RE: Thriller Sex Kahani - सीक्रेट एजेंट
“अंदाजा पूछा न ! मैं अंदाजा बोला । दैट गर्ल …रोमिला …शी वाज ग्रीडी । बोले तो लालची थी । रोकड़े पर जान देती थी । बोलती थी बहुत जिम्मेदारियां । इस वास्ते मजबूरी । बोले तो वो छोकरी रोकडे़ के वास्ते कुछ भी कर सकती थी ।”
“आई सी । आप बोर्डिंग हाउस चलाती हैं, ऐसा बोर्डिंग हाउस चलाती हैं जिसकी चैकिंग के लिये गाहे बगाहे पुलिस को आना पड़ता है । आप खुद कुबूल करती हैं ये कैसा बोर्डिंग हाउस है, फिर भी पुलिस आती है, चली जाती है, आपको डिस्टर्ब नहीं करती, आपके बोर्डर्स को डिस्टर्ब नहीं करती, वर्ना चाहे तो आपको समेत सबको अंदर कर दे । प्रास्टीच्यूशन बेलेबल ऑफेंस हैं, बाईयां तो ओवरनाइट में छूट जायेंगी, आपको जमानत कराने में दिक्कत होगी । धंधा चौपट होगा सो अलग ।”
“मैन” - वो घबराये स्वर में बोली - “क्या कहना मांगता है ?”
“ये कि ऐसी कोई मिसएडवेंचर आपके साथ नहीं हुई तो इसका मतलब है पुलिस के साथ आपकी कोई सैटिंग है । महाबोले इधर का पुलिस चीफ है, लिहाजा उसको कभी आपसे कोई फेवर-जो कि जाहिर है कि रैसीप्रोकल होगी; यू स्क्रैच माई बैक, आई स्क्रैच युअर बैक सरीखी होगी - मांगता हो तो आप मना नहीं कर पायेंगी । नो ?”
“कैसा फेवर ?”
“कैसा भी । जवाब दीजिये । मना कर पायेंगी ?”
उसने हिचकिचाते हुए इंकार में सिर हिलाया ।
“इफ आई से नो” - फिर दबे स्वर में बोली - “ही विल फाल अपान मी लाइक ए टन आफ ब्रिक्स । बर्बाद कर देगा ।”
“मैं आपकी साफगोई की दाद देता हूं ।”
वो खामोश रही ।
“बर्बाद कौन होना मांगता है !”
“कोई नहीं ।” - वो बोली ।
“इसलिये महाबोले जो बोले वो सिर माथे !”
“सिर माथे बोले तो ?”
“यस, सर । राइट अवे, सर । युअर वर्ड माई कमांड, सर’ । नो?”
“ओह, दैट ! यस, पण मजबूरी …”
“आई अंडरस्टैंड । रोमिला के कमरे से उसका हैण्डबैग गायब है । किधर गया ?”
“मेरे को कैसे मालूम होयेंगा ? बोले तो कोई चोर …”
“उसके कमरे में और भी कीमती सामान है । हैण्डबैग ही क्यों चुराया चोर ने ?”
“मैं क्या बोलेगा ! पण” - उसकी आवाज में संदेह का पुट आया - “तुम्हेरे को कैसे मालूम उधर ये कोई हैण्डबैग मिसिंग है !”
“कल जब आप शापिंग के लिये गयी हुई थी तो मैं डीसीपी साहब के साथ इधर आया था …”
“डीसीपी ! डीसीपी इधर किधर है ? इधर तो टॉप पुलिस ऑफिसर इंस्पेक्टर है जो कि महाबोले है ।”
“मुम्बई से आया ।”
“काहे ?”
“बोलेगा खुद । आप कोआपरेट नहीं करेंगी तो जो मैं पूछ रहा हूं, वो खुद डीसीपी आके पूछेगा ।”
“ओह, नो !”
“देखना आप !”
“तुम…तुम कौन है ?”
“पूछना सूझ गया !”
“पुलिस वाला तो है बराबर । पण … कौन है ! इधर थाने से ही है न !”
“नहीं ।”
“तो ?”
“मुम्बई से आया । डीसीपी के साथ । डीसीपी का चीफ असिस्टेंट है मैं ।”
“ओह ! पण मुम्बई से काहे …?”
“मालूम पडे़गा । अभी छोडि़ये वो किस्सा ।”
“इधर का थाना मुरुड के डीसीपी के अंडर । इतना मेरे को मालूम । फिर मुम्बई से …”
“बोला न, छोड़िये वो किस्सा । अभी मैं क्या बोला ? मैं बोला कि कल जब आप शापिंग के लिये गयी हुई थीं तो मैं डीसीपी के साथ इधर आया था । रोमिला का हैण्डबैग उसके कमरे में नहीं था ।”
“किधर गया ?”
“यही सवाल तो मैं आपसे कर रहां हूं । आप बताइये किधर गया ?”
“आई हैव नो आइडिया ।”
“मैडम, ये बात महाबोले के इंटरेस्ट में है कि वो बैग इधर से बरामद न हो । लिहाजा उसको इधर से हटाने के लिये कल या वो खुद आया, या उसका कोई आदमी आया या …”
“या क्या ?”
“या ये काम उसके लिये आपने किया ।”
“वाट !”
“उसको ओब्लाइज करने के लिये । इधर आपके करोबार में पंगा न करने आपको ओब्लाइज करता है न बराबर ! तो बदले में आपको भी तो लोकल पुलिस चीफ के साथ गुडविल बना के रखने का या नहीं ?”
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