RE: Antervasna मुझे लगी लगन लंड की
मेरे आंसू पौंछते हुए पापा बोले- देखो, मैं तुमसे पहले ही माफी मांग चुका हूँ। चूँकि मेरे पास इसके अलावा कोई चारा नहीं था, तो मैंने किया। चलो अब जो हुआ वो हो चुका है, उठ कर तैयार हो जाओ, तुम्हें डॉक्टर को दिखा देता हूँ और फिर मैं कोई दूसरे होटल में शिफ्ट हो जाता हूँ, जब तुम्हारा काम खत्म हो जाये तो फिर हम लोग वापस अपने घर चले जायेंगे।
कहकर वो उठने लगे।
मुझे उनकी बात समझ में आ चुकी थी, क्योंकि मुझे बुखार बहुत तेज था और मैं बेहोश थी। कोई हेल्प न मिलने के कारण उन्होंने मेरे साथ सम्भोग किया,
मैंने उनका हाथ पकड़ा और बोली- पापा जी, आज से आप मेरे दोस्त भी हो, जो आदमी उस समय हेल्प करे जब उसकी सबसे ज्यादा जरूरत हो तो उससे अच्छा तो कोई दोस्त हो ही नहीं सकता।
पापाजी ने मेरे सर पर हाथ फेरा और सोफे पर बैठ कर अखबार पढ़ने लगे।
अब मैं सोचने लगी, भले ही बेहोशी में ही सही, पापाजी का इतना लम्बा और मोटा लंड मेरी चूत की सैर कर चुका है।
तभी मुझे पॉटी महसूस हुई, मैंने रजाई को अपने सीने से चिपकाये रखा और उठने की कोशिश करने लगी। लेकिन इस समय कमजोरी बहुत लग रही थी, मैं वापस बेड पर गिर गई। पापा जी तुरन्त मेरे पास आये और बार बार मुझसे पूछने लगे। मुझे पता था कि वो समझ चुके है कि मुझे क्या समस्या है लेकिन फिर भी पापा मुझसे पूछे जा रहे थे।
तभी पापा ने कहा- देखो, अभी तुमने मुझे अपना दोस्त कहा है और अब तुम ही अपने दोस्त को नहीं बता रही हो?
उनके इतना कहते ही मैं उनकी तरफ देखकर बोली- पापा जी, पॉटी बहुत तेज आ रही है और कमजोरी के कारण मैं चल नहीं पा रही हूँ।
मुझे नंगी ही बिना किसी हिचक के उन्होंने अपनी गोदी में उठा लिया और बोले चलो- मैं तुम्हें लिये चलता हूँ, ऐसा न हो रात की तरह तुम बिस्तर पर ही पॉटी भी कर दो।
पापा ने मुझे ले जाकर पॉटी सीट पर बैठा दिया।
पॉटी करके जब मैं उठने लगी तो मेरे ससुर जी ने वहीं पास पड़ी हुई कुर्सी को बाथरूम के अन्दर रख दिया और फिर मुझे सहारा देकर उस पर बैठा दिया ताकि मैं ब्रश कर सकूं। उन्होंने मेरे ऊपर चादर डाल दी। जितनी देर तक मैं ब्रश करती रही, उतनी ही देर में ससुर जी ने एक बाल्टी को गर्म पानी से भर दिया। मुझे बहुत दुख हो रहा था कि मैं इस अवस्था में हूँ और मेरे ससुर जी को मेरी सेवा करनी पड़ रही थी। वो मेरे ऊपर इतना ध्यान रख रहे थे कि मैं उसको बता नहीं सकती थी। उसके बाद ससुर जी ने गर्म पानी में तौलिया भिगो कर मेरे जिस्म को अच्छी तरह से साफ किया और बाहर लाकर मुझे पैन्टी, ब्रा पहनाने लगे। और फिर मेरी जो सबसे अच्छी ड्रेस (सलवार-सूट) उनके हिसाब से थी, वो पहना दी और बाकी सजने संवरने का सामान मुझे दे दिया। उसके बाद नाश्ता करके ससुर जी मुझे लेकर जो होटल के आस-पास डॉक्टर था, ले कर गये। डॉक्टर ने मुझे दो-तीन दिन आराम करने के लिये कहा।
चेक अप करवाने के बाद में वापस आई। मैं बड़ी चिन्तित थी, जिस काम के लिये कोलकाता आई थी, वो ही पूरा नहीं होगा और मुझे एक जगह बैठ कर टाईम बिताना अच्छा भी नहीं लग रहा था। फिर भी ससुर जी के कहने पर मैंने अभय सर को फोन किया और सारी स्थिति बता दी, लेकिन दूसरे दिन से ऑफिस जाने की बात भी कही। मेरे ससुर मेरी तरफ देख रहे थे।
जैसे ही मैंने फोन काटा, वो बोले पड़े- बेटा, जब डॉक्टर ने तुम्हें दो-तीन दिन का आराम करने को कहा है तो आराम करो। चलो आज शाम को वापस चलते हैं। जब तुम ठीक हो जाओगी, तो रितेश के साथ चली आना।
ससुर जी की बात मेरे कानो में गूंज रही थी, लेकिन मेरे दिमाग में कुछ और चल रहा था। अब ससुर जी के सामने मैं बेपर्दा हो चुकी थी और वो मेरे जिस्म के एक एक अंग को नंगा देख चुके थे, मैंने अपने ट्रिप को सही करने का सोचा।
तभी उन्होंने झकझोरा, बोले- क्या हुआ बेटी, क्या सोचने लगी?
मैं अचकचा कर बोली- कुछ नहीं पापा जी!
इन सब बातो में इतना पता तो मुझे चल गया था कि पापा जी के मन में मेरे प्रति कुछ भी गलत नहीं था, बस कल रात जो कुछ भी हुआ वो मेरी बिगड़ती तबीयत की वजह से हुआ और शायद इसीलिये वो इतना मुझे तवज्जो नहीं दे रहे थे। फिर भी मेरे दिमाग में कीड़ा चलने लगा।
वो एक बार फिर बोले- तो ठीक है, चलो मैं पैकिंग किये देता हूँ और शाम की कोई गाड़ी पकड़ लेंगे और टीटीई को कुछ ले देकर सीट का जुगाड़ बैठा लूंगा।
कहकर वो उठे और सामान उठाने लगे।
तभी मैं उनसे बोली- नहीं पापा जी, मेरी तबियत इतनी ठीक नहीं है कि मैं ट्रेवेल कर पाऊँ... आज रात रूकते हैं, अगर कल मैं ठीक नहीं हुई और घर चलने के काबिल रही तो हम कल चलेंगे।
कहकर मैं चुप हो गई और टी॰वी॰ देखने लगी। मैं बड़ी देर तक यही करती रही और सोच रही थी कि किसी तरह से पापा जी पहल करें तो कुछ बात बने। लेकिन पूरे दो घंटे बीत गये थे और पाप जी पेपर पढ़ने के बाद वही सोफे पर लेट गये, लेकिन अपनी तरफ से कुछ नहीं बोले।
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