Thriller Sex Kahani - सीक्रेट एजेंट
10-27-2020, 03:06 PM,
#81
RE: Thriller Sex Kahani - सीक्रेट एजेंट
“कुछ लोग घर चले गये, कुछ गश्‍त की ड्‌यूटी पर लगाये गये थे लेकिन पता नहीं वो गश्‍त कर रहे हैं या घर पर बैठे हैं” - भाटे एक क्षण ठिठका, फिर बोला - “या मौसम वाले महकमे की वार्निंग पर अमल करते आइलैंड से नक्‍की कर गये । खाली एक हवलदार जगन खत्री को महाबोले का हुक्‍म हुआ था कि वो फौरन, सब काम छोड़कर, ‘इम्‍पीरियल रिट्रीट’ पहुंचे ।”
“क्‍यों ?”
“मालूम नहीं । महाबोले साब ये भी बोला था कि बाद में वो भी उधरीच पहुंचेगा । अभी पता नहीं पहुंचा कि नहीं ! उधर है कि नहीं !”

“वहां हो क्‍या रहा है ?”
“मेरे को पक्‍की करके नहीं मालूम पण जो मालूम, वो बोलता है । उधर गोवानी बॉस फ्रांसिस मैग्‍नारो का बहुत कीमती सामान, जो वो उधर से किसी सेफ जगह पर शिफ्ट करना मांगता है ।”
“सेफ जगह क्‍या ?”
“पक्‍की करके नहीं मालूम । वैसे ऐसी एक जगह तो झील के पार मैग्‍नारो साब का मैंशन ही है । मैग्‍नारो साब को मोंगता होयेंगा तो सामान आइलैंड से दूर भी, कहीं भी, ले जाया जा सकता है ।”
“इस हाल में !”
“हां । बहुत पावरफुल मोटर बोट है मैग्‍नारो साहब के पास । किसी भी मौसम का मुकाबला कर सकती है ।”

“आई सी ।”
“अभी और बोले तो ‘इम्‍पीरियल रिट्रीट’ भी कोई कम सेफ नहीं । इमारत की बुनियाद बहुत मजबूत है और तूफान मर्जी जोर मारे, दो मंजिल तक नहीं पहुंच सकेगा ।”
“हूं ।”
कुछ क्षण कोई कुछ न बोला ।
उस दौरान नीलेश ने दरवाजे पर जाकर बाहर के माहौल का मुआयना किया ।
हालात उसे बहुत चिंताजनक लगे ।
वो वापिस लौटा ।
“लौट जाने की जो आप्‍शन तुम्‍हारे पास थी” - वो श्‍यामला से बोला - “समझ लो कि वो गयी । मुझे नहीं लगता कि अब नेलसन एवेन्‍यू वापिस जा सकोगी ।”
श्‍यामला के चहेरे का रंग फीका पड़ा । चिंतित भाव से उसने सह‍मति में सिर हिलाया ।

“ऊपर क्‍या है ?” - नीलेश ने भाटे से पूछा ।
“छत है ।” - परेशानहाल भाटे बोला ।
“वो तो होगी ही ! छत के अलावा कुछ नहीं है ?”
“एक बरसाती है ।”
“वहां क्‍या है ?”
“कुछ नहीं । बस, कुछ पुराना फर्नीचर है वर्ना खाली पड़ी है ।”
“पानी का लैवल लगातार बढ़ रहा है । फोन तुमने बोला ही है कि डैड पड़ा है । यहां टिकने का कोई फायदा नहीं । मैडम को ऊपर ले कर जाओ ।”
नीलेश के स्‍वर में ऐसी निर्णायकता थी कि श्‍यामला ने नेत्र फैला कर उसकी तरफ रेखा ।

नीलेश ने जानबूझ कर उससे आंख नहीं मिलाई ।
“तुम क्‍या करोगे?” - वो आंदोलित स्‍वर में बोली - “कहीं तुम्‍हारा इरादा...ओ माई गॉड, यू आर ए मैड मैन !”
“कोई कोई काम ऐसा होता है कि दीवानगी में ही मुमकिन हो पाता है ।”
“तुम यकीनन पागल हो । पागल हो और अकेले हो, अकेले उनका मुकाबला हरगिज न‍हीं कर पाओगे । जाने दो उन्‍हें । निकल जाने दो ।”
नीलेश ने मजबूती से इंकार में सिर हिलाया ।”
“तुम अपनी मौत खुद बुला रहे हो ।”
“मौत में ही जिंदगी है । मौत की राह पर ही मेरी वो मंजिल है जो मेरी बिगड़ी तकदीर संवार सकती है । ये मौका मैंने खो दिया तो ऐसा दूसरा मौका मुझे ताजिंदगी नहीं मिलेगा । मैंने अपने पापों का प्रायश्‍चित करना है जो या अभी होगा या कभी नहीं होगा ।”

“ये दीवानगी है । सरासर दीवानगी है । अरे, जान है तो जहान है ।”
“मैं ऐसे जहान का तालिब नहीं, मेरे कुकर्मों ने जिसमें मुझे किसी को मुंह दिखाने के काबिल नहीं छोड़ा । करप्‍ट कॉप बन कर जिल्‍लत का जो बद्नुमा दाग मैंने खुद अपनी पेशानी पर लगाया, उसे मैं ही धो सकता हूं । और अब मौका है ऐसा करने का । मेरे आचार्य जी ने कहा था कि सुबह का भूला शाम को घर आ जाये तो भूला नहीं कहलाता । मैं शाम को घर आना चाहता हूं ताकि भूला न कहलाऊं । मैं अपने गुनाह बख्‍शवाना चाहता हूं, मैं नीलेश गोखले दि स्‍ट्रेट कॉप, दि ऑनेस्‍ट कॉप कहलाना चाहता हूं । मैं अपनी जिंदगी की किताब के वो वरका फाड़ देना चाहता हूं जिनमें मेरे करमों पर कालिख पुती है । जिस नौकरी ने मुझे बर्बाद किया, अब वो ही मुझे आबाद करेगी । जिस नौकरी ने मुझे बर्बाद किया, अब वो ही मुझे आबाद करेगी । जिस नौकरी ने मेरी हस्‍ती मिटा दी, अब वो ही मेरी हस्‍ती फिर से बनायेगी । जिस नौकरी ने मुझे कलंकित किया, अब वो ही मेरे पाप धोयेगी । मैं ये मौका नहीं गंवा सकता । दिस इज नाओ ऑर नैवर फार मी ।”

“यू...यू आर ए कॉप !”
“मर गया तो दो मुट्‌ठी खाक, जिंदा रहा तो नीलेश गोखले, इंस्‍पेक्‍टर मुम्‍बई पुलिस !”
“तुम पुलिस इंस्‍पेक्‍टर हो !”
“अभी नहीं हूं । कभी था । आगे होने की उम्‍मीद है । जाता हूं ।”
“एक बात सुन के जाओ ।”
नीलेश ठिठका, उसने घूमकर श्‍यामला की तरफ देखा ।
“मुझे तुम से कोई शिकायत नहीं ।” - वो भर्राये कंठ से बोली - “पहले थी तो समझो अब नहीं है ।”
“थैंक्‍यू ।”
“तुम्‍हारी कामयाबी की दुआ करना मेरा अपने पिता का बुरा चाहना होगा इसलिये वो दुआ तो मेरे मुंह से नहीं निकल सकती लेकिन मैं तुम्‍हारे लौटने का इंतजार करूंगी ।”

आखिरी शब्‍द कहते कहते उसका गला रुंध गया । तत्‍काल उसने मुंह फेर लिया ।
“जाओ ।” - वो बोला ।
“पहले तुम जाओ ।” - पीठ फेरे फेरे वो बोली ।
“भाटे !” - नीलेश भाटे से सम्‍बोधित हुआ - “मैडम को ऊपर ले के जा ।”
जो डायलॉग अभी भाटे सुन कर हटा था, उससे वो मंत्रमुग्‍ध था । वो इस रहस्‍योद्‌घाटन से चमत्‍कृत था कि गोखले सरकारी महज आदमी नहीं था, उसके बॉस महाबोले के बराबर के रैंक का पुलिस आफिसर था । इंस्‍पेक्‍टर था । वो उछल कर खड़ा हुआ और श्‍यामला की बांह पकड़ कर उसे भीतर को ले चला ।

दोनों दृष्टि से ओझल हो गये तो नीलेश एसएचओ के कमरे में पहुंचा । कमरे को बाहर से कुंडी लगी हुई थी जिसको खोल कर वो भीतर दाखिल हुअ । अपने पहले फेरे में उसने वहां शीशे की एक अलमारी देखी थी जहां थाने के हथियार बंद रहते थे । वो उस अलमारी पर पहुंचा तो उसने पाया कि उस पर एक बड़ा सा पीतल का ताला झूल रहा था । भीतर चार रायफलें और बैल्‍ट होल्‍स्‍टर में एक पिस्‍तौल टंगी हुई थी ।
उसने ताले को पकड़ कर दो तीन झटके दिये तो महसूस किया कि वो यूं ही खुल जाने वाला नहीं था । उसने इधर उधर निगाह दौड़ाई तो उसे परे एक कैबिनेट पर एक पीतल का फूलदान पड़ा दिखाई दिया । वो कैबिनेट के करीब पहुंचा, उसने नकली फूल निकाल कर फर्श पर फेंके और फूलदान काबू में कर लिया । वो वापिस शीशे की अलमारी पर पहुंचा । उसने फूलदान को मुंह की तरफ से पकड़ा और भारी पेंदे का भीषण प्रहार एक शीशे पर किया ।

शीशा टूटने की बहुत जोर की आवाज हुई ।
पता नहीं आवाज तब तक शायद बरसाती में पहुंच चुके भाटे तक पहुंची नहीं या उसने जानबूझ कर आवाज को नजरअंदाज किया, उसके लौटने की कोई आहट नीलेश तक न पहुंची । उसने पिस्‍तौल को काबू में किया, वहीं पड़ी गोलियों की एक एक्‍स्‍ट्रा मैगजीन को काबू में किया और वहां से निकल पड़ा ।
वो इमारत से बाहर निकला और तेज बारिश में और टखनों से ऊपर पहुंचते पानी में चलता आगे बढ़ा ।
श्‍यामला की कार के करीब पहुंच कर वो ठिठका ।
इग्‍नीशन की चाबी भीतर इग्‍नीशन में लटक रही थी ।

उसने उधर का दरवाजा ट्राई किया तो उसे अनलॉक्‍ड पाया ।
वो कार में सवार हो गया । उसने इंजन ऑन किया तो वो फौरन गर्जा । उसने चैन की सांस ली और कार को यू टर्न दे कर सड़क पर डाला ।
सावधानी से कार चलाता एक्‍सीलेटर पर जोर रखता, ताकि लगभग एग्‍जास्‍ट तक पहुंचते पानी की वजह से इंजन बंद न हो जाये, आखिर वो वहां पहुंचा जहां सड़क के आरपार, आमने सामने कोंसिका क्‍लब और ‘इम्‍पीरियल रिट्रीट’ थे ।
कोंसिका क्‍लब बंद थी और उस घड़ी अंधकार के गर्त्त में डूबी हुई थी अलबत्ता ‘इम्‍पीरियल रिट्रीट’ की किसी किसी-खास तौर से दूसरी मंजिल की-खिड़की में रोशनी थी ।

उसने कार को ‘इम्‍पीरियल रिट्रीट’ वाली साइड में खड़ा किया और सड़क पर दोनों तरफ दूर दूर तक निगाह दौड़ाई ।
वहां की निगरानी पर तैनात कोस्‍ट गार्ड्‌स का कहीं नामोनिशान नहीं था ।
होता भी कैसे ! उस तूफानी मौसम में कैसे तो वो ड्‌यूटी करते और प्रत्‍यक्षत: क्‍या रखा था वहां निगरानी के लिये !
ठीक !
जरूर वो वापिस बुला लिये गये थे ।
वो कार से निकला और लपक कर ‘इम्‍पीरियल रिट्रीट’ की लॉबी के विशाल ग्‍लास डोर पर पहुंचा ।
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RE: Thriller Sex Kahani - सीक्रेट एजेंट - by desiaks - 10-27-2020, 03:06 PM

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