RE: Antervasna मुझे लगी लगन लंड की
तभी पापा जी अपने बियर के कन्टेनर को एक किनारे रखते हुए और अपने दोनों हाथों को मेरे कुरते के अन्दर डाल कर बोबे दबाने लगे और मेरी गर्दन को चूमते हुए बोले- आकांक्षा!
मैं मदहोशी के आलम में बोली- हूँ?
तो पापा जी बोले- यह बताओ तुमने अभी तक कितने मर्दों से अपनी चूत और गांड चुदवाई है?
मैं उनके इस प्रश्न को सुनकर चुप हो गई, लेकिन पापा जी बताने के लिये फोर्स किये ही जा रहे थे। उनके बार- बार पूछने से मैंने बस इतना ही बताया कि पता नहीं मेरी चूत गांड का कितने मर्दों ने मजा लिया होगा।
पापाजी- 'थोड़ा खुल कर बताओ?'
बस पापाजी का इतना बोलना था कि मैं घूमी और पापाजी के लंड को अपनी चूत के अन्दर ले लिया और
उनकी आँखों में आँखें डाल कर बोली- मैं सच कह रही हूँ कि कितने मर्दों के लंड से मेरी चूत चुद चुकी है या कितने मर्दों ने मेरी गांड का बाजा बजाया है, मुझे अब सच में कुछ याद नहीं है। हाँ, जो भी मर्द मुझसे अपनी प्यास बुझाने की चाहत रखता है, मैं उसकी प्यास बुझा देती हूँ।
पापाजी- रितेश को कब पता चला कि उसके अलावा तुम औरों से भी चुदती हो और उसका क्या रिऐक्शन था?
पापाजी की बात सुनकर मैं हँसी।
मुझे हँसती हुई देख कर पापाजी पूछने लगे- हँस क्यो रही हो?
मैंने बताया- रितेश ने ही मुझे सिखाया है कि चूत का मजा कैसे लिया जाता है। मैं रितेश को बहुत प्यार करती थी और आज भी करती हूँ और उसके प्यार के कारण ही मैंने ये सब किया है।
कहकर रितेश से पहली मुलाकात से लेकर जो जो कहानी घटी थी, सब मैं पापाजी को सुनाने लगी।
मेरी कहानी सुनकर उनका लंड मेरी चूत के अन्दर ही उबाल मार रहा था। मेरी कहानी सुनने के साथ साथ वो मेरी चूत की चुदाई भी कर रहे थे और उनकी उंगली मेरी गांड के अन्दर तक धंसी हुई थी।
फिर अचानक मुझे रोकते हुए पापाजी बोले- इसका मतलब तुम बहुत खुलकर और गन्दा से गन्दा चुदाई का खेल खेलती हो?
मैं- 'हां, अगर पार्टनर को पसन्द हो! मैं कभी भी किसी को किसी बात के लिये मना नहीं करती!'
पापाजी- 'हम्म, सही बताओ, क्या तुम टोनी और दूसरे मर्दो के सामने टट्टी कर चुकी हो और उन लोगों ने तुम्हारी गांड साफ की है?'
मैं- 'हां बिल्कुल वैसे ही जैसे आपने मेरी गांड साफ की थी।'
पापाजी- 'इसका मतलब कोई भी तुम्हारे जिस्म से कुछ भी करे, तुम उसे मना नहीं करती?
मैं- 'बिल्कुल नहीं, बल्कि मुझे भी इसमें खूब मजा मिलता है और मैं खूब उत्तेजित हो जाती हूँ।'
मेरे इतना कहते ही पापा ने अपनी उंगली मेरी गांड से निकाली और उसको अपने मुंह में रखकर चूसते हुए बोले- मैं चाहता हूँ कि तुम मेरी गांड चाटो।
उनके इतना कहते ही मैं उनके ऊपर से उतर गई और उनका हाथ पकड़ कर बोली- आईये, बेड पर उल्टे लेट जाईये। हां एक बात बताईये, मैं आपके साथ कुछ भी करूंगी आप बुरा तो नहीं मानोगे?
पापाजी- 'बिल्कुल नहीं!' छूटते ही बोले, बस मुझे मजा आना चाहिए।
मैं- 'तब ठीक है, आप बिस्तर पर ऐसे लेटो कि आपका कमर के ऊपर का हिस्सा बिस्तर पर हो और गांड आपकी बिस्तर से बाहर हो।'
पापाजी मेरे कहे अनुसार लेट गये, मैंने तुरन्त अपने उस कपड़े को उतार फेंका जो मेरे जिस्म पर बोझ बना हुआ था, फिर मैंने दो तेज चपट पापा के चूतड़ों को लगाये और फिर उनके उभारों को फैलाते हुए उनके छेद पर अपनी जीभ चलाने लगी और उनके लंड को पकड़ कर इस तरह से सहलाने लगी, जैसे ग्वाला किसी भैंस से दूध निकालने के लिये भैंस का थन सहलाता हो। पापा जी के मुंह से आवाजें निकलनी शुरू हो चुकी थी। मैं उनके सुपारे को अपने नाखूनों से कुरेदती और बीच बीच में गांड चाटने के साथ साथ उनके लंड पर अपनी जीभ फेर लेती। मेरे ससुर की सिसकारियाँ बढ़ती जा रही थी,
पापाजी बोले जा रहे थे- आकांक्षा, अब मेरी गांड और लंड चाटना छोड़ो, अपनी योनि में मेरा लिंग ले लो, नहीं तो मेरा माल निकल कर जमीन पर गिर जायेगा।
मैं- 'क्या पापाजी?' लिंग और योनि में अटके हो आप? चूत और लंड बोलो न... मेरे कानों को यही अच्छा लगता है।
पापाजी- 'ठीक है, मेरा लंड अपनी चूत में ले लो, नहीं तो मेरा वीर्य जमीन में गिर जायेगा।'
मैं- 'नहीं गिरेगा, और न मैं गिरने दूंगी आपके लंड से निकलते हुए वीर्य को!'
पापाजी- 'मेरा निकलने वाला है आकांक्षा... उनके शब्द मेरे कानों में पड़ रहे थे और मैं लगातार उनके लंड पर अपनी जीभ चलाये जा रही थी ताकि उनका माल निकले तो सीधा मेरे मुंह में जाये।
उधर पापा जी भी दबी आवाज में चिल्ला रहे थे- आकांक्षा मेरा निकल॰॰॰॰ रहा है!
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