RE: Thriller Sex Kahani - सीक्रेट एजेंट
“एक लोकल बार बाउंसर का फ्रेंड डीसीपी ! मैने दो में दो जोडे़ और बडे आराम से जवाब …छत्तीस निकाल लिया ।”
“ग्रेट !” - भीतर से चिंतित नीलेश प्रत्यक्षत: उपहासपूर्ण स्वर में बोला - “सिग्रेट पीते हो, मेहता साहब ?”
“आम हालात में नहीं ।”
“खास हालात क्या हुए ?”
“कोई पिलाये ।”
नीलेश फिर हंसा, उसने जेब से अपना पैकेट निकाला और उसे सिग्रेट पेश किया । उसने पहले उसका और फिर अपना सिग्रेट सुलगाया ।
“थैंक्यू ।” - मेहता बोला ।
“वैलकम !”
मेहता ने एक बार दायें बायें देखा और फिर दबे स्वर में बोला - “मैं आइलैंड के करप्ट निजाम के खिलाफ हूं । उस त्रिमूर्ति के खिलाफ हूं जो आजकाल यहां ट्रिपल एम के नाम से मशहूर है । एक ही दुश्मन के दुश्मन दोस्त होते हैं । हाथ मिलाओ, पार्टनर ।”
नीलेश ने गर्मजोशी से उससे हाथ मिलाया ।
एकाएक उसके दिलोदिमाग से बोझ हट गया था ।
मंजुनाथ मेहता ठीक आदमी था, भरोसा करने के लायक आदमी था ।
“मुम्बई पुलिस के टॉप ब्रास का फेरा लगा है” - मेहता सिग्रेट का कश लगाता बोला - “उम्मीद है जल्दी ही इधर कोई उथल-पुथल होगी ।”
“डीसीपी साहब की बात कर रहे हो ?”
“और जायंट कमिश्नर साहब की, जो अभी नेपथ्य में हैं ।”
नीलेश ने हैरानी से उसकी तरफ देखा ।
“पत्रकार हूं, भई, छोटी जगह का छोटा पत्रकार हूं, लेकिन सूंघ तो पत्रकारों वाली है न बराबर !”
“जो कोस्ट गार्ड्स की छावनी तक मार कर गयी !”
“अब है तो ऐसा ही कुछ कुछ ।”
“कमाल है !”
“मैं तुम से तुम्हारी असलियत के बारे में सवाल नहीं करुंगा । खुद बताना चाहोगे तो मेरा जवाब होगा मैं नहीं सुनना चाहता । फिर भी बताओगे तो हाथ के हाथ भूल जाऊंगा । क्या समझे ?”
“वही, जो तुम समझाना चाहते हो । थैंक्यू ।”
“पार्टनर, केस में तुम्हारी दिलचस्पी तो प्रत्यक्ष है । राय क्या है तुम्हारी उसके बारे में ?”
“ऐसे केस के बारे में” - नीलेश लापरवाही से बोला - “मेरी क्या राय होनी है जो पहले ही क्लोज हो चुका है ! कातिल पुलिस के कब्जे में है, अपना जुर्म कबूल कर चुका है, इकबालिया बयान तक दर्ज करा चुका है, और क्या चाहिये पुलिस को !”
“कातिल, यानी कि वो कनफर्म्ड अल्कोहलिक पाण्डेय !”
“जानते हो उसे ?”
“मैं क्या, आइलैंड के परमानेंट बाशिंदे तकरीबन सब जानते हैं। इतना काबिल इलैक्ट्रीशियन है, बाटली से बर्बाद है । बाटली की वजह से काम में कोताही करता है । कोई मुंह मांगी फीस के वादे पर काम के लिये बुलाये, और वो महकता हुआ पहुंचे तो कोई दोबारा बुलायेगा ?”
नीलेश ने इंकार में सिर हिलाया ।
“किसी अनाड़ी से, नौसिखिये से, अपना काम करा लेगा, पाण्डेय को फिर नहीं बुलायेगा। इसी वजह से इतने हुनरमंद आदमी को रोकडे़ का सदा तोड़ा रहता था । कभी चार पैसे ज्यादा कमा लेता था तो कोशिश करता था कि चार दिन की इकट्ठी ही पी ले ।”
“तौबा !”
“तुम्हें महाबोले की इनवैस्टिगेशन से इत्तफाक है कि वो कातिल है ?”
“हो सकता है, नहीं भी हो सकता, बाटलीमार के मिजाज का क्या पता लगता है !”
“पार्टनर, डिप्लोमैटिक जवाब न दो ।”
“तुम अपने अखबार में छाप दोगे ।”
“पहले स्ट्रेट जवाब दो, फिर जवाब दूंगा इस बात का ।”
“नहीं हो सकता ।”
“उसे फंसाया जा रहा है ? बलि का बकरा बनाया जा रहा है ?”
“हां ।”
“अब जवाब देता हूं मैं तुम्हारे सवाल का । मैं ये बात अपने अखबार में छापूंगा तो महाबोले मेरी वाट लगा देगा । मुझे अखबार छापने लायक नहीं छोडे़गा । मैं दरिया में रह के मगर से वैर नहीं कर सकता ।”
“कमाल है ! पत्रकार तो बडे़ निर्भीक होते हैं !”
“वो, जिनके पावरफुल सरपरस्त होते हैं जिनके अखबारों के मालिकान ऐसे बडे़ बडे़ इंडस्ट्रियलिस्ट्स होते हैं जो प्राइम मिनिस्टर से हाथ मिलाते हैं, होम मिनिस्टर के साथ उठते बैठते हैं । और मैं मंजूनाथ मेहता ! बोले तो क्या पिद्दी, क्या पिद्दी का शोरबा !”
“मैं तुम्हारी साफगोई की दाद देता हूं ।”
“मैं तुम्हारी दाद कुबूल करता हूं । अब बोलो, क्यों तुम समझते हो कि पाण्डेय बेगुनाह है !”
“इस शर्त पर बोलता हूं कि खाली सुनोगे, जो सुनोगे उसका कैसा भी कोई इस्तेमाल नहीं सोचने लगोगे ।”
“आई प्रामिस, पार्टनर ।” - उसने निहायत संजीदगी से अपने गले की घंटी को छुआ ।
नीलेश ने सब बयान किया जो जाहिर करता था कि पाण्डेय कातिल नहीं हो सकता था ।
“देवा !” - मेहता नेत्र फैसला बोला - “नत्था मरेगा ।”
“क्या बोला ?”
“आई एम सारी । पाण्डेय मरेगा । पुलिस केस बनाती है, सजा नहीं देती । सजा देना कोर्ट का काम है जहां मुलजिम को पेश किया जाना लाजमी होता है । जो कुछ तुमने कहा है, उसकी रू में कोर्ट में पाण्डेय के खिलाफ केस पांच मिनट नहीं ठहरने वाला । इस हकीकत से महाबोले नावाकिफ हो, ये नहीं हो सकता । लिहाजा केस कोर्ट में पहुंचेगा ही नहीं ।
“ऐसा कैसे होगा ?”
“मुलजिम लॉकअप में पंखे से लटका पाया जायेगा । महाबोले बयान देगा अपने निश्चित अंजाम से घबरा कर खुदकुशी कर ली । ईजी !”
“तौबा !”
“कहते हैं दुनिया में नहीं जिसका कोई उसका खुदा है । पता नहीं ये बात बेचारे पाण्डेय पर लागू होती है या नहीं !”
“आने वाला वक्त बतायेगा ।”
“यानी महाबोले आने वाला वक्त है !”
“कमाल के आदमी हो ! कमाल की बातें करते हो !”
उसने सिग्रेट का आखिरी कश लगाया और उसे परे उछाल दिया ।
“चलता हूं ।” - फिर बोला - “बहुत खुशी हुई तुमसे मिल कर । कभी आफिस आना । टाउन हाल के ऐन सामने है । टाउन हाल मालूम ?”
“मालूम ।”
“उसके सामने सैकण्ड फ्लोर पर । आइलैंड न्यूज । बोर्ड लगा है । आते जाते दर्शन देना कभी ।”
“जरूर ।”
करीब खड़े अपने स्कूटर पर सवार होकर वो वहां से रुखसत हो गया ।
नीलेश अपनी कार में सवार होने ही लगा था कि आबादी की ओर से एक वैगन-आर वहां पहुंची और उसकी आल्टो के करीब आ कर रुकी ।
कार में श्यामला मोकाशी सवार थी ।
नीलेश ठिठका खड़ा रहा ।
श्यामला कार से बाहर निकली । उसकी निगाह दायें बायें घूमी और फिर नीलेश पर आकर ठिठकी ।
नीलेश ने उंगली से पेशानी छू कर उसका अभिवादन किया और फिर नीलेश उसके करीब पहुंचा ।
“हल्लो !” - वो मुस्कराता हुआ बोला ।
हल्लो का जवाब श्यामला ने जबरन मुस्करा कर दिया ।
“इस वक्त कुछ और भी मांगता तो मिल जाता ।”
श्यामला की भवें उठीं ।
“तुमसें मिलना चाहता था । सोच रहा था तुम्हारे घर जाना मुनासिब होगा या नहीं !”
“क्यों मिलना चाहते थे, सरकारी आदमी साहब ?”
“क्या बोला ?”
“क्या सुना ?”
“म-मैं सरकारी आदमी !”
“हां ।”
“वो कौन होता है ?”
“जो सरकार के लिये काम करता है । जैसे जासूस, भेदिया, सीक्रेट एजेंट, अंडरकवर आपरेटर ।”
“वो मैं ?”
“हां ।”
“कौन बोला ऐसा ?”
“कोई तो बोला ही !”
“तुम्हारा पिता बोला । मोकाशी साहब ने ऐसा कहा ?”
“तो क्या गलत कहा ! बहुत बढि़या कल्टीवेट किया मेरे को अपने मकसद की खातिर ! बाकायदा ट्रेनिंग मिलती होगी ऐसे कामों की ।”
“तुम मुझे गलत समझ रही हो ।”
“क्या गलत समझ रही हूं मैं ?”
“ये कि मैंने किसी नापाक मकसद से तुम्हारे से ताल्लुकात बनाये ।”
“न सही । लेकिन जब ताल्लुकात बन गये तो नापाक मकसद भी सिर उठाने लगा । किसी के एक काम करते कोई दूसरा काम भी हो जाये तो ऐसा करने पर कोई पाबंदी तो नहीं लागू न ! या होती है ?”
नीलेश ने उत्तर न दिया ।
|