RE: Thriller Sex Kahani - सीक्रेट एजेंट
“तेरे को पक्की है एक्सीडेंट का केस है ?”
“नहीं, सर जी, पक्की कैसे होगी ?”
“तो एक्सीडेंट क्यों बोला ?”
“क्योंकि लगता था ऐसा । मेरा अंदाजा है कि पांव फिसला.....”
“अंदाजों से पुलिस का कारोबार चलता है ?”
“अब जो मेरे को लगा, मैंने बोल दिया ।”
“पुलिस को हर सम्भावना पर विचार करना पड़ता है । क्या पता उसे धक्का दिया गया हो !”
“क्या बोला, सर जी ?”
“कोई लुटेरा टकरा गया हो ! अकेली जान कर लूट लिया हो ! फिर अपनी करतूत छुपाने के लिये उसे रेलिंग के पार ढ़लान पर धक्का दे दिया हो ! या खोपड़ी पहले फोड़ी हो और धक्का बाद में दिया हो !”
“लेकिन, सर जी, वहां चट्टान पर खून....”
“खुली खोपड़ी भी चट्टान से टकरा सकती है । क्या !”
“बरोबर, सर जी ।”
“बड़ी हद ये हुआ होगा कि चट्टान से टकरा कर और खुल गयी होगी और एक निगाह में यही जान पड़ता होगा कि चट्टान से टकरा कर खुली ।”
“ब्रीलिंयट, सर जी । मैं आपके दिमाग से क्यों नहीं सोच पाता ?”
“मुझे ये किसी नशेबाज का काम जान पड़ता है जिसकी नशे तलब ने अकेली लड़की पर हमला करके उसका माल-जेवर वगैरह-हथियाने के लिये उसे उकसाया । रात को जब मैं गश्त पर निकला था” - महाबोले ने ड्रामाई अंदाज से खत्री की तरफ आंखे तरेंरी - “जिस पर कि तेरे को होना चाहिये था....”
“मैं सारी बोलता हूं, सर जी, लेकिन वजह” - खत्री ने हौले से अपनी आंख के नीचे तब भी मौजूद गूमड़ को छुआ - “आपको मालूम है.....”
“ठीक ! ठीक ! साले दो भीङू गये फिर भी पिट के आये । मैने रोनी डिसूजा की भी सूजी थूंथ देखी है ।”
“पीट के भी तो आये, सर जी ! काम करके आये ! अभी और करो अगरचे कि विघ्न न आ गया होता ।”
“बस कर । मुझे बात भुला दी । क्या कह रहा था मैं ?”
“आप कह रहे थे.....”
“हां । मैं कह रहा था कि रात जब मै गश्त पर निकला था तो एक फुल टुन्न भीडू मेरी निगाह में आया था.....”
“कहां ?”
“सेलर्स बार के पास ।”
“अरे ! फिर तो, सर जी, यूं कहिये कि मौकायवारदात के पास ।”
“उसके बाद वही बेवड़ा मेरे को जमशेद जी पार्क के एक बैंच पर बैठा फिर दिखाई दिया था और मुझे साफ लगा था कि छुप छुप कर सीधे बोतल से ही घूंट लगा रहा था ।”
“माल हाथ आ गया तो बोतल खरीद ली ! साला जश्न मनाने लग गया !”
“मुफ्त के माल की अपनी लज्जत होती है ।”
“पण अब तो साला वहां से कब का नक्की कर गया होगा !”
“नीट पी रहा था ! क्या पता बोतल खींच गया हो !”
“आपका मतलब है, नशे में अभी भी वहीं पड़ा होगा !”
“हो सकता है । पता करने में क्या हर्ज है ?”
“बरोबर बोला, सर जी । बोतल का नशा थोड़े में तो नहीं उतर जाता !”
“ठीक ! मैं सब-इंस्पेक्टर जोशी को बुलाता हूं और रोमिला का केस उसको सौंपता हूं-वो कत्ल के केस की ड्रिल जानता समझता है-और खुद तुम्हारे साथ चलता हूं क्योंकि तुम्हें वो जगह तलाश करने में दिक्कत हो सकती है जहां मैंने उस बेवडे़ को देखा था ।”
“ये बढि़या रहेगा, सर जी ।”
जीप पर सवार थानेदार और हवलदार जमशेद जी पार्क पहुंचे ।
तब वातावरण में भोर का उजाला फैलना अभी बस शुरू ही हुआ था ।
“वो रहा !” - महाबोले तनिक उत्तेजित भाव से बोला ।
ड्राइविंग सीट पर बैठे हवलदार खत्री ने तत्काल जीप को ब्रेक लगाई ।
“कहां ?” - वो बोला ।
“वो, जो उधर बैंच पर लेटा हुआ है । साला अभी भी टुन्न है । नहीं जानता कि सवेरा हो गया है ।”
“अच्छा ही है, सर जी, वर्ना उठ के चल दिया होता ।”
“चल !”
दोनों जीप से उतर कर बेवडे़ की तरफ लपके । वो बैंच के करीब पहुंचे तो हवलदार का पांव नीचे पड़ी बोतल से टकराया और तो गिरते गिरते बचा । गिर गया होता तो जरूर बैंच पर बेसुध पड़े बेवडे़ पर जा कर गिरता । उसके मुंह से एक भद्दी सी गाली निकली और वो सम्भल कर सीधा हुआ ।
महाबोले बेवडे़ के सिर पर पहुंचा । उसने झुक कर उसके कोट का कालर थामा और उसे इतनी जोर का झटका दिया कि वो बैंच से नीचे जा कर गिरा होता अगरचे कि महाबोले ने उसका कालर मजबूती से न थामा होता । उसने घबरा कर आंखे खोलीं तो प्रेत की तरह सामने आन खडे़ हुए दो वर्दीधारी पुलिसिये उसे दिखाई दिये ।
उसकी घबराइट गहन आतंक में बदल गयी ।
महाबोले ने उसे जबरन उठा कर उसके पैरों पर खड़ा किया ।
हवलदार खत्री ने सामने आकर उसके सिर से पांव तक उस पर निगाह दौड़ाई ।
नहीं, ये आदमी कातिल नहीं हों सकता - उसके दिल ने गवाही दी - ये तो मक्खी मारने के काबिल नहीं था । वो पिलपिलाया हुआ, पिद्दी सा अधेड़ आदमी था जो खुद ही अधमरा जान पड़ता था, क्या वो किसी को मारता ! रोमिला उससे कद में निकलती हुई, उससे कहीं मजबूत, हट्टी कट्टी लड़की थी, वो तो उस जैसे दो पर भारी पड़ सकती थी ।
महाबोले ने बेवडे़ को हवलदार की तरफ धक्का दिया ।
खत्री ने उसे मजबूती से बांह से थामा और उसे जबरन चलाता परे खड़ी जीप की तरफ ले चला ।
“अभी नहीं ! अभी नहीं, ईडियट ! - महाबोले चेतावनीभरे स्वर में बोला - “इसके पास कोई हथियार हो सकता है । पहले तलाशी ले इसकी । कैसा हवलदार है जो इतनी सी बात नहीं समझता !”
“सारी बोलता हूं, सर जी । खता माफ !”
उसने फिरकी की तरह बेवडे़ को अपनी तरफ घुमाया ।
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