RE: Thriller Sex Kahani - सीक्रेट एजेंट
“आई अंडरस्टैण्ड । प्लीज डोंट पुश इट ।”
“बाकी रही कैमरे की बात तो इस वक्त तो वो मेरे पास नहीं है लेकिन पहली फुर्सत में मैं वो तुम्हारे सुपुर्द कर दूंगा । तब खुद तसल्ली कर लेना कि क्या स्टिल, क्या मूवी, उसमें काबिलेऐतराज, काबिलेशुबह कुछ नहीं है ।”
“जरुरत नहीं । मुझे तुम्हारे पर विश्वास है...”
“थैंक्यू ।”
“…लेकिन अपने पर भी विश्वास है ।
“फिर वापिस वहीं पहुंच गयीं !”
“छोड़ो वो किस्सा ।” - वो उठ खड़ी हुई - “मैं डुबकी लगाने जा रही हूं । तुम्हारा क्या इरादा है ?”
“इरादा तो नेक है लेकिन मेरी इस एडवेंचर के लिये कोई तैयारी नहीं है । मैं इस इरादे से बीच पर नहीं आया था । मैं तो यूं ही टहलता हुआ इधर निकल पड़ा था...”
“आई अंडरस्टैण्ड । तो फिर...”
“यस । यू प्लीज गो अहेड ।”
वो समुद्र की ओर बढ़ गयी ।
नीलेश ने उससे विपरीत दिशा में उधर कदम उठाया जिधर बीच का बार-कम-रेस्टोरेंट सी-गल था ।
‘सी-गल’ ग्लास हाउस की तरह बना हुआ था इसलिये वहां कहीं भी बैठने से बाहर का दिलकश नजारा होता था ।
वो बीच की दिशा की एक टेबल की तरफ बढ़ा और दो कदम उठाते ही थमक पर खड़ा हुआ ।
कोने की एक टेबल पर श्यामला मोकाशी अकेली बैठी काफी चुसक रही थी ।
वो उसके करीब पहुंचा ।
“हल्लो !” - वो मधुर स्वर में बोला - “गुड मार्निंग !”
श्यामला ने सिर उठाया, उसे देख तत्काल उसके चेहरे पर शिनाख्त की मुस्कराहट आयी ।
“हल्लो युअरसैल्फ !” - वो बोली - “यहां कैसे ?”
“यही सवाल मैं तुमसे पूछूं तो ?”
“जरुर । जरुर । लेकिन पहले बैठ जाओ ।”
“थैंक्यू ।” - वो उसके सामने एक कुर्सी पर बैठा - “कल घर ठीक से पहुंच गयी थीं ?”
“हां ।” - वो लापरवाही से बोली - “क्या पियोगे ?”
वही जो तुम पी रही हो ?”
श्यामला ने उसके लिये काफी मंगवाई ।
नीलेश ने काफी चुसकी ।
“नाइस ।” - वो बोला ।
श्यामला ने सहमति में सिर हिलाया ।
“सो, हाउ इज ऐवरीथिंग ?”
“फाइन । आल वैल ।”
नीलेश को उम्मीद थी कि वो पिछली रात की बाबत कुछ उचरेगी लेकिन ऐसा न हुआ । शायद उस जिक्र से वो बचना चाहती थी ।
“इधर कैसे ?” - उसने पूछा ।
“यूं ही । कोई खास वजह नहीं । समझो, बीच की रौनक देखने निकल आयी ।”
“देखने ! रौनक मैं शामिल होने नहीं ?”
“क्या मतलब ?”
“स्विमिंग ।”
उसने इंकार में सिर हिलाया ।
“क्यों ? पसंद नहीं ?”
“पसंद है - ये जगह ही ऐसी है कि स्विमिंग नापसंद होने का सवाल ही नहीं पैदा होता - आज मूड नहीं ।”
“आई सी ।”
“तुम इधर कैसे ?”
“तुम्हारे वाली ही वजह है ।”
“हूं । और सुनाओ ।”
“क्या ?”
“अरे, अपने बारे में बताओ कुछ ?”
“क्या बताऊं ? कुछ है ही नहीं बताने लायक । तनहा आदमी हूं । तकदीर ने इधर धकेल दिया ।”
“पहले क्या करते थे ?”
“वही करता था जो इधर करता हूं ।”
“कहां ?”
“मुम्बई में । बांद्रा के एक बार में । नाम पिकाडली ।”
“आई सी ।”
“मैं कल का कोई जिक्र नहीं छेड़ना चाहता, फिर भी एक सवाल है मेरे जेहन में ।”
“क्या ?”
“तुम्हारा पिता आइलैंड का मालिक है, कैसे इंस्पेक्टर महाबोले की वो सब करने की मजाल हुई जो रात उसने किया ?”
“सुनो । पहले तो ये ही बात गलत है कि मेरा पिता आइलैंड का मालिक है । पता नहीं क्यों लोगों ने ये बेपर की उड़ाई हुई है । पापा बिजनेसमैन हैं, यहां छोटा मोटा बिजनेस करते हैं । पब्लिक स्पिरिटिड हैं, इसलिये साथ में सोशल सर्विस करते हैं ।”
“म्यूनीसिपैलिटी के प्रेसीडेंट की हैसियत में ?”
“श्योर ! वाई नाट !”
“और ?”
“दूसरे, रात महाबोले ने जो किया, उसमें मजाल वाली कोई बात नहीं थी अपनी एसएचओ की हैसियत में वो आईलैंड के कायदे कानून को रखवाला है और मेरे पापा का दोस्त है । रात उसने जो किया, मेरे वैलफेयर के मद्देनजर किया ।”
“पर्दादारी है । उसकी लाज रख रही हो ।”
“ऐसी कोई बात नहीं ।”
“गाल क्यों सेंक दिया ?”
“क्या !”
“ऐसा हवलदार के सामने किया या तब वो उस कमरे में नहीं था ?”
“अरे, क्या कह रहे हो ?”
“तुम्हें मालूम है क्या कह रहा हूं । जवाब नहीं देना चाहती हो तो...ठीक है ।”
“जो तुम सोच रहे हो, वो गलत है, निगाह का धोखा है, ऐसा कुछ नहीं हुआ था ।”
“तुम कहती हो तो ...”
“मैं कहती हूं ।”
“अगर वहां सब कुछ नार्मल था तो घर ले चलने को मेरे को क्यों बोला ?”
“क्योंकि महाबोले को स्टेशन हाउस में काम था । वो अभी टाइम लगाता ।”
“मुझे घर ले जाने भी तो नहीं दिया !”
“घर का रास्ता तो पकड़ाने दिया ! बाकी समझो कि जहमत से बचाया ।”
“तुम्हारे पास हर बात का जवाब है ।”
“छोड़ो वो किस्सा । और कोई बात करो ।”
“और क्या बात ?”
“कल की सोशल सर्विस की कोई शाबाशी चाहते हो तो बोलो ।”
“दोगी ?”
“क्यों नहीं ? तभी तो पूछा !”
“शाम को क्या कर रही हो ?”
“क्यों पूछ रहे हो ?”
“आज मेरी शार्ट शिफ्ट है । कोई मेजर इमरजेंसी न आन खड़ी हुई तो नौ बजे छुट्टी हो जायेगी । एक शाम खाकसार के नाम कर सको तो समझना शाबाशी से बडे़ हासिल से नवाजा ।”
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