Thriller Sex Kahani - सीक्रेट एजेंट
10-27-2020, 01:05 PM,
#29
RE: Thriller Sex Kahani - सीक्रेट एजेंट
इंस्‍पेक्‍टर अनिल महाबोले थाने में बैठा घूंट लगा रहा था और ये सोच सोच कर तड़प रहा था कि रोमिला तब भी उसकी पकड़ से बाहर थी । उसके हुक्‍म पर रामिला की तलाश में आइलैंड का हर बार, हर बेवड़ा अड्‍डा, हर रेस्‍टोरेंट छाना जा चुका था । उन जगहों पर भी उसकी तलाश करवाई जा चुकी थी जहां उसके होने की सम्‍भावना नहीं थी-जैसे कि इम्‍पीरियल रिट्रीट, मनोरंजन पार्क । उसकी हर सखी-सहेली, कालगर्ल को इस उम्‍मीद में टटोला जा चुका था कि शायद वो उसके पास पनाह पाये हो ।

सिपाही दयाराम भाटे उसके बोर्डिंग हाउस की नि‍गरानी पर तब भी तैनात था लेकिन वो वहां नहीं लौटी थी ।
इतनी महाबोले का गारंटी थी कि थी वो आाइलैंड पर ही कहीं क्‍योंकि वहां से कूच करने के लिये पायर पर पहुंचना लाजमी था और पायर भी उसकी मुस्‍तैद निगरानी में था ।
उसकी गैरबरामदी उसे एक ही तरीके से मुमकिन जान पड़ती थी:
साली किसी कस्‍टमर के साथ सोई पडी़ थी ।
ऐसे हर भीङू की खबर लेना किसी भी हाल में मुमकिन नहीं था ।
रोमिला के अलावा एक बात और भी थी जो उसे नशा नहीं होने दे रही थी ।

अपनी गश्‍त की ड्‍यूटी से लौट कर सिपाही अनंत राम महाले ने उसे बताया था कि उसने सवा दस बजे के करीब श्‍यामला मोकाशी को कोंसिका क्‍लब के नवें बाउंसर भीङू के साथ एक आल्‍टो में सवार देखा था ।
नीलेश गोखले !
श्‍यामला की डेट !
बाप की जानकारी में बेटी की डेट !
बाज न आया साला हरामी !
थाने से निकला और सीधा श्‍यामला को पिक करने पहुंच गया !
खून पी जाऊंगा हरामजादे का ।
कच्‍चा चबा जाऊंगा ।
आधी रात हो गयी ।
रोमिला की कोई खोजखबर उस तक न पहुंची ।
तब तक वो लिटर की एक तिहाई बोतल खाली कर चुका था । नशे के जोश में उसने खुद गश्‍त लगाने का फैसला किया ।

जैसे वो रोमिला की तलाश में निकलता तो रोमिला उसकी जहमत की लाज रखने के लिये ही उसके सामने आ खड़ी होती ।
वो बाहर आकर जीप पर सवार हुआ ।
ड्राइवर की ड्‍यूटी करने वाला ऊंघता सिपाही इंजन स्‍टार्ट होने की आवाज से चौकन्‍ना हुआ और उठ कर जीप की तरफ लपका लेकिन थानेदार साहब के हाथ के इशारे ने उसे परे ही ठिठक जाने के लिये मजबूर कर दिया ।
फिर जीप सड़क पर पहुंच गयी और उसकी निगाहों से ओझल हो गयी ।
महाबोले दिशाहीन ढ़ण्‍ग से सड़क पर कार दौड़ाने लगा । असल में वो बेवड़ों वाली सनक के हवाले था, ठीक से खुद नहीं जानता था कि कैसे वो अकेला आधी रात को सुनसान पड़ी तकरीबन सड़कों पर से रोमिला की बरामदी की उम्‍मीद कर सकता था ।

बहरहाल ड्राइव से उसको इतना फायदा जरुर हुआा कि ठंडी हवा उसको आानंदित करने लगी, उसके उखडे़ मूड को जैसे थपक कर शांत करने लगी और अब वो विस्‍की का वैसा सुरूर भी महसूस करने लगा जैसा वो थाने में तनहा बैठा पीता नहीं महसूस कर पा रहा था ।
जीप जमशेद जी पार्क के बाजू से गुजरी ।
एक बैंच पर उसे कोई पसरा पड़ा दिखाई दिया । उसने कार को बिल्‍कुल स्‍लो किया ।
दीन दुनिया से बेखबर एक बेवड़ा बैंच पर पड़ा था । उसका एक हाथ बैंच से नीचे लटका हुआा था और उसकी उंगलियों को छूती एक खाली बोतल घास पर पड़ी थी ।

वो नजारा करके थानेदार फिर हत्‍थे से उखड़ने लगा ।
अपने मातहतों को उसकी खास हिदा‍यत थी कि आइलैंड कि छवि खराब करने वाले ऐसे बेवड़ों को थाने लाकर लॉक अप में बंद किया जाये और सुबह उनके होश में आने पर उनकी करारी खबर ली जाये । ये काम खास तौर से हवलदार जगन खत्री के हवाले था जो कि पता नहीं कहां दफन था ।
दुम ठोकूंगा साले की ।
उसने कार की रफ्तार बढ़ाई तो इस तार वो दिशाहीन सड़कों पर न दौड़ी, इस बार वो निर्धारित दिशा में दौड़ी और आखिर मिसेज वालसन के बोर्डिंग हाउस पर पहुंची ।

सड़क के पार बरामदे में उसे खम्‍बे से पीठ सटाये स्‍टूल पर बैठा सिपाही दयाराम भाटे बड़ी असम्‍भव मुद्रा में सोया पड़ा मिली ।
महाबोले ने जीप से हाथ निकाल कर उसकी कनपटी सेंकी तो वो स्‍टूल पर से गिरते गिरते बचा । उसने घबराकर आांखें खोलीं, सामने एसएचओ को देख कर उसके होश उड़ गये । स्‍टूल के करीब पडे़ अपने जूतों में पांव फंसाने का असफल प्रयत्‍न करते उसने अटैंशन होने की असफल कोशिश की और जैसे सैल्‍यूट मारा ।
“साले !” - महाबोले गुर्राया - “सोने भेजा मैंने तेरे को इधर ? वो लड़की दस बार आके जा चुकी होगी और तेरे कान पर जूं नहीं रेंगी होगी ।”

“अरे, नहीं, साब जी” - वो गिड़गिड़ाता सा बोला - “मैं पूरी चौकसी से सामने की निगरानी कर रहा था । वो तो अभी दो मिनट पहले जरा सी आंख झपक गयी...”
“जरा सी भी क्‍यों झपकी ?”
“खता हुई, साब जी । अब नहीं होगा ऐसा ।”
“स्‍साला !”
महाबोल जीप से उतर कर बोर्डिंग हाउस की इमारत की ओर बढ़ा ।
गिरता पड़ता भाटे उसके पीछे लपका ।
“खबरदार !”
एक ही घुड़की से भाटे जहां था, वहीं फ्रीज हो गया ।
“वहीं ठहर !”
“जी,साब जी ।”
महाबोले जानता था बाजू की गली की सीढ़ियों का दरवाजा लाक्‍ड नहीं होता था, वो भीतर की तरफ से यूं अटकाया गया होता था कि धक्‍का देने से नहीं खुलता था लेकिन वो तीन बार आराम से हिलाने डुलाने पर खुल जाता था ।

वो इंतजाम इसलिये था ताकि वहां रहती पार्ट टाइम या फुल टाइम कालगर्ल्‍स की-या उनके क्‍लाइंट्स की रात-ब-रात आवाजाही से लैंडलेडी को कोई परेशानी न हो ।
वो चुपचाप, निर्विघ्‍न दूसरी मंजिल पर पहुंचा ।
उसने रोमिला का रूम अनलॉक्‍ड पाया । उसने हौले से धक्‍का देकर दरवाजा खोला, भीतर दाखिल हुआ और दीवार पर स्विच बोर्ड तलाश करके बिजली का एक स्‍वि‍च आन किया । कमरे में रोशनी हुई तो उसकी निगाहे पैन होती एक बाजू से दूसरे बाजू फिरी ।
कमरा ऐन उसी हालत में था जिसमें वो दिन में उसे छोड़ कर गया था । उसका सूटकेस बैड पर तब भी खुला पड़ा था और उसके कपडे़ कुछ सूटकेस में और कुछ सूटकेस से बाहर बिखरे हुए थे ।

नहीं, वहां वापिस नहीं लौटी थी वो ।
उसने बत्ती बुझाई, बाहर निकल कर अपने पीछे दरवाजा बंद किया और जिस रास्‍ते आया था, उसी रास्‍ते वापिस लौट चला ।
वो जीप के करीब पहुंचा तो वहीं खड़ा बेचैनी से पहलू बदलता भाटे तन गया ।
“शुक्र मना वो वापिस नहीं लोटी ।” - महाबोले उसे घूरता बोला - “वर्ना आज तेरी खैर नहीं थी । क्या !”
“चूक हो गयी, साब जी, फिर नहीं होगी ।”
“अभी स्‍टूल पर नहीं बैठने का, वर्ना साला फिर ऊंघ जायेगा । ये बाजू से वो बाजू वाक करने का । समझ गया ?”

“जी, साब जी ।”
“मैं लौट के आऊंगा । ये भी समझ गया ?”
“जी, साब जी ।”
“सोता मिला, या स्‍टूल पर बैठा भी मिला, तो‍ किचन में बर्तन मांजने की ड्‍यूटी लगाऊंगा ।”
“अरे, नहीं साब जी, मैं ऐन चौकसी से...”
“टल !”
भाटे कई कदम पीछे हट गया ।
महाबोले जीप में सवार हुआ और वहां से‍ निकल लिया ।
वो जानता था नशे में वो लापरवाह हो जाता था, कभी कभार तो इतनी पी लेता था कि विवेक से उसका नाता टूट जाता था । ऐसे में उसने कई बार कई बेजा हरकतें की थीं लेकिन वो उनको सम्‍भाल लेता था, उनसे होने वाले डैमेज को कंट्रोल कर लेता था । अपनी हालिया दो हरकतों पर उसे फिर भी पछातावा था । एक तो उसे मुम्‍बई से आयी उस टूरिस्‍ट महिला पर लार नहीं टपकानी चाहिये थी, जिसका नाम मोकाशी ने मीनाक्षी कदम बताया था, उसके दो सौ डालर तो हरगिज ही नहीं हड़पने चाहियें थे । दूसरे, रोमिला जैसी बारबाला से संजीदा ताल्‍लुकात नहीं बनाने चाहिये थे । औरतों का रसिया वो बराबर था लेकिन उसकी पालिसी ‘फक एण्‍ड फारगेट’ वाली थी । रोमिला में जाने क्‍या खूबी थी जो वो उसके साथ यूं पेश नहीं आ सका था । नशे में उसके पहलू में गर्क हो कर जाने क्‍या कुछ वो बकता था । अब लड़की उससे उखड़ गयी थी, उखड़ कर पता नहीं वो कहां क्‍या वाहीतबाही बकती । जो कुछ उस आइलैंड पर खुफिया तरीके से चल रहा था, उसकी रू में लड़की का उसके अंगूठे के नीचे से निकल जाना मेजर सिक्‍योरिटी रिस्‍क बन सकता था ।
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