RE: Gandi Kahani (इंसान या भूखे भेड़िए )
पार्थ.... यू आर वेरी वाइल्ड जिया....
जिया.... आंड यू हॅव लॉट्स ऑफ स्टेम्ना पार्थ... मज़ा आया तुम्हारे साथ...
पार्थ.... फिर कब ये मज़ा लेना है जिया....
जिया.... सम अदर टाइम बेबी, यू हॅव टू वेट आंड अपेस मी टू.
पार्थ.... क्या अभी अपेस नही किया तुम्हे....
जिया.... उफफफ्फ़, अभी तो फुल ऑन थे पार्थ... पर दोबारा इतना ईज़ी नही... कुछ तो मेरे लिए मेहनत करो बेबी....
पार्थ.... ओके सेक्सी.... आज से दिल और दिमाग़ पर एक ही चॅनेल चलेगा.... जिया के लिए मेहनत करना...
जिया.... हीहीही... फन्नी हां....
तभी जिया का फोन बजने लगता है, और वो अपने कपड़े पहन कर वहाँ से चली जाती है. जिया को जाते देख पार्थ ठंडी आहें भरने लगता है..... "उफफफफ्फ़ ये मुझे फिर कब मिलेगी"
जिया वहाँ से बाहर निकल कर, टॅक्सी लेती है और वापस पब की ओर आने लगती है. तभी उसके मोबाइल पर टेक्स्ट होता है, और टेन्षन से उसके पसीने चलने लगते हैं... वो तुरंत कॉल मनु को लगाती है, और उस से मिलने की इक्षा जाहिर करती है.... मनु भी उसे अपने घर बुला लेता है....
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इधर देल्ही से दूर... शिमला के हसीन वादियों मे.... एक प्यारा सा लड़का अपने फोन की घंटी बार-बार चेक कर रहा था, कोई लाइन आया कि नही. लगातार बर्फ-बारी से जन-जीवन अस्त-व्यस्त था... पर इन सब से परे ... वो लड़का बस फोन को ही पिच्छले तीन दिन से तक रहा था... एक कॉल तो आए...
अपने परिवार से दूर, अपने घर से दूर.... उन मखमली बिस्तर को छोड़, शिमला की ठंड मे एक सामान्य से भी नीचे जीवन बिता रहा.... मानस... छोड़ आया था अपने पिता हर्षवर्धन की पूरी दौलत, और वो ऐशो-आराम की ज़िंदगी.....
मानस का इंतज़ार बेवजह था, ना तो फोन लाइन ठीक होने वाली थी, ना ही शिमला की बर्फ-बारी रुकने वाली थी, और ना ही उसकी कोई खबर जिसकी तलाश मे मानस भटकता हुआ शिमला आया था. अजीब ही विडंबना थी, मानस के लिए आज का भी दिन ख़तम हो रहा था, और आज का दिन भी इंतज़ार मे ही कट गया.
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