Thriller Sex Kahani - सीक्रेट एजेंट
10-27-2020, 03:02 PM,
#63
RE: Thriller Sex Kahani - सीक्रेट एजेंट
नीलेश अपनी किराये की आल्टो चलाता कोस्‍ट गार्ड्स की छावनी से निकला और रूट फिफ्टीन से होता आगे आइलैंड की घनी आबादी वाले इलाके में पहुंचा जो कि वैस्टएण्ड कहलाता था ।
म्यूनीसिपैलिटी की इमारत के काले नोटिस बोर्ड पर चाक से बड़े बड़े अक्षरों में ‘स्‍टार्म वार्निंग’ लिखा था । हैडिंग के आगे की तहरीर के अक्षर छोटे थे इसलिये फासले से वो उन्हें न पढ़ सका ।
आइलैंड के मेन पायर पर खड़ी बड़ी मोटर बोट्‍स के लंगर दोहरे किये जा रहे थे और छोटी मोटारबोट्स को घसीट कर किनारे कि खुश्की पर लाया जा रहा था । मुम्बई और मुरुड जाने वाले स्टीमर खचाखच भरे हुये थे जो कि इस बात का साबूत था कि हरीकेन ल्यूसिया की दहशत में पर्यटक थोक में आइलैंड से पलायन कर रहे थे ।

वो ‘इम्‍पीरियल रिट्रीट के सामने से गुजरा तो उसकी निगाह स्वयमेव हि उन कोस्ट गार्ड्स कि तलाश में इधर उधर भटकी, जायंट कमिश्‍नर बोमन मोरावाला के अनुरोध पर और उन के सर्वोच्‍च अधिकारी के हुक्म पर जो वहां की निगरानी पर तैनात थे ।
जल्दी ही वे दोनों उसे दिखाई दे गये ।
वो बड़ी मुस्तैदी से अपना काम कर रहे थे और दोनों-वो बाखूबी जनता था-सशस्‍त्र थे ।
ड्राइव करता वो मिसेज वालसंज बोर्डिंग हाउस पर पाहुंचा ।
कोस्ट गार्ड्स वहां की निगरानी के लिये भी तैनात थे ।
वो कार से निकला, उनके करीब पहुंचा और उन्हें अपने वहां आगमन का मंतव्य समझाया ।

तुरंत सहमति में सिर हिलाता एक गार्ड उसके साथ हो लिया ।
दोनों दूसरी मंजिल पर पहुंचे ।
रोमिला के कमरे का दरवाजा तब भी अनलॉक्‍ड था जो पुलिस की बेपरवाही का नतीजा था । दरवाजा खोल कर वो भीतर दाखिल हुआ तो कोस्ट गार्ड बाहर ही ठिठक गया । इस बात में उसे कोई दिलचस्‍पी नहीं थी कि नीलेश वहां क्यों आया था और क्या चाहता था ! उसको नीलेश से हर तरह का सहयोग करने का निर्देश था और वो निर्देश का पालन कर रहा था ।
पिछली बार जब नीलेश सिपाही दयाराम भाटे के साथ वाहां पहुंचा था तो उसने उस जगह को सरसरी तौर से टटोला था क्योंकि तब भाटे कि वजह से उससे ज्यादा की कोई गुंजायश नहीं थी लेकिन अब वहां कैसी भी तलाशी कि उसे खुली छूट हासिल थी ।

उसने बरीकी से कमरे की हर चीज को टटोलना शुरू किया ।
एक दाराज से कुछ चिटि्‌ठयां बरामद हुईं जिनके मुआयाने से मालूम पड़ा कि वो उसके भाई ने पोंडा से लिखी थी । चिटि्‌ठयों में मोटे तौर पर इसी बात पर जोर था कि मां की तबीयत बहुत खराब रहने लगी थी और जो पैसा वो भेजती थी, उससे घर का ही खर्चा चलता था, उसमें मां के मुनासिब इलाज की गुंजयश नहीं थी ।
दो चिटि्‌ठयां बैंगलोर से थीं जो उसकी ऐंजीला नाम की सखी ने वहां से लिखी थीं । दोनों में इस बात पर जोर था कि वहां पैसा कमाने के बेहतर चांसिज थे और उसे अपना मौजूदा मुकाम छोड़ कर बैंगलोर शिफ्ट करने पर विचार करना चाहिये था ।

उसी दराज से रूम रैंट की कुछ रसीदें बरामद हुईं ।
कमरे का माहाना किराया तीन हजार रुपये ।
जबकि उसके इंडीपेंडेंट काटेज का महाना किराया बाइस सौ रुपये था ।
बाथरूम में जनाना इस्तेमाल के कीमती शैम्पू, कंडीशनर्स, बाडी लोशंस, स्क्रब्स, परफ्युम वगैरह थे ।
उसका खुला सूटकेस अपनी पूर्व स्थिति में तब भी बैड पर मौजूद था और उसके अंदर बाहर उसकी पोशाकें और अंडरगारर्मेट्‍स भी पूर्ववत बिखरे हुए थे ।
दो तीन ड्रैसें अभी वार्डरोब में भी हैंगरों पर टंगी मौजूद थीं और वर्डरोब के नीचे के हिस्से में बने एक बड़े से दराज में कई जोड़े बैली, चप्पल और सैंडल मौजूद थी ।

बैड की मैट्रेस के नीचे से एक बैंक की पास बुक बरामद हुई जिसके मुताबिक उसके सेविंग बैंक एकाउंट में ग्यारह हजार आठ सौ पिच्‍चासी रुपये साठ पैसे जमा थे ।
लेकिन जिस चीज कि उसे असल में तलाश थी, वो वहां उसे कहीं न मिली ।
रोमिला का कोई हैण्डबैग-जनाना सामान समेत या खाली - वहां नहीं था ।
जो कि हैरानी की बात थी ।
हैण्डबैग के बिना वो एक नौजवान लड़की कल्पना नहीं कर सकता था ।
वो रोमिला के साथ नहीं था-सिद्ध हो चुका था कि नहीं था-तो उसे वहां होना चाहिये था ।
क्यों नहीं था ?

वो कमरा खुला दरबार बना हुआ था, कोई आया और उठा के ले गया ।
कोई चोर !
या पुलिस !
वो महाबोले का करतब हो सकता था क्योंकि उसका इसी बात पर जोर था कि हैण्हबैग रोमिला के पास था और वो ही-उसमें मौजूद रोकड़ा ही - उसके कत्ल की वजह बना था ।
अगर सच में ये बात थी तो फिर तो हैण्डबैग की बरामदी भी महज वक्‍त की बात थी । वो जब बरामद होता तो रोकड़े के नाम पर उसमे झाङू फिरा होता और यूं कथित कातिल हेमराज पाण्डेय के ताबूत में एक कील और ठुक जाता ।

वो कमरे से निकला, उसने अपने पीछे दरवाजा बंद किया । फिर वो और गार्ड दोनों वापिस सड़क पर पहुंचे । नीलेश ने गार्ड को थैंक्यू बोला और फ्रंट डोर से इमारत में दखिल हुआ । भीतर लगे एक इंडेक्स बोर्ड से पता लगा कि लैंडलेडी मिसेज वालसन का आवास पहली मंजिल पर था ।
नीलेश पहली मंजिल पर पहुंचा ।
बड़ी मुश्किल से मिसेज वालसन उससे बात करने को तैयार हुई ।
वो कोई पचपन साल की, कटे बालों वाली, सख्त मिजाज - बल्कि चिड़चिड़ी - ऐंग्लोइंडियन महिला थी । उसने असहिष्णुतापूर्ण भाव से नीलेश की तरफ देखा ।

नीलेश ने भी वैसे ही उसकी निगाह का मुकाबला किया ।
वो हड़बड़ाई, तत्‍काल उसकी निगाह नीलेश की सूरत पर से भटकी ।
“क्‍या प्राब्‍लम है तुम लोगों का ?” - फिर भुनभुनाती सी बोली ।
“प्राब्‍लम !” - नीलेश की भवें उठीं
“कितना टेम मेरे को क्‍वेश्‍चन करने का ? कभी हवलदार आता है, कभी सब-इंस्‍पेक्‍टर आता है, कभी मरुड से इधर पहुंचा कोई पुलिस आफिसर आता है...”
“कभी थानेदार आता है ।”
“क्‍या बोला ?”
“थानेदार बोला । थानेदार नहीं समझतीं तो एसएचओ ! महाबोले !”
“उसका इधर क्‍या काम !”
“मैं बताऊं ! अरे, मैं...”
“आप जानती तो हैं न इंस्‍पेक्‍टर महाबोले को ?”

“हां । वो मर्डर केस का इनवैस्टिगेशन का वास्‍ते इधर आया न ! अपना टीम के साथ !”
“उसके बाद अकेला भी आया ?”
“नो !”
“रोमिला के रूम में गया ?”
“नैवर ।”
“यानी खुद न आया, किसी को भेजा ?”
“काहे वास्ते ?”
“एडीशनल इनवैस्टिगेशन के वास्ते ! तफ्तीश कि जो बचत खुचत रह गयी थी, उसको समेटने के वास्ते !”
“मैन, यू आर टाकिंग इन रिडल्स । फर्स्ट टेम के बाद इधर कोई नहीं आया । पण” - वो एक क्षण ठिठकी, फिर बोली - “आया भी !”
“जी !”
“अभी तुम आया न ! क्या प्राब्लम है तुम लोगों का ?”

“पहले भी पूछा ।”
“अभी फिर पूछता है न !”
“कोई प्राब्लम नहीं ।”
“तो काहे डिस्टर्ब करता है ! इधर का म्यूनीसिपैलिटी का प्रेसिडेंट-बिग गन बाबूराव मोकाशी मेरा पर्सनल फ्रेंड । मालूम !”
“अब मालूम ।”
“मै एक टेलीफोन काल लागायेगा तुम ब्लडी इधर से ऐसे क्‍व‍िट करेगा जैसे कभी आया ही नहीं था ।”
“ओके ।”
“वाट ओके ?”
“जो कहा,वो कीजिये । जो रिजल्ट आपको देखने का, वो मेरे को भी देखने का ।”
वो हड़बड़ाई, तड़फड़ाई, कई बार मुंह खोला, बंद किया ।
“अभी क्या प्राब्लम है ?” - फिर बोली - “मैं मर्डर सस्पैक्ट है ?”

“नहीं ।” - नीलेश पूर्ववत्‍ इत्‍मीनान से बोला ।
“तो ?”
“सीटा सस्पैक्ट है ।”
“क्या बोला ?”
“सीटा बोला । सप्रेशन आफ इममारल ट्रैफिक एक्ट ।”
“वाट !”
“बोर्डिंग हाउस नहीं चलाता, कालगर्ल्स की पनाहगाह चलाता है इस वास्ते नार्मल से डबल, ट्रिपल रैंट चार्ज करता है ।”
“वाट नानसेंस !”
“हजार बारह सौ किराये के काबिल कमरे के तीन हजार रुपये महाना चार्ज करता है । थ्री थाउजेंड बक्स फार ए पिजन होल !”
“वाट द हैल !”
“रोमिला सावंत ने किराये की रसीदें सम्भाल के रखीं जो कि अपनी कहानी खुद कहती हैं । बाकी डीसीपी के सामने बोलना । उधर अपने पसर्नल फ्रेंड मोकाशी को भी बुला लेना । कम आन ! मूव नाओ ।”
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