RE: Thriller Sex Kahani - सीक्रेट एजेंट
“यस, सर । मैं इस बात को हाईलाइट करने की कोशिश कर रहा था कि रोमिला के पास हैण्डबैग नहीं था । अब सवाल ये है, सर, जब हैण्डबैग का वजूद ही नहीं दिखाई देता तो रोकड़े की खातिर मुलजिम पाण्डेय ने कौन सा हैण्डबैग झपटने की कोशिश की थी ? कौन सा रोकड़ा उसके हाथ में आया था जिसकी-जैसा कि एसएचओ साहब कहते हैं-जश्न मनाने के लिये बाद में उसने बाटली खरीदी थी ?”
“हूं ।” - डीसीपी ने लम्बी हुंकार भरी ।
“अभी मैं ये नहीं कह रहा, सर, कि रात के एक बजे कैसे वो बोतल खरीदने में कामयाब हुआ जबकि तमाम लिकर शाप ग्यारह बजे बंद हो जाती हैं ।”
“क्यों नहीं कह रहे ? ये एक अहम नुक्ता है ।”
“सर, टूरिस्टों की खातिर आइलैंड पर कोई कोई बार क्लोजिंग टाइम-जो कि एक बजे है-के बाद भी खुला रहता है । ऐसे बार पर पैग रेट पर जरूरतमंद ग्राहक को बोतल मुहैया करा देते हैं ।”
“पर पैग रेट का क्या मतलब ?”
“सर, आपके सामने विस्की की बात करते मुझे संकोच होता है ।”
“क्योंकि पीते नहीं हो !”
“पीता हूं, सर, इसीलिये संकोच होता है । मैं अपना ज्ञान बघारूंगा तो आप समझ जायेंगे कि मैं पक्का घूंट वाला हूं ।”
“नैवर माइंड दैट । मेरे जैसों को छोड़कर-जो कि इसी वजह से अनसोशल कहलाते हैं-आज कल कौन नहीं पीता !”
“यू आर राइट, सर ।”
“अब कहो, जो कहने जा रहे थे ।”
“सर, नार्मल बोतल में साढ़े बारह पैग होते हैं । फर्ज कीजिये ऐवरेज विस्की का एक पैग बार में सत्तर रूपये का मिलता है तो साढे़ बारह पैग पौने नौ सौ रूपये के बनते हैं जबकि लिकर शाप पर उसी बोतल की कीमत तकरीबन चार सौ रूपये है । कोई डबल से ज्यादा कीमत अदा करना मंजूर करे तो लेट लेट आवर्स में भी बार से बंद बोतल हासिल कर सकता है ।”
“कोई, जैसे कि हेमराज पाण्डेय !”
“हाइपॉथेटिकल बात है, सर, वर्ना हालात का इशारा तो इसी तरफ है कि लड़की के पास हैण्डबैग था ही नहीं, इसलिये पाण्डेय के हाथ नकद पैसा लगा होने का कोई मतलब ही नहीं ।”
“ठीक । ये एक बजें के बाद भी खुले रहने वाले बार कोई दर्जनों में तो नहीं होगें !”
“नहीं, सर । मेरे खयाल से तो मुश्किल से पांच छः होंगे ।”
“उनको चैक किया जा सकता है । मालूम किया जा सकता है कि उनमें से किसी में से किसी ने-किसी हेमराज पाण्डेय जैसे हुलिये वाले शख्स ने-बार रेट्स अदा करके विस्की की बोतल खरीदी थी या नहीं ! पुलिस इंक्वायरी है, मैं नहीं समझता कि झूठ बोलने की किसी की मजाल होगी ।”
“वो तो नहीं होगी लेकिन गुस्ताखी माफ, सर, इंक्वायरी करने वाले के पीठ फेरते ही खबर यहां थाने में पहुंच जायेगी ।”
“एैसा ?”
“इंस्पेक्टर महाबोले का ऐसा ही जहूरा है, सर, ऐसा ही दबदबा है आइलैंड पर ।”
“देखेंगे । देखेंगे इंस्पेक्टर साहब का जहूरा । दबदबा । और भी जो कुछ देखने को मिलेगा । तो तुम्हें लगता है कि पाण्डेय बेगुनाह है ! उसे सैट किया गया है !”
“लगता तो है, सर !”
“किसने किया ?”
“कहना मुहाल है ।”
“क्यों किया ?”
“अपने या अपने किसी करीबी के जाती फायदे के लिये उसे बलि का बकरा बनाया ।”
“फिर तो जेवर वगैरह भी उसकी जेबों में प्लांट किये गये होंगे !”
“लगता तो ऐसा ही है !”
“गरीबमार हुई ?”
“यू सैड इट, सर ।”
“महाबोले ने की ?”
“कहना मुहाल है ।”
“ये हो सकता है बकरा उसने सैट किया न हो, उसे सैट मिला हो ! सैट बकरा उसको पास आन किया गया हो ?”
“हो तो सकता है, सर ।”
“थाने में ऐसी खबरें-गुमनाम तरीके से-पहुंचती ही रहती है कि फलां जगह ये हो रहा था, फलां जगह वो हो गया था । किसी ने बेवडे़ की बाबत थाने गुमनाम काल लगाई । पुलिस मछली पकड़ने गयी, मगरमच्छ हाथ आ गया !”
“गुस्ताखी माफ, सर, अब आप इंस्पेक्टर महाबोले की हिमायत में बोल रहे हैं ।”
डीसीपी हंसा ।
“सर, हमी अभी थाने में ही हैं, दरयाफ्त कर सकते हैं कि थाने में ऐसी कोई गुमनाम काल आयी थी या नहीं ! काल नहीं आयी थी तो क्योंकर उन्हें पाण्डेय की खबर लगी थी !”
“कोई फायदा नहीं । मेरे को गारंटी है यही जवाब मिलेगा कि काल आयी थी । तब सचझूठ की शिनाख्त करने का कौन सा जरिया होगा हमारे पास ?”
“यू आर राइट, सर । जबकि आपकी यहां मौजूदगी इस काम के लिये है भी नहीं ।”
“वाट्स दैट ?”
“गुस्ताखी माफ, सर, आप यहां कत्ल की तफ्तीश को मानीटर करने तो नहीं आये !”
“ठीक । लेकिन अगर ऐसा समझा जाता है तो हमें कोई ऐतराज नहीं । तो ये बात हमारे हित में होगी !”
नीलेश की भवें उठीं ।
“हम-जायंट कमिश्नर साहब और मैं-क्यों यहां हैं, इसकी तरफ उनकी तवज्जो ही नहीं जायेगी । अगर उनकी दाल में कोई काला है तो वो अपनी सारी एनर्जी कवर अप में ही जाया करते रहेंगे । टाइम नहीं होगा उनके पास ये सोचने का कि आल दि वे फ्राम मुम्बई मैं एकाएक यहां क्यों आया था !”
“ओह !”
“हैण्डबैग के जिक्र पर अभी एक बार फिर लौटो । तो तुम्हारा दावा है कि हैण्डबैग लड़की के पास नहीं था ।”
“जी हां । सर, इट स्टैण्ड्स टु रीजन दि वे आई एक्सप्लेंड....”
“यस, यस, यू डिड । एण्ड वैरी इंटेलीजेंटली ऐट दैट । मेरा सवाल ये है कि लड़की का-मकतूला रोमिला सावंत का-हैण्डबैग उसके पास नहीं था तो कहां था ?”
“सर, बोर्डिंग हाउस के उसके कमरे में ही होने की सम्भावना दिखाई देती है जहां से कि उसे एकाएक कूच कर जाना पड़ा था, जहां वो लौट कर नहीं जा सकती थी क्योंकि उसे अंदेशा था, उसने साफ ऐसा कहा था, कि वहां की निगरानी हो रही होगी-और उसका अंदेशा ऐन दुरुस्त भी निकला था ।”
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