बस असल में किराये पर रांची आयी थी। कुछ ऊपरी आमदनी हो जाये, इसलिए लौटते समय ड्राइवर और कंडक्टर ने कुछ पैसेंजर बिठा लिए थे। सभी पैसेंजर अगल बगल के थे। केवल नीता का ही सफर रात भर का था। नीता कुछ ही देर में सो गयी। ये कहना मुश्किल है की किसने - खिड़की से आ रही हवा ने उस बुढ्ढे ने नीता के ब्लाउज पर से उसके साड़ी की पल्लू हटा दी थी। बुढ्ढा लाल ब्लाउज के ऊपर से अंदर छिपे खजाने का मूल्यांकन कर रहा था। अपने आँखों से घूर घूर कर नीता के चूची की ऊँचाई, गोलाई, और अकार माप कर अपने मस्तिष्क में उसके वक्षस्थल का टोपोलॉजिकल मैप तैयार कर रहा था। जब तक बस में और पैसेंजर थे तब तक तो बुढ्ढा दूर से ही अपने आँख सेंक रहा था और अपने लण्ड में अंगड़ाई लेती जवानी को अपने हाथों से सहला रहा था। आखिरी पैसेंजर के उतरने के बाद बुढ्ढे ने अपने लण्ड को धोती की कैद से आज़ाद कर दिया और उसकी लम्बी बन्दूक नीता की तरफ तन गयी।
पूरे बस में एक अकेली लौंडिया, वो भी जवान, भरे पूरे छरहरे बदन वाली, को देख कर बुढ्ढे के अंदर की वासना छलक छलक कर बाहर आ रही थी। पर वो ये भी जानता था की अगर लौंडिया ने कम्प्लेन कर दिया तो बस के नंबर से उसे खोजना आसान होगा। और साला उसका भतार भी तो गुंडा ही लगता है। पुलिस ने नहीं भी पकड़ा तो वो माधरचोद उसकी जान ले लेगा। वो वासना और भय मिश्रित भावना से नीता की तरफ झुका और उसके बदन को सूंघने लगा। इत्र और क्रीम में सराबोर नीता के बदन की खुशबू बुढ्ढे को पागल बनाये जा रही थी। वो अपना जीभ निकाल कर नीता के होंठों को चाटना चाह रहा था। जीभ तो उसने निकाली, नीता के होंठों के पास भी ले गया, पर छूने की उसे हिम्मत नहीं हुई। एक हाथ से वो अपने लण्ड को मसल रहा था, दुसरे हाथ से हिलती हुई बस को पकड़े हुए अपने जीभ को नीता के बदन से एक धागे भर की दूरी पर रखे उसके पूरे बदन को मानो चाट रहा हो।
बुढ्ढे के अंदर वासना और भय के बीच का महासंग्राम सुरु हो चूका था। कभी उसके मन में ख्याल आता कि ठोक दे साली को और फेंक दे रास्ते में। जो होगा देखा जायेगा। फिर उसे लगता कि इस बुढ़ापे में वो पुलिस से कहाँ कहाँ भागता फिरेगा? और बुढ़ापे में जेल? न बाबा! वो किंकर्तव्यविमूढ़ सी स्थिति में नीता के बगल वाले सीट पर जा कर बैठ गया। रण्डियाँ तो उसने कई चोदी थी, पर रण्डियों में वो बात कहाँ? एक बड़े घर की सुन्दर, जवान लौंडिया के बगल में, जाँघ से जाँघ सटा कर बैठने मात्र से ही उसका लण्ड उसकी गोद में क़ुतुब मीनार की तरह खड़ा हो चूका था। वो कभी लाल ब्लाउज के ऊपर वाले हिस्से से झलकती नीता के चूची के उभार को देखता, कभी उसके रसीले लाल होंठों को तो कभी सफ़ेद चिकनी पेट पेट को। कई बार तो वो अपना हाथ नीता के चूचियों तक ले गया। उसका जी कर रहा था कि उन भरपूर चूचियों को हाथों में लेकर नीम्बू की तरह निचोड़ दे! पर वो उन्हें हल्का छू कर वापस अपने लण्ड पर आ गया। वो अपने लंड को ज़ोर ज़ोर से हिलाने लगा। पर फिर वो शांत हो गया। वो अपने लण्ड के रस को ऐसे ही बर्बाद नहीं करना चाहता था, वो भी तब जब एक ख़ूबसूरत जवान लौंडिया बगल में हो। नीता की तरफ घूम कर उसने अपना लण्ड नीता की जांघ पर दबाया। पर ज़ोर से दबाने की हिम्मत उसमे न थी।
बुढ्ढा बेचैन था, कभी अपना लण्ड बाहर निकाल कर हिलाता, कभी लण्ड को धोती में ढक कर नीता को घूरता, कभी उसकी चूचियों के ऊपर हल्का हल्का हाथ सहलाता तो कभी उसके चेहरे के पास जा कर उसके बदन की खुसबू लेता। करीब आधे घंटे इस तमाशा के चलने के बाद रोड के जर्किंग से नीता जाग गयी। अपने सीने को बिना आँचल के देख कर वो हड़बड़ा गयी और आँचल उठा कर अपने वक्ष को ढकने लगी। तभी उसकी नज़र बगल में बैठे बुढ्ढे पर गयी। बुढ्ढे ने घबरा कर अपने लण्ड को धोती में छिपाया। बुढ्ढे को अपने बगल में बैठा देख कर नीता गुस्से से तमतमा गयी “हिम्मत कैसे हुई तुम्हे यहाँ बैठने की?”
“हद करती हैं मैडम आप भी! एक त खलासी वला सीट पर बइठ गए हैं ऊपर से गरम हो रहे हैं। बताइये हम कहाँ बैठेंगे? खलासी हैं, ड्राइवर को बताना होता है, दरवाज़ा के पास वाला सीटे पर न बइठेंगे? आप दुन्नु मिया बीबी बिना बाते के गुस्सा में रहते हैं।” उस बुढ्ढे ने ऐसे निरीह हो कर कहा कि नीता के लिए अपना गुस्सा बनाये रखना संभव नहीं था।
“ठीक है! मैं पीछे जा कर बैठ जाती हूँ।” नीता अपना सामान समेटने लगी। वो इस बात से बिलकुल अनभिज्ञ थी कि उसके अलावा बस में और कोई पैसेंजर नहीं है।
“देखिये मैडम, हम गरीब ज़रूर हैं, पर नीच नहीं हैं। हम नीच जाती के भी नहीं हैं। जात के ब्राह्मण हैं। ऊ त किस्मत का खेल है कि खलासी हो गए। इतने गेल गुजरल नहीं हैं कि हमरा बगल में बइठने में भी आपको तकलीफ हो!” ईश्वर ने उस बुढ्ढे को जितनी बुरी शक्ल दी थी उतनी ही प्रभावशाली वाणी दी थी। वो शायद सम्मोहन विद्या जनता था। बातों में वो किसी को भी प्रभावित कर सकता था। वो तो रवि ने उसे कुछ बोलने का मौका ही नहीं दिया, वरना वो कभी रवि के हाथों पिटाई नहीं खाता।
“ऐसी बात नहीं है, तुमने ही तो कहा की यहाँ तुम्हारी सीट है।”
“है तो आपके बइठ जाने से अइसन थोड़े ही है कि सीट हमरा नहीं रहेगा? आप आराम से बइठिए। हमको कोनो दिक्कत नहीं हैं।”
नीता फिर कन्फ्यूज्ड थी। बुढ्ढा बातों से बहुत शरीफ लगता है। पर, उसके व्यवहार से बार बार संदेह होता था। कहीं उसी ने उसके ब्लाउज पर से आँचल तो नहीं हटाया? ,नहीं, इतने पैसेंजर के सामने बुढ्ढे की हिम्मत नहीं होगी ऐसा करने की। कितना सीधा सादा बुढ्ढा है। शक्ल ख़राब होने से आदमी थोड़े ही ख़राब हो जाता है। मैं बिना मतलब ही इसपर संदेह कर रही हूँ। फिर उसके धोती में टेंट कैसा है? इसका लण्ड कहीं खड़ा तो नहीं? पर इतना बड़ा? इतना बड़ा कैसे हो सकता है? रवि का तो इतना सा है! कुछ और रखा होगा। गांव देहात में लोग धोती के अंदर पोटली में पैसा भी तो रखते हैं। शायद वही हो?
“कौन कौन है तुम्हारे परिवार में?”
“क्या बताएं मैडम? बीबी पहले बच्चे को जनम दे कर ऊपर चली गयी। बड़ा मुश्किल से बीटा को पाल पोष कर बड़ा किये त उ भी शादी के बाद बदल गया। जब से पुतोहु घर में आयी घर में हमरे लिए जगहे नहीं बचा। नहीं त आप ही बताइये ई बुढ़ापा में रात रात भर कहे खटते?”
नीता को बुढ्ढे की बात सुन कर उसपर दया आ गयी। अब वो बुढ्ढा उसे उतना घृणा का पात्र नहीं लग रहा था। “बीबी के मरने के बाद तुमने दूसरी शादी नहीं की?” नीता की नज़र बार बार उस बुढ्ढे की धोती में बने टेंट पर जा रही थी। वो ये कन्फर्म करना चाह रही थी कि लण्ड ही है या कुछ और?
नीता को अपने लण्ड की तरफ घूरते देख कर बुढ्ढे का लण्ड और तमतमा रहा था। “कइसे कर लेते मैडम? सौतेली माँ से बेटा को लाड प्यार थोड़े ही मिलता।”
“तो अभी कहाँ रहते हो?”
“कहाँ रहेंगे मैडम? अब त बस में ही जीना है, इसी में मरना है! आप आराम कीजिये, इस बुढ्ढे की कहानी सुन कर क्या करियेगा?”
नीता ने अपनी आँखें बंद कर ली। पर उसकी आँखों के सामने बार बार बुढ्ढे के धोती पर बना टेंट आ रहा था। वो जानना चाह रही थी कि वो आखिर है क्या? लण्ड ही है या कुछ और? और अगर लण्ड ही है तो इतना बड़ा लण्ड आखिर दिखता कैसा है? क्या कुणाल के साथ हाथापाई में उसने अपनी गाँड़ पर जो महसूस किया था वो भी लण्ड ही था? क्या सभी लण्ड बड़े होते हैं, केवल रवि का ही छोटा है? क्या इसलिए उसने चुदाई के बारे में जो भी सुना था उसे वैसा कोई भी मज़ा नहीं आया? क्या इसलिए रवि उसे गर्भवती नहीं कर पा रहा? ओह! अगर ऐसी बात है तो उसकी किस्मत तो इस बुढ्ढे से भी गयी गुजरी है। बस में खलासी है, बीबी के मरने के बाद कम से कम रंडी को तो चोदा ही होगा? वही है जिसे चुदाई का सुख अभी तक नहीं मिला है। और कुणाल? ओह! आज भी वो पल याद आते ही देखो कैसे दिल की धड़कन बढ़ गयी? पता नहीं उसने जान बूझ कर मेरे स्तन को दबाया था या अनजाने में। पर वो मज़ा कभी रवि के दबाने से नहीं आया था। क्या कुणाल मेरी चुदाई के इरादे से आया था? क्या उस दिन मौका मिलता तो वो मुझे चोद देता? ओह! काश ! कितना मज़ा आता? मैं भी बेवकूफ थी। थोड़ा सा बदन को ढ़ीला करके छोड़ती तो उसकी हिम्मत बढ़ती। नहीं कुछ तो चूची तो और अच्छे से तो मसलता ही। अब तो कोई मौका भी नहीं मिलना। क्या मेरी जिंदगी बिना चुदाई के मज़े लिए ही ख़तम हो जाएगी? पर इस बुढ्ढे की धोती में बना टेंट क्या है?
नीता ने जानने के लिए हल्का सा आँख खोल कर बुढ्ढे की गोद में देखा। उसका क़ुतुब मीनार अपनी पूरी ऊंचाइयों पर उसकी गोद में बस के साथ लय मिला कर डोल रहा था। नीता ने झट से अपनी आँखें बंद कर ली। ये तो लण्ड ही है। इतना बड़ा? हे भगवान्! रवि का मिर्च है और ये तो पूरा कद्दू है। इतना बड़ा अंदर जायेगा? मेरी तो चूत ही फट जाएगी! और ये बुढ्ढा बहुत भोला भाला बन रहा था। ये तो एक नंबर का हरामी है। पर कुछ करने की तो इसमें हिम्मत होगी नहीं। बस में और भी पैसेंजर हैं। बस मुझे देख कर खुश होता रहेगा। होने दो खुश, मुझे क्या प्रॉब्लम है? बस एक बार जी भर कर देखना चाहती हूँ, आखिर इतना बड़ा लण्ड होता कैसा है? नहीं, अगर बुढ्ढे ने देखते हुए देख लिया तो मेरे बारे में क्या सोचेगा? मेरी शादी हो चुकी है। ये ठीक नहीं। चुपचाप सोने की कोशिश करती हूँ।
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