RE: Gandi Kahani (इंसान या भूखे भेड़िए )
ईव्निंग... मानस & ड्रस्टी.....
प्यार के इज़हार के बाद ये पहली खाली ऐसी शाम थी जिस मे दो दिल मिल रहे थे. बाहों के आगोश मे ड्रस्टी लिपटी हुई थी, और मानस
उस के सिर पर हाथ फेर रहा था.... मानस, ड्रस्टी का चेहरा प्यार से देखते हुए उसे चूम लिया.....
ड्रस्टी मुस्कुराती हुई..... "उन्न्ञणन्, मुझे आराम करने दो ना, काफ़ी सुकून मिल रहा है. डिस्ट्रब ना करो"
मानस..... ड्रस्टी, हम जिस रिश्ते को आगे बढ़ा रहे हैं उस का कोई भविष्य भी है क्या...
ड्रस्टी, थोड़ा सीरीयस होती उठ कर बैठ गयी..... "मानस प्लीज़ अभी ये बात कर के डराओ मत. जब हालात सामने होंगे तो हम मिल कर
सामना कर लेंगे. पर अभी से उस बारे मे बात कर के".....
मानस, ड्रस्टी को अपने बाहों मे जकड़ते...... "उम्म्म्म, ठीक है मी हार्टबीट. वैसे सच कहूँ तो तुम बहुत प्यारी लग रही हो".
ड्रस्टी अचानक ही.... "मानस, मानस... मानस".....
मानस.... क्या हुआ ड्रस्टी....
ड्रस्टी बड़े से झूले की ओर उंगली दिखाती..... "मुझे उस झूले पर झूलना है"
मानस उस झूले को देखते हुए..... "क्या" ?????
ड्रस्टी.... इसमे शॉक जैसा क्या था, चलो ना मुझे वो झूला झूलना है....
मानस..... बच्ची हो क्या जो झूला झूलना है.... बैठो ना यहाँ, तुम्हे जी भर कर देखा भी नही अब तक.....
ड्रस्टी, मानस का हाथ पकड़ती उसे ज़बरदस्ती उठा'ती हुई..... "झूले पर ही आराम से मुझे देख लेना. चलो भी अब".
मानस को जाने मे क्या परेशानी थी, बस वो उँचे गोल वाले झूले को देख कर डर रहा था. पहले भी उस झूले पर झूल चुका था जिस का बहुत
\ बुरा अनुभव था मानस को. अब बेचारा कहे भी तो किस मुँह से, कि उसे झूले से डर लग रहा है....
हार कर जाना ही पड़ा... और जो उस झूले पर हुआ झूलते वक़्त. ड्रस्टी झूले को एंजाय कर रही थी, और मानस उस से लिपट कर.... "हे भगवान, हे भगवान" कर रहा था. ड्रस्टी को समझ मे आ गया, मानस क्यों नखरे कर रहा था. उतरते-उतरते ड्रस्टी उसे चिढ़ाती हुई कह ही
दी..... "डरपोक कहीं के, कह नही सकते थे कि झूले से डर लगता है तो बहाने बना रहे थे कि अभी तो ठीक से देखा भी नही".
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