Thriller Sex Kahani - सीक्रेट एजेंट
10-27-2020, 01:05 PM,
#26
RE: Thriller Sex Kahani - सीक्रेट एजेंट
“अच्‍छा ! क्‍या ?”
“हरीकेन ल्‍यूसिया ।”
“यहां तो इस खबर से काफी खलबली होगी !”
“फिलहाल यहां कोई खलबली नहीं है क्‍योंकि सुनने में आया है कि तूफान की मार होगी तो कोस्‍टल एरियाज पर ही होगी और कोनाकोना आइलैंड किसी भी कोस्‍ट से कम से कम पिच्‍चासी किलोमीटर दूर है ।”

“आई सी ।”
“फिर मैंने बोला न, समुद्री तूफान इधर गाहेबगाहे उठते ही रहते हैं ।”
“समुद्री तूफान और सुनामी जैसे तूफान में फर्क होता है ?”
“होता ही होगा ! क्‍योंकि सभी तूफान तो इंडोनेशिया, मलेशिया, थाईलैंड वगैरह से उठकर यहां नहीं पहुंचते ! सिर्फ अरब सागर में-जिसमें कि ये आइलैंड है-भी तो तूफान की खलबली मचती रहती है !”
“ठीक !”
“बहरहाल यहां जैसी पोजीशन होती है, उसकी एडवांस वार्निंग हमेशा इधर पहुंचती हैं । यहां के रैगुलर बाशिंदे तो तूफानों के आदी हैं, टूरिस्‍ट्स खतरा महसूस करते हैं तो कूच कर जाते हैं । तकरीबन तूफान गुजर जाने के बाद फिर लौट आते हैं ।”

“आने वाले तूफान की रू में कभी ऐसी नौबत नहीं आई कि सरकारी घोषणा हुई हो कि सारा आइलैंड खाली कर दिया जाये ?”
“नहीं, ऐसी नौबत कभी नहीं आयी ।”
“फिर तो गनीमत है ।”
यूं ही आइलैंड की विभिन्‍न सड़कों पर नीलेश गाड़ी दौड़ाता रहा और वो दोनों बतियाते रहे । नीलेश का असल मकसद श्‍यामला से अपने मतलब की कोई जानकारी निकलवाना था जो और नहीं तो अपने पिता और थानाध्‍यक्ष महाबोले के बारे में उसे हो सकती थी ।
“एक बात बताओ ।” - एकाएक वो बोली ।
नीलेश ने सड़क पर से निगाह हटाकर क्षण भर को उसकी तरफ देखा ।

“पूछो !” - फिर बोला ।
“तुम्‍हारी कितनी उम्र है ?”
“उम्र ! भई, काफी पुराना हूं मैं ।”
“कितना ?”
नीलेश से झूठ न बोला गया ।
“थर्टी नाइन ।” - वो बोला ।
“लगते तो नहीं हो !”
“लगता क्‍या हूं ?”
“बत्‍तीस ! तेतीस !”
“सलमान भाई का असर है ।”
“शादी बनाई ?”
“हां ।”
“बाल बच्‍चे हैं ?”
“अरे, बीवी ही नहीं है ।”
“क्‍या हुआ ?”
“चाइल्‍ड बर्थ में मर गयी ।”
“ओह ! जानकर दुख हुआ । दोबारा शादी करने की कोशिश न की ?”
“मेरे कोशिश करने से क्‍या होता है ? हर काम ने अपने टाइम पर ही होना होता है ।”

“इरादा तो है न ?”
“हां, इरादा तो है क्‍योंकि...”
वो ठिठक गया ।
“क्‍या क्‍योंकि ?” - वो आग्रहपूर्ण स्‍वर में बोली - “क्‍या कहने लगे थे ?”
“अकेले जवानी कट जाती है, बुढ़ापा नहीं कटता ।”
श्‍यामला ने हैरानी से उसकी तरफ देखा ।
“अब अपनी बोलो !”
“क्‍या ?” - वो हड़बड़ाई ।
“भई, उम्र ।”
“उम्र ! मेरी !”
“हां ।”
“तुम बोलो, तुम्‍हारा क्‍या अंदाजा है ?”
“सोलह !”
“मजाक मत करो ।”
“स्‍वीट सिक्‍सटीन !”
“अरे, बोला न, मजाक मत करो ।”
“तो खुद बोलो ।”
“चौबीस ।”
“अट्‌ठारह से ऊपर नहीं लगती हो । आनेस्‍ट ।”

“अगर ये कम्‍पलीमेंट है तो थैंक्‍यू ।”
“आइलैंड का दारोगा तुम्‍हारे पर टोटल फिदा है ।”
“टोटल फिदा क्‍या मतलब ? कौन सी जुबान बोल रहे हो ?”
“तुम पर दिल रखता है । तुम्‍हें अपना बनाना चाहता है ।”
“उसके चाहने से क्‍या होता है ?”
“तुम्‍हें मंजूर नहीं वो ?”
“हरगिज नहीं ।”
“तुम्‍हारे पापा को हो तो ?”
“तो भी नहीं । वैसे जो तुम कह रहे हो, वो किसी सूरत में मुमकिन नहीं ।”
“क्‍यों ? दोनों की गाढ़ी छनती है । मालिक बने बैठे हैं आइलैंड के । रिश्‍तेदारी में बंध जायेंगे तो एक और एक मिल कर ग्‍यारह होंगे ।”

“शट युअर माउथ ।”
“यस, मैम ।”
“आगे लैफ्ट में एक कट आ रहा है, उस पर मोड़ना ।”
“उस पर क्‍या है ?”
“अमेरिकन स्‍टाइल का एक डाइनर है । नाम ही ‘अमेरिकन डाइनर’ है ।”
“आई सी ।”
“बहुत बढि़या जगह है । सुपीरियर फूड, सुपीरियर सर्विस, सुपीरियर एटमॉस्फियर !”
“फिर तो महंगी जगह होगी !”
“बिल मैं दूंगी ।”
“नानसेंस ! मैंने जगह की ऊंची औकात की तसदीक में ये बात कही थी ।”
“ड्राइविंग की ओर ध्‍यान दो, मोड़ मिस कर जाओेगे ।”
अमेरिकन डाइनर वस्‍तुतः एक होटल में था जिसकी इमारत एक टैरेस पर यूं बनी हुई थी कि उसके पिछवाड़े से दूर तक नजारा किया जा सकता था । वहां काफी दूर ढ़लान से आगे जहां जमीन समतल हो जाती थी, वहां उसे रात के अंधेरे में रोशनियां चमकती दिखाई दीं ।

“वहां क्‍या है ?” - नीलेश ने पूछा ।
“कहां ?” - श्‍यामला ने उसके बाजू में आ कर सामने झांका ।
“वो, जहां पेड़ों के झुरमुट में रोशनियां चमक रही हैं ?”
“अच्‍छा, वो ! वो कोस्‍ट गार्ड्‌स की बैरकें हैं ।”
“ओह ! मुझे नहीं मालूम था रात के वक्‍त फासले से, हाइट से उनका ऐसा नजारा होता था ! इसीलिये पहचान न सका ।”
“वैसे पहचानते हो ? कभी गये हो उधर ?”
“हां ।”
“क्‍या करने ?”
“यूं ही आइलैंड की सैर पर निकला था तो उधर पहुंच गया था ।”
“बैरकों में ?”
“नहीं, भई । खाली सामने से गुजरा था ।”

“आई सी ।”
“तुम तो उनसे वाकिफ जान पड़ती हो !”
“नहीं । बस, इतनी ही वा‍कफियत है कि वहां मिलिट्री की छावनी जैसी बहुत तरतीब से बनी बैरकें हैं जो कि सुना है कि आधे से ज्‍यादा खाली हैं । ये वा‍कफियत भी इसलिये है कि यहां मैं आती जाती रहती हूं और कोई न कोई अंधेरे में चमकती उन रोशनियों का जिक्र कर ही देता है ।”
“आई सी ।”
“तुम आइलैंड की सैर करते उधर से गुजरे थे तो मालूम ही होगा कि यहां आने के लिये जिस रोड को हमने छोड़ा था, वही आगे बैरकों तक जाती है ।”

“मालूम है । अभी डाइनर भी न मालूम कर लें कैसा है ! तुम्‍हें तो मालूम ही है, कैसा है, मेरा मतलब था कि...”
“मैं समझ गयी तुम्‍हारा मतलब । आओ ।”
दोनों होटल में दाखिल हुए और सीढि़यों के रास्‍ते पहली मंजिल पर पहुंचे जहां कि डाइनर था ।
***
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RE: Thriller Sex Kahani - सीक्रेट एजेंट - by desiaks - 10-27-2020, 01:05 PM

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