RE: Thriller Sex Kahani - सीक्रेट एजेंट
“मैं नहीं हूं ऐसी लेकिन अगर ऐसी समझते हो तो जाने दो मुझे । जो काम पहले दिन करना था, वो अब कर लो । मुझे बोलो इधर से नक्की होने को, मैं होती हूं ।”
“नक्की तो तेरे को होना ही है ।” - एकाएक जीप की रफ्तार घटने लगी - “और जो काम होना ही है, उसमें देर करने का का फायदा ?”
“क-क्या !”
“पण तू स्टाइल से नक्की होगी । ऐसे कि कुछ साथ ले के नहीं जायेंगी । जैसी तेरी मां तुझे दुनिया में लाई वैसे मैं तुझे अपने आइलैंड से आउट बोलूंगा ।”
“क्या !”
“साली, तेरा बदन ही तेरा है जिसकी कि तू तिजारत करती है । तू खाली अपनी चमड़ी ओढ़ के इधर से नक्की करेगी ।”
“देवा ! देवा !, ऐसा जुल्म न करना !”
वो हंसा ।
“मजाक ! मजाक कर रहे हो !”
वो फिर हंसा ।
“प्लीज, कह दो कि मजाक कर रहे हो ।”
“मैंने पहले कभी किया मजाक तेरे से ?”
“लेकिन...लेकिन...”
“चुप कर !”
उस घड़ी धीमी गति से चलती जीप रूट फिफ्टीन के ऐसे हिस्से से गुजर रही थी कि उसकी बायीं तरफ एक रेलिंग थी, रेलिंन के आगे ढ़लान थी और ढ़लान के आगे सड़क के समानांतर चलता एक गहरा नाला था ।
आती बार वो न्यू लिंक रोड से आया था जो कि आइलैंड पर हाइवे का दर्जा रखती थी इसलिये कभी उजाड़ नहीं होती थी । वापिसी में उस रोड को नजरअंदाज करके उसने पुरानी सड़क पकड़ी थी जो कि रूट फिफ्टीन कहलाती थी और जो रात के तकरीबन हर वक्त सुनसान पड़ी होती थी ।
उसने कार रोकी । वो रोमिला की तरफ घूमा ।
“अभी मैं साबित करके दिखाता हूं कि मेरी कोई बात मजाक नहीं ।”
उसके कहने का ढ़ण्ग ही ऐसा था कि रोमिला का दिल डूबने लगा ।
“क-क्या करोगे ?” - बड़ी मुश्किल से वो बोल पायी ।
“साबित करूंगा न, कि मैं मजाक नहीं करता । खास तौर से किसी गश्ती के साथ !”
“क्या करोगे ?”
“तेरे को मादरजात नंगी करूंगा और दफा करूंगा ।”
“तु-तुम ऐसा नहीं कर सकते ।”
“कौन रोकेगा मुझे ?”
“मैंने आगे किसी से बात की है । मैं तुम्हारे बारे में बहुत कुछ जानती हूं । मैं मुंह फाङूंगी तो...”
महाबोले ने उसको गले से पकड़ लिया ।
उसकी घिग्घी बंध गयी ।
“दूसरी बार तूने मेरे को ये हूल दी ।” - उसका स्वर हिंसक हो उठा - “किससे बात की है ! कौन-सा नया खसम किया है ? बोल !”
“पुलिस से ।”
“पुलिस से ! अरी, इडियट ! मैं हूं पुलिस ! यहां की पुलिस मेरे से शुरू होती है और मेरे पर खत्म होती है ।”
“तुम्हारी पुलिस से नहीं ।”
“तो और किस से ?”
“वो लोग बाहर से हैं ।”
“कौन लोग ? किसी एक का नाम ले !”
“गला छोड़ो ।”
महाबोले ने हाथ खींच लिया ।
“अब बोल !”
“गोखले ।”
“कौन ?”
“गोखले । नीलेश गोखले ।”
“वो कोंसिका क्लब का बाउंसर !”
“जो दिखाई देता है, हमेशा वही सच नहीं होता ।”
“बोले तो ?”
“वो सीक्रेट एजेंट है ।”
“पुलिस का ?”
“और किसका !”
“कहां की पुलिस का ?”
“जब मुम्बई से है तो मुम्बई पुलिस का ही होगा !”
“वो बोला तेरे को ऐसा ?”
“नहीं ।”
“तो फिर ?”
“मैंने भांपा ।”
“इतनी चतुर सुजान है तू कि साली इतनी बड़ी बात भांप ली ?”
“तुम मुझे कुछ न समझो तो इसका मतलब ये तो नहीं...”
“शट अप !”
रोमिला सहमकर चुप हो गयी ।
गोखले ! सीक्रेट एजेंट !
इस खयाल से ही उसको दहशत हो रही थी ।
अगर वो बात सच थी तो वो पहला मौका था जब कोई सरकारी एजेंट बिना उसकी, बिना उसके भेदियों की, जानकारी में आये आइलैंड पर पहुंच गया था ।
नहीं, नहीं । ऐसा नहीं हो सकता था । उसके भेदिये मुम्बई पुलिस में भी थे । उनसे इतनी चूक नहीं हो सकती थी कि कोई भेदिया उधर का रुख करता और उन्हें भनक तक न लगती ।
लड़की झूठ बोल रही थी । अपनी जान बचाने की खातिर यकीनन झूठ बोल रही थी, गोखले को मिसाल बना कर सीक्रेट एजेंट का हौवा खड़ा कर रही थी क्योंकि जानती थी कि वो ही एक भीङू था जो हाल में अकेला उधर आ के बसा था ।
गोखले आम आदमी था, वो सीक्रेट एजेंट नहीं हो सकता था । आखिर उसकी भी तो कुछ स्टडी थी ।
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