RE: Thriller Sex Kahani - सीक्रेट एजेंट
नहीं, नहीं - वो खुद अपनी सोच से घबरा गया - ऐसा नहीं होना चाहिये था । उसका मिलना जरुरी था ।
ताकि उसको फौरन इलीमिनेट किया जा सकता और सिक्योरिटी रिस्क कवर किया जा सकता ।
वापसी में उसने खुद कई क्लबों और बारों के चक्कर लगाये और रोमिला सावंत की बाबत दरयाफ्त किया । वो आइलैंड का थानेदार था इसलिये उसे यकीन था कि कोई उससे झूठ बोलने की हिम्मत नहीं कर सकता था ।
हर जगह से एक ही जवाब मिला ।
नहीं, रोमिला वहां नहीं आयी थी ।
सिवाय लीडो क्लब से ।
हां, कोई तीन घंटे पहले रोमिला वहां आयी थी और उसने वहां की कारमला नाम की एक बारबाला से कुछ रोकड़ा उधार हासिल करने की कोशिश की थी ।
कोशिश कामयाब हुई थी ?
नहीं । बारबाला उसको उधार देने की स्थिति में नहीं थी, या उधार देना नहीं चाहती थी । तब रोमिला फौरन ही वहां से चली गयी थी ।
वापिसी में फिर वो जमशेद जी पार्क के सामने से गुजरा ।
बेवड़ा तब भी दीन दुनिया से बेखबर बैंच पर पड़ा था । उसके पोज तक में कोई तब्दीली नहीं आयी थी । उसकी एक बांह तब भी बैंच से नीचे लटकी हुई थी और उंगलियां घास पर पड़ी खाली बोतल को छू रही थीं ।
जरुर पूरी बोतल अकेला ही चढ़ा गया था ।
एकबारगी उसे खयाल आया कि वो ही उसे जीप पर लाद ले और थाने ले चले लेकिन फिर उसे मंजूर न हुआ कि मातहत हवलदार का काम खुद एसएचओ करे ।
वो ही करेगा अपना काम-उसने खुद को समझाया-थाने पहुंच कर तलब करता हूं साले को ।
जीप को फिर आगे बढ़ाने से पहले उसने डैश बोर्ड पर चमकती घड़ी पर निगाह डाली ।
एक बजा था ।
तब एकाएक उसे खयाल आया, उसने इतने ठीयों की नाकाम खाक छानी थी लेकिन एक जगह उसके जेहन से उतर गयी थि जो कि एकाएक उसे तब याद आयी थी ।
सेलर्स बार!
जो कि औल्ड यॉट क्लब के करीब था ।
वो उस बार से बाखूबी वाकिफ था-आखिर आइलैंड का मालिक-था इसलिये जानता था कि वो बहुत घटिया दर्जे का बार था और वैसी ही उसकी क्लायंटेल थी । रोमिला जैसी चिकनी, ठस्सेदार लड़की की वो वहां कल्पना नहीं कर सकता था । लेकिन क्या पता लगता था ! क्या पता वो इसी वजह से वहां गयी हो क्योंकि कोई उसकी वहां कल्पना नहीं कर सकता था !
उसने सेलर्स बार का भी चक्कर लगाने का फैसला किया ।
जब इतनी जगहों की खाक छानी थी तो एक जगह और सही ।
सेलर्स बार के मालिक का नाम रामदास मनवार था जो कि वहां का बारमैन भी था ।
उसके हुक्म पर बार के बाहर लगा जगमग नियोन साइन आफ किया जा चुका था, किचन और बार सर्विस बंद की जा चुकी थी, भीतर की भी ज्यादातर बत्तियां बुझाई जा चुकी थीं और खाली मेजों पर कुर्सियां उलटा कर रखी जा चुकी थीं ताकि सुबह फर्श धोने में कोई दिक्कत पेश न आती ।
ग्राहक सब या अपनी मर्जी से उठ कर जा चुके थे या जाने को मजबूर किये जा चुके थे ।
सिवाय एक नौजवान, पटाखा लड़की के जो कि बार के परले कोने में बार स्टूल पर बैठी हुई थी ।
अपनी तरफ से चलता मनवार उसके सामने पहुंचा ।
लड़की ने सिर न उठाया ।
मनवार हौले से खांसा ।
लड़की के सामने एक गिलास था जो वोदका-लाइम से दो तिहाई भरा हुआ था और पता नहीं कब से उसने उसमें से घूंट नहीं भरा था ।
उसने गिलास पर से सिर उठाया ।
“मेरे को बार बंद करने का ।” - मनवार खुश्क लहजे से बोला ।
लड़की को निगाह स्वयंमेव ही वाला क्लॅाक की ओर उठ गयी ।
“पांच मिनट और । प्लीज !” - रोमिला अनुनयपूर्ण स्वर में बोली ।
“पांचवीं बार ‘पांच मिनट और’ कह रही हो ! खाली तुम्हारी वजह से मैं इधर है वर्ना अभी तक घर पहुंच गया होता । सारा स्टाफ नक्की कर गया पण मैं साला इधर है ।”
“सारी ! बस पांच मिनट और । बस, आखिर बार बोली मैं । मेरा एक फ्रेंड इधर आने वाला है । बस, आता ही होगा ।”
“दो घंटे से इधर हो । दो घंटे में नहीं आया, अब क्या आयेंगा !”
“आयेगा । पहले कांटैक्ट न हुआ न ! अभी पंद्रह मिनट पहले कांटैक्ट हुआ । वो चल चुका है । बस, आता ही होगा ।”
“मैं और इंतजार नहीं कर सकता । घर से बीवी का दो बार फोन आ चुका है । मैं सारी बोलता है । मेरे को क्लोज करने का । बाहर जा कर फ्रेंड का इंतजार करो ।”
“मै तुम्हारे टाइम की फीस भर सकती हूं ।”
“फीस भर सकती हो ! क्या फीस भर सकती हो?”
“जो तुम बोलो ।”
“जो फीस मैं बोलूं, उसको भरने को रोकड़ा है तुम्हारे पास ?”
“मेरा फ्रेंड आ के देगा न !”
“नहीं चलेगा । आउट ! प्लीज !”
“बस, थोड़ी देर और । प्लीज !”
“नो !”
“मेरे पास इस ड्रिंक का पेमेंट करने को भी रोकड़ा नहीं है...”
“वांदा नहीं । कनसिडर युअर ड्रिंक आन दि हाउस ।”
“प्लीज, मैं...”
“वाट प्लीज ! मेरे को रात इधर खोटी नहीं करने का । बाहर चलो ।”
“लेकिन...”
“ठीक है, बैठो । मैं लॉक करके जाता है ।”
मनवार ने एक नाइट लाइट को छोड़ कर बाकी बची बत्तियां बंद कीं और सच में बाहर को चल दिया ।
रोमिला स्टूल पर से उठी और बार बार घड़ी पर निगाह डालती बाहर को बढ़ी ।
अपने ड्रिंक की तरफ उसने झांक कर भी न देखा ।
वो बाहर जा कर बार के आगे के सायबान के नीचे खड़ी हो गयी ।
मनवार बाहर निकला, उसने ताले लगाये और चाबियां एक हैण्डबैग के हवाले कीं । उसने संजीदगी से करीब खड़ी, बेचैनी से पहलू बदलती, परेशानहाल रोमिला की तरफ देखा ।
“किधर की लिफ्ट मांगता है तो बोलो ।” - वो सहानुभूतिपूर्ण स्वर में बोला ।
“अरे, मैंने बोला न मेरा एक फ्रेंड इधर आने वाला है !” - रोमिला चिड़ कर बोली - “कैसे इधर से जा सकती हूं ?”
मनवार ने लापरवाही से कंधे उचकाये । परे एक जेन खड़ी थी जिसमें वो जा सवार हुआ । कार को सड़क पर डालने के लिये उसको बैक करना जरूरी था । उसने वैसा किया तो वो एक बार फिर रोमिला के करीब पहुंच गया ।
“रात के इस टेम इधर से कोई आटो टैक्सी मिलना मुश्किल ।” - वो बोला - “सोच लो, फ्रेंड न आया तो रात इधर ही कटेगी ।”
“हमदर्दी का शुक्रिया । अब पीछा छोड़ो ।”
“स्पेशल करके फ्रेंड है ? गारंटी कि जरूर आयेगा ?”
“हां ।”
“ओके ! गुड लक ! एण्ड गुड नाइट !”
पीछे रोमिला अकेली खड़ी रह गयी ।
जो अंदेशा वो जाहिर करके गया था, उसमें दम था । नीलेश के न आने की सूरत में उसको भारी परेशानी का सामना करना पड़ सकता था, उसकी दुश्वारियों में एक नयी दुश्वारी का इजाफा हो सकता था ।
वो नीलेश के वापिस फोन भी नहीं कर सकती थी क्योंकि उसके मोबाइल पर चार्ज खत्म था । पहले भी उसने बार के पीसीओ से उसको फोन किया था ।
|