कि करीब से गुजरते हर उम्र के सुंदरता के पुजारी बाकायदा ठिठक कर, रुक कर उसकी सैक्सी बॉडी का खुला नजारा करके आनंदित हो रहे थे, रोमचिंत हो रहे थे और कल्पना के घोडे़ दौड़ा रहे थे कि अगर वो उस हूर के पहलू में होते तो आनंद का अतिरेक उनका क्या, किस हद तक, बुरा हाल करता ।
या शायद गागल्स के पीछे उसकी आंखें बंद नहीं थीं और वो मेल अटेंशन को एनजाय कर रही थी, उसे अपने लिये कम्पलीमेंट समझ रही थी ।
नीलेश निशब्द उसके करीब जाकर खड़ा हुआ तो अपने आप ही साबित हो गया कि गागल्स की ओट में उसकी आंखें बंद नहीं थीं ।
उसने चश्मा अपने माथे पर सरकाया और नटखट निगाह उस पर डाली ।
“हल्लो, रोमिला !” - नीलेश मीठे स्वर में बोला ।
रोमिला मुस्काई, उसने अपना एक हाथ उसकी तरफ बढ़ाया । नीलेश ने हाथ थामा तो उसने एक झटके से उसे अपने करीब ढे़र कर लिया ।
“आज तफरीह के मूड में हो !” - नीलेश बोला ।
“मैं हमेशा ही तफरीह के मूड में होती हूं” - वो बोली - “खाली दांव कभी कभी लगता है ।”
“आज लगा ?”
“जाहिर है । तुम कैसे आये ? तरफरीहन !”
“नहीं । लेट सो के उठा । ब्रेकफास्ट के बाद दिल किया थोड़ा हिलने डुलने का । सो इधर चला आया । आया तो तुम दिखाई दे गयीं ।”
“लिहाजा समुद्र में डुबकी लगाने का कोई इरादा नहीं ?”
“न । अपना बोलो ?”
“एक बार गयी समुद्र में । अभी दूसरी बार के बारे में सोच रही हूं ।”
“इसी वजह से अभी बि...स्विम सूट में ही हो ।”
“अरे, बेखौफ बिकिनी बोलो ! जब है तो है ।”
“ये भी ठीक है ।”
“कैसी लग रही हूं ?”
“बढ़िया”
“बस ?”
“कमाल ! तौबाशिकन !”
“और ?”
“और और दिखाओ तो बोलू ?”
वो हंसी । मादक हंसी ।
“बिकिनी में” - फिर बोली - “कुछ रह जाता है दिखने से ?”
“नहीं । फिर भी कुछ तो रह ही जाता है ।”
वो फिर हंसी ।
“बिकिनी के बारे में ये कैसी अजीब बात है कि नब्बे फीसदी नंगा जिस्म तो वैसे ही दिख रहा होता है फिर भी मर्द की निगाह उस दस फीसदी पर ही जा कर टिकती है जो कि नहीं दिखा रहा होता ।”
वो और जोर से हंसी
“क्यों ? गलत कहा मैंने ?”
“नहीं । ठीक कहा एकदम । ढ़की, अनढ़की लड़कियों का काफी तजुर्बा जान पड़ता है तुम्हें ।”
“ऐसी कोई बात नहीं । बाई दि वे तुम लोकल तो नहीं हो !”
“नहीं । रिजक की तलाश इधर ले के आयी ।”
“ये जगह कैसे सूझी ?”
“कोई वाकिफ था, उसने सुझाई । बल्कि साथ लेकर आया ।”
“वो भी इधर ही है ?”
“हां ।”
“कौन ?”
“सुनोगे तो भाव खा जाओगे ।”
“देखते हैं । बोला कौन?”
“रोनी डिसूजा ?”
“वो कोन है ?”
“फ्रांसिस मैग्नारो का बॉडीगार्ड !”
“वो...वो तुम्हारा फ्रेंड है ?”
“वाकिफकार ।”
“जिसकी राय तुमने मानी और इधर चली आयीं ?”
“हां ।”
“जहां से आईं, वहां रिजक का तोड़ा था ?”
“ऐसा तो नहीं था लेकिन वो क्या है कि उधर एक लोकल मवाली से बड़ा पंगा पड़ गया था, तब कुछ अरसा उधर से नक्की करने में ही भलाई दिखाई दी थी ।”
“गोवा से ?”
“कैसे जाना ?”
“अरे, जब वो रैकेटियर मैग्नारो गोवा से है, उसका बॉडीगार्ड तुम्हारा करीबी है...”
“वाकिफकार ।”
“...तो क्या मुश्किल था गैस करना ।”
“ठीक ।”
“मैग्नारो तो सुना है पणजी से है, क्या तुम भी...”
“नहीं । वो पणजी का पापी है, मैं पोंडा से हूं ।”
“पोंडा की पापिन !”
“शट अप !”
“सारी !”
“वैसे उस रैकेटियर जैसी औकात बना पाऊं तो पापिन क्या, महापापिन कहलाने से भी कोई ऐतराज नहीं ।”
नीलेश हंसा ।
“मैग्नारो जैसा भीङू जिधर जा के सैटल होता है, जिधर से आपरेट करता हूं उधर बिग बिजनेस ।”
“मैग्नारो के लिये ।” - नीलेश बोला ।
“वो तो है ही । लेकिन मैग्नारो के फायदे में आईलैंड का फायदा है । मैग्नारो की प्रास्परिटी में आइलैंड की प्रास्परिटी है ।”
“क्या बात है ? रैकेटियर के पीआरओ की तरह बोल रही हो !”
“ऐसी कोई बात नहीं । मैंने कल भी बोला था, उसके आपरेशंस की वजह से पैसा इधर आता है जो कि आईलैंड की खुशहाली की वजह बनता है ।”
“इस वास्ते इधर गैरकानूनी जुआघर चले तो वांदा नहीं ।”
“जुआघर कानूनी हो या गैरकानूनी, आने वाले तो छिलते ही हैं न, लुटते ही हैं न !”
“वो जुदा मसला है । लेकिन जुआघर कानूनी हो तो टैक्स के तौर पर, आपरेशनल फीज के तौर पर गौरमेंट को कमाई में हिस्सा मिलता है ?”
“गौरमेंट जुए की कमाई खाना क्यों चाहती है ?”
“अच्छा सवाल है। किसी नेता से करना ।”
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