RE: Thriller Sex Kahani - सीक्रेट एजेंट
“नैवर माइंड ।” - पाटिल महाबोले की तरफ घूमा - “एसएचओ साहब, आप जानते हैं कि पुलिस को ऐसी बयानबाजी की आदत होती है कि वो चौबीस घंटे में केस हल कर दिखायेंगे, अड़तालीस घंटे में केस हल कर दिखायेंगे, बहत्तर घंटे में केस हल कर दिखायेंगे । खुशफहमी का ये आलम होता है कि किसी भी केस में बहत्तर घंटे में केस हल कर दिखायेंगे । खुशफहमी का ये आलम होता है कि किस भी केस में बहत्तर घंटे से ज्यादा बड़ी टाइम लिमिट वो कमी मुकर्रर नहीं करते, भले ही केस बहत्तर दिन में हल न हो, कभी भी न हो । इस लिहाज से आपने यकीनन काबिलेतारीफ काम किया है कि कत्ल के केस को चौबीस घंटे से भी कम वक्त में हल कर दिखाया । न सिर्फ केस हल कर दिखाया, कातिल को भी सींखचों के पीछे खड़ा कर दिया । मर्डर इनवैस्टिगेशन में आपने जो सूझ बूझ और काबिलियत दिखाई, वो काबिलेरश्क है । बधाई ।”
“सब कुछ मेरे किये ही न हुआ, सर, जो हुआ उसमें काफी सारा इत्तफाक का भी हाथ था ।”
“फिर भी आपने बड़ा काम किया । और जो आपने इत्तफाक की बात कही, उस पर मैं यही कहूंगा कि एण्ड जस्टीफाइज दि मींस । नो ?”
“यस, सर ।”
“आपने कहा आपने मुजरिम से उसका इकबालिया बयान भी हासिल कर लिया है !”
“यस, सर । आई हैव इट ड्यूली एंडोर्स्ड एण्ड विटनेस्ड ।”
“और मकतूला का जो माल उसने लूटा था, वो भी पूरा पूरा बरामद कर लिया !”
“जी हां । सिवाय कुछ नकद रूपयों के जो कि वो खुद कुबूल करता है कि उसने बोतल खरीदने में खर्च कर दिये थे ।”
“कामयाबी का जश्न मनाने के लिये बोतल खरीदी !”
“और पूरी की पूरी पी गया । इसी से साबित होता है कि अपनी कामयाबी से वो कितना खुश था !”
“वो दोनों चीजें मैं देख सकता हूं ?”
“जी !”
“भई, इकबालिया बयान और लूट का माल ।”
“अच्छा, वो ! बयान तो यहीं मेज की दराज में है, लूट का माल मालखाने में है, मैं मंगवाता हूं ।”
उसने दोनों चीजें डीसीपी के सामने पेश कीं ।
डीसीपी ने पहले इकबालिया बयान पर तवज्जो दी जिसे कि उसने बहुत गौर से, दो बार पढ़ा ।
उस दौरान वहां खामोशी रही ।
“गुड !” - आखिर डीसीपी बोला - “रादर पर्फेक्ट !”
“ओपन एण्ड शट केस है, सर ।” - महाबोले संतुष्ट स्वर में बोला - “कहीं झोल की गुंजायश ही नहीं ।”
“ऐसा ही जान पड़ता है ।”
“बेवड़ा था । बोले तो अल्कोहलिक । नशे की खातिर कुछ भी करने को तैयार । रोमिला से सूरत से वाकिफ था । उसे अकेली पा कर अपनी तलब के लिये उसके पीछे लग लिया । रूट फिफ्टीन पर जहां वारदात हुई वो जगह रात के वक्त सुनसान होती है । इसी बात से जोश खा कर उसने लड़की का हैण्डबैग झपटने की कोशिश की, उसने विरोध किया तो उसको खल्लास कर दिया । पहले साला हैण्डबैग की ही फिराक में था जिसे कि झपट कर भाग खड़ा हुआ होता, मर गयी तो जेवर भी उतार लिये, घड़ी भी उतार ली ।”
“मौके का पूरा फायदा उठाया !”
“बिल्कुल !”
“नाम क्या है मुजरिम का ?”
“हेमराज पाण्डेय ।”
डीसीपी ने गौर से मालखाने से लायी गयी एक एक चीज का मुआयना किया ।
“हैण्डबैग !” - एकाएक वो बोला ।
“जी !” - महाबोले सतर्क हुआ ।
“हैण्डबैग नहीं है इस सामान में !”
“वो तो.....बरामद नहीं हुआ ।”
“अच्छा !”
“जरूर उसने कैश निकाल कर उसे कहीं फेंक दिया ।”
“मुमकिन है । लेकिन क्या ये अजीब बात नहीं कि कायन पर्स-जो कि हैण्डबैग में ही रखा जाता है, और जिसमें कुछ सिक्कों के सिवाय कुछ नहीं-वो अपने पास रखे रहा ?”
“अजीब तो है !”
“क्यों किया उसने ऐसा ! क्या करता जनाना कायन पर्स का ?”
महाबोले के चेहरे पर गहन सोच के भाव उभरे ।
“रोकड़ा ?” - फिर एकाएक चमक कर बोला ।
“क्या ?” - डीसीपी सकपकाया ।
“रोकड़ा ? - नकद रूपया - कायन पर्स में होगा !”
“मुझे तो लगता नहीं कि इसमें नोट रखने की जगह है ! आपको लगता है ?”
“किसी की जिद हो तो ठूंस कर...”
“क्यों जिद हो ? क्यों ठूंस कर ?”
महाबोले से जवाब देते न बना ।
“जब नाम ही इसका कायन पर्स है तो इसमें नोटों का क्या काम ?”
“सर, बेवड़ा था, भेजा हिला हुआ था, खुद नहीं जानता था कि क्या कर रहा था !”
“हो सकता है । इस घड़ी वो कहां है ?”
“यहीं है, सर । लॉकअप में ।”
“मैं उससे मिल सकता हूं ?”
“अभी ।”
महाबोले ने उठ कर कमिश्नर की कोहनी के करीब मेज की पैनल में लगा कालबैल का बटन दबाया ।
कमरे में हवलदार जगन खत्री दाखिल हुआ ।
नीलेश ने देखा आंख के नीचे उसका गाल अभी भी सूजा हुआ था और अब उस पर एक बैण्ड एड भी लगी दिखाई दे रही थी ।
“बेवड़े मुजरिम को ले के आ ।” - महाबोले ने आदेश दिया ।
खत्री सहमति में सिर हिलाता वहां से चला गया ।
उलटे पांव वो उसके साथ वहां लौटा ।
डीसीपी ने गौर से उसका मुआयना किया ।
वो एक पिद्दी सा, फटेहाल, खौफजदा, काबिलेरहम शख्स था जिसकी शक्ल पर फटकार बरस रही थी और वो अपने पैरों पर खड़ा आंधी में हिलते पेड़ का तरह यूं आगे पीछे झूल रहा था जैसे अभी गश खाकर गिर पड़ेगा । उसका मुंह सूजा हुआ था, नाक असाधारण रूप से लाल थी और होंठों की बायीं कोर पर खून की पपड़ी जमी जान पड़ती थी । उसकी आंखे यूं उसकी पुतलियों में फिर रही थीं जैसे बकरा जिबह होने वाला हो ।
डीसीपी ने प्रश्नसूचक नेत्रों से महाबोले की तरफ देखा ।
“जब पकड़ कर थाने लाया गया था” - महाबोले लापरवाही से बोला - “तो भाव खा रहा था । हूल दे रहा था सीनियर आफिसर्ज से गुहार लगायेगा, मीडिया को अप्रोच करेगा । मिजाज दुरूस्त करने के लिये थोड़ा सेकना पड़ा ।”
“आई सी । इसे कुर्सी दो ।”
“जी !”
“ऐनी प्राब्लम ?”
“नो ! नो, सर !”
“दैन डू ऐज डायरेक्टिड ।”
“यस, सर ।”
अपने तरीके से अंपनी धौंस पट्टी की हाजिरी महाबोले ने फिर भी लगाई । उसके इशारे पर खत्री ने टेबल के करीब एक स्टूल रखा, डीसीपी के इशारे पर जिस पर मुजरिम बैठ गया । फिर डीसीपी ने ही खत्री को वहां से डिममिस कर दिया ।
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