RE: Antervasna मुझे लगी लगन लंड की
मैंने हाथ लगा कर देखा तो वास्तव में चूत काफी चिकनी हो चुकी थी। मैंने हल्की सी मुस्कुराहट के साथ सूरज को अपना ईनाम लेने का ऑफर किया। पहले तो उसने मना किया, फिर बोला- आप आज ट्रेवल करोगी, इसलिये आज जाने दो। जब वापस आओगी तो अच्छे से लूंगा।
लेकिन मैं उसकी बात काटते हुए बोली- देखो, तुमने अभी मेरे साथ बहुत मेहनत की है और तुम अब अपनी मेहनत का फल ले लो।
मेरे बहुत कहने पर सूरज ने पलंग से दो तकिये उठाए और मेरी कमर के नीचे लगा दिया। हालांकि मेरी भी बहुत ज्यादा इच्छा नहीं थी और चाहती थी कि जिस पोजिशन में मैं लेटी हूँ, उसी पोजिशन में सूरज मुझे चोदे और सूरज ने मेरी कमर के नीचे दो तकिया लगा कर मेरे मन की बात कर दी थी। उसके बाद उसने अपने लंड को मेरी चूत में पेल दिया और धक्के लगाने लगा, थोड़ी देर तक वो मुझे उसी तरह चोदता रहा, उसके बाद वो मेरे ऊपर लेट गया, मेरे निप्पल को अपने मुंह में लेकर बारी बारी से चूसने लगा। वो इसी तरह कुछ देर तो चूत को चोदता और फिर थोड़ा रूककर मेरे निप्पल को चूसता। करीब पंद्रह-बीस मिनट तक तो इसी तरह से चोदता रहा, मैं झड़ चुकी थी, मेरे झड़ने के एक मिनट बाद ही सूरज भी झड़ गया और मेरे ऊपर निढाल होकर लेट गया। थोड़ी देर तक वो उसी तरह मेरे ऊपर लेटा रहा, फिर मेरे से अलग हुआ,
तो मैं उससे बोली- मैं तो सोच रही थी कि तुम अपनी मलाई मुझे चटाओगे लेकिन तुम तो मेरे अन्दर ही झड़ गये?
वो पास पड़े तौलिये को उठाकर मेरी चूत को साफ करते हुए बोला- आज मेरा मन अन्दर ही झड़ने का हो रहा था, इसलिये मैं तुम्हारे अन्दर झड़ गया।
मेरी चूत को तौलिये से साफ करने के बाद अपने लंड को भी साफ किया और फिर मेरे माथे को चूम कर चला गया। मैंने भी दरवाजे को बन्द किया और नंगी ही सो गई। मुझे हल्की सी हरारत लग रही थी, सोचा थोड़ी देर में दवा ले लूंगी, तभी रितेश भी ऑफिस से हाफ डे की छुट्टी ले कर आगया।
लेकिन रितेश के आने के बाद और फिर ट्रेवल की तैयारी करने में पता ही नहीं चला कि मैंने दवा खाई नहीं है और स्टेशन चलने का वक्त भी आ गया था। इसी आपाथापी में हरारत का अहसास ही नहीं हुआ। मैं तैयार होकर नीचे आई तो देखा कि पापाजी जींस और सफेद टी-शर्ट पहने हुए थे और क्या डेशिंग लग रहे थे, क्लीन शेव्ड, छोटे-छोटे बाल, काला चश्मा लगा कर वो तो अपने तीनों लड़कों से यंग लग रहे थे। आज से पहले मैंने कभी पापाजी को इतने ध्यान से नहीं देखा था लेकिन आज देखने पर लग रहा था कि छः फ़ीट लम्बे मेरे ससुर जी तो जींस और सफेट टी-शर्ट में तो कयामत लग रहे थे।
खैर मुझे क्या! लेकिन दोस्तो, ऐसी कहानी मैं कभी नहीं चाहती थी जो मेरे साथ होने वाली थी और वो सिर्फ मेरी लापरवाही का नतीजा ही था जिससे इस कहानी का जन्म हुआ। हम लोग स्टेशन पहुंचे, थोड़ी देर में ही गाड़ी भी आ गई और मेरे बॉस अभय सर ने जिस बोगी में रिजर्वेशन कराया था, वो केबिन थी। उस केबिन में मुझे और मेरे ससुर को ही सफर करना था।
केबिन देखकर रितेश मुझसे बोला- मैं चूक गया, काश इस केबिन में पापा न होते, मैं होता तो कोलकाता तक का सफर बड़े मजे से कटता।
|