Thriller Sex Kahani - सीक्रेट एजेंट
10-27-2020, 03:05 PM,
#70
RE: Thriller Sex Kahani - सीक्रेट एजेंट
नीलेश सेलर्स बार पहूंचा ।
परसों रात के अंधेरे में वो वहां ठीक से कुछ नहीं देख पाया था, न ही ऐसा कुछ करने की तब जरुरत थी। तब उसकी तवज्जो का मरकज सिर्फ और सिर्फ रोमिला सावंत थी जिससे मिलने के वाहिद काम से वो वहां पहुंचा था ।

उस घड़ी सूरज डूबने में अभी टाइम था इसलिये उसकी निगाह पैन होती हुई चारों तरफ घूमी । तब उसने महसूस किया कि वो जगह बिल्कुल ही उजाड़ नहीं थी । सड़क से पार, उससे परे हट कर, उससे काफी ऊंचे लैवल पर छितरे हुए कुछ मकान थे जो बसे हुए जान पड़ते थे ।
बार का ग्लास डोर ठेल कर वो भीतर दाखिल हुआ ।
हाल उस घड़ी लगभग खाली पड़ा था, सिर्फ दो तीन मेजों पर ही कुछ लोग बैठे बीयर और बीयर पीते गप्‍पें लडा़ते दिखाई दे रहे थे ।
वो बार काउंटर पर पहुंचा ।
बार से पार जो व्यक्‍ति मौजूद था, वो अपनी तरफ से चलता उसके सामने पहुंचा ।

“क्‍या मांगता है ?” - वो बोला ।
“बोलेगा । मैं अभी इधरीच है । अभी ड्रिंक से पहले कुछ और मांगता है ।”
नीलेश उस व्‍यक्‍ति जैसी ही जुबान उससे भाईचारा जोड़ने के लिये बोल रहा था ।
“क्‍या ?”
“रामदास मनवार ।”
“मनवार से क्‍या मांगता है ?”
“बात करना मांगता है । परसों लेट लेट नाइट में मैं उसके रेजीडेंस पर फोन लगा कर उससे बात किया, अभी और बात करना मांगता है ।”
“तुम वो भीङू है जो रात को उस कड़का छोकरी की बाबत पूछता था जो इधर किसी फिरेंड का वेट करता था, जिसको मेरे को बाई फोर्स इधर से बाहर करना पड़ा था ?”

“हां । और मैं वो फ्रेंड है जिसका वो रात को इधर वेट करता था, जो टेम पर इधर न पहुंच पाया ।”
“ओह ! मैं है रामदास मनवार ।”
नीलेश ने उससे हाथ मिलाया ।
“आई एम सारी फार दि गर्ल ।” - मनवार खेदपूर्ण स्‍वर में बोला - “मेरे को हिंट भी होता कि मेरे पीठ फेरते ही उसके साथ ये कुछ होना था तो मैं उसको कभी आउट न बोलता । थोड़ा टेम और बार खोल के रखता, उसका फिरेंड-जो कि अभी मालूम पड़ा कि तुम थे-आ जाता तो ये टेम वो जिंदा होती ।”
“तुम्‍हें क्‍या पता था आगे क्‍या होने वाला था !”

“वही तो ! बस यहीच बात मैं मेरे को समझाता है वर्ना गिल्‍टी फील करता है कि थोड़ा टेम और क्‍यों न रुक गया !”
“पीछे वो अकेली यहां खड़ी रही ?”
“क्‍या करती ! जब फिरेंड इधर आने वाला था तो इधरीच वेट करती न !”
“तुमने उसे लिफ्ट आफर की थी ?”
“बरोबर । फोन पर बोला न मैं ! मैं तो ये भी बोला बरोबर कि उसका वास्‍ते मैं आउट आफ वे जाने को तैयार था । जिधर बोलती, उधर ड्रॉप करता । पण वो नक्‍की बोली । बोली, लिफ्ट नहीं मांगता था । इधरीच ठहरने का था ।”

“किसी सवारी के बिना वो इधर पहुंच कैसे गयी ?”
“कोई आटो, टैक्‍सी किया होगा...”
“नहीं हो सकता । जब बार के ड्रिंक का बिल भरने के लिये उसके पास रोकड़ा नहीं था तो आटो, टैक्‍सी का बिल भरने के लिये किधर से आता !”
“तो किसी ने लिफ्ट दिया ?”
“यही मुमकिन जान पड़ता है । पहुंची कब थी ?”
“क्‍लोजिंग टाइम से कोई दो सवा दो घंटे पहले । ग्‍यारह बजे । टैन मिनट्स ये बाजू या टैन मिनट्स वो बाजू ।”
“मिजाज कैसा था ?”
“परेशान थी । डरी हुई भी लगती थी । बात बात पर चौंकती थी ।”

“इधर किसी से मिली ? किसी से कोई बातचीत की ?”
“नहीं । अक्‍खा टेम वो उधर-पब्लिक टेलीफोन के करीब बार स्‍टूल पर बैठी रही, बेचैनी से पहलू बदलती रही । जिस टेम भी ग्‍लास डोर खुलता था, उसकी निगाह अपने आप ही उधर उठ जाती थी, फिर चेहरे पर और उदासी और नाउम्‍मीदी छा जाती थी ।”
“उसके कत्‍ल के इलजाम में एक भीङू गिरफ्तार है । मालूम ?”
“हां । हेमराज पाण्‍डेय । छापे में पढ़ा न ! फोटू भी देखा ।”
“रात को उसको इधर कभी मंडराते देखा हो ! बार के अंदर या बाहर !”
“नहीं । देखा होता तो छापे में फोटू देखने के बाद मेरे को वो भीङू जरुर याद आया होता । किधर बाहर अंधेरे में छुप के खड़ेला हो तो...कैसे दिखाई देगा !”

“कोई पुलिस कार देखी ?”
“पुलिस कार !”
“पैट्रोल कार ! जो गश्‍त लगाती है ! या कोई पुलिस की जीप !”
“न ! रात के उस टेम इधर ट्रैफिक न होने जैसा । इसी वास्‍ते तो मैं उस लड़की को लिफ्ट आफर किया । वापिसी में मेरे को रोड पर खाली एक ट्रक मिला था जिसको कि घर पहुंचने की जल्‍दी में मैंने ओवरटेक किया था ।”
“हूं । कोई और बात जो तुम्‍हें जिक्र के काबिल लगती हो !”
वो सोचने लगा ।
“अभी ड्रिंक मांगता है ?” - फिर एकाएक यूं बोला जैसे कोई भूली बात याद आयी हो ।

“मांगता है । लार्ज जानीवाकर ब्‍लैक लेबल विद हाफ वाटर, हाफ सोडा ।”
“सारी ! इधर फॉरेन लिकर की क्‍लायंटेल नक्‍को । रखता नहीं है ।”
“तो ?”
“दि बैस्‍ट आई कैन आफर यू इज वैट-69 ।”
वो भी तो फॉरेन लिकर है ?”
“नाट ओरीजिनल । जो बाहर से बाटल्‍स आता है, वो नहीं । जो इधर ही बनती है, बाहर से मंगाये गये कंसंट्रेट्स से । कंसंट्रेट्स को स्‍पैशल लैवल तक डाइल्‍यूट करके बाटलिंग इधरीच होती है ।”
“अच्‍छा । मेरे को नहीं मालूम था ।”
“ऐसे और भी ब्रांड हैं कंसंट्रेट्स मंगा कर जिनकी बाटलिंग इंडिया में होती है । जैसे टीचर्स, ब्‍लैक डॉग, हण्‍डर्ड पाइपर्स, ब्‍लैक एण्‍ड वाइट ।”

“कमाल है । आके ! वैट-69 ।”
मनवार ने उसे ड्रिंक सर्व किया ।
नीलेश ने चियर्स के अंदाज से गिलास ऊंचा किया, विस्‍की का एक घूंट भरा और गिलास को वापिस अपने सामने बार काउंटर पर रखा ।
“कुछ याद आया ?” - फिर पूछा ।
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RE: Thriller Sex Kahani - सीक्रेट एजेंट - by desiaks - 10-27-2020, 03:05 PM

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