RE: Antervasna मुझे लगी लगन लंड की
सुबह मैं भी बेसुध थी लेकिन मेरे कपड़े बिल्कुल सही थे और रोहन भी मुझसे दूर था। आज सभी मेहमानों को जाना था और उनकी ट्रेन दस बजे की थी इसलिये मैं और नमिता दोनों ने ही तेजी से सब काम निपटा कर नौ बजे तक फ्री हो गई और मेहमान विदा होने लगे। मेरी और नमिता की सेवा भाव से खुश होकर मुझे और नमिता को गिफ्ट दिया। स्नेहा मुझे लिपट कर थैंक्स बोली और अगली मुलाकात जल्दी करने का वादा करके चली गई। फ्री होने पर मैं भी ऑफिस के लिये तैयार होने के लिये मैं अपने कमरे में आ गई। मैं तैयार हो ही रही थी कि मुझे पीछे से आकर रितेश ने जकड़ लिया और चूमने चाटने लगा। मैं थकी हुई थी इसलिये मैं उसके चूमने चाटने का जवाब नहीं दे पा रही थी, फिर भी मैंने रितेश को रोका नहीं। रितेश ने मेरी जींस को नीचे किया और मुझे झुकाते हुए अपने मोटे लंड को मेरी चूत में पेल दिया। करीब तीन चार मिनट तक धक्के लगाने के बाद वो मेरी चूत में ही झर गया और फिर पास पड़े गाउन से रितेश ने मेरी चूत साफ की और फिर मुझे मेरी जींस और बाकी कपड़े पहनने को मदद की। मैं रितेश के साथ ऑफिस निकल गई।
ज्यादा थकी होने के कारण बॉस ने मुझे कुछ ज्यादा वर्क नहीं दिया बल्कि ट्रिप के बारे में एक दो दिन में इन्फार्म करने को कहा ताकि वो रिजर्वेशन करवा सके। किसी तरह बॉस के साथ छुटपुट घटना के साथ शाम हुई और मैं घर आ गई। मेरे घर पहुंचने के बाद घर के बाकी सदस्य भी आ चुके थे, चाय नाश्ते के लिये सब बैठ चुके थे। रितेश ने ही मेरे कहने पर बात की शुरूआत की, उसने बताया कि मुझे एक प्रोजेक्ट के सिलसिले में कलकत्ता जाना है और मेरी कम्पनी मेरे साथ साथ रितेश का भी खर्चा उठाने को तैयार है अगर रितेश न जा पाये तो कोई एक और मेरे साथ कलकत्ता जा सकता है।
तो पापा ने पूछा- फिर समस्या क्या है? रितेश और तुम दोनों चले जाओ।
तब मैंने बताया कि रितेश को भी उसी दिन अपने ऑफिस के प्रोजेक्ट के लिये तमिलनाडु जाना है।
मुझे लग रहा था कि मेरे इस प्रोपोजल को सुनकर रोहन और विजय मेरे साथ चलने को बेताब हो जायेंगे, लेकिन दोनों कुछ बोलते उससे पहले ही,
मेरे ससुर मुझसे बोले- अगर तुम चाहो तो मैं तुम्हारे साथ चल सकता हूँ। काफी दिन हो गये मुझे भी कहीं घूमे हुए।
मैं उनको मना नहीं कर पाई लेकिन यह तो तय हो गया कि मौका देखकर मुझे अपनी चूत में बैंगन, ककड़ी या फिर मूली डालकर ही काम चलाना पड़ेगा। और न चाहते हुए भी यह तय हो गया कि मैं और मेरे ससुर कोलकाता जा रहे हैं। मुझे कल अपने बॉस को यह इन्फार्म करना था ताकि वो रिजर्वेशन करवा दे और होटल बुक करवा दे। नाश्ता करने के बाद मैं और रितेश अपने कमरे में आ गये।
रितेश मुझे देख कर हँसने लगा और बोला- तुम तो हनीमून मनाने जा रही थी? अब क्या करोगी?
मैं बोली- 'कोई बात नही!' लंड नहीं तो मूली और बैंगन तो काम आयेगा। जब ज्यादा चुदास हूंगी तो बैंगन और मूली अपनी चूत में डाल कर अपनी चुदासी चूत को शान्त कर लूंगी।
मेरा बदन बहुत दर्द कर रहा था तो रितेश को मालिश करने के लिये बोलकर मैंने अपने कपड़े उतार दिये और नंगी होकर बेड पर उल्टी लेट गई। रितेश मेरी मालिश धीरे-धीरे करने लगा। जब रितेश मालिश कर रहा था तो मैंने उसके और स्नेहा की चुदाई की बात पूछी तो रितेश ने स्नेहा के साथ क्या किया, सुनाने लगा:
वास्तव में स्नेहा का जिस्म काफ़ी गठा हुआ था, उसकी टाईट चूची बता रही थी कि अभी उसका मन भरा नहीं है। मैंने थोड़ा सा उसे डराया तो कांपने लगी लेकिन फिर मैं उसे अपनी बांहो में भरकर उसके डर को कम करने लगा और फिर मेरा हाथ उसकी पैन्टी के अन्दर चला गया और उसकी टाईट और चिकनी गांड को सहलाने लगा। स्नेहा कुछ बोल नहीं रही थी, बस मेरे से चिपकी हुई थी और जो मैं उसके साथ-साथ कर रहा था, वो करने दे रही थी। थोड़ी देर बाद जब उसका डर कम हुआ तो मैंने उसके चेहरे को अपनी तरफ उठाया और उसके गुलाबी होंठ पर अपने होंठ रख दिया और हौले हौले चूमने लगा। कुछ देर बाद वो भी मेरा साथ देने लगी और मेरे होंठ को अपने होंठ से चबाने लगी, अपने थूक को उसने मेरे मुंह के अन्दर डाला, मैं पी गया और फिर मैंने उसके मुंह के अन्दर थूक डाला तो वो पी गई। फिर स्नेहा ने मेरी कपड़े उतार दिए और मेरे निप्पल को अपने दाँतों से काटने लगी। दोनों निप्पल को अच्छी तरह काटने के बाद वो नीचे सरकती चली गई और मेरी नाभि को तो कभी मेरी जांघों को, तो कभी मेरे लंड की टिप को अपने जीभ का मजा देती।
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