RE: Thriller Sex Kahani - सीक्रेट एजेंट
“साब ने महाले को तलब किया और उसे फटकार लगाई कि कोई फोन क्यों नहीं सुनता था ! फिर उन्होंने ही काल की बाबत बताया और महाले को, हवलदार खत्री को मौकायवारदात की तरफ रवाना किया ।”
“हूं । ऐसा हो सकता है कि रैस्ट रूम में काल सुनी तो गयी हो लेकिन सबने सोचा हो कि कोई दूसरा उठेगा या काल की परवाह ही न की हो !”
“ऐसा नहीं हो सकता । एसएचओ खुद थाने में मौजूद हो, बगल के कमरे में मौजूद हो तो किस की ऐसा करने की मजाल हो सकती है !”
“ठीक !”
“आपसदारी में बोलता हूं, किसी ने घंटी नहीं सुनी थी । साब के भाव खाने के बाद सबने काल की बाबत एक दूसरे से सवाल किया था, घंटी बजती किसी ने नहीं सुनी थी ।”
“अजीब बात है !”
“अभी मैं क्या बोले ! है तो है ।”
“तो किसी ट्रक वाले को लाश दिखाई दी, उसकी खबर पुलिस को करना अपना फर्ज जान कर उसने काल लगाई । न सिर्फ काल लगाई, लाश की ऐग्जैक्ट लोकेशन भी बताई । ये भी बताया कि लाश किसी औरत की थी, मर्द की नहीं !”
“हां । और जो बताया था, करैक्ट बताया था ।”
“काल करने वाले ने अपने बारे में कुछ न बताया ?”
“अपने बारे में क्या ?”
“भई, और कुछ नहीं तो नाम ही बताया हो !”
“ऐसी काल करने वाला कोई नहीं बताता कुछ अपने बारे में । बताता तो उसको हुक्म होता कि वहीं टिका रहे जब तक कि पुलिस नहीं पहुंचती । कौन ऐसे अपना टेम खोटी करना मंजूर करता है !”
“इसलिये गुमनाम काल !”
“बरोबर । अमूमन तो लोगों को इतना भी करना मंजूर नहीं होता । हर कोई साला पचड़े से बचना चाहता है ।”
“वो काल न करता तो क्या होता ?”
“क्या होता ! आखिर तो लाश बरामद होती ही । पण टेम लगता ।”
“अब फटाफट बरामद हुई । इधर कत्ल हुआ, उधर लाश बरामद !”
“नहीं, फटाफट तो नहीं ! एक्सपर्ट लोग कत्ल दो बजे के आसपास हुआ बताते हैं, लाश की बाबत काल तो चार बजे आयी थी ।”
“ट्रक वाला रूट फिफ्टीन पर क्या पर रहा था ?”
“बोले तो ?”
“आजकल उधर का एक्सप्रैस वे तो न्यू लिंक रोड है !”
“है तो सही ! अभी मैं क्या बोलेगा ! साला पिनक में होगा, बेध्यानी में रूट फिफ्टीन पर ट्रक डाल दिया होगा !”
“ताकि उसे अंधेरे में सड़क के नीचे, ढ़लान पर आगे खाई में लुढ़की पड़ी लाश दिखाई देती, उसे अपनी सिविल ड्यूटी निभाने का मौका मिलता और वो एक जिम्मेदारी शहरी की तरह थाने काल-गुमनाम काल-लगाता !”
“क्या कहना चाहते हो ?”
“ये अजीब बात नहीं कि...”
“होगी अजीब बात ! मेरे को क्या करने का !”
“बात तो तुम्हारी ठीक है !”
“तो ?”
“कुछ नहीं ।”
“कुछ नहीं तो ये किस्सा छोड़ो । कोई और बात करो ।”
“करता हूं । उस रात मैं तुम्हें मरने वाली के-रोमिला के -बोर्डिंग हाउस पर मिला था, जबकि तुमने मेरे पर भारी मेहरबानी की थी कि मुझे रोमिला के रूम का चक्कर लगाने का मौका दिया था...”
“जिसके लिये साब ने मेरी वाट लगा दी थी ।”
“तभी ? हाथ के हाथ ?”
“हां ।”
“इसका मतलब है मेरे बोर्डिंग हाउस से चले जाने के बाद तुम भी उधर से नक्की कर गये थे !”
“हां । थाने लौटा न ! साब को रिपोर्ट पेश की ।”
“फिर ?”
“साब भड़क गया कि क्यों मैने तुम्हें लड़की के कमरे में जाने दिया । फिर इस बात पर हड़का दिया कि मैं बिना इजाजत ड्यूटी छोड़ कर थाने क्यों लौट आया ! अच्छी दुरगत हुई मेरी तुम्हारे से कोआपरेट करने के बदले में ।”
“सॉरी !”
“अब क्या सारी और क्या आधी ! जो होना था, वो तो हो चुका ।”
“कब थाने लौटे थे ?”
“पौने तीन के करीब । दो-एक मिनट ऊपर होंगे ।”
“इतनी रात गये महाबोले साहब थाने में मौजूद थे ?”
“हां । बाद में पता लगा था कि तभी कोई आधा घंटा पहले गश्त से लौटे थे ।”
“रात को गश्त लगाते हैं ?”
“बहुत कम । क्योंकि ये हवलदार जगन खत्री की ड्यूटी है ।”
“रोजाना की ?”
“हां । आईलैंड पर अमन चैन के लिये लेट नाइट की गश्त जरूरी होती है न ! कभी इधर कोई गलाटा होता है तो अमूमन बार्स के, बेवड़े अड्डों के क्लोजिंग टेम पर होता है । पंगा करने वाले बेवड़े भी तभी पकड़ में आते हैं ।”
“आई सी । तो उस रोज खुद एसएचओ साहब भी हवलदार जगन खत्री के साथ गश्त पर निकले ?”
“नहीं । मेरे को बाद में मालूम हुआ था कि हवलदार खत्री उस राज अपनी ड्यूटी पर नहीं निकला था ?”
“कैसे मालूम हुआ था ?”
“साब खुद ऐसा बोला था । महाले को, मेरे को जब हवालदार खत्री के साथ रूट फिफ्टीन पर तफ्तीश के लिये भेजा गया था तो साब खुद बोला था कि हवलदार खत्री गश्त पर नहीं निकला था, इसी वास्ते तब उसे रूट फिफ्टीन पर जाने का था ताकि कुछ तो करे ।”
“एसएचओ साहब के साथ गश्त पर कौन था ?”
“कोई नहीं । अकेले ही निकले थे ।”
“ड्राइवर तो होगा साथ !”
“नहीं । मालूम पड़ा था जीप खुद ड्राइव करते निकले थे ।”
“क्यों ? ड्राइवर अवेलेबल नहीं था ?”
“था । साब के ड्राइवर की ड्यूटी करने वाला सिपाही मेरे को खुद ऐसा बोला । साब खुद उसको नक्की किया, बोला खुद ड्राइव करने का ।”
“ये अजीब बात नहीं ?”
“काहे कू अजीब बात ! साब मालिक है थाने का, बल्कि आइलैंड का । वो क्या करना मांगता है, क्या नहीं करना मांगता, उसके मूड की बात है ।”
“ठीक ! बहरहाल तुम लोग मौकायवारदात पर पहुंचे, उधर तहकीकात की तो लाश बरामद हुई बराबर । फिर ?”
“हम पीछे वहीं रुके । हवलदार खत्री साब को रिपोर्ट करने थोड़ा टेम के वास्ते इधर थाने वापिस लौटा ।”
“फिर ?”
“फिर तो जो हुआ वो मेरे को बाद में मालूम पड़ा था ।”
“किससे ?”
“हवलदार खत्री से ।”
“क्या ?”
“यही कि साब जब गश्त पर था तो उसने एक फुल टुन्न बेवड़ा जमशेद जी पार्क के एक बैंच पर दीन दुनिया से बेखबर लुढ़का पड़ा देखा था । बोले तो जब मैं अपनी बोर्डिंग हाउस की निगरानी की ड्यूटी पर निकला था, तब मैंने भी उस बेवड़े को देखा था ।”
“वो तब भी वहां था ?”
“हां ।”
“वहीं ।”
“बरोबर । साला पता नहीं बाटली खींच गया या उससे भी ज्यास्ती ।”
“लेकिन जब वो...”
“अरे !”
“क्या हुआ ?”
“खुद देखो क्या हुआ ! पानी तो साला थाने में घुसा आ रहा है !”
नीलेश ने बाहर की तरफ निगाह दौड़ाई ।
सड़क पर पानी की तह दिखाई दे रही थी जो किसी हलचल से डिस्टर्ब होती थी तो पानी उछलता था और थाने के भीतर घुस आता था लेकिन हलचल शांत होते ही वापिस लौट जाता था ।
“कैसे बीतेगी ?” - भाटे चिंतित भाव से बोला ।
“तुम्हें मालूम हो !” - नीलेश बोला - “आइलैंड के पुराने बाशिंदे हो ।”
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