RE: Thriller Sex Kahani - सीक्रेट एजेंट
वो हंसी ।
“फंदेबाज हो ।” - फिर बोली - “एक नम्बर के ।”
“तो फिर क्या जवाब है ?”
“ओके ।”
“कहां मिलेगी ?”
“घर पर आना । फाइव, नेलसन एवेन्यू । मालूम, किधर है ?”
“मालूम । तुम्हारे पापा ऐतराज नहीं करेंगे ?”
“देखना ।”
“देखना बोला ?”
“हां, भई । मिलवाऊंगी न उनसे, फिर देखना ऐतराज करते हैं या नहीं !”
“ओह !”
“माई फादर इज ए ग्रैंड गाय ।”
हर बेटी समझती है कि उसका बाप महान है, उस जैसा कोई नहीं ।
“मेरे से बहुत प्यार करते हैं - मां नहीं है इसलिये मां की कमी भी उन्होंने ही पूरी करनी होती है-मेरी आजादी में, मेरे लाइफ स्टाइल में कभी दखलअंदाज नहीं होते । एक ही हिदायत देते हैं । बी रिस्पांसिबल । एण्ड आई डू ऐग्जैक्टली दैट ।”
“ठीक है । आता हूं ।”
“वैलकम ।”
तभी नीलेश को ‘सी-गल’ में रोमिला कदम रखती दिखाई दी ।
उस घड़ी वो जींस और स्कीवी पहने थी और एक बड़ा सा बीच बैग सम्भाले थी । अपने बाल उसने पोनीटेल की सूरत में सिर के पीछे बांध लिये हुए थे ।
उसकी नीलेश से आंख मिली तो वो दृढ़ कदमों से उधर बढ़ी ।
“हल्लो, रोमिला !” - नीलेश जबरन मुस्कराता और लहजे में मिठास घोलता बोला - “श्यामला से मिलो ।”
“दोनों में औपचारिक ‘हाय’ आदान प्रदान हुआ ।
“श्यामला मोकाशी ।” - नीलेश आगे बढ़ा - “म्यूनीसिपैलिटी के...”
“मालूम ।”
“गुड । श्यामला, रोमिला कोंसिका क्लब में मेरी फैलो वर्कर है । कलीग है ।”
“फेस इज फैमिलियर ।” - श्यामला शुष्क स्वर में बोली और एकाएक उठ खड़ी हुई, जल्दी से उसने काफी के मग के नीचे एक सौ का नोट दबाया और नीलेश की तरफ घूमकर बोली - “आई एम सारी अबाउट दि ईवनिंग...”
“बोले तो ?” - नीलेश सकपकाया ।
“मुझे अभी याद आया कि शाम की मेरी कहीं और प्रीशिड्यूल्ड अप्वायंटमेंट है । बातों में बिल्कुल भूल गयी थी लेकिन अच्छा हुआ वक्त पर याद आ गयी । सो, बैटर लक नैक्स्ट टाइम । नो ?”
“यस ।”
लम्बे डग भरती वो वहां से रुखसत हो गयी ।
“चलता हूं थोड़ी देर हर इक राहरौ के साथ” - श्यामला भावहीन स्वर में बोली - “पहचानता नहीं हूं अपनी राहबर को मैं ।”
“मेरे से कह रही हो ?”
“नहीं बेध्यानी में बड़बड़ा रही थी ।”
“बैठो ।”
“क्योंकि सीट खाली हो गयी है ।”
“जली कटी भी सुनानी हैं तो बैठ के ये काम बेहतर तरीके से कर सकोगी ।”
वो धम्म से उसके सामने बैठी ।
“काफी ?” - नीलेश बोला ।
“उसी के लिये आयी थी, अब मूड नहीं है ।”
“क्यों ? क्या हुआ मूड को ?”
“हुआ कुछ । अपनी बोलो !”
“क्या ?”
“चिड़िया को चुग्गा डाल रहे थे ?”
“चिड़िया ?”
“जो उड़ गयी फुर्र करके । जो मेरे से भाव खा गयी । पहचान गयी मैं कोंसिका क्लब की बारबाला थी । बेचारी को बिलो स्टेटस ‘हल्लो’ बोलना पड़ गया । अप्वायंटमेंट ब्रेक कर दी । बारबाला को फ्रेंड बताने वाले के साथ काहे को अप्वायंटमेंट...”
“कलीग ! फैलो वर्कर !”
“तुम्हारे कहने से क्या होता है ? खुद वो क्या अंधी है ? रोटी को चोची कहती है ?”
“हम फ्रेंड कब हुए ?”
“नहीं हुए । लेकिन जैसी बेबाकी से तुमने उससे मेरा तआरुफ कराया, उससे उसने तो यही समझा !”
“औरतों की अक्ल !”
“सारी, नीलेश । मेरी वजह से तुम्हारा नुकसान हो गया । नोट गिनना शुरु करने से पहले ही गड्डी हाथ से निकल गयी ।”
“वाट द हैल !”
“यू टैल मी वाट द हैल ?”
“अरे, जो मेरे फ्रेंड को फ्रेंड न समझे, उसकी फ्रेंडशिप नहीं मांगता मेरे को ।”
“बढ़िया ! मेल ट्रेन निकल गयी तो अब पैसेंजर ट्रेन को भाव दे रहे हो ।”
“तू पैसेंजर ट्रेन है ?”
“हूं तो नहीं ! लेकिन अभी के वाकये ने अहसास ऐसा ही दिलाया ।”
“अब छोड़ वो किस्सा ।”
“सब साले रंगे सियार हैं । मेरा इन एण्ड आउट एक तो है ! इन लोगों का एक तो हो ही नहीं सकता । साले भीतर से कुछ, बाहर से कुछ !”
“किन की बात कर रही है ?”
“जो आइलैंड पर कब्जा किये बैठे हैं । बारबाला को प्रास्टीच्यूट समझते हैं तो क्यों है बार वालों को बारबाला ऐंगेज करने की इजाजत ? काबिल एडमिनिस्ट्रेटर बने इस उंची नाक का बाप ! अंकुश लगाये इस लानत पर ! कैसे करेगा ? कैसे होगा ? उसको भी कभी तनहाई सताती है या रंगीनी लुभाती है तो किधर छोकरी वास्ते बोलता है ? कोंसिका क्लब ! इम्पीरियल रिट्रीट ! मनोरंजन पार्क !”
“वहां भी ?”
“बरोबर ! उधर भी ड्रग्स का कारोबर चलता है । चकला चलता है । सब त्रिमूर्ति के कंट्रोल में है ।”
“त्रिमूर्ति !”
“अभी जो भुनभुनाती यहां से गयी, उसका बाप-बाबूराव मोकाशी । इम्पीरियल रिट्रीट का बिग बॉस फ्रांसिस मैग्नारो । लोकल थाने का महाकरप्ट थानेदार अनिल महाबोले ।”
“ओह !”
“क्या ओह ! तुम्हें सब मालूम है । कौन सा गैरकानूनी काम है जो इन लोगों की प्रोटेक्शन में आइलैंड पर नहीं होता ? गेम्बलिंग, प्रास्टीच्यूशन, एक्साइज अनपेड लिकर, ड्रग्स । हर चीज बेट है जो टूरिस्ट्स को फंसाती है, उनकी जेबें हल्की-बल्कि खाली-कराती है और त्रिमूर्ति चांदी काटती है । मैग्नारो की छोड़ो, वो मवाली है, रैकेटियर है, महाबोले या मोकाशी में से एक भी कमर कस ले तो कैसे ये अराजकता चलती रह सकती है ? लेकिन कौन कस ले ? क्यों कस ले ? सब एक ही थैली के चट्टे बट्टे तो हैं !”
|