Episode 2
बस स्टैंड पर 2-3 छोटी रूट की बस के अलावा कोई बस नहीं थी, और वहां लोग भी बहुत कम थे। रवि बुकिंग काउंटर वाले के पास चिल्ला रहा था - “सब के सब लुटेरे हैं! फ़ोन नहीं करना था तो मोबाइल नंबर लिया क्यों? जब पैसेंजर गया ही नहीं तो पैसे किस बात के?”
वो बुकिंग क्लर्क से पैसे वापस मांग रहा था। नीता उसके बगल में खड़ी थी। उसकी लाल ब्लाउज के साइड से उसकी काली ब्रा का फीता बाहर निकला हुआ था। क्लर्क के सामने बैठा एक अधेड़ उम्र का आदमी उसे घूर रहा था। और घूरे भी क्यों न? नीता की जिन चूचियों को उस ब्रा ने ढक रखा था वो 34 इंच की थी। 26 साल की गोरी, लम्बी छरहरे बदन वाली नीता हलोजन लैंप के सामने खड़ी थी जिससे उसके होंठों पर लगी लाल लिपस्टिक चमक कर मादक दृश्य उत्पन्न कर रहे थे। जैसे जैसे नीता के उरोज सांस के साथ ऊपर नीचे हो रहे थे, वैसे वैसे उस अधेड़ के लिंग में यौवन का संचार हो रहा था। 55 साल के उस बुढ्ढे का रंग जितना काला था बाल उतने ही सफ़ेद। उसकी धोती उसके जांघों तक ही थी और आँखें लाल, मानो अभी अभी पूरी एक बोतल चढ़ा ली हो। उसके मुंह की बास दूर खड़ी नीता महसूस कर सकती थी।
जब नीता की नज़र उस बुढ्ढे पर पड़ी तो नीता सहम गयी। औरतों में मर्दों की नियत भांपने का यन्त्र लगा होता है शायद। नीता ने अपने ब्लाउज को ठीक उभर को साड़ी से ठीक से ढक लिया। नीता को सहमा देख कर उस बुढ्ढे के लण्ड में और जवानी भर गयी। वो अपना मुंह खोल बेशर्म की तरह मुस्कुराने लगा। उसके सामने की दांत लंबी और बदसूरत थी। उसके चेहरे को देख कर नीता के मन में घिन्न हो रहा था। वो रवि के और निकट आ गयी और उसकी बाँह को पकड़ कर बोली “चलिए यहाँ से। अब बस चली गयी तो फिर लड़ाई करके क्या फायदा?”
“अरे भैया! हम भी सीतामढ़ी ही जा रहे हैं, चलिएगा हमारे बस पर?” सर पर गमछा बांधे, बड़ी मूँछ और विशाल काया वाले एक हट्टे कट्ठे आदमी ने कहा।
“कब खुलेगी बस?”
“बस अब निकलबे करेंगे। उधर 1785 नंबर वला बस खड़ा है। सीट भी खालिये होगा। अइसे भाड़ा त 700 रुपइया है लेकिन आप 500 भी दे दीजियेगा त चलेगा। आप पैसेंजर को बइठाइये हम दू मिनट में आते हैं।”
रवि नीता को लेकर बस पहुंचा। उसने अन्दर झाँक कर देखा, बस में 8-10 मर्द थे और दो-तीन औरत। सब गांव के थे। बांकी पूरा बस खाली था। “बस में सब देहाती सब हैं, अंदर बदबू दे रहा है। तुम इसमें जा पाओगी? दिक्कत होगा तो आज छोड़ दो, कल चली जाना?”
“कल फलदान है, जाना ज़रूरी है। मैं चली जाउंगी, आप फिक्र मत कीजिये।”
“हम्म! तुम अंदर बैठो, मैं तुम्हारे लिए पानी का बोतल ला देता हूँ।”
नीता अंदर गयी। पर अंदर बदबू बहुत थी। शायद पैसेंजर में से कुछ लोगों ने देसी शराब पी रखी थी। ऊपर से गर्मी अलग। नीता उतर कर बस से नीचे आ गयी। रात के दस बज रहे थे। बस स्टैंड पर कुछ ही लोग थे। बस के आस पास कूड़ा फेंका हुआ था और पेशाब की तीखी गंध आ रही थी। नीता बस से थोड़ी दूर गयी। उसने चारों तरफ घूम देखा। यहाँ उसे कोई नहीं देख रहा था। उसने अपनी साड़ी ऊपर उठाई, पैंटी नीचे सरकाया और बैठ कर पेशाब करने लगी। दूर लगे बस के हेडलाइट की रौशनी में उसकी सफ़ेद चिकनी गाँड़ आधे चाँद की तरह चमक रही थी। वो पेशाब करके उठी, और जैसे ही पीछे मुड़ी, सामने बदसूरत शक्ल वाला वो बुढ्ढा अपनी दाँत निकाले मुस्कुरा रहा था। नीता काँप उठी। उसके चेहरे पर वही बेशर्मी वाली मुस्कराहट थी। उसका एक हाथ नीचे धोती के बीच कुछ पकड़े हुआ था। पर वो क्या पकड़े हुआ है ये नीता नहीं देख पा रही थी। नीता के लिए ये समझना कठिन नहीं कि वो क्या पकड़े हुआ है। पर वो रवि के औजार से काफी बड़ा था।
बुढ्ढा नीता की तरफ बढ़ने लगा। नीता घबरा कर इधर उधर देखने लगी। तभी उसे रवि आता दिखा। वो दौड़ कर रवि के पास पहुंची। रवि डर से पीली पर गयी नीता को देख कर बोला “क्या हुआ?”
“व…वो आ… आदमी!” नीता घबराई हुई थी। इससे पहले वो कुछ बोलती रवि उस आदमी की तरफ लपका।
“माधरचोद! भोंसड़ी वाले!” जब तक बुढ्ढा कुछ बोले तब तक उस पर दो झापड़ पड़ चुके थे। “हरामज़ादे, दो कौड़ी के इंसान ! तेरी हिम्मत कैसे हुई मेरी बीवी की तरफ देखने की?”
वो सम्भला भी नहीं था की दो-चार हाथ उसपर और लग चुके थे। ये सब इतनी जल्दी हुआ कि नीता को कुछ समझ में नहीं आया। तब तक बस ड्राइवर के साथ दो लोग और जमा हो गए थे। नीता को उस बुढ्ढे पर दया आ गयी। और फिर उसे बुढ्ढे ने कुछ किया भी तो नहीं था। उसने तो बस देखा था। खुले में वो पेशाब करेगी तो गलती उसे देखने वाले की थोड़े ही है।
“अरे जाने दीजिये!” नीता ने रवि के हाथ को पकड़ कर उसे रोका।
“बेटीचोद! ख़बरदार जो किसी औरत की तरफ आँख उठा कर देखा तो, दोनों आँखें फोड़ दूंगा। रंडी की औलाद… साला।”
“अरे साहब! जाने दो न, क्यों छोटे लोगों के मुंह लगते हो, इनका कुछ नहीं बिगड़ेगा, आपका मुंह ख़राब होगा।” एक पैसेंजर ने कहा। रवि गुस्सा थोड़ा शांत हो चूका था।
“नीता, कल ही जाना। अभी जाना सेफ नहीं है।”
“आप भी न! तिल का ताड़ बना देते हैं। कुछ नहीं हुआ है। मैं ऐसे ही डर गयी थी। बस में दो-तीन औरतें हैं। कोई दिक्कत नहीं होगी। फिर फिर मेरे पास मोबाइल है न। कोई प्रॉब्लम होगी तो मैं कॉल कर लुंगी। आप टेंशन मत लीजिये।” नीता ने रवि को शांत करते हुए कहा।
“अरे तुम समझती नहीं हो। जब तक तुम घर नहीं पहुँच जाओगी तब तक मैं टेंशन में रहूँगा। बस छोड़ो मैं तुम्हे गाड़ी से पहुँचा देता हूँ।”
“आप बेवजह परेशान होते हैं। आपको ऑफिस का काम है। आप निश्चिंत होकर जाइये। मैं घर पहुँच आपको कॉल कर दूंगी।”
“ठीक है। कोई भी प्रॉब्लम हो तो तुरंत मुझे कॉल करना। सारे एसपी-डीएसपी को मैं जानता हूँ। पुलिस तुरंत वहां पहुँच जाएगी।” वो बस में घुस चूका था। “यहाँ बैठ जाओ। खिड़की के पास। गर्मी नहीं लगेगी।”
नीता बस के दरवाजे के पास वाली खिड़की से लगी सीट पर बैठ गयी। “आप टेंशन नहीं लीजियेगा, मैं सुबह आपको कॉल करुँगी। रात बहुत हो गयी है। खाना टेबल पर रखा हुआ है। ठंढा हो गया होगा, माइक्रोवेव में गर्म कर लीजियेगा। रात बहुत हो गयी है, आपको सुबह ऑफिस भी जाना है। अब आप जाइये।”
“ड्राइवर कहाँ गया? चलो! अब स्टार्ट करो। अब कोई पैसेंजर नहीं आने वाला।”
बस स्टार्ट हो धीरे धीरे बढ़ा, रवि अपनी गाड़ी में बैठ कर घर की तरफ निकला। बस जैसे ही बस स्टैंड से निकलने वाला था वो बुढ्ढा दौड़ कर बस में चढ़ गया। नीता घबड़ा गयी और अपने पर्स से मोबाइल निकालने लगी।
बुढ्ढा बोला “अरे मैडम! हम आपका क्या बिगाड़े थे? बिना मतलब के हमको पिटवा दिए।”
बुढ्ढे की आवाज़ सुन कर नीता का भय थोड़ा कम हुआ। पर उसके मुंह से दारू की बास बहुत तेज़ आ रही थी। “तुम मुझे वहाँ घूर क्यों रहे थे?”
“हम घूर कहाँ रहे थे? बहुत ज़ोर से पेशाब लगा था। आपके हटने का इंतजार कर रहे थे। बूढ़ा हुए, आँख कमज़ोर है। हमको त पता भी नहीं चला कि वहां कोई मरद है कि कोनो औरत। अब इस उमर में अइसा नीच हरकत हम करेंगे? बहु बेटी की उमर की हैं आप।”
बुढ्ढे की बात सुन कर नीता कंफ्यूज हो गयी। नीता का सिक्स्थ सेंस चीख चीख कर कह रहा था की बुढ्ढा का इरादा ठीक नहीं है पर बुढ्ढे की बातों में सच्चाई लग रही थी। और फिर बुढ्ढे ने कुछ किया तो नहीं था। उसके कारन बेचारा बिना मतलब का पिटाई खा गया। “ठीक है। पर यहाँ क्यों खड़े हो? पीछे जा कर बैठो।”
“मैडम खलासी हैं, यहीं खड़ा रहना काम है।”
This is an excerpt from Novel "Bus ka Safar" By Modern Mastram. Search Amazon for 'Bus ka Safar' or Modern Mastram for more.