Thriller Sex Kahani - सीक्रेट एजेंट
10-27-2020, 01:27 PM,
#35
RE: Thriller Sex Kahani - सीक्रेट एजेंट
विकट स्थिति थी ।
उसकी अक्‍ल कहती थी कि गोखले एक मामूली आदमी था लेकिन जेहन के किसी कोने में ये बात भी सिर उठाती जान पड़ती थी कि रोमिला ने उसका जो आकलन किया था, वो सच हो सकता था ।
इसी उधेड़बुन में वो सड़क पर आकर जीप पर सवार हुआ ।
रोमिला के तन से उतारा सामान उसके लिये कोई प्राब्‍लम नहीं था, वो उसे झील में गर्क कर सकता था, समुद्र के हवाले कर सकता था जहां से कि वो कभी बरामद न हो पाता ।
वापिसी में वो फिर जमशेद जी पार्क से गुजरा और उसकी निगाह फिर बैंच पर लुढ़के पडे़ बेवडे़ पर पडी़ ।

वो तब भी उसी हालत में था जिस हालत में वो उसे पहले दो बार देख चुका था ।
साला मरा ही तो नहीं पड़ा था !
उसने जीप रोकी और गर्दन निकाल कर गौर से बेवड़े की तरफ देखा ।
नहीं, मर नहीं गया था । सांस चलती साफ पता लग रही थी ।
वो जीप आगे बढाने ही लगा था कि एक खयाल बिजली की तरह उसके जेहन में कौंधा !
ओह !
अब वो हवलदार जगन खत्री पर खफा नहीं था । अब वो खुश था कि उस रात उससे अपनी ड्‌यूटी में कोताही हुई थी । हवलदार ने उस रात अपनी ड्‌यूटी मुस्‍तैदी से की होती तो कवर अप का जो सुनहरा मौका उस घड़ी उसके सामने था, वो न होता ।

अब सब कुछ पहले से कहीं उम्‍दा तरीके से सैट हो जाने वाला था ।
वो जीप से उतरा और दबे पांव चलता बेवडे़ के करीब पहुंचा ।
उस घड़ी न पार्क में कोई था, न सड़क पर दोनों तरफ दूर दूर तक कोई था । उसने जेब से रोमिला का सामान और अपना रूमाल निकाला और बारी बारी एक एक आइटम को रगड़ कर, पोंछ कर-ताकि उस पर से फिंगरप्रिंट्स न बरामद हो पाते-बेसुध बैंच पर लुढ़के पडे़ बेवडे़ की जेबों में ट्रांसफर करना शुरू कर दिया ।
उसका काम मुकम्‍मल होने के और उसके वापिस जाकर जीप में सवार हो जाने के दौरान बेवड़े के कान पर जूं भी नहीं रेंगी थी ।

वो अपने थाने वापिस लौटा ।
वहां उसने अपनी वर्दी और जूतों का भी बारीकी से मुआयना किया और जहां कहीं झाड़ पोंछ की जरूरी महसूस की, पूरी सावधानी से की ।
शीशे के आगे खड़े हो कर उसने वर्दी का बारीक मुआयना किया और पीक कैप को सिर से उतार कर एक खूंटी पर टांगा । फिर वो अपने कमरे से निकला और बगल के कमरे पर पहुंचा । उस कमरे का दरवाजा आधा खुला था, बरामदे में से उसने दरवाजे के पार भीतर निगाह दौडा़ई ।
भीतर हवलदार खत्री, सिपाही महाले और सिपाही भुजबल बैठे ताश खेल रहे थे ।

जबकि तीनों में से एक को बाहर ड्‌यूटी रूम में होना चाहिये था जहां कि थाने का मेन टेलीफोन था जो कि कभी भी बज सकता था ।
ड्‌यूटी में कोताही के लिये उसने हवलदार खत्री की वाट लगाने का खयाल किया । लेकिन फौरन ही उस खयाल से किनारा कर लिया ।
वो उठ कर गश्‍त पर निकल पड़ता तो तभी पकड़ कर बेवडे़ को थाने ले आता ।
जो कि ठीक न होता ।
उसका इतना जल्‍दी पकड़ जाना स्‍वाभाविक न जान पड़ता ।
***
नीलेश की अपने मंजिल पर देर से पहुंचने की कई वजह बन गयीं ।

पहले पहिया पंचर हो गया, फिर वो रास्‍ता भटक गया, सही रास्‍ते लगा तो सेलर्स बार उसे दिखाई न दिया और वो आगे निकल गया । बहुत आगे से धीरे धीरे कार चलाता वो वापिस लौटा तो उस बार वो उसकी निगाह में आया ।
उसने बार के सामने कार रोकी ।
वहां सायबान के नीचे इकलौता बल्‍ब जल रहा था जिसके अलावा बार के भीतर बाहर सब जगह अंधेरा था । उसने कार से उतर कर बार की एक शीशे की खिड़की में से भीतर झांकने की कोशिश की तो भीतर अंधकार के अलावा उसे कुछ दिखाई न दिया ।

बहुत भीतर कहीं एक नाइट लाइट जान जान पड़ती थी जो उस अंधेरे में जुगनू की तरह टिमटिमा रही थी । नाइट लाइट की रोशनी इतनी कम थी कि अपने आजू बाजू को ही रोशन करने काबिल नहीं थी, खिड़की तक उसके पहुंचने का तो सवाल ही नहीं पैदा होता था ।
फिर उसकी तवज्‍जो बार के बंद दरवाजे पर टेप से लगे एक कागज की तरफ गयी । वो खिड़की पर से हटा और दरवाजे पर पहुंचा ।
कागज कम्‍प्‍यूटर पुलआउट था जिस पर कुछ दर्ज था ।
करीब मुंह ले जा कर, आंखें फाड़ फाड़ कर ही वो उस पर दर्ज इबारत को पढ़ सकते में कामयाब हो पाया । लिखा थाः

इन केस आफ इमरजेंसी प्‍लीज डायल ओनर रामदास मनवार ऐट 43922
आपातकलीन स्थिति में ‘43922’ पर बार के मालिक रामदास मनवार को फोन करें ।
उसने कलाई घड़ी पर निगाह डाली ।
डेढ़ बज चुका था । उसके हिसाब से बार को बंद हुए अभी कोई ज्‍यादा देर हुई नहीं हो सकती थी । उस लिहाज से तो मालिक ने अभी घर-जहां कहीं भी वो रहता था-बस पहुंचा ही होना था ।
उसने ‘43922’ पर काल लगाई ।
तत्‍काल उत्तर मिला ।
“क्‍या है ?” - उतावली आवाज आई - “कौन है उधर ? क्‍या मांगता है ?”
नीलेश ने अत्‍यंत अनुनयपूर्ण स्‍वर में बताया वो क्‍या मांगता था ।

“हां ।” - जवाब मिला - “जैसा तुम बोला, था वैसा एक छोकरी उधर । टू आवर्स से किसी से फोन पर कांटैक्‍ट करता था पण होता नहीं था । आखिर कांटैक्‍ट हुआ तो उसका वेट करता था । बार का क्‍लोजिंग टाइम हो गया, क्‍लोजिंग टाइम से ज्‍यास्‍ती टाइम हो गया, फिर भी वेट करता था । मैं बोला मेरे को पाजिटिवली बार बंद करने का था तो बड़ा बोल बोला ।”
“बड़ा बोल !”
“बरोबर ।”
“बड़ा बोल क्‍या ?”
“बोला, बार एक्‍स्‍ट्रा टेम खोल के रखने वास्‍ते मेरे को कम्‍पैंसेट करेगा । मेरे टेम की फीस भरेगा !”
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RE: Thriller Sex Kahani - सीक्रेट एजेंट - by desiaks - 10-27-2020, 01:27 PM

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