RE: Thriller Sex Kahani - सीक्रेट एजेंट
“ये लैक्चर किसलिये ? इसलिये किय क्राइम प्रिवेंशन के किसी सरकारी महकमे का वजूद नहीं रहना चाहिये । ड्रग्स पनवाड़ी की दुकानों पर बिकने चाहियें । थानों पर बोर्ड लगा होना चाहिये, ‘यहां रिश्वत लेकर काम किया जाता है’…”
“वो तो पहले ही लगा है, खाली किसी को दिखाई नहीं देता । महाबोले से पूछो ।”
“पांचों उंगलियां बराबर नहीं होतीं ।”
“कोई जबर निकल आये तो बराबर - चॉप, चॉप, चॉप - कर देता है ।”
“बहस छोड़ो । क्या कहना चाहते हो ?”
“कह चुका । गुलदस्ता कुबूल करो । साइज खुद बोलो ।”
“ये नहीं हो सकता ।”
“तो फार गॉड्स सेक, मेरे को गिरफ्तार करो, हम सबको गिरफ्तार करो, और हमें मेरी मोटर बोट पर ले कर चलो, ताकि हम सब इधर से निकल सकें, ताकि इधर ही हमेरा वाटरी ग्रेव न बन जाये ।”
“ऐसा नहीं होगा । यहां किसी को जल समाधि नहीं मिलेगी । तुम लोगों के मरने जीने से मेरे को कुछ नहीं लेना देना लेकिन अपने मरने जीने से लेना देना है । इसलिये बोलता हूं । हम इधर ही ठहरेंगे । यहां हम सेफ हैं । इस वक्त ये होटल आइलैंड की सेफेस्ट जगह है । हम इधर ही ठहरेंगे, जब तक कि बैक अप इधर नहीं पहुंचता ।”
“बोले तो ! अभी पहुंचा नहीं हुआ ?”
“जाहिर है कि अभी नहीं । वर्ना तुम सब के हाथों में हथकड़ियां होतीं ।”
“किधर से आना है बैक अप ने ? मुम्बई से ! इस तूफान में !”
“आइलैंड से ही ।”
“क्या !” - महाबोले के मुंह से निकला - “मुम्बई पुलिस आइलैंड पर मौजूद है ?”
“इधर के कोस्ट गार्डस को स्पैशल अथारिटी मिली है मुम्बई पुलिस को रिप्रेजेंट करने की, मुम्बई पुलिस के बिहाफ पर एक्ट करने की ।”
“कमाल है !”
“उन्हें” - मैग्नारो चिंतित भाव से बोला - “मालूम कैसे होगा हम यहां है !”
“उन्हें मालूम है मैं यहां हूं । अब बरायमेहरबानी सब्र दिखाइये और उनकी आमद का इंतजार कीजिये ।”
“उनकी आमद तक खड़े रहने का !”
“बैठ जाइये । टेबल पर । चारों । सबके हाथ टेबल पर हों । किसी भी घड़ी मेरे को टेबल पर आठ हाथ न दिखाई दिये, मैं फायरिेंग शुरू कर दूंगा । सो बिवेयर । नो फैंसी ट्रिक्स ।”
“उनके आने तक तुम साला हमेरे पर गन ताने नहीं रह सकता । तूफान साला उनको भी तो प्राब्लम करता होयेंगा ! हो सकता है वो कल तक इधर न पहुंच पायें !”
“ऐसा नहीं होगा ।”
“पण, माई डियर, ये फिकर का बात !”
“तो फिक्र मैं करूंगा ।”
खामोशी छा गयी ।
फिर वो चारों उसके हुक्म के तहत, उसकी धमकी के तहत, उसके कहे मुताबिक एक टेबल पर बैठ गये ।
नीलेश ने भी जूते की एड़ी में अटका कर एक कुर्सी अपनी तरफ घसीटी और होशियार, खबरदार उस पर बैठ गया ।
ट्रंक दरवाजे के करीब उपेक्षित सा पड़ा था ।
कितना ही वक्त यूं ही सम्मोहन जैसी स्थिति में गुजरा ।
एकाएक तूफान की डरावनी आवाजों से ऊपर उठती एक नयी आवाज उन तक पहुंची ।
इंजन की आवाज !
उस माहौल में जो कि किसी मोटर बोट के इंजन की ही हो सकती थी ।
नीलेश ने सांस रोकी, कान खडे़ किये ।
फिर सीढ़ियों पर धम्म धम्म पड़ते कदमों की आवाज हुई ।
वो उछल कर खड़ा हुआ, लपक के दरवाजे के पहलू में पहुंचा और उसके साथ सट कर खड़ा प्रतीक्षा करने लगा ।
मेज पर बैठे चारों जनों पर उसकी निगाह बराबर थी ।
विकट स्थिति थी ।
अगर वहां कोई दुश्मन पहुंच रहा था तो वो दोनों तरफ निगाह नहीं रख सकता था ।
कदमों की आवाज करीब होती जा रही थी ।
“कौन है नीचे ?” - वो उच्च स्वर में बोला ।
“मोकाशी !” - जवाब आया - “तुम कौन हो ?”
“गोखले ! यहां कैसे पहुंच गये ?”
“मोटरबोट पर ?”
“क्या ! सड़कों पर इतना पानी गया है ?”
“हां यहां कैसे पहुंच गये ? यहां कैसे पहुंच गये ?”
“हां । मैं थाने गया था । वहां मुझे मेरी बेटी और सिपाही भाटे मिले । उन्होंने मुझे सब बताया । ये भी कि तुम ‘इम्पीरियल रिट्रीट’ पहुंचे हो सकते थे...”
“मोकाशी साहब !” - एकाएक महाबोले चिल्लाया - “मैं महाबोले ! गौर से मेरी बात सुनो । मैं यहां ऊपर कैसीनो में हूं । मेरे साथ मैग्नारो, डिसूजा और खत्री भी यहां हैं । गोखले हमारे पर गन ताने है...”
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