RE: Antervasna मुझे लगी लगन लंड की
मैंने भी उत्तर दिया- तुम्हारा खेल मुझे बहुत पसंद आ रहा है।
वो खुश होते हुए बोला- पक्का पसंद आ रहा है?
'हुम्म सच में!' मैं बोली।
फिर आशीष बोला- और मजा लोगी?
मैं- हाँ।
आशीष- तो अपनी गांड की फांकों को अपने हाथों से फैलाओ।
मैंने आशीष के कहे अनुसार अपनी गांड के पुट्ठे को पकड़ा और उसे फैला दिया, आशीष बोला-वाऊऊउ क्या मस्त गांड है।
कहकर उसने उंगली को गांड के छेद के अन्दर डाल दी, फिर उसने कटोरे से आईस उठाई और थोड़ी ऊँचाई से उस आईस क्यूब को ठीक मेरी गांड के छेद की सीध में लगा दिया और जब उस आईस की एक-एक ठंडी बूंद मेरी गांड की छेद में पड़ रही थी तो मैं अन्दर तक हिल जा रही थी। 10-15 बूंद उस आईस से सीधा मेरी गांड में गिरी। उसके बाद वो उस आईस को मेरी गांड में रगड़ने लगा। आशीष को बहुत दिन बाद इस तरह बिना किसी तनाव के मेरे साथ सेक्स करने का मौका मिला था और वो उस मौके के हर एक पल के आनन्द का मजा लूट रहा था। वैसे भी मजा मुझे भी आ रहा था। फिर मुझे मेरी गांड में कुछ रेंगता हुआ महसूस हुआ। मैंने शीशे से देखा तो आशीष की जीभ मेरी गांड के छेद को चाट रहा था और फिर अचानक आशीष ने मेरे पुट्ठे को पकड़ा और
जोर से कहा- सुहाना, आज तुमको एक और नया मजा मैं देने जा रहा हूँ!
इतना कहने के साथ ही एक झटके में वो अपना लंड मेरी गांड के अन्दर पेल चुका था। मैं चीख उठी और हिलडुल कर मैं उसके लंड को गांड से बाहर निकालना चाहती थी, पर वो मेरे ऊपर पूरी तरह से लेट गया और मुझे हिलने का मौका बिल्कुल नहीं दिया। एक उसका लंड जो अचानक मेरे गांड के अन्दर जा चुका था, उसकी जलन हो रही थी और ऊपर से आशीष का वजन मेरे ऊपर था, सांस घुटती सी लग रही थी। कुछ देर बाद आशीष मेरे ऊपर से उठा और फिर धीरे-धीरे मेरी गांड की चुदाई करने लगा। मुझे भी मजा आ रहा था, लंड के वजह से गांड काफी ढीली पड़ चुकी थी।
अब आशीष मुझे घोड़ी बना कर कभी मेरी बुर चोदता तो कभी मेरी गांड की चुदाई करता। काफी देर तक आशीष मेरी गांड और बुर के छेदों की चुदाई करता रहा और फिर अन्त में वो मेरी गांड के अन्दर ही झड़ गया।
उसके बाद हम दोनों एक-दूसरे से चिपक कर सो गये। आज सुबह जैसे ही उठा उसने मेरी चुदाई शुरू कर दी। फिर दोनों ही तैयार होकर ऑफिस के लिये निकल पड़े।
सुहाना की बात खत्म होते ही हम दोनों साथ-साथ बोल पड़े- मुबारक हो गांड और चूत दोनों के मजे साथ-साथ लेने के!
सुहाना हँसने लगी।
फिर रितेश बोला- मेरा गिफ्ट?
सुहाना बोली- उसको मैं भूली नहीं हूँ।
तभी मैं बोल पड़ी- सुहाना, अगर आप चाहे तो मैं-रितेश और टोनी-मीना एक कपल नोएडा के हैं, हम लोग स्वैपिंग करते हैं।
सुहाना बोल पड़ी- ये स्वैपिंग क्या होता है?
तो मैंने सुहाना को बताया कि इस खेल में कपल्स होते हैं, एक मर्द दूसरे की बीवी से उसके सामने ही सेक्स करता है यानि की अदला बदली कर के!
सुहाना- इसका मतलब तुम भी रितेश के सामने दूसरे मर्द से चुदवाती हो?
मैं- हाँ, शुरू शुरू में अच्छा नहीं लगा पर अब मजा आता है। अगर तुम चाहो तो तुम भी आशीष के साथ मेरे ग्रुप में शामिल हो सकती हो, बहुत मजा आयेगा।
सुहाना- 'चलो देखते हैं, मुझे तो ये बड़ा डेयरिंग खेल लग रहा है, पता नहीं आशीष मानेगा या नहीं!'
फिर बाकी इधर उधर की बात होने लगी और फिर सुहाना ने यह कहकर फोन काट दिया कि एक दो दिन में वो फोन करेगी।
सुहाना की कहानी सुनकर हम दोनों काफी उत्तेजित हो चुके थे तो फोन कटते ही रितेश ने मुझे पटक दिया, मेरी चूत में अपना लंड डाल दिया और तेज तेज चोदने लगा। थोड़ी देर बाद वो डिस्चार्ज हो गया और मेरे ऊपर लेट गया। रितेश हाँफ रहा था। वो फिर मेरे से अलग हुआ तो मेरी उंगली अपने आप ही मेरी चूत की तरफ चली गई और हम दोनों की जो मिक्स मलाई मेरी चूत से बाहर आ रही थी, उसको उंगली पर लेकर उसका स्वाद लेने लगी। मेरी देखा देखी रितेश भी अपनी उंगली से मिक्स मलाई को चाटने लगा। हम दोनों का कोटा पूरा हो चुका था, अब मुझे इंतजार था कि रात में रितेश के साथ उसकी बहन की चुदाई को देख कर आनन्द लेने का। फिर मुझे ऑफिस वाला प्रोपोजल याद आया तो,
रितेश ने कहा- मैं अपने ऑफिस में जाकर बात करता हूँ। अगर छुट्टी मिल जायेगी तो हम दोनों कलकत्ता में हनीमून मनायेंगे।
उसके बाद हम दोनों ने अपने कपड़े पहने और नीचे आ गये।
रितेश घर के बाकी सदस्यों के साथ बात कर रहा था जबकि मैं और नमिता शाम के खाने की तैयारी में लग गये थे। चूंकि घर के सभी सदस्य बड़े से छोटे तक चाहते थे कि मैं घर में गाउन ही पहन कर रहूँ तो फिर मैंने भी मन में ठान लिया था कि अब मैं घर में मटकते हुए चलूँगी ताकि सबको मेरी मटकती हुई गाण्ड का भी मजा मिले। हम लोग खाना बना ही रहे थे कि अचानक बाबूजी ने सबको बुलाया और करीब 20-22 रिश्तेदारो के आने की खबर दी जो मुझसे मिलने कल ही आ रहे हैं और मुझसे पूछने लगे कि दो दिन रहेंगे, तुम्हें तो ऐतराज तो नहीं है। मैं न भी कैसे करती।
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