RE: Maa Sex Kahani मम्मी मेरी जान
मार्केट पहुँच कर सतीश ने कार पार्किंग में कार एंटर की और पार्किंग टिकट कटवाया.
पारकिंग अटेंडेंट की नज़रे मोना पर ही टीकी हुई है.
सतीश और मोना दोनों इस बात को नोट करते है. टिकट लेकर सतीश एक खाली जगह देख कर कार को पार्क करता है और कहता है.
सतीश : “वा मोना तूम कितनी खूबसूरत लग रही हो एक दम एक परी की तरह,
इसका अंदाज़ा तो तुम्हे उस पार्किंग अटेंडेंट से ही लग गया होगा, देखा कैसे घूर रहा है तुम्हे”?
मोना : लगता है तुम को शो ऑफ करना बहुत पसंद है.
सतीश कोई जवाब नहीं देता बस मुस्कुरा देता है.
नीचे उतर कर मोना की साइड में आकर दरवाज़ा खोलता है और हाथ आगे बढाता है.
मोना को अपने भाई का उसे इस तरह ट्रीट करना बहुत अच्छा लगता है.
मोना भी इस ट्रीटमेंट को एन्जॉय करने लगती है और फिल्मी स्टाइल में पहले एक पैर बाहर निकालती है और फिर नीचे उतरती है अपना हाथ सतीश के हाथ में रखती है और उसके हाथ का सहारा लेने के अंदाज़ में दूसरा पैर बाहर रख कर बाहर निकलती है. दोनों की नज़रे मिलति है और दोनों एक दूसरे को देख कर मुस्कुरा देते है.
ईस हरकत से दोनों के मन में अजीब सी भावनाएं हिलोरे लेने लगती है.
एक दूसरे का हाथ पकडे दोनों बेसमेन्ट पार्किंग में सामने ही लिफ्ट से होकर मार्किट की ग्राउंड फ्लोर पर आते है.
देखने वाले कतयी अंदाज़ा नहीं लगा सकते की हाथ में हाथ पकडे ये दोनों भाई:बहिन है या प्रेमी जोडा.
फर्स्ट फ्लोर पर आकर दोनों एक कार्नर से विंडो शॉपिंग करते हुए चलने लगते है. बीच बीच में किसी शॉप के बाहर रूक कर डिस्प्ले में पड़ी चीज़े देखते है.
सतीश : “तो क्या शॉपिंग करनी है आज मेरी प्यारी बहना को”?
मोना : “ऐसा कुछ सोच कर तो नहीं आयी, देखते है क्या पसंद आता है”.
सतीश : “पर्स, सूट, साड़ी, जीन्स, टॉप, शर्त, नाइटी, ब्रा, पेंटी, थोंग्स बहुत स्टाइलिश डिज़ाइनर आ गए है मार्किट में और तूम कितनी सिंपल पहनती हो”.
मोना : [एकदम शॉकड हो जाती है] “तुम्हे कैसे मालूम”?
सतीश मुस्कुराते हुए उसके कान में धीरे से कहता है.
सतीश: “भूल गई मालिश करते वक़्त मैं ने ही तो तुम्हारी पेन्टी उतारी थी”
हलाकि सतीश ने धीमे से कहा लेकिन फिर भी रश होने से बहुत करीब खड़े लोगो द्वारा सुने जाने की पूरी गुंजाईश थी.
पब्लिक प्लेस पर इतने रश में अपने भाई के मूह से ये बात सुनते ही मोना को एक अलग ही तरह का एहसास होता है.
ओ अपनी गर्दन इधर उधर घुमा कर देखति है की कहीं इतने रश में किसी ने सुन न लिया हो.
उन्हें आपस में एक दूसरे को भाई:बहिन कह कर बुलाते हुए और इस तरह की बाते करते हुए किसी के भी सुन लेने का डर है,
पब्लिक प्लेस में सतीश की इस तरह की बात करने की हिम्मत से मोना को अस्चर्य होता है और उसमे उत्तेजना सी भर जाती है.
उसे लगता है की सतीश दिखने में जितना शरीफ, डिसेंट लगता है, वाक़ई में इतना शरीफ है नही पहले कुछ भी बात करने से कतराता था पर अब बिंदास्त कहता है कितना बदल गया है उसका भाई.
कुछ भी हो, उसे सतीश की बोल्ड कंपनी बहुत पसन्द आ रही थी. लेकिन फिर भी उसे थोडा डर लगता है.
ओ सतीश के कान के पास अपना मूह ले जाकर धीरे से कहती है,
मोना : “सतीश तू भी ना, यहाँ बाहर इतनी भीड़ में ये क्या बोल रहा है, किसी ने सुन लिया होता तो”?
सतीश : “तुम्हे डर लग रहा है इतनी भीड़ में ? यहाँ इतनी भीड़ में किसके पास टाइम है हमारी बाते सुन ने को”?
मोना : “फिर भी, डर तो लगता ही है, ऐसे पब्लिक प्लेस में ऐसी बातें.........!!
सतीश : “हम्म,अच्छा ये बताओ, यहाँ कितने लोग तुम्हे जानते हैं” ?
मोना : “क्यूँ”?मैं दो साल बाद यहां आयी हु,और मैंने अपनी पढ़ाई भी बाहर होस्टेल में रहकर पूरी की इस हिसाब से बहुत कम लोग मुझे जानते होंगे और यहां हमारे कोई रिश्तेदार भी नही है ना कोई दोस्त”
सतीश उसके हाथ को अपने हाथ में थोडा दबाते हुए एक कार्नर में ले जाता है और उसके दोनों कन्धो पर हाथ रख कर उसकी आँखों में देख कर कहता है...
सतीश : “जब हमे यहाँ कोई जानता नहीं तो फिर किसी के सुन ने से डरती क्यों हो? सुन लेने दे जो सुनता है. तुम बस इतना बताओ तुम्हे तो बुरा नहीं लग रहा ना? औरो की मुझे परवाह नही”
सतीश को इस प्यार से खुद को निहारते हुए देख मोना का दिल जोर से धड़कने लगता है. और ?
मोना का दिल जोर से धड़कने लगता है. घबरा कर वो आंखें बंद कर लेती और अपना सर सतीश की चौड़ी छाती पर टीका देती है.
सतीश उसे बाहो में भर लेता है और उसके होंठो पर मुस्कान तैर जाती है. उसे अपना प्लान सक्सेस होते हुए नज़र आता है.
मोना को पब्लिक में सिड्यूस करने में वो सफल हो रहा है और उसे लगता है की मोना को थोडा और पुश करने पर वो खुद ही रिश्तो की मर्यादा तोड़ कर उसकी प्यासी तपति बन्जर ज़िन्दगी को अपने बदन की महकती खुशबू रुपी फुहारो से सींच देगी.
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