RE: Thriller Sex Kahani - सीक्रेट एजेंट
“कोई गारंटी नहीं । इधर कोइ दूसरी जॉब न मिलने के बावजूद वो इधर टिका रह सकता है । इधर रिहायश के लिये किधर का भाड़ा भरा । माहीना भाड़ा भरा । क्या पता भाड़ा बरोबर करने के लिये ही इधर से न टले !”
“ऐसा ?”
“हां ।”
“तो फिर ?”
“कुछ और करना होगा ।”
“क्या ?”
“सुन । उसको हड़काने का । ताकत बताने का । आज रात को रोनी डिसूजा को लेकर उधर जा । उधर तेरे को खाली वाच करने का-ताकि ये न लगे पुलिस ने हड़काया-जो करेगा रोनी डिसूजा करेगा । वो इन कामों में एक्सपर्ट है । उसका पढ़ाया लैसन जल्दी भीङू की समझ में आयेगा ।”
“ठोक देगा ?”
“देखना ! नीलेश को लालेश कर देगा, कालेश कर देगा ।”
“ओह !”
“डिसूजा को बोल के रखने का कोई हड्डी न टूटे, कोई खून बहने वाली चोट न लगे, इतना दम खम उसमें बराबर छोड़ दे कि वो खुद अपने पांव पांव चल कर आइलैंड से नक्की हो सके । क्या !”
“मै सब समझ गया, सर जी । पण बोले तो…”
“क्या कहना चाहता है ?”
“ये काम मैं भी तो कर सकता हूं ? ‘इम्पीरियल रिट्रीट’ से भीङू बुलाने की क्या जरूरत है ?”
“है जरूरत । तू साला ठोकेगा तो पुलिस वालों की माफिक ठोकेगा । उसको स्ट्रेचर केस बना देगा । हास्पीटल केस बना देगा । मेरे को नहीं मांगता । मेरे को उस भीङू का जैसा हैंडलिंग मांगता है उसका तजुर्बा खाली डिसूजा को है । वही उस भीङू को पर्फेक्ट करके हैंडल करेगा । एण्ड दैट्स फाइनल ।”
“यस, बॉस ।”
“क्या टेम है उसके घर पहुंचने का ?”
“लेट ही पहुंचता है । एक तो आम बज जाता होगा ! पण मेरे को मालूम आज के दिन उसकी शार्ट डयूटी होती है । नौ बजे उधर से नक्की कर जाता है ।”
“उसका किराये का कॉटेज मालूम किधर है ? कौन सा है ?”
“मालूम ।”
“बढ़िया । उससे पहले उधर पहुंचने का और भीतर घुस के उसके समान को भी टटोलने का । क्या !”
“मै समझ गया, सर जी ।”
“कोई बात पूछनी हो तो बोल !”
“नहीं, सर जी ।”
“मै जाता हूं ।”
“इधर नही ठहरने का अभी ?”
“नहीं ।”
“जरूरत पड़े तो किधर कांटैक्ट करें ?”
“मालूम है तेरे को । लेकिन खामखाह कांटैक्ट नहीं करना । कोई बड़ी इमरजेंसी आन खड़ी हो, तो ही कांटैक्ट करना । क्या !”
“बरोबर, सर जी ।”
***
साढ़े सात बाजे के करीब इंस्पेक्टर महाबोले उस होस्टलनुमा इमारत पर पहुंचा तो मिसेज वालसंज बोर्डिंग हाउस के नाम से जानी जाती थी और जिसके दूसरी मंजिल के एक कमरे में रोमिला सावंत की रिहायश थी ।
बाजू के रास्ते वो दूसरी मंजिल पर पहुंचा ।
अभी शाम ढ़ली ही थी इसलिये वो जानता था सामने के रास्ते पर बहुत आवाजाही स्वाभाविक थी ।
वो रोमिला के कमरे के बंद दरवाजे पर पहुंचा । उसने हैंडल ट्राई किया तो पाया कि वो मजबूती से बंद था ।
साली !
अपने गुस्से की तर्जुमानी करती मजबूत दस्तक उसने दरवाजे पर दी ।
भीतर से कोई आावाज न अयी, फिर ऐसा लगा जैसे भीतर कोई खुसर पुसर हुई हो, फिर खामोशी छा गयी ।
कुतरी भीतर कोई यार घुसाये बैठी थी ।
उसने फिर, पहले से ज्यादा गुस्से से, ज्यादा जोर से, दरवाजा खटखटाया । दरवाजा खुला, चौखट पर रोमिला प्रकट हुई ।
“ठहर के आना ।” - वो दबे कंठ से बोली - “प्लीज ! दस मिनट में ।”
“बाजू हट !” - दांत पीसता वो बोला ।
साथ ही उसने दरवाजे को जोर का धक्का दिया तो दरवाजे ने ही रोमिला को परे धकिया दिया ।
“बॉस, प्लीज ! प्लीज…”
उसकी फरियाद को पूरी तरह से नजरअंदाज करते महाबोले ने भीतर कदम डाला ।
बैड के बाजू में एक ड्रेसिंग टेबल थी जिसके सामने एक सूटधारी अधेड़ व्यक्ति खड़ा था जो शीशे में झांकता बड़ी हड़बड़ी में अपने बालों में कंघी फिरा रहा था ।
महाबोले उस शख्स से वाकिफ नहीं था लेकिन उसे उसकी सूरत पहचानी जान पड़ रही थी । उसने दिमाग पर जोर दिया तो वजह उसे सूझ गयी । दिन में जब वो जीप पर सवार मनोरंजन पार्क वाली सड़क से गुजर रहा था तो उसने पुल पर रोमिला को उस श्ख्स के साथ हंस हंस कर बतियाते देखा था ।
उसने घूम कर रोमिला की तरफ देखा ।
वो दरवाजा बंद कर चुकी थी और अब भयभीत सी उसके साथ पीठ लगाये खड़ी थी ।
महाबोले की निगाह उसके चेहरे पर से फिसली तो उसकी पोशाक पर फिरी ।
वो एक झीनी नाइटी पहने थी जो वो जरा हिलती थी तो इधर उधर हो जाती थी और उसका पुष्ट, सैक्सी जिस्म नुमायां होने लगा था ।
“इधर आ !” - वो फुम्फकारा ।
बड़ी मुश्किल से दरवाजा छोड़कर उसने दो कदम आगे बढ़ाये !
“कौन है ये ?”
“य-य-ये…ये…”
“यहां क्या कर रहा है ?”
“सदा” - वो अधेड़ व्यक्ति से सम्बोधित हुई - “तुम चलो ।”
उस व्यक्ति ने व्याकुल भाव से महाबोले की तरफ देखा ।
“मै सम्भालती हूं इधर ।”
वो व्यक्ति डरता झिझकता परे परे से दरवाजे की ओर बढ़ा ।
“नाम बोल !”
“स-सदा…सदानंद रावले ।”
“मेरे को जानता है ?”
उसका सिर जल्दी से सहमति में हिला ।
“वर्दी में नही हूं फिर भी पहचानता है ?”
उसका सिर पहले से ज्यादा तेजी से सहमति में हिला ।
“बाप” - साथ ही बोला - “मैं कुछ नहीं किया । मैं कोई पंगा नहीं मांगता ।”
“शादीशुदा है ?”
“हां, बाप । इसी वास्ते कोई पंगा नही मांगता ।”
“बॉस” - गिड़गिड़ाती सी रोमिला बोली - “इसको जाने दो न !”
“साला जोरूवाला है” - “महाबोले तिरस्कारपूर्ण स्वर में बला - “फिर भी इधर उधर मुंह मारता है । प्रास्टीच्यूशन को प्रोमोट करता है । अंदर करता हूं ।”
“बाप” - रावले गिड़गिड़ाया - “मेरे दो छोटे छोटे बच्चे हैं ।”
“लो ! बच्चे भी हैं ! नीडी हो तो कोई बात भी है, ये तो साला ग्रीडी है ! साला फुल नपेगा ।”
“इसको जाने दो ।” - इस बार रोमिला, गिड़गिड़ाने की जगह दृढ़ता से बोली ।”
महाबोले हड़बड़ाया
“तेरे कहने पर ?” - फिर उसे घूरता हआ बोला ।
“हां ।” - रोमीला ने दृढ़ता से उससे आंख मिलाई - “मेरे कहने पर ।”
“क्यों ? होशियारी आ रही है ?”
“हां । यही बात है ।”
महाबोले फिर हड़बड़ाया ।
रोमिला ने रावले को इशारा किया ।
मन मन के कदम उठाता, किसी भी क्षण वापीस घसीट लिये जाने कि उम्मीद करता, वो दरवाजे पर पहुंचा, उसने दरवाजा खोला और फिर बगूले की तरह वहां से बाहर निकल गया ।
उसके पीछे दरवाजा खुद ही झूल कर बंद हो गया ।
कुछ क्षण उसके धड़ धड़ सीढ़ियों पर पड़ते कदमों की आवाज वहां पहुंचती रही, फिर खामोशी छा गयी ।
पीछे कमरे में भी कुछ क्षण खामोशी छाई रही, जिसे आखिर महाबोले ने ही तोड़ा ।
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