RE: Thriller Sex Kahani - सीक्रेट एजेंट
“अरे, काहे खाली पीली बोम मारता है ! रैंट पर कोई गवर्नमेंट कंट्रोल है ! अपना रूम को मैं कोई भी रैंट फिक्स कर सकता है । किसी को ज्यास्ती लगता है तो नक्की करे । आइलैंड पर और भी बोर्डिंग हाउस हैं, उधर ट्राई करे ।”
“और बोर्डिंग हाउस किसी को भी रूम रैंट पर देते हैं, आप खाली नौजवान लड़कियों को देती हैं । वो सब धंधे वाली होती हैं, इसलीये आपके हाई रैंट से एतराज नहीं करती ।”
“वाट !”
“आप प्रास्टीच्यूट्स को पनाह देती हैं, दिस इज वाट !”
उसका मुंह खुले का खुला रह गया । फिर धीरे धीरे उसके चेहरे से असहिष्णुता के भाव छंटने लगे ।
“मैन, आई एम एन ओल्ड लेडी” - फिर दयनीय भाव से बोली - “काहे को डरता है ! किस वास्ते इतना बड़ा बड़ा बात करता है ! आई एम ए विडो । नो किड्स । इंकम का और कोई सोर्स नहीं । बोर्डिंग हाउस चलाता है तो खर्चा पानी चलता है । मेरे को किधर मालूम जो छोकरी लोग इधर रहता है, वो क्या करता है ! रैंट चार्ज करने के अलावा उनसे मेरा कोई कंसर्न नहीं । कैसे मैं किसी छोकरी को रूम रैंट पर देने से पहले उससे सवाल करेगा कि वो प्रास्टीच्यूट तो नहीं ! कालगर्ल तो नहीं ! कैसे होयेंगा ?”
“उनके कस्टमर इधर विजिट करते हैं, आपको मालूम नहीं पड़ता ? या आंखें बंद कर लेती हैं ?”
“आ-आ-आई डोंट इंटरफियर ।”
“यानी मालूम सब पड़ता है, दखल नहीं देती ?”
उसने झिझकते हुए सहमति में सिर हिलाया ।
नीलेश ने जेब से एक तसवीर निकाली जो कि उसने लोकल अखबार ‘आइलैंड न्यूज’ में से काटी थी । तसवीर कत्ल के अपराधी हेमराज पाण्डेय की थी जो कि कत्ल की ‘सनसनीखेज’ न्यूज के साथ छपी थी । उसे मालूम पड़ा था कि ‘आइलैंड न्यूज’ के प्रकाशन की कोई फ्रीक्वेंसी निर्धारित नहीं थी, यानी कभी वो रोज छपता था, कभी दो दिन में एक बार तो कभी हफ्ते में दो बार छपता था, उसका प्रकाशन प्रकाशित की जाने लायक खबर उपलब्ध होने पर निर्भर था जो कि उस शांत आइलैंड पर अक्सर नहीं भी उपलब्ध हो पाती थी ।
“ये तसवीर देखिये ।” - नीलेश ने कटिंग उसके सामने की - “क्या ये आदमी कभी इधर आया ?”
“क्या करने ?” - मिसेज वालसन ने पूछा ।
“रोमिला सावंत से मिलने !”
“मेरे खयाल से तो नहीं !”
“आपकी नजदीक की निगाह ठीक है ?”
“नहीं । इस उम्र में कैसे होगी !”
“पढ़ने लिखने के लिये चश्मा लगाती हैं ?”
“हां ।”
“ले के आइये ।”
वो भीतर कहीं गयी और रीडिंग ग्लासिज के साथ लौटी ।
“पहनिये । और तसवीर को फिर से, ठीक से देखिये ।”
उसने निर्देश का पालन किया ।
“अब क्या कहती हैं ?”
“वही, जो पहले कहा ।” - तसवीर लौटाती वो बोली - “ये आदमी कभी इधर नहीं आया ।”
“पहले आपने खयाल से कहा था, अब यकीन से कह रही हैं ?
“हां ।”
“लेकिन” - नीलेश सावधान स्वर में बोला - “अनिल महाबोले अक्सर आता था ।”
“भई, वो पुलिस आफिसर है । लोकल थाने का एसएचओ है । उसके पास अथारिटी है । चैकिंग के लिये वो किधर भी जा सकता है ।”
“चैकिंग के लिये ?”
“हां ।”
“कैसी चैकिंग !”
“जैसी बोर्डिंग एण्ड लॉजिंग की कमर्शियल एस्टैब्लिशमैंट्स की होती है ।”
“आई सी । दयाराम भाटे से वाकिफ हैं ?”
“पुलिस कांसटेबल है ।”
“परसों रात इधर वाच करता था । मालूम ?”
“मालूम ।”
“क्यों ?”
“ये तो बोला नहीं !”
“इधर जो कुछ भी होता है, आपको उसकी खबर रहती है । ठीक !”
“भाटे मेरे को नहीं बोला काहे वो इधर था ।”
“लेकिन आपको मालूम । उसके बोले बिना आपको मालूम ।”
“क्या बात करता है, मैन !”
“आपको मालूम कि वो रोमिला सावंत की फिराक में इधर था ।”
“कैसे मालूम होयेंगा !”
“आप झूठ बोल रही हैं ।”
“नो, मैंन, मैं …”
“अंजाम बुरा होगा । जब होगा तो आपका पर्सनल फ्रेंड मोकाशी भी हाथ खडे़ कर देगा । अपनी हरकत आ बैल मुझे मार जैसी करेंगी तो पछतायेंगी ।”
मिस्टर वालसन के चेहरे पर कोई नया भाव न आया लेकिन उसके शरीर में सिहरन दौड़ती नीलेश ने साफ देखी ।
“कबूल कीजिये कि आपको मालूम था कल रात को इंस्पेक्टर महाबोले को रोमिला की बड़ी शिद्दत से तलाश थी ।”
“थी तो क्या ! मेरे को क्या ! बट आई स्वियर बाई जीसस, मेरी एण्ड जोसेफ, मेरे को नहीं मालूम क्यों तलाश थी ! वो मेरे को इस बारे में कुछ न बोला ।”
“महाबोले यहां अक्सर आता था ?”
“यहां ?”
“अरे, यहां नहीं, आपके बोर्डिंग हाउस में ! रोमिला सावंत के पास ! उसके कमरे में !”
“बोले तो आता तो था !”
“अक्सर ?”
“हां ।”
“पीसफुली आता था, पीसफुली जाता था ?”
“आई डोंट अंडरस्टैंड ।”
“अरे, कभी झगड़ा होता था दोनों में । तू तू मैं मैं होती थी ?”
“बोले तो मोस्ट आफ दि टाइम यहीच होता था। दोंनो बैड टैम्पर्ड थे । बहुत जल्दी भड़कते थे । सैवरल टाइम्स मेरे को जा के बोलना पड़ा गलाटा न करें, बाकी बोर्डर्स को डिस्टर्बेंस होता था ।”
“झगड़ते किस बात पर थे ?”
“मालूम नहीं । आनेस्ट, नहीं मालूम ।”
“कोई अंदाजा ?”
“अंदाज बोले तो रोकड़ा !”
“झगडे़ की वजह रोकड़ा होता था ?”
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