RE: Thriller Sex Kahani - सीक्रेट एजेंट
“काहे को ।” - वो विनोदपूर्ण स्वर में बोला - “वक्त का कोई तोड़ा मेरे को ?”
“तो परसों रात इंसोम्निया ने आपको आधी रात से भी बहुत बाद तक जगाया !”
“तीन बजे तक ।” - वो पशेमान लहजे से बोली - “रोज की बात है, कभी कभी तो सवेरा हो जाता है ।”
“कोई गोली-वोली नहीं खातीं ?”
“खाती हूं । सब हज्म ।”
“तो परसों रात आपने सेलर्स बार पर पुलिस जीप को पहुंचते देखा था ?”
“हां । मास्टर बैडरूम में मेरे हसबैंड सोते हैं, अपनी अनिद्रा के दौर में मै उधर रहूं तो उनकी नींद डिस्टर्ब होती है इसलीये उनके सो चुकने के बाद जब मुझे नींद नहीं आ रही होती तो अमूमन मैं ड्राईंगरूम में आ जाती हूं । कल भी मैं यहीं थी और वहां खिड़की के पास बैठी एक नावल पढ़ रही थी जिसमें मेरा बिल्कुल मन नहीं लग रहा था इसलीये मेरी निगाह बार बार खिड़की से बाहर की ओर भटक जाती थी । परसों मेरी तवज्जो सेलर्स बार की तरफ इसलिये ज्यादा जा रही थी क्योंकि परसों रात वो अपने नार्मल क्लोजिंग टाइम के बाद भी खुला था ।”
“आई सी ।”
“आखिर बार बंद हुआ था और मैंने रामदास मनवार को - जो कि बार का मालिक है - अपनी खटारा जेन पर वहां से रवाना होते देखा था । उसको गये अभी दो-तीन मिनट ही हुए थे कि एक पुलिस जीप वहां पहुंच गयी, तब मेरे खयाल से वहां क्लोज्ड बार के सामने सायबान के नीचे कातिल-जिसका नाम अब मुझे मालूम है कि हेमराज पाण्डेय है-मौजूद था जो उसकी बद्किस्मती कि पुलिस की निगाह में आ गया था...”
“आपके कैसे मालूम ?”
“कैसे मालूम ! भई, उसको थामने के लिये एक पुलिस वाला निकला न जीप में से !”
“आपने उसको पहचाना ?”
“वर्दी को पहचाना । क्योंकि जीप से निकलते वक्त उसने हैडलाइट्स आफ नहीं की थीं और वो उनके आगे से गुजरा था ।”
“उसने जा कर मुलजिम पाण्डेय को थाम लिया ।”
“हं-हां ।”
“आपने मुलजिम को भी देखा ?”
“वो कुछ क्षण खामोशी रही, फिर उसने इंकार में सिर हिलाया ।
“लेकिन पुलिस ने” - फिर बोली - “किसी को थामा तो उधर बराबर । जीप में भी बिठाया लेकिन जो हुआ हैडलाइट्स की बैक में हुआ इसलीये मुझे हिलडुल ही दिखाई दी, हलचल ही दिखाई दी, कोई सूरत न दिखाई दी ।”
“फिर आप कैसे कहती हैं कि गिरफ्त में आने वाला शख्स पाण्डेय था ?”
“और कौन होगा ?”
“आपकी जानकारी में नहीं आया जान पड़ता, पाण्डेय को पुलिस ने जमशेद जी पार्क से गिरफ्तार किया था ।”
“फिर वो कौन था जिसको किसी बावर्दी पुलिस वाले ने सेलर्स क्लब पर पकड़ा था और जबरन जीप में बिठाया था ।”
“आप बताइये ।”
“मैं कैसे बताऊं ?”
“कोई ऐसी बात सोचिये, ध्यान में लाइये, जो उसकी आइडेंटिटी की तरफ इशारा करती हो लेकिन जिसकी तरफ पहले आपकी तवज्जो न गयी हो ! तवज्जो गयी हो तो जिसे पहले आपने अहमियत न दी हो !”
वो सोचने लगी ।
नीलेश धीरज से उसके दोबारा बोलने की प्रतीक्षा करने लगा ।
“मैंने एक चीख की आवाज सुनी थी ।” - एकाएक वो बोली ।
“वहीं से आती ?”
“हां ।”
“जो आपको यहां इतने फासले पर सुनाई दी ?”
“बहुत तीखी होगी न ! दूसरे, रात का सन्नाटा था । मद्धम सी आवाज यहां पहुंची ।”
“आई सी ।”
“उस वक्त मेरे को लगा था कि मैंने जनाना चीख की आवाज सुनी थी । लेकिन सुबह जब मुझे गिरफ्तारी की खबर लगी तो मुझे ये सोचने पर मजबूर होना पड़ा कि रात को मुझे मुगालता लगा था । जरूर मैंने मर्दाना चीख की आवाज सुनी थी ।”
“मैडम, मैंने पहले ही अर्ज किया कि कातिल यहां सामने सेलर्स बार पर से नहीं, यहां से बहुत दूर जमशेद जी पार्क से गिरफ्तार किया गया था ।”
“तब मुझे नहीं मालूम था । अभी भी नहीं मालूम था ।”
“अब जब मालूम है तो क्या कहती हैं ?”
“मर्दाना चीख थी । फासले से आयी, धीमी सुनाई दी इसलीये लगा कि जनाना थी ।”
“चीख मर्दाना थी लेकिन कोई मर्द न देखा !”
“न । बोला न, उसने हैडलाइट्स की रोशनी को क्रॉस नहीं किया था, जैसे कि पुलिस वाले ने किया था । लेकिन अंधरे के बावजूद इतना मैंने फिर भी देखा था कि पुलिस वाला किसी को जबरन जीप में सवार करा रहा था ।”
“किसी मर्द को ! जिसे तब आपने कातिल समझा !”
“हां ।”
“किसी औरत को नहीं ?”
“औरत ! औरत का रात की उस घड़ी-जबकि बार भी बंद हो चुका था-क्या काम !”
“तफ्तीश से ये स्थापित हुआ है कि मकतूला बार बंद हो चुकने के बाद भी उधर किसी का इंतजार करती थी ।”
“मकतूला बोले तो ?”
“जिसका कत्ल हुआ । रोमिला सावंत ।”
“कत्ल तो रूट फिफ्टीन पर हुआ ।”
“जहां हुआ, वो जगह सेलर्स बार से सिर्फ आधा किलोमीटर दूर है ।”
“लेकिन ये कैसे हो सकता है कि पुलिस ने बार के सामने से वो जो मतकूला करके तुम कुछ बोला...”
“मकतूला !”
“वही । कैसे हो सकता है रात पुलिस ने बार के सामने से मतकूला...मकतूला को पिक किया ? वो लड़की अगर पुलिस कस्टडी में थी तो उसका मर्डर कैसे हो गया ? वो पाण्डेय करके भीङू कैसे उसको खल्लास किया ?”
“सोचने की बात है ।”
“सोचो ।”
‘’आपको ये पक्का है जो वाहन आपने रात को बार के सामने आ कार रूकते देखा था, वो पुलिस जीप थी ?”
“हां, भई । पुलिस जीप मील से पहचानी जाती है । ये...बड़ा उस पर ‘पुलिस’ लिखा था । ऊपर लाल बत्ती थी ...”
“जल रही थी ?”
“नहीं ।”
“फिर भी आपको दिखाई दी ?”
“हां । वो बत्ती फ्रंट में होती है न ! इस वास्ते हैडलाइट्स की रिफ्लेक्शन में दिखाई दी ।”
“हैडलाइट्स में आपने पुलिस की खाकी वर्दी देखी, पहनने वाले की सूरत न देखी !”
“न । सूरत न देखी ।”
“रैंक पहचाना ?”
“रैंक बोले तो ?”
“बाजू पर एक, दो या तीन फीती थीं ? कंधों पर एक, दो या तीन स्टार थे ?”
“अच्छा वो ! नहीं, ये सब मेरे को नहीं दिखाई दिया था ।”
“अपने बंदी को जीप में जबरन बिठाने के बाद पुलिस वाले ने क्या किया था ?”
“कार को स्टार्ट किया था, उसको यु टर्न दिया था और जिधर से आया था, उधर वापिस लौट चला था ।”
“वापिस किधर ? रूट फिफ्टीन पर या न्यू लिंक रोड पर ?”
“ये मेरे को इधर से कैसे दिखाई देता !”
“ठीक ! कत्ल के बारे में आपका क्या खयाल है ?”
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