RE: Thriller Sex Kahani - सीक्रेट एजेंट
“इधर मेरी तरफ देखो ।” - डीसीपी ने आदेश दिया ।
बड़े यत्न से मुजरिम ने छाती पर लटका अपना सिर उठाया और डीसीपी की तरफ देखा ।
“नाम बोलो ।”
“पाण्डेय ।”
“पूरा नाम ।”
“हेमराज पाण्डेय ।”
“मैं नितिन पाटिल । डीसीपी होता हूं पुलिस के महकमे में । क्या समझे ?”
उसके चेहरे पर उलझन के भाव आये ।
“पुलिस के सीनियर आफिसर्ज से मिलना चाहते थे न ! समझ लो मिल रहे हो ।”
“वो तो, साहब” - वो कांपता सा बोला - “मैंने ऐसे ही बोल दिया था ।”
“कोई बात नहीं । बोल दिया तो बोल दिया । कहां से हो ?”
“वैसे तो यूपी से हूं लेकिन पिछले तीन साल से इधर ही हूं ।”
“क्या करते हो ?”
“इलैक्ट्रीशियन हूं ।”
“अपना ठीया है ?”
“जी नहीं । ज्योति फुले मार्केट में एक बिजली के सामान वाले की दुकान पर बैठता हूं ।”
“काम रैगुलर मिलता है ?”
“रैगुलर तो नहीं मिलता लेकिन...गुजारा चल जाता है ।”
“ये वाला भी ?” - डीसीपी ने अंगूठा मुंह को लगाया ।
“नहीं, साहब । कभी कभी ।”
“कभी कभी, जैसे कल रात !”
उसका सिर झुक गया ।
“बाटली लगाते नहीं हो, उसमें डूब जाते हो !”
उसका सिर और झुक गया ।
“मुंह को क्या हुआ ?”
उसने जवाब न दिया ।
“बेखौफ जवाब दो । तुम्हारे कैसे भी जवाब की वजह से तुम्हारा कुछ नहीं बिगड़ेगा । मैं जामिन हूं इस बात का ।”
उसने व्याकुल भाव से महाबोले की तरफ देखा ।
“मेरी तरफ देख के जवाब दो । इधर उधर मत झांको ।”
“वही हुआ, साहेब, जो मेरे जैसे बेहैसियत शख्स के साथ थाने में होता है । थानेदार साहब कहते हैं मैंने इनके साथ जुबानदराजी की, इन पर झपटने की कोशिश की ।”
“जिसका खामियाजा भुगतना पड़ा !”
उसने खामोशी से सहमति में सिर हिलाया ।
“तुमने की थी जुबानदराजी ? की थी झपटने की कोशिश ?”
उसने तुरंत जवाब न दिया, एक बार उसकी निगाह महाबोले की तरफ उठी तो महाबोले ने उसकी तरफ यूं देखा जैसे कसाई बकरे को देखता है ।
“कहते हैं मैं टुन्न था” - वो सिर झुकाये दबे स्वर में बोला - “फुल टुन्न था । इतना कि मुझे दीन दुनिया की खबर नहीं थी, ये भी खबर नहीं थी कि अपनी नशे की हालत में मैंने क्या किया, क्या न किया । ये लोग मेरा नशा उतारने लगे ।”
“क्या किया ? नशे का कोई एण्टीडोट दिया ?”
“वही दिया, साहेब, पर अपने तरीके का, अपनी पसंद का दिया ।”
“क्या मतलब ?”
“हड़काया, खड़काया, ठोका, वाटर ट्रीटमेंट दिया ।”
“वाटर ट्रीटमेंट ! वो क्या होता है ?”
“मुंडी पकड़ के जबरन पानी में डुबोई, दम घुटने लगा तो निकाली, डुबोई, निकाली, डुवोई...करिश्मा ही हुआ कि डूब न गया ।”
“बढ़ा चढ़ा के कह रहा है ।” - महाबोले गुस्से से बोला - “इसका नशा उतारने के लिये पानी में डुबकी दी थी खाली एक बार ।”
“मालिक हो, साहेब” - पाण्डेय गिड़गिड़ाया - “कुछ भी कह सकते हो ।”
“साले, बदले में तू भी कुछ भी कह सकता है ? बड़े अफसर की शह मिल गयी तो झूठ पर झूठ बोलेगा ?”
“मैं तो चुप हूं, साहेब । मैंने तो कोई शिकायत नहीं की, कोई फरियाद नहीं की ।”
“स्साला समझता है....”
“दैट्स एनफ !” - डीसीपी अधिकारपूर्ण स्वर में बोला ।
चेहरे पर अनिच्छा के भाव लिये महाबोले ने होंठ भींचे ।
“इधर देखो ।” - डीसीपी बोला - “ये तुम्हारा बयान है ? इस पर तुम्हारे साइन हैं ?”
“हां, साहेब ।” - पाण्डेय कातर भाव से बोला ।
“रोमिला सावंत से वाकिफ थे ?”
“हां, साहेब ।”
“कैसे वाकिफ थे ?”
“जब कभी चार पैसे अच्छे कमा लेता था तो औकात बना कर कोंसिका क्लब जाता था ।”
“उधर वाकफियत हुई ?”
“हां, साहेब । लेकिन मामूली । जैसी किसी हाई क्लास बारबाला की किसी मामूली कस्टमर से हो सकती है ।”
“बहरहाल उसे बाखूबी जानते पहचानते थे ?”
“हां, साहेब ।”
“कैसे पेश आती थी ?”
“डीसेंटली । वैसे ही जैस किसी डीसेंट गर्ल का स्वभाव होता है । मेरी मामूली औकात से वाकिफ थी, उसको ले कर छोटा मोटा मजाक भी करती थी । लेकिन लिमिट में । इस बात का खयाल रखते हुए कि मेरी इज्जत बनी रहे । जैसे मैं बार का बिल चुकता करता था तो पूछती थी, ‘पीछे कुछ छोड़ा या नहीं ! अभी मैं इधर से आफ करके साथ चलूं तो डिनर करा सकोगे कि नहीं’ ।”
“हूं । उम्र कितनी है ?”
“बयालीस ।”
“शादी बनाई ।”
“नहीं, साहेब ।”
“क्यों ?”
“बीवी अफोर्ड नहीं कर सकता ।”
“पहले कभी जेल गये ?”
“नहीं, साहेब ।”
“बिल्कुल नहीं ?”
वो हिचकिचाया ।
“बेखौफ जवाब दो ।”
“दो तीन बार पहले भी टुन्न पकड़ा गया था । रात को हवालात में बंद रहा था, गुलदस्ता दिया तो सुबह छोड़ दिया गया था ।”
“गुलदस्ता !”
“समझो, साहेब ।”
“तुम समझाओ ।”
“नजराना । शुकराना । बिना कोई चार्ज लगाये छोड़ दिये जाने की फीस ।”
“ठहर जा, साले !” - महाबोले भड़का और उस पर झपटने को हुआ ।
|