RE: Thriller Sex Kahani - सीक्रेट एजेंट
हैण्डबैग !
महाबोले अपने आफिस के बाहर खड़ा बंद दरवाजे से कान लगाये भीतर से आती आवाजें सुनने की कोशिश कर रहा था । जो औना पौना वो सुन चुका था, समझ चुका था, वो उसके होश उड़ाये दे रहा था ।
क्यों हैण्डबैग इतना अहम हो उठा था, होता जा रहा था !
क्यों खुद उसने हैण्डबैग की तरफ वो तवज्जो नहीं दी थी जो कि उसे देनी चाहिये थी ! उस बाबत क्यों उसके भेजे काम नहीं किया था कि जब उसकी कहानी में - कहानी की तसदीक करते पाण्डेय के इकबालिया बयान में - हैण्डबैग की अहमियत थी तो ये भी उसे पहले सुनिश्चित करके रखना चाहिये था कि हैण्डबैग बरामद न हो !
वो सीधा हुआ और दरवाजे पर से परे हटा ।
भीतर का आइंदा डायलॉग सुनते रहने का सब्र अब उसमें बाकी नहीं था ।
जो उसने सुना था, उसकी रू में हैण्डबैग ही नहीं, गोखले का किरदार भी उसे हैरान कर रहा था, हलकान कर रहा था ।
कैसे डीसीपी पाटिल उससे मंत्रणा कर रहा था, जैसे रूतबे में गोखले उसका सहकर्मी हो, ईक्वल हो !
जो औना पौना डायलॉग उसने अभी सुना था, उसने और कुछ नहीं तो गोखले की असलियत का पर्दाफाश तो कर ही दिया था, ये तो स्थापित कर ही दिया था कि उसकी बाबत उसकी ‘आम आदमी, आम आदमी’ की रट गलत थी, हिमाकतभरी थी ।
देखूंगा साले को ! डीसीपी दफा हो जाये,उसके साथ ही गोखले भी न चला गया तो अब नहीं बचेगा साला हरामी ।
लेकिन हैण्डबैग ।
हैण्डबैग को याद करने में उसको अपने जेहन पर केाई ज्यादा जोर न देना पड़ा । उसे वो बखूबी याद आया, ये भी याद आया कि उसने उसे खोल कर भीतर के सामान का भी जायजा लिया था ।
फिर !
फिर क्या किया था !
हां, उसे बंद करके परे फेंका था तो वो टीवी कैबिनेट पर जा कर गिरा था और फिर वहां से लुढ़क कर टीवी के पीछे कहीं गुम हो गया था ।
वहीं पड़ा होगा ।
और कहां जायेगा !
भाटे को उल्लू बना कर गोखले पिछली रात रोमिला के कमरे में गया था बराबर लेकिन हैण्डबैग उसकी निगाह में आया नहीं हो सकता था, आया होता तो अभी भीतर भी उस बात का जिक्र उठा होता ।
नहीं, हैण्डबैग वहीं था ।
लेकिन क्यों वो उसे भूल गया था, क्यों उसने उसकी बाबत वक्त रहते नहीं सोचा था !
नहीं सोचा था तो भी क्या था ! - उसने खुद से जिरह की - किसी नौजवान, माडर्न फैशनेबल़ लड़की के पास एक ही हैण्डबैग हो, ये तो जरूरी नहीं ! वो कई हो सकते हैं । रोमिला के पास दो तो बराबर थे; एक वो जो उससे पाण्डेय ने छीना, दूसरा वो जो अभी भी उसके बोर्डिंग हाउस के कमरे में मौजद था ।
ठीक !
नहीं ठीक । - तत्काल उसने खुद ही अपनी बात काटी ।
साला मेरे मगज में लोचा ।
किसी के पास कई हैण्डबैग हो सकते थे लेकिन उसका जाती सामान-जनाना आइटम्स, हेयर ब्रश, कंघी, कास्मैटिक्स, रूमाल वगैरह तो एक ही हैण्डबैग में होते ! कैश-नकद रोकड़ा-तो एक ही बैग में होता ! किसी लड़की के पास फर्ज किया छः हैण्डबैग थे तो छः के छः में अलग अलग वो तामझाम हो, ये कैसे मुमकिन था !
नहीं मुमकिन था । कोई लड़की जब हैण्डबैग बदलती होगी तो जाहिर है कि उसकी तमाम आइटम नये बैग में ट्रांसफर करती होगी । फिर बोर्डिंग हाउस के उसके कमरे में पड़े रोमिला कै बैग में उन तमाम चीजों की मौजूदगी का क्या मतलब ! वो बैग वहां से बरामद हो जाता - जो कि केस की तफ्तीश सच में डीसीपी जठार के हाथ पहुंच जाती तो बरामद हो के रहता - तो उसकी तो कत्ल की ये थ्योरी ही पिट जाती कि रोकड़े के लिये लड़की का हैण्डबैग छीनने की कोशिश में कत्ल की नौबत आयी थी ।
नहीं- उसने घबरा कर सोचा - ऐसा नहीं होना चाहिये था । वो हैण्डबैग बरामद नहीं होना चाहिये था ।
कैसे होगा !
क्या करे वो !
किसी को मिसेज वालसंज बोर्डिंग हाउस भेजे या खुद वहां जाये !
जब तक डीसीपी बैठा था, उसका थाना छोड़ कर जाना गलत था ।
दूसरे, डीसीपी को भी हैण्डबैग की तलाश का खयाला आ सकता था । वो अभी मकतूला के कमरे में ही होता और डीसीपी-उस हरामी पिल्ले गोखले के साथ-ऊपर से पहुंच जाता तो....तो....बुरा होता ।
यही बात उसके किसी मातहत पर भी लागू थी जिसे कि वो अपनी जगह वहां भेजता ।
तो !
मिसेज वालसन !
बरोबर ।
लम्बे डग भरता, गलियारे में चलता वो कोने के कमरे में पहुंचा जो कि उस घड़ी खाली था । उसने उसका दरवाजा भीतर से बंद किया और मोबाइल पर बोर्डिंग हाउस का फोन नम्बर पंच किया ।
घंटी बजने लगी ।
बेसब्रेपन से वो रिसीवर उठाये जाने का इंतजार करता रहा ।
आखिर ऐसा हुआ ।
“कौन है उधर ? - उसे मिसेज वालसन की आदतन झुंझलाई हुई आवाज सुनाई दी - “क्या मांगता है ?”
“थानेदार महाबोले है इधर ।” - अंगारे उगलती आवाज में महाबोले बोला - “और जो मांगता है, उसे गौर से सुन, बुढ़िया ।”
“क्या ! क्या बोला ?”
“जो तूने सुना । अभ बोल, तेरे मगज में आया मैं कौन बोलता है ?”
“हं - हां ।”
“बढ़िया । अभी जो बोलता है उसको गौर से सुनने का, समझजे का, फिर जैसा मैं बोले, वैसा एक्ट करने का । क्या !”
“जै-जैसा तुम बोले, वै-वैसा एक्ट करने का ।”
“ठीक ! बुढिया, जरा भी कोताही हुई तो न तू बचेगी, न तेरा बोर्डिंग हाउस बचेगा । बोर्डिंग हाउस फूंक दूंगा तेरे को उसके साथ फूंक दूंगा । आयी बात समझ में ?”
“आई । फार गॉड सेक, ऐसा न करना ।”
“फार युअर सेक, ऐसा नहीं करूंगा । लेकिन कब ?”
“आई अंडरस्टैण्ड ! आई वैल अंडरस्टैण्ड ! तुम बोलो, मेरे को क्या करने का ! मैं करता है न बुलेट का माफिक !”
“ऐग्जैक्टली । बुलेट का माफिक ही एक्ट करने का । अभी सुन क्या करने का !”
“सुनता है ।”
“रोमिला सावंत के कमरे में जा अभी का अभी । कमरा अनलॉक्ड होगा, अनलॉक्ड न हो तो अपनी मास्टर की से खोलना । रखता है न मास्टर की ?”
“रखता है । वो जरूरी....”
“ठीक । ठीक । टेम खोटी न कर । अभी न सुन कमरे में जा कर क्या करने का । उधर कमरे में टीवी के पीछे कहीं रोमिला का हैण्डबैग गिरा हुआ है....”
“तुम्हेरे को मालूम उधर हैण्डबैग किधर....”
“शट अप !”
“स-सारी ! सारी, बॉस !”
“उस हैण्डबैग को काबू में करने का और उधर से निकल लेने का । हैण्डबैग को छुपा के, बोले तो कंसील करके, तब तक अपने पास रखने का जब तक मैं या थाने का कोई आदमी उसको क्लैक्ट करने उधर न पहुंचे । फालोड ?”
“यस ।”
“सैकण्ड इम्पार्टेंट बात ! कोई तेरे को रेामिला के रूम में जाता न देखे, लौटता न देखे । ठीक ?”
“बरोबर ।”
“जो कुछ करने का हरिडली करने का । सच में ही बुलेट का माफिक करने का, क्योंकि उधर कोई पहुंच सकता है ।”
“क-कोई कौन ?”
“कोई भी । इस वास्ते रूम में क्विक इन एण्ड आउट जरूरी । भीतर जाने का, हैण्डबैग काबू में करने का और निकल लेने का । टेग वेस्ट नहीं करने का ।”
“क-कोई सच में ऊपर से पहुंच गया तो ? मेरे को हैण्डबैग पिक करते रैड हैंडिड पकड़ लिया तो ?”
“तो जो जी में आये करना ।”
“बोल दे, एसएचओ का आर्डर फालो करता था ?”
“हां, बोल देना । अभी आखिरी बात सुन ।”
“सुनता है ।”
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