RE: Thriller Sex Kahani - सीक्रेट एजेंट
“सर, मालूम होना चाहिये कि वो स्वाभाविक मौत मरी, दुर्घटनावश मरी, खुदकुशी की या उसका कत्ल हुआ । उसकी जिंदगी में उससे बात करने वाला मैं आखिरी शख्स था । वो अपने सिर पर खतरा मंडराता महसूस करती थी जिसकी वजह से छुपती फिर रही थी । फोन पर साफ साफ घबराई हुई, बल्कि खौफजदा लग रही थी । साफ बोली थी कि आइलैंड से कूच कर जाना चाहती थी । और ऐसा माली इमदाद के बिना मुमकिन नहीं था जो उसे मैंने पहुंचाने का वादा किया था । वो रूट फिफ्टीन के करीब के ही एक बार में मेरा इंतजार कर रही थी और मैं फौरन उसके पास पहुंचने वाला था । किन्हीं वजुहात से वक्त रहते मैं वहां न पहुंच सका, तब तक बार बंद हो गया और मजबूरन उसे बार से बाहर निकलना पड़ा । अब आप ही सोचिए, ऐसे में कैसे वो स्वाभाविक मौत मर सकती थी और कैसे खुदकुशी कर सकती थी जबकि उसे मेरे पर भरोसा था, इतना मान था कि मिल जाता तो, मैं उसकी हर मुमकिन मदद करता ?”
“नो, नेचुरल डैथ इज आउट । सुइसाइड टू इज आउट ।”
“फिर बार क्लोज हुआ था, उसकी आस नहीं टूट गयी थी । मुझे निश्चित तौर पर मालूम है-खुद बार के मालिक ने इस बात को कनफर्म किया था-कि बार बंद हो जाने के बाद वो बार के बाहर अकेली खड़ी मेरा इंतजार करती रही थी । मैंने उसे मुश्किल से सात-आठ मिनट से मिस किया था । इतने मुख्तसर से वक्फे में कैसे वो बार से दूर कहीं दुर्घटना का शिकार हो गयी ? बार से दूर वो गयी ही क्यों ? जब वो निश्चय कर ही चुकी थी कि मेरे इंतजार में उसने वहां ठहरना था तो निश्चय से किनारा कर लेने का क्या मतलब ? एक्सीडेंटल डैथ का शिकार होने के लिये वहां से चल देने का क्या मतलब ?”
“फिर तो बाकी एक ही आप्श्ान बची । कत्ल !”
“जो कि यकीनन महाबोले ने करवाया । उसको रोमिला की बड़ी शिद्दत से तलाश थी-क्यों तलाश थी, ये मुझे नहीं मालूम और रोमिला भी मुझे यकीन है कि उसी बचती फिर रही थी-उसने रोमिला के लौटने के इंतजार में, उसके बोर्डिंग हाउस पर निगाह रखने के लिये, थाने का ही एक सिपाही बिठाया हुआ था...”
“कैसे मालूम ?”
“मैंने उसे अपनी आंखों से देखा । भाटे नाम है सिपाही का । दयाराम भाटे ।”
“ओह !”
“किसी तरह से महाबोले को रोमिला की हाइवे फिफ्टीन के उस बार में-सेलर्स बार नाम है-मौजूदगी की खबर लग गयी और वो मेरे से पहले वहां पहुंच गया ।”
“खुद ?”
“या किसी को भेजा ।”
“हूं ।”
“जिसने कि लड़की को थामा और बार से दूर ले जाकर यूं उसका काम तमाम किया कि लगता कि वो दुर्घटना का शिकार हुई थी ।”
“यू हैव ए प्वायंट देयर ।”
“मेरे इंतजार से आजिज आ कर अगर वो पैदल वहां से चल दी होती तो वापिस के रास्ते पर ही तो चली होती ! जिधर उसका घर था, उधर से उलटी तरफ तो न चल दी होती ! वो वापिसी के रास्ते पर चली होती तो मुझे जरूर दिखाई दी होती !”
“पहले ही जान से जा चुकी होती” - एकाएक डिप्टी कमांडेंट अधिकारी बोला - “तो कैसे दिखाई दी होती !”
“जी !”
“अधिकारी साहब शायद ये कहना चाहते हैं कि अंधेरे में उसका पांव फिसला और वो रेलिंग के नीचे से होती ढ़लान पर फिसली, तेजी से नीचे की तरफ लुढ़की, रास्ते में कहीं सिर टकराया और....खत्म !”
“एक्सीडेंट !” - जायंट कमिश्नर बोला - “हादसा !”
“सर, गुस्ताखी माफ” - अधिकारी बोला - “मैं ये नहीं कहना चाहता ।”
“तो ?” - जायंट कमिश्नर की भवें उठीं - “तो और क्या कहना चाहते हो ?”
“पुलिस ने इसे कत्ल का ही केस करार दिया है । और” - उसका स्वर ड्रमाई हो उठा - “कातिल गिरफ्तार हो भी चुका है ।”
|