RE: Thriller Sex Kahani - सीक्रेट एजेंट
“अच्छा, ऐसा बोली वो ?”
“बरोबर ! पण किधर से टेम की फीस भरने का था ! बार से एक ड्रिंक लिया, उसका पेमेंट करने का वास्ते तो रोकड़ा था नहीं उसके पास । साफ, खुद ऐसा बोला । मैं भी नोट किया कि ऐसीच था । खाली एक कायन पर्स था उसके पास जिसमें से कायन निकालती थी और पीसीओ से किधर फोन लगाती थी । मैं बोला वांदा नहीं, ड्रिंक आन दि हाउस । जिद करके बोली उसका फिरेंड उसके लिये रोकड़ा ला रहा था, वो आ कर बार का बिल भी भरेगा और मेरा जो टेम उसकी वजह से खोटी हुआ, उसको भी कम्पैंसेट करेगा ।”
“ओह ! फिर ?”
“फिर क्या ! मेरे को बाई फोर्स उसको बाहर करना पड़ा । जरूरी था बार बंद करने का वास्ते ।”
“बाहर निकाला तो किधर गयी ?”
“किधर भी नहीं गयी । उधरीच खडे़ली वेट करती थी । बोलती थी इस्पेशल करके फिरेंड था, गारंटी कि जरूर आयेगा । मैं तो उसको बार के सामने के सायबान के नीचू खड़ा छोड़ के उधर से नक्की किया था । मेरे निकल लेने के बाद मेरे को कैसे मालूम होयेंगा किधर गयी !”
“ओह !”
“मैं उसको खबरदार किया कि रात के उस टेम उधर कोई आटो टैक्सी नहीं मिलता था, लिफ्ट आफर किया पण वो नक्की बोली । बोली उधरीच ठहरेगी ।”
“इधर तो वो नहीं है !”
“तो बोले तो वेट करती थक गयी आखिर । कोई टैक्सी मिल गयी, या लिफ्ट मिल गयी, चली गयी उधर से ।”
“कहां ?”
“मेरे को कैसे मालूम होयेंगा !”
“ये भी ठीक है । ऐनी वे, थैंक्यू ।”
उसने सम्बंध विच्छेद किया ।
कहां गयी !
लिफ्ट या टैक्सी मिल भी गयी तो कहां गयी !
अपने बोर्डिंग हाउस में लौटने की तो मजाल नहीं हो सकती थी !
या शायद उसे कोई टैक्सी आटो या लिफ्ट नहीं मिली थी और इंतजार से आजिज आ कर वो पैदल ही वापिस लौट पड़ी थी ।
तो रास्ते में उसे दिखाई क्यों न दी ?
क्योंकि उसकी मुकम्मल तवज्जो कार चलाने में थी ।
अब वापिसी में वो उस पर निगाह रखते कार चला सकता था ।
वो कार में सवार हुआ और उसने कदरन धीमी रफ्तार से वापिसी के रास्ते पर कार बढा़ई । हर घडी़ असे लग रहा था कि रोमिला उसे आगे सड़क पर चलती दी कि दिखाई दी । कई बार उसे लगा कि वो आगे सड़क पर थी और एकाएक ब्रेक लगाई लेकिन सब परछाइयों का खेल निकला । सड़क पर पैदल कोई नहीं था ।
यूं ही कार चलाता वो वापिस वैस्टएण्ड पहुंच गया ।
जहां सब कुछ या बंद हो चुका था या हो रहा था ।
मनोरंजन पार्क की रोनक समाप्तप्राय थी ।
जमशेद जी पार्क उजाड़ पड़ा था, खाली ऐंट्री के करीब के एक बैंच पर एक आदमी-जो कि बेवडा़ जान पड़ता था-दीन दुनिया से बेखबर सोया पड़ा था ।
विभिन्न सड़कों पर भटकता वो कोंसिका क्लब के आगे से भी गुजरा ।
वो भी बंद हो चुकी थी ।
रात की उस घडी़ कहीं जीवन के कोई आसार थे तो ‘इम्पीरियल रिट्रीट’ में थे ।
पता नहीं क्या सोच कर उसने कार रोकी ।
‘इम्पीरियल रिट्रीट’ का ग्लास डोर ठेल कर वो भीतर दाखिल हुआ ।
वहां रिसैप्शन डैस्क के पीछे टाई वाला एक युवक मौजूद था जो कि एक कम्प्यूटर के साथ व्यस्त था ।
“कब से ड्यूटी पर हो ?” - नीलेश रोब से बोला ।
उसके लहजे का और उसके व्यक्तित्व का युवक पर प्रत्याशित प्रभाव पड़ा ।
“शाम सात बजे से ।” - वो बोला ।
“तब से यहीं हो ?”
“जी हां ।”
“मैं एक लड़की का हुलिया बयान करने जा रहा हूं । गौर से सुनना ।”
उसने सहमति में सिर हिलाया ।
नीलेश ने तफसील से रोमिला का हुलिया बयान किया ।
युवक ने गौर से सुना ।
“पिछले एक घंटे में ये लड़की यहां आयी थी ?” - नीलेश ने पूछा ।”
“जी नहीं ।” - युवक निसंकोच बोला ।
“पक्की बात ?”
“जी हां ।”
“शायद टॉप फ्लोर पर जाने के लिये लिफ्ट पर सवार हो गयी हो और तुम्हें खबर न लगी हो !”
“टॉप फ्लोर पर कहां ?”
“अरे, भई, कै...बिलियर्ड रूम में ।”
“आपको मालूम है टॉप फ्लोर पर बिलियर्ड रूम है ?”
“है तो सही !”
“कैसे मालूम है ?”
“अपने रोनी ने बताया न !”
“रोनी ?”
“डिसूजा । रोनी डिसूजा । मैग्नारो साहब का राइट हैंड ।”
“आप तो बहुत कुछ जानते हैं !”
“ऐसीच है । अभी जवाब दो । मैं बोला, टॉप फ्लोर पर जाने को वो लड़की लिफ्ट पर सवार हुई हो और तुम्हें खबर न लगी हो !”
“ये नहीं हो सकता ।”
“क्यों ? क्यों नहीं हो सकता ?”
“रात की इस घडी़ मेरी ओके के बिना लिफ्ट वाला किसी को ऊपर बिलियर्ड रूम में ले कर नहीं जा सकता । भले ही वो कोई हो ।”
“ओह ! थैंक्यू ।”
युवक मशीनी अंदाज से मुस्कराया ।
नीलेश वापिस सड़क पर पहुंचा ।
उसके अपने बोर्डिंग हाउस वापिस लौटी होने की कोई सम्भावना नहीं थी, फिर भी उम्मीद के खिलाफ करते हुए उसने वहां का चक्कर लगाने का फैसला किया ।
वो मिसेज वालसंज बोर्डिंग हाउस वाली सड़क पर पहुंचा ।
उसने कार परे ही खड़ी कर दी और उसमें से निकल कर पैदल आगे बढ़ा ।
इस बार सिपाही दयाराम भाटे स्टूल पर बैठा होने की जगह उसे एक बाजू से दूसरे बाजू चहलकदमी करता मिला ।
चहलकदमी वो कैसे बेमन से खानापूरी के लिये कर रहा था इसका सबूत था कि नीलेश उसके ऐन पीछे पहुंच गया तो उसे उसकी मौजूदगी की खबर लगी ।
वो चिहुंक कर उसकी तरफ घूमा ।
“क्या है ?” - फिर कर्कश स्वर में बोला ।
“गोखले है ।”
“क्या !”
“अरे, भई, मेरा नाम नीलेश गोखले है । रोमिला सावंत का फ्रेंड हूं । सामने वाले बोर्डिंग हाउस में रहती है । जानते हो न उसे ?”
“जानता हूं तो क्या ?”
“उसे लौटते देखा ?”
“नहीं ।”
“पक्की बात ?”
“प्रेत की तरह किसी के पीछे आन खड़ा होना गलत है । मैं हाथ चला देता तो ?”
“तो जाहिर है कि मैं ढेर हुआ पड़ा होता । शुक्र है चला न दिया । मैं सारी बोलता हूं ।”
“ठीक है, ठीक है ।”
“तो रोमिला सावंत नहीं लौटी ?”
“अरे, बोला न, नहीं लौटी ।”
“मेरे को उससे बहुत जरूरी करके मिलना था ।”
“अकेले तुम्हीं नहीं हो ऐसी जरूरत वाले ।”
“अच्छा !”
“क्यों मिलना था ?”
“वो क्या है कि मेरी उसके साथ डेट थी । पहुंची नहीं, इसलिये फिक्र हो गयी । अभी मालूम तो होना चाहिये न, कि क्यों नहीं पहुंची !”
“डेट्स क्रॉस कर गयी होंगी !”
“बोले तो ?”
“किसी और को भी मिलने की बोल बैठी होगी ! तुम्हारे को भूल गयी होगी या जानबूझ के नक्की किया होगा !”
“ऐसा ?”
“हां । ऐसी लड़कियां वादा करती हैं तो निभाना जरूरी नहीं समझतीं ।”
“कम्माल है ! तुम्हें तो बहुत नॉलेज है ऐसी लड़कियों की ! खुद भुगते हुए जान पड़ते हो !”
“अरे, मैं शादीशुदा, बालबच्चेदार आदमी हूं ।”
“तो क्या हुआ ! मर्द का दिल है ! मचल जाता है !”
वो हंसा, तत्काल संजीदा हुआ, फिर बोला - “अब नक्की करो ।”
“अभी ।” - नीलेश विनीत भाव से बोला - “अभी ।”
“अब क्या है ?”
“मैं सोच रहा था, ऐसा हो सकता है कि वो लौट आई हुई हो और तुम्हें उसके आने की खबर ही न लगी हो !”
“क्यों, भई ! मैं अंधा हूं ?”
“नहीं । मैं तो महज...”
“और फिर तुम क्यों बढ़ बढ़ के मेरे सवाल कर रहे हो ?”
“यार, मैं उसका फ्रेंड हूं - ब्वायफ्रेंड हूं - उसकी सलामती के लिये फिक्रमंद हूं । कुछ लिहाज करो मेरा । फरियाद कर रहा हूं ।”
नीलेश के ड्रामे का उस पर फौरन असर हुआ । वो पिघला ।
“क्या लिहाज करूं ?” - वो नम्र स्वर में बोला ।
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