RE: Antervasna मुझे लगी लगन लंड की
मैं - 'हाँ दिया तो... लेकिन वो मेरा गुस्सा था। उस रात को तुम्हारे बिना मुझे नींद नहीं आ रही थी तो मैं छत पर चुपचाप टहल रही थी कि अचानक मैंने नमिता और अमित की लड़ाई की आवाज सुनी तो देखा कि अमित चाह रहा था कि नमिता उसके साथ सेक्स करे जबकि नमिता तैयार नहीं थी। तभी मुझे समझ में आ गया कि अमित इसलिये हर जगह हाथ पाँव मारने की कोशिश करता है।'
रितेश - 'फिर तुमने क्या किया?' रितेश ने पूछा।
मैं - 'कुछ नहीं... नमिता को रास्ते पर ले आई। दोनों खूब मजा करते है। एक बार तो हम तीनों ने मजा भी साथ ही साथ लिया।'
रितेश मेर निप्पल को दबाते हुए बोला- तुम खूब मजे कर रही थी मेरे पीछे?
थोड़ा सा भाव मारते हुये,
मैं बोली- अगर तुम्हें न पसंद हो तो मैं नहीं करूंगी।
रितेश - 'अरे नहीं यार, मैं तो मजाक कर रहा था।'
उसके बाद मैंने अपने, नमिता और अमित के बीच हुई कहानी को एक बार फिर रितेश को बताया। रितेश को कहानी सुनाने के बाद मैं बोली- यार, चल आज रात हम दोनों ही अमित और नमिता की चुदाई देखते हैं।
रितेश - 'यह क्या कह रही हो?'
मैं - 'तो क्या हुआ, वो भी तो तुम्हारे बारे में अब सब जानती है।'
रितेश - 'अच्छा, चल रात की रात देखते हैं, अब मेरा लंड तन रहा है।'
तो मैं बड़ी ही स्टाईल से रितेश के सामने खड़ी हुई और अपने गाउन को ऊपर करते हुये बोली- ये छेद दूँ तुम्हारे इस लंड को?
फिर मैं पीछे घूम कर अपनी गांड को दिखाते हुये बोली- या तुम्हारे लंड को इस छेद की जरूरत है या फिर मेरा मुंह?
रितेश छुटते ही बोला- मुँह!! आओ दोनों एक दूसरे का पहले पानी निकालें, फिर तुम मुझे सूरज के बारे में बताना!
हम दोनों ही 69 की अवस्था में आ गये, रितेश अपने मुंह से मेरे चूत की सेवा कर रहा था और मैं उसके लंड की सेवा कर रही थी। कुछ देर बाद ही हम दोनों का पानी एक दूसरे के मुंह में था। उसके बाद मैं फिर रितेश के बगल में बैठ गई। हाँ, बीच बीच में मेरी नजर खिड़की की तरफ उठ जाती थी। मैं लंड चूस के उठी ही थी कि मुझे लगा कि किसी की परछाई है जो कमरे के अन्दर झांक रही थी। मैंने तुरन्त अपने गाउन को उतारा और पूर्ण रूप से नंगी होकर थोड़ा सा खिड़की के और करीब आ गई और रितेश से भी पूरे कपड़े उतार कर मेरी बुर को एक बार और चाटते हुये कहानी सुनने को कहा। रितेश को भला क्या ऐतराज हो सकता था, वो भी तुरन्त अपने कपड़े उतार कर मेरे पास आ गया और नीचे बैठ कर अपनी जीभ मेरी बुर में लगा दी। मैं तिरछी नजर से खिड़की पर देखते हुए रितेश को अपनी और सूरज की कहानी थोड़ा ऊँची आवाज में सुनाने लगी ताकि जो बाहर खड़ा है, उसे भी खुली खिड़की का मजा आये। मैंने रितेश को अपने और सूरज की चुदाई के बारे में शुरू से कहानी सुनानी शुरू की कि कैसे मुझे पता लगा कि उसके अन्दर मेरे लिये क्या है और उसने मुझे कब कब और कहाँ कहाँ नंगी देखा। मैं रितेश को कहानी सुना रही थी पर मेरी नजर बाहर ही थी और जो मैंने देखा तो मुझे मेरे मन मुताबिक ही लगा। वो मेरा सबसे छोटा देवर रोहन ही था जिसको मेरा चस्का लग गया था।
इधर मेरी कहानी खत्म हुई, उधर रितेश कि चटाई खत्म हुई। रितेश खड़ा हुआ तो उसका लंड मेरी चूत चूसाई और चटाई और ऊपर से मेरे और सूरज की कहानी सुनने के बाद काफी टाईट हो चुका था।
वो मुझे अपना लंड दिखाते हुए बोला- जान, तेरी चूत का तो काम हो चुका है, अब मेरे लंड का क्या होगा?
मैं बोली- मेरी जान, चिन्ता क्यों कर रहे हो, तुम्हारी यह प्यारी रंडी दुल्हन कब काम आयेगी। चलो आ जाओ, अपने लंड महराज को मेरी गांड की सैर करा दो।
मैं रितेश के और करीब आ गई, उसके कान में बोली कि बाहर उसका सबसे छोटा भाई काफी देर से हम लोगों को देखकर अपना लंड हिला रहा है, लेकिन उसका पानी नहीं निकला है।
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