RE: Thriller Sex Kahani - सीक्रेट एजेंट
“नहीं ।” - सिपाही सहज भाव से बोला - “छुट्टी करके घर गया ।”
“कहां ?”
“अरे, बोला न, घर गया ?”
“मैंने बराबर सुना न ! मैं पूछ रहा हूं घर कहां है उसका ?”
“अच्छा वो ! तिलक स्ट्रीट में है । ग्यारह नम्बर ।”
“शुक्रिया ।”
एक आटो पर सवार होकर वो तिलक स्ट्रीट पहुंचा ।
ग्यारह नम्बर एक छोटा सा एकमंजिला मकान निकला ।
मकान के दायें बाजू में एक संकरी सी गली थी जिसमें मकान की एक खिड़की थी जो खुली थी और रात की उस घड़ी सिर्फ उसी में रोशनी दिखाई दे रही थी ।
दबे पांव वो उस खिड़की पर पहुंचा । सावधानी से सिर उठा कर उसने भीतर झांका ।
वो एक छोटा सा बैडरूम था जहां एक बिना बांहों की कुर्सी पर हवलदार खत्री बैठा हुआ था । उसकी वर्दी की कमीज कुर्सी की पीठ पीछे टंगी हुई थी । उसका मुंह दायीं तरफ यूं सूजा हुआ था कि गाल का रंग बदरंग था और आंख के नीचे सूजन का ये हाल था कि वहां तब तक काला पड़ चुका गूमड़ निकल आया हुआ था जिसकी वजह से उधर की आंख लगभग बंद हो गयी थी । एक महिला - जो कि जरूर उसकी बीवी थी - गर्म प्रैस से कपडे़ की गद्दी को गर्मा कर उसका गूमड़ सेंक रही थी और जब भी गर्म गद्दी उसके गाल को छूती थी, उसके मुंह से कराह निकल जाती थी ।
नीलेश खिड़की पर से हट गया ।
अपने एक हमलावर की शिनाख्त अब उसे निश्चित रूप से हो चुकी थी ।
अब वो संतुष्ट था कि सारे वार उसी ने नहीं झेले थे, उसका भी कोई वार किसी को झेलना पड़ा था ।
पीछे थाने में दोनों बडे़ खलीफा संजीदासूरत एक दूसरे के रूबरू थे ।
“क्या हो रहा है ?” - फिर मोकाशी बोला ।
“क्या होना है ?” - लापरवाही से कंधे उचकाता महाबोले बोला - “एक श्याना पल्ले पड़ गया है ।”
“गोखले !”
“और कौन ?”
“इस वास्ते ठोक दिया !”
“श्यानपंती तो निकालने का था न ! श्यानपंती कौन मांगता है इधर ! या मांगता है ?”
“नहीं । लेकिन इतनी जल्दबाजी की क्या जरूरत थी ?”
“जल्दबाजी !”
“पहले मेरे से जिक्र किया होता !”
“सर, दिस इज पोलिस मैटर !” - महाबोले अप्रसन्न भाव से बोला - “आपसे जिक्र करने लायक बात कौन सी थी इसमें ?”
“पुलिस मैटर था इसलिये तुमने खुद हैंडल किया । क्योंकि तुम्हें अपने तजुर्बे पर नाज है, समझते हो तुम पुलिस मैटर को बढ़िया हैंडल करते हो । ठीक !”
“क्या कहना चाहते हैं ?”
“मुम्बई से आयी वो टूरिस्ट महिला भी पुलिस मैटर थी, नशे में जिस पर लार टपकाने लगे थे, जिसके गले पड़ गये थे, जिसका जिगजैग ड्राइविंग का चालान करने की धमकी दी थी और जिसके हैण्डबैग में मौजूद दो सौ डालर निकाल लिये थे !”
महाबोले ने मुंह बाये मोकाशी की तरफ देखा ।
“मोस्ट इम्पार्टेंट पुलिस मैटर था जिस वजह से उसे खुद हैण्डल किया । ट्रैफिक कॉप का काम थाने के एसएचओ ने किया । और क्या खूब किया ! हाइवे रॉबर्स को मात कर दिया ।”
“कौन बोला ?” - महाबोले के मुंह से निकला ।
“कोई तो बोला ! गजट में तो छपा नहीं था जहां से कि मैंने पढ़ लिया !”
“इधर से किसी ने मुंह फाड़ा ?”
मोकाशे ने जवाब न दिया ।
“जान से मार दूंगा ।” - महाबोले दांत पीसता बोला ।
“यानी नये स्टाइल से खुदकुशी करोगे !”
“मेरा कोई बाल नहीं बांका कर सकता ।”
“कोई नहीं कर सकता । खुद तो कर सकते हो न ! जाने अनजाने यही कर रहे हो तुम । क्या !”
महाबोले ने बेचैनी से पहलू बदला ।
“एक बात ऐसी है जो तुम्हें नहीं मालूम लेकिन किसी तरीके से मेरे तक पहुंची है । सुनो, क्या बात है ! सुन रहे हो ?”
महाबोले ने तनिक हड़बड़ाते हुए सहमति में सिर हिलाया ।
“वो टूरिस्ट महिला, जिसे तुम भूल भी चुके हो- नाम मीनाक्षी कदम - अपनी बद्किस्मती समझो कि एक सिटिंग एमपी की करीबी निकली है जिसको कि मुम्बई लौट कर उसने अपनी आपबीती सुनाई थी । एमपी उसे सीधा मंत्रालय में होम मिनिस्टर के पास ले कर गया था जिसने आगे मुम्बई के पुलिस कमिश्नर को तलब किया था...”
“ब-बात इतनी ऊपर तक पहुंच गयी !”
“हां ।”
“लेकिन कोई...कोई रियेक्शन तो सामने आया नहीं ! हुआ तो कुछ भी नहीं !”
“इसी बात की मुझे हैरानी है ।”
“लेकिन...”
“एक बात हो सकती है ।”
“क्या ?”
“कई शातिर चोर उचक्कों की माडस अप्रांडी है कि वो पुलिस का बहूरूप धारण करके आपरेट करते हैं । ऊपर शायद ये बात किसी को हज्म नहीं हुई कि खुद इलाके का एसएचओ ऐसी कोई टुच्ची हरकत कर सकता हो । उन्हें यही मुमकिन लगा हो कि इंस्पेक्टर की वर्दी में कोई बहुरूपिया था जो यहां उस टूरिस्ट महिला से-मीनाक्षी कदम से-टकराया था ।”
“ऐसा हो तो सकता है लेकिन-खानापूरी के लिये ही सही-कोई छोटी मोटी इंक्वायरी तो फिर भी सामने आयी होनी चाहिये थी !”
“क्या पता सामने आयी हो और वो इतनी खुफिया रही हो कि तुम्हें खबर ही न लगी हो !”
महाबोले के चेहरे पर विश्वास के भाव न आये ।
“उस रोज तुम इतने टुन्न थे कि थाने में लौट के मुंह फाड़ा था, अपनी करतूत की शेखी बघारी थी । याद तो होगा नहीं कुछ !”
महाबोले खामोश रहा ।
“अपनी म्यूनीसिपैलिटी के प्रेसीडेंट की हैसियत में मैं एक तरह से इस आइलैंड का एडमिनिस्ट्रेटर हूं । इसलिये यहां के ठहरे पानी में कोई पत्थर आ के गिरता है तो उसकी मुझे खबर होनी चाहिये । अब इस बात की रू में जवाब दो - गोखले पुलिस मैटर है ? सिर्फ पुलिस मैटर है ?”
महाबोले का सिर स्वयमेव इंकार में हिला ।
“तुम खुद कुबूल करते हो कि खानापूरी के लिये ही सही, तुम्हारी उस करतूत की रू में कोई छोटी मोटी इंक्वायरी सामने आनी चाहिये थी । ऐसी कोई इंक्वायरी होगी तो जरूरी है कि तुम्हें उसकी खबर लगे ?”
“जरूरी है । थाने आये बिना कैसे होगी इंक्वायरी उस बाबत ?”
“वो बात मेरे को मालूम है । मैं थाने आया था ?”
“नहीं । इस काम के लिये तो नहीं !”
“फिर भी बात मुझे मालूम हुई न ! कैसे हुई ?”
“आप बताइये ।”
“जवाब कोई इतना मुश्किल तो नहीं कि खुद तुम्हें न सूझे !”
उसने उस बात पर विचार किया ।
“मेरे आदमी मेरे वफादार हैं” - फिर बोला - “फिर भी किसी ने मुंह फाड़ा !”
“इंसानी फितरत का ऊंट कब किस करवट बैठेगा, कोई नहीं जानता । बहरहाल बात गोखले की हो रही थी । क्या वो खुफिया इंक्वायरी एजेंट हो सकता है ?”
“वो ! नहीं ! उसकी उतनी ही औकात है जितनी उसकी कोंसिका क्लब की नौकरी में उजागर है ।”
“वो बाहरी आदमी है...”
“शुरू में हर कोई बाहरी आदमी ही होता है ।”
“हर कोई बराबर । लेकिन उन्हीं में से कोई हर कोई होने की जगह खास भी निकल आता है । गोखले मुझे दूसरी टाइप का हर कोई जान पड़ता है ।”
“गलत जान पड़ता है । कुछ नहीं है वो । आपका अंदेशा अपनी जगह सही है लेकिन वो अंदेशा आपकी आदत भी तो बन चुका है !”
मोकाशी की भवें उठीं ।
“फ्रांसिस मैग्नारो के कदम आइलैंड पर पडे़ थे, तब भी आपको ऐसे ही अंदेश ने सताया था । आपको लगा था वो हम दोनों पर हावी हो जायेगा । अब क्या कहते है ?”
“मैंने क्या कहना है ! वो और उसका गैंग तुम्हारी वजह से आइलैंड पर है । तुमने उसे यहां आने को न्योता था । उसकी बाबत जो जानते हो, तुम्हीं बेहतर जानते हो ।”
“तो मेरी जानकारी पर ऐतबार लाइये । ही इज ए सेफ बैट एण्ड ही इज विद अस लाइक हैण्ड इन ग्लव ।”
“फिर क्या बात है !”
“मैग्नारो बहुत स्मार्ट आपरेटर है । जुए और प्रास्टीच्यूशन और ड्रग पैडलिंग का जो सिलसिला इतना उम्दा तरीके से यहां चल रहा है, वैसे उसे हम नहीं चला सकते । सब कुछ वो हैंडल करता है, वो आर्गेनाइज करता है, कोई खतरा सामने आता है तो कामयाबी से उसका मुकाबला वो करता है लेकिन उसके साथ चांदी हम भी काटते हैं । मैं मौजूदा सिलसिले से संतुष्ट हूं, आपको भी होना चाहिये ।”
“वो तो मैं हूं लेकिन मेरी चिंता दूसरी किस्म की है ?”
“क्या है आपकी चिंता ?”
“अब तक जब कभी भी सरकारी तौर पर हमारे खिलाफ कुछ हुआ है, प्रत्यक्ष हुआ है । हमारा अपना खुफिया तंत्र है इसलिये जो कुछ होने वाला होता है, हमें उसकी एडवांस में खबर लग जाती है इसलिये हम खबरदार हो जाते हैं । नतीजतन रेड मारने आये बाहरी लोगों के हाथ कुछ नहीं लगता । कोई इक्का दुक्का डोप पुशर पकड़ा जाता है या कालगर्ल पकड़ी जाती है तो वो अपनी इंडिविजुअल कैपेसिटी में पकड़ी जाती है इसलिये हम पर कोई हर्फ नहीं आता...”
“क्योंकि ये बात प्रत्यक्ष है कि पुलिस की लिमिटेशंस होती हैं, हम हर एक टूरिस्ट पर एक सिपाही नहीं अप्वायंट कर सकते इसलिये कहने को कोई इक्का दुक्का काली भेड़ निकल ही आती है जिसकी हमें खबर नहीं हो पाती ।”
“ठीक । ठीक । लेकिन मेरी चिंता ये है कि अगर कभी हमारा खुफिया तंत्र फेल हो गया, हमारे खिलाफ होने वाली कार्यवाही की वक्त रहते हमें खबर न लगी तो...तो क्या होगा ?”
“आप खातिर जमा रखिये । ऐसा नहीं होगा । मेरे होते ऐसा नहीं हो सकता । मेरी जर्रे जर्रे पर नजर है ।”
“महाबोले, ओवरकंफीडेंस ही वाटरलू बनता है ।”
|