RE: Thriller Sex Kahani - सीक्रेट एजेंट
Chapter 6
आइलैंड पर नर्क का नजारा था ।
पानी यूं बरस रहा था जैसे आसमान फट पड़ा हो । हर तरफ पानी ही पानी था । सड़कों पर यूं बह रहा था कि उसमें लहरें उठती जान पड़ती थीं । ऊंचे इलाकों की तरफ से जगह जगह नीचे बहता पानी झरना जान पड़ता था । जगह जगह पानी में औने पौने डूबे, बिगड़े वाहन खड़े दिखाई दे रहे थे ।
उस हाल में भी कोई सड़क वीरान नहीं थी । किसी को घर लौटने की जल्दी थी तो किसी को घर छोड़ कर जैसे तैसे आइलैंड से पलायन कर जाने की जल्दी थी ।
जैसे कि नीलेश को कोस्ट गार्ड्स की छावनी से निकल कर वैस्टएण्ड पहुंचने की जल्दी थी ।
बड़ी मुश्किल से वो कार चला पा रहा था । कार की छत पर बारिश यूं मार कर रही थी जैसे छत फाड़ कर भीतर दाखिल हो जायेगी ।
ऐसे में उसे श्यामला मोकाशी का खयाल आया ।
खामखाह आया पर आया ।
कहां होगी ! क्या कर रही होगी !
घर पर ही होगी और कहां होगी !
क्या गारंटी थी ! एडवेंचरस लड़की थी । क्या पता वो प्रलयकारी मौसम भी उसे एंटरटेनमेंट का, एनजायमेंट का जरिया जान पड़ता हो !
वो झील के पास से गुजरा तो उसने पाया कि झील की सतह घनघोर बारिश की वजह से ऐसी आंदोलित थी कि लहरें पुल के ऊपर से गुजर रही थीं । मनोरंजन पार्क में रोशनी तो थी लेकिन लगता नहीं था कि भीतर मनोरंजन का तलबगार कोई पर्यटक मौजूद होगा ।
तौबा तौबा करता वो पुलिस स्टेशन पहुंचा ।
वो भीतर दाखिल हुआ तो उसका आमना-सामना भाटे से हुआ । वो रिपोर्टिंग डैस्क के पीछे डैस्क से घुटने जोड़े कुर्सी पर अधलेटा सा, ऊंघता सा बैठा था ।
“जय हिंद !” - नीलेश मधुर स्वर में बोला ।
भाटे ने आंखें पूरी खोलीं और फिर सम्भल कर बैठा । नीलेश पर उसकी निगाह पड़ी तो उसके नेत्र फैले ।
“मुझे पहचाना, हवलदार साहब ?”
“हां, पहचाना ।” - भाटे अपेक्षा के विपरीत नम्र स्वर में बोला - “और, भई, मैं सिपाही हूं, हवलदार नहीं हूं ।”
नीलेश हंसा ।
“पहचाना” - भाटे अर्थपूर्ण स्वर में बोला - “और वो भी पहचाना जो पहले न पहचाना ।”
“क्या मतलब ?”
“तुम महकमे के आदमी हो, मुम्बई से जो डीसीपी आया था, उसके खास हो ।”
“कौन बोला ऐसा ?”
“महाबोले साब बोला । उसको पूरा पूरा शक कि तुम पुलिस के भेदिये हो, बोले तो अंडरकवर एजेंट हो ।”
“शक ! यकीन नहीं ?”
वो खामोश रहा ।
“मैं बोलूं जो तुम्हारा एसएचओ समझता है, मैं वो नहीं हूं तो वो यकीन कर लेगा ?”
“बोल के देखना ।”
“तुम यकीन कर लोगे?”
“मैं तो कर लूंगा । तुम महकमे के कोई बड़े साब निकल आये तो मेरी तो वाट लगा दोगे ।”
“जब समझते हो कि मैं कोई बड़ा साहेब निकल आ सकता हूं तो खाक यकीन कर लोगे ! खाक यकीन किया !”
“मैं बहुत मामूली आदमी हूं, मैं बड़े साब लोगों के पचड़ों में नहीं पड़ना चाहता ।”
“लगता है इस वक्त तुम्हारे सिवाय यहां कोई नहीं है !”
“ठीक लगता है, सब इमरजेंसी ड्यूटी पर हैं ।”
“श्यामला मोकाशी की कोई खबर है ?”
“मेरे को कैसे होगी, भई ?”
“तुम्हारे साहब की खास है, सोचा शायद हो !”
“खामखाह !”
“फिर भी...”
“अरे, भई, ऐसे मौसम में घर ही होगी, और कहां होगी ?”
“लिहाजा मोकाशी साहब का आइलैंड छोड़ने का कोई इरादा नहीं !”
“उनका बंगला हाइट पर है, उन्हें तूफान से कोई खतरा नहीं ।”
“हूं । ‘इम्पीरियल रिट्रीट’ का क्या हाल है ?”
“समझो कि खाली है ।”
नीलेश को हैरानी थी कि भाटे उसकी हर बात का तत्परता से जवाब दे रहा था ।
“लोग बाग जा रहे हैं ?” - उसने पूछा ।
“पक्के बाशिंदे नहीं जा रहे । उन्हें ऐसे मौसम की आदत है ।”
“लेकिन आइलैंड खाली कर देने की वार्निंग तो सबके लिये जारी है !”
“उन्हें वार्निंग की परवाह नहीं । बोला न, उन्हें ऐसे मौसम की आदत है । चले गये तो लौटेंगे तो घर लुटे हुए मिलेंगे ।”
पुलिस वाले ही लूट लेंगे ।
“इसलिये टिके हुए हैं और मौसम का डट कर मुकाबला कर रहे हैं ?”
“यही समझ लो । वैसे कुछ फैमिलीज ने बच्चों को भेज दिया है ।”
“कोई जाना तो चाहता हो लेकिन बीमार होने की वजह से या हैण्डीकैप्ड होने की वजह से न जा पाता हो तो उसका क्या होगा ?”
“क्या होगा ?”
“सवाल मैंने पूछा, दारोगा जी, लोकल सिविल एडमिनिस्ट्रेशन या पुलिस ऐसे किसी शख्स की कोई मदद करती है ?”
“लोकल एडमिनिस्ट्रेशन का मेरे को नहीं मालूम लेकिन इधर...किसको फुरसत है !”
“कमाल है ! थाने में तुम अकेले बैठे हो, इतने सारे पुलिस वाले फील्ड में क्या कर रहे हैं जबकि किसी जरूरतमंद की मदद नहीं करनी ?”
“अरे, भई, मैं मामूली सिपाही हूं, महाबोले साब अभी इधर आयेगा न, उससे सवाल करना । मोकाशी साब से सवाल करना ।”
“मोकाशी साहब से ? वो भी इधर आयेंगे ?”
“हां । बैठो । इंतजार करो ।”
“फोन करके पता कर सकते हो वो दोनों कहां है ?”
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