RE: Thriller Sex Kahani - सीक्रेट एजेंट
शाम को आइलैंड के सर्कट हाउस में डीसीपी नितिन पाटिल की मुरूड के डीसीपी जठार से मुलाकात पूर्वनिर्धारित थी जिसके लिये पाटिल सर्कट हाउस में पहले पहुंच गया था ।
नीलेश तब भी उसके साथ था ।
“हमें पहले से हिंट हैं, अंदेशा है” - वहां डीसीपी संजीदगी से बोला - “कि इंस्पेक्टर महाबोले के सिर पर उसके डीसीपी जठार का हाथ है और वो उसी की शह पर उछलता है । बेअदबी से कहूं तो कमिश्नर जुआरी साहब को कोई हैरानी नहीं होगी अगरचे कि यहां चलते रैकट्स में-प्रत्यक्ष या परोक्ष में-डीसीपी जठार भी शामिल पाया गया ।”
“ओह, नो, सर ।”
“दो बार उसने मुझे अपने डीसीपी की हूल दी । ऐसी मजाल बिना शह के नहीं हो सकती । कहने का मतलब ये है कि हमें सावधान रहना है, अपना कोई भेद डीसीपी जठार को नहीं देना है ।”
“सर, वो मेरे बारे में सवाल करेंगे ।”
“तो हम कहेंगे तुम महकमे में एसीपी हो....”
“एसीपी !”
“…..वैकेशन पर यहां हो, बाई चांस हमें मिल गये तो सोचा तुम्हारा कोई फायदा उठाया जाये, बावजूद वैकेशन तुमसे कोई काम निकलवाया जाये ।”
“सर, जठार साहब डीसीपी हैं, मुम्बई से चुटकियों में मालूम कर लेंगे कि मेरे नाम वाला कोई एसीपी महकमे में है या नहीं !”
“जब ऐसा करेंगे तो महकमे से तुम्हारे नाम की तसदीक होगी ।”
“जी !”
“जो कि उन्हें मंगलेश मोडक बताया जायेगा ।”
“ओह !”
“तुम्हारी जानकारी के लिये इस नाम का एक एसीपी मुम्बई पुलिस हैड क्वार्टर में सच में है और आज कल वैकेशन पर भी सच में है । अलबत्ता कोनाकोना आइलैंड पर नहीं, सिंगापुर में है ।”
“लेकिन, सर, यहां मेरी आइडेंटिटी चैक की जा चुकी है । मेरा वोटर आई कार्ड और ड्राइविंग लाइसेंस तक चैक किया जा चुका है । मेरे को ये तक बोलना पड़ा था कि मैं पहले मुम्बई में बांद्रा के पिकाडिली बार में बाउंसर था और वहीं से बैटर प्रास्पैक्ट्स की तलाश में यहां पर आया था ।”
“किसने चैक किया तुम्हें ?”
“कोंसिका क्लब के बारमैन गोपाल पुजारा ने, जिसने कि मुझे नौकरी दी । कल मेरे पर हुए हमले की रपट लिखाने थाने गया था तो बाबूराव मोकाशी ने, फिर वहीं इंस्पेक्टर महाबोले ने भी ।”
“मोकाशी से डीसीपी का क्या मतलब ! मर्डर की तफ्तीश पर आया वो कमेटी के सदर को भला क्यों मुंह लगायेगा ! बारमैन पुजारा वैसे ही उसके लैवल का आदमी नहीं इसलिये जाहिर है कि उसके पास भी नहीं फटक पायेगा । बाकी रहा महाबोले तो डीसीपी बहुत शार्ट विजिट पर यहां होगा-मुमकिन है आज ही लौट जाये-इसलिये जरूरी नहीं कि उसकी महाबोले से मुलाकात में तुम्हारा जिक्र आये ।”
“वो सब तो ठीक है लेकिन, गुस्ताखी माफ, सर, इस बिल्ड अप की जरूरत क्यों है ?”
“क्योंकि अभी होने वाली मीटिंग के दौरान तुम्हारी मौजूदगी की मुझे जरूरत महसूस होती है । यहां की कमान एक तरह से तुम्हारे हाथ में है इसलिये बेहतर है कि जो हो, तुम्हारी फर्स्ट हैण्ड नॉलेज में हो । मैं डीसीपी जठार को बोलूंगा तुम इंस्पेक्टर हो तो उसे यहां तुम्हारी मौजूदगी नागवार गुजरेगी । डीसीपी मैं खुद हूं यानी फैलो डीसीपी की मेरे साथ मौजूदगी बेमानी है ।”
“इसलिये एसीपी !”
“करेक्ट !”
“लेकिन, सर, बाई ए लांग चांस, जठार साहब की महाबोले के साथ मुलाकात में मेरा जिक्र आ ही गया तो ?”
“तो कोई कहानी गढ़ लेंगे । बोल देंगे तुम किसी स्पैशल, सीक्रेट मिशन पर यहां थे इसलिये फाल्स आईडेंटिटी अज्यूम किये थे । हमें तो पहले से ही अंदेशा है कि यहां तुम्हारा राजफाश हो चुका है । समझेंगे जो पहले न हुआ, वो अब हो गया ।”
“ओह !”
“सो रैस्ट अश्योर्ड । ले युअर ट्रस्ट आन लॉ आफ ऐवरेज, जो कहता है कि जरूरी नहीं कि तकदीर का पासा हर बार ही उलटा पडे़ ।”
“मे बी यू आर राइट, सर ।”
“नो मे बी । आलवेज लुक ऐट दि ब्राइटर साइड । बी आप्टीमिस्टीक आलवेज । नो ?”
“यस, सर ।”
तभी डीसीपी जठार ने वहां कदम रखा ।
वो डीसीपी पाटिल की ही उम्र का था लेकिन साइज में वन टु वन प्वायंट फाइव था, चेहरा रोबदार था, मूंछ और लम्बी कलमें रखता था और उस घड़ी वो सिल्क का क्रीम कलर का सूट पहने था ।
डीसीपी पाटिल ने उठ कर उससे हाथ मिला ।
नीलेश ने जमकर सैल्यूट मारा ।
डीसीपी जठार ने एक प्रश्नसूचक निगाह नीलेश पर डाली और फिर वैसे ही डीसीपी पाटिल की तरफ देखा ।
“मंगलेश मोडक ।” - डीसीपी पाटिल बोला - “एसीपी, मुम्बई पुलिस ।”
“हूं ।”
“प्लीज टेक ए सीट ।”
दोनों डीसीपी टेबल के आरपार आमने सामने बैठे ।
जठार ने फिर अटेंशन खड़े नीलेश पर निगाह डाली ।
“इफ यू हैव प्राब्लम विद एसीपी मोडक्स प्रेजेंस” - पाटिल संजीदगी से बोला - “आई कैन सैंड हिम अवे ।”
“नो !” - तत्काल जठार के चेहरे पर मुस्कराहट आई - “नो प्राब्लम ! वुई आर नाट हेयर टु डिसकस एनीथिंग कंफीडेंशल । एट ईज, एसीपी मोडक ।”
“सर !” - नीलेश आदेश का पालन करता तत्पर स्वर में बोला ।
“एण्ड टेक ए सीट ।”
“थैंक्यू, सर ।”
नीलेश टेबल से पर एक कुर्सी पर बैठ गया ।
“जैसा कि आप चाहते थे” - जठार बोला - “केस को मैंने अपने कंट्रोल में ले लिया और अपने साथ आये एक सीनियर इंस्पेक्टर को तफ्तीश का जिम्मा सौंप दिया है ।”
“गुड !”
“मुलजिम हेमराज पाण्डेय का बयान फिर से रिकार्ड किया गया है । सेलर्स बार के मालिक रामदास मनवार - जिसकी लोकल पुलिस को कोई खबर ही नहीं थी - का बयान लिया गया है । मौकायवारदात का मैंने भी फेरा लगाया है । यहां मै इंस्पेक्टर महाबोले के नतीजे से इत्तफाक जाहिर करना चाहता हूं जो ये कहता है कि इंतजार से आजिज आ कर मकतूला सेलर्स बार से चल दी थी, रूट फिफ्टीन पर थोड़ी ही दूर चलने पर उसका आमना सामना मुलजिम से हो गया था । आगे जो हुआ था वो मुलजिम अपने इकबालिया बयान में मोहरबंद कर चुका है । दोबारा बयान लिये जाने पर भी उसने वही कुछ दोहराया था जो कि उसके इकबालिया बयान में दर्ज है । यानी वो रूट फिफ्टीन पर मकतूला से टकराया था और उसने उसका हैण्डबैग छीनने की कोशिश की थी, मकतूला ने विरोध किया था तो हाथापायी होने लगी थी जिसमें मुलजिम ने उसको गले से पकड़ लिया था और पुरजोर इतना झिंझोड़ा था कि बेहोश हो गयी थी और जमीन पर ढे़र हो गयी थी । तब मुलजिम ने उसे उसके तमाम कीमती सामान से महरूम कर दिया था और उसको ढ़लान पर धकेल कर भाग खड़ा हुआ था ।”
“आई सी ।”
“भाग खड़ा होने के बाद की अपनी मूवमेंट्स के बारे में वो कनफ्यूज्ड है । कहता है नशे में चलता, भटकता वो जमशेद जी पार्क पहुंच गया था, वहां एक बैंच पर ढे़र हुआ था और पता नहीं कब नींद के हवाले हो गया था ।”
“शराब की एक खाली बोतल उसके करीब पड़ी पायी गयी थी जिसे थाने वालों ने बतौर सबूत महफूज कर लिया था । उसकी क्या स्टोरी है ?”
“क्या स्टोरी है ! कोई स्टोरी नहीं । महज एक बोतल है ।”
“हमारी जानकारी में आया है कि शराब की वो बोतल उसने वारदात से बहुत पहले खरीदी थी । इस लिहाज से ये सेफली कहा जा सकता है कि मकतूला के हैण्डबैग से बरामद किया रोकड़ा उसने बोतल की खरीद पर सर्फ नहीं किया था ।”
“आई सी ।”
“इस बारे में आपका क्या खयाल है ?”
“प्राब्लम ये है, मिस्टर पाटिल, कि मुलजिम का बयान इनकोहरेंट है, बेमेल है, उसमें कई छेद हैं ।”
“आई एग्री विद यू । लेकिन उन छेदों को यूं ही तो नहीं छोड़ा जा सकता । अपनी फरदर, इंटेंसिव इनवैस्टीगेशन से उन्हें भरना तो पुलिस ने ही होगा न !”
“जब मेन स्टोरी किसी का जुर्म साबित करने में सक्षम हो तो छोटी मोटी कमियों को, छोटी मोटी विसंगतियों को नजरअंदाज किया जा सकता है ।”
“ये छोटी मोटी विसंगति है कि मुलजिम पिद्दी सा आदमी था, फिर भी वो अपने से लम्बी ऊंची, मजबूत मुलजिमा को काबू में कर सका ! उसका यू गला दबोच सका कि मुलजिमा छुड़ा न पायी !”
“अब जो है, सो है । पोस्टमार्टम की रिपोर्ट में ये साफ दर्ज है कि उसके गले पर ऐसे खरोंचों के निशान थे जो कहते थे कि गला जोर से दबाया गया था ।”
“आई सी ! यानी मौत दम घुटने से हुई !”
“नहीं, वो तो खोपड़ी खुलने से ही हुई ।”
“ऐसा कैसे हुआ ?”
“मुलजिम के धक्का देने से हुआ ।”
“जब वो गला ही अच्छा अच्छा दबा रहा था तो उसी काम को जारी क्यों न रखा ? धक्का देने की क्या जरूरत थी ?”
“तो धक्का नहीं दिया होगा ! मुलजिमा ने खुद को आजाद करने की कोशिश की होगी, उसकी कोशिश कामयाब हुई होगी लेकिन रिफ्लैक्श एक्शन में बैलेंस खो बैठी, ढ़लान पर लुढ़की तो चट्टान से टकरा कर अपना सिर फोड़ बैठी और मर गयी ।”
“जठार साहब, इस लिहाज से तो ये एक्सीडेंट का केस हुआ !”
“आई बैग टु डिसएग्री, मिस्टर पाटिल । एक्सीडेंट की वजह जब मुलजिम बना तो क्यों कर एक्सीडेंटल डैथ का केस हुआ ! मुलजिम मकतूला का गला न दबोचे होता तो मकतूला का पांव फिसलने की नौबत आती ! मुलजिमा खुद को आजाद न कर पायी होती, उसका पांव न फिसला होता, तो क्या इस बात में दो राय मुमकिन हैं कि मुलजिम उसका गला दबा कर ही माना होता ! दूसरे, हम सीक्वेंस आफ ईवेंट्स को सिर्फ रीजनेबली रीकंसट्रक्ट कर सकते हैं, हम नहीं जानते कि असल में क्या हुआ ! हो सकता है धींगामुश्ती में मुलजिम ने उसे धक्का देकर जबरन ढ़लान पर फेंका हो !”
“फिर रात के अंधेरे में ये कनफर्म करने के लिये नीचे उतरा हो कि उसके धक्के से वो मरी या बची !”
“लाश के पास-या बेहोश जिस्म के पास-पहुंचा होने की वजह तो प्रत्यक्ष है । ऐसा किये बगैर कैसे वो लड़की के जिस्म पर मौजूद कीमती सामान-जेवरात वगैरह-कब्जा सकता था !”
“आई बैग युअर पार्डन, मिस्टर जठार, पहले कहा कि उसने लड़की के जेवर वगैरह काबू में किये और फिर उसे ढ़लान पर धक्का दिया । अब कह रहे हैं कि पहले धक्का दिया-या वो पांव फिसलने से खुद गिरी-और फिर ढ़लान पर उतरा और जा कर जेवर उतारे ।”
“पाटिल साहब, चश्मदीद गवाह तो कोई है नहीं ! असल में क्या हुआ था, ये या मकतूला जानती थी या कातिल जानता है । और मैंने पहले ही कहा कि कातिल का बयान इनकोहरेंट है, बेमेल है । वो कभी कुछ करता है, कभी कुछ कहता है लेकिन शुक्र है कि इस बात से इंकार नहीं करता कि लड़की की मौत की वजह-वो कत्ल था या हादसा था-वो था । वो इस बात को नहीं झुठला सकता कि लड़की का निजी कीमती सामान-उसके जेवरात वगैरह-उसके पास से बरामद किये गये थे ।”
“सो दि केस इज साल्वड !”
“रीजनेबली साल्वड ।”
“मौकायवारदात पर कोई स्ट्रगल के टैलटेल साइन, अपनी कहानी आप कहते निशानात, पाये गये थे ?”
“बराबर पाये गये थे । एण्ड दे वर ड्यूली फोटोग्राफ्ड एण्ड क्लासीफाइड ।”
“आई सी ।”
“सर” - नीलेश व्यग्र भाव से बोला - “मे आई स्पीक ?”
दोनों उच्चाधिकारियों ने गर्दन घुमा कर उसकी तरफ देखा ।
“यस” - पाटिल बोला - “यू मे ।”
“क्या कहना चाहते हो ?” - जठार रूक्ष स्वर में बोला ।
“सर, हाथापायी, धींगामुश्ती, धक्कामुक्की, जोरजबरदस्ती दोतरफा एक्ट होते हैं । ऐसा तो नहीं हो सकता कि जब मुलजिम मकतूला का गला दबा रहा था, तब मकतूला शांत, खामोश, निर्विरोध गला दबवाती रही हो ! मकतूला ने भी तो कोई हाथ पांव मारे होंगे ! उसकी भी तो उस वक्त की उसके लिये फैटल स्ट्रगल में कोई कंट्रीब्यूशन होगी !”
“तो ?”
“रोमिला सावंत मार्डन, फैशनेबल लड़की थी, वैल-मैनीक्योर्ड, वैलपालिश्ड लम्बे नाखून रखती थी । क्या ये मुमकिन है कि उस जानलेवा हाथापायी के दौरान उसके नाखूनों की कोई खरोंच हमलावर को न लगी हो !”
“लगी होगी ।”
“तो उसके नाखूनों के नीचे से हमलावर की खुरची गयी चमड़ी के कोई अवशेष बरामद हुए होने चाहियें ।”
जठार गड़बड़ाया, उसने अप्रसन्न भाव से नीलेश की तरफ देखा ।
“मुझे इस बाबत कोई जानकारी नहीं” - फिर कठिन स्वर में बोला - “क्योंकि पोस्टमार्टम रिपोर्ट पर मैंने सरसरी तौर पर ही नजर डाली थी ।”
“ये एक अहम बात है ।” - पाटिल बोला ।
“तो इसका जिक्र पोर्स्टमार्टम रिपोर्ट में जरूर होगा । आई विल लुक ऐट इट अगेन ।”
“यस” - पाटिल बोला - “यू बैटर डू ।”
“और...” - नीलेश बोला ।
“अभी और भी ?” - जठार बोला, उसके चेहरे पर अप्रसन्नता के भाव दोबाला हो गये ।
“सर, अगर मकतूला के नाखूनों के नीचे से चमड़ी के अवशेष बरामद होने की बात से आप मुतमईन हैं तो, गुस्ताखी की माफी के साथ अर्ज है, सर, हमलावर के मुंह माथे पर भी कहीं खरोंचों के निशान बने होने चाहियें !”
“आई एम सारी, मुझे इस बाबत कोई जानकारी नहीं थी । क्योंकि पहले ये मुद्दा ही नहीं था इसलिये मुझे इनवैस्टिगेटिंग आफिसर से या अटॉप्सी सर्जन से इस बाबत सवाल करना नहीं सूझा था ।”
“सूझता भी तो कुछ हाथ न आता ।” - पाटिल बोला ।
“वाट्स दैट !”
“आपके थाने वालों ने मुलजिम पाण्डेय का मार मार के थोबड़ा सुजा दिया, उस पर खरोंचों के कोई वैसे निशान होंगे तो मार के ज्यादा प्रामीनेंट, ज्यादा मुखर निशानों के नीचे दब गये होंगे ।”
“तो क्या हुआ !” - जठार झुंझलाया - “असलियत की तसदीक दूसरे सिरे से भी हो सकती है ।”
“दूसरा सिरा !”
“पोस्टमार्टम रिपोर्ट वाला-जिसे, मुझे खेद है कि, मैंने गौर से न पढ़ा, वर्बेटिम न पढ़ा ।”
“उसमें इस प्वायंट का कोई जिक्र न हुआ तो ?”
“तो लाश अभी भी पुलिस कस्टडी में है । मैं खुद जा कर उसके नाखूनों का मुआयना करूंगा ।”
“यस, दैट वुड बी बैटर ।”
“ऐनीथिंग ऐल्स ?”
“आप कब तक आइलैंड पर हैं ?”
“फौरन रवाना हो रहा हूं ।”
“अच्छा !”
“आपने इतना बड़ा काम जो बना दिया मेरे लिये !”
“आई एम सारी ।”
“यू नीड नाट बी । इट्स माई जॉब । एण्ड हू नोज इट बैटर दैन यू !”
“यस । यू आर राइट ।”
एकाएक जठार उठ खड़ा हुआ । उसने पाटिल की तरफ हाथ बढ़ाया ।
“नाइस मीटिंग यू, मिस्टर पाटिल ।” - और बोला ।
“दि प्लेजर इज म्यूचुअल ।” - पाटिल उठ कर हाथ मिलाता बोला, फिर हाथ छोड़ने से पहले उसने सवाल किया - “लाश का क्या होगा ?”
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