RE: Antervasna मुझे लगी लगन लंड की
ट्रेन चलने तक मेरे और रितेश के बीच बातचीत होती रही लेकिन जब ट्रेन चली तो मैं सोचने लगी कि जब बॉस को मालूम था कि मेरे साथ मेरे ससुर जायेंगे तो फिर उन्होंने केबिन वाले कोच का रिजर्वेशन क्यों कराया। मैं इसी सोच विचार में थी और गाड़ी अपनी स्पीड पकड़ चुकी थी। ससुर जी ने शायद दो तीन बार आवाज दी होगी, लेकिन मैं सोच में डूबी हुई थी कि उनकी आवाज सुन ना सकी तो उन्होंने मुझे झकझोरते हुए पूछा कि मैं क्या सोच रही हूँ।
मैं बोली- कुछ नहीं।
फिर ससुर जी बोले- आकांक्षा, मैं बाहर जा रहा हूँ, तुम चाहो तो चेंज कर लो और फ्री हो जाओ।
मैं- 'कोई बात नहीं पापा जी, मैं ऐसे ही ठीक हूँ। हाँ मैं बाहर जाती हूँ, अगर आप चेंज करना चाहो तो कर लो।'
कहकर मैंने अपना मोबाईल उठाया और केबिन के बाहर आकर मैंने बॉस को कॉल मिलाई और,
मैंने उनसे पूछा- जब आपको मालूम था कि मेरे साथ मेरे ससुर जी भी जा रहे हैं तो आपने केबिन क्यों बुक कराया?
बॉस ने बताया कि मैंने राकेश को ऑप्शन दिया था कि जिसमें सीट खाली मिले, उसे बुक करा ले और उसने केबिन का रिजर्वेशन करा दिया।
मैं- 'राकेश॰॰॰ हम्म... अच्छा
और होटल के बारे में पूछने पर बताया कि लिफाफे में ही होटल का ऐड्रेस है, यह एक महीने पहले से ही बुक है। सुईट रूम है। इसलिये इसमें मैं कुछ नहीं कर सकता था।
इतना सुनना था कि मेरे मुंह से निकला- लौड़े के... जब होटल में सुईट रूम एक महीने पहले से बुक कराया था तो मुझे क्यों नहीं बताया?
बॉस को खरी-खोटी सुनाकर मैं केबिन में आ गई।
पापा जी कैपरी और वेस्ट में थे, मेरी कानी नजर उन पर पड़ी, क्या शरीर था उनका... किसी पहलवान से कम नहीं थे, क्या बड़े-बड़े बल्ले थे, चौड़ा सीना और सीने में घने-घने बाल! वो सामने वाली सीट पर लेटे हुए थे, मैं भी अपने को समेटते हुए लेट गई और बॉस ने जिस बन्दे (राकेश),का नाम लिया उसके बारे में सोचने लगी।
बड़ा ही हरामखोर था, साले का वजन भी 40 किलो से ज्यादा न था लेकिन हरामीपन में वो सभी को मात करता था। एक दिन उस हरामी ने मुझे अभय सर के साथ देख लिया, बस मेरे पीछे ही पड़ गया। जहां कभी भी मौका देखता, मेरे पिछवाड़े आकर अपना हाथ सेक लेता। हालांकि वो मेरा कुछ कर नहीं सकता था, लेकिन मैं उसे एवाईड कर देती थी। राकेश मेरे पिछवाड़े हाथ लगाने के अलावा कभी आगे नहीं बढ़ा। और ऑफ़िस में चूत चुदवाई की घटना याद आ गई, चूंकि वो हमारे ऑफिस का कम्प्यूटर हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर देखता था और अकसर उससे काम पड़ जाता था। इसी में एक दिन उसे मौका लग गया।
हुआ यूं कि मुझे अपने हेड ऑफिस एक रिपोर्ट मेल करनी थी, रिपोर्ट मैं तैयार कर चुकी थी और बस मेल करने जा ही रही थी कि सिस्टम अपने आप ही ऑफ हो गया।
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