RE: Maa Sex Story आग्याकारी माँ
ईशा की चाची ईशा की मुँह बोली चाची, जिन्हें हम आंटी कहते थे, और मेरे बीच की है. यह घटना भी आयशा और मेरी कहानी के तुरंत बाद की ही है. यह कहानी भी मैंने ईशा वाली श्रृंखला में जोड़ कर ही लिखी है क्योंकि इस कहानी की शुरुआत भी ईशा के कारण ही हुई थी.
मैं आप को यह अनुभव सुनाने जा रहा हूँ जो मेरे जीवन के अब तक के सबसे हाहाकारी और प्रलयंकारी अनुभवों में से एक है.
अब मैं कहानी पर आता हूँ.
एक दिन मैं कॉलेज में था कि मेरे पास रमेश अंकल(ईशा की आंटी के पति) का फोन आया, वो मुझसे बोले- तू है कहाँ यार? इतने दिन से दिखा नहीं, यह बता कि घर कब आने वाला है?
मेरे पास उस समय बहुत होमवर्क था तो मैंने कहा- अभी तो जान निकली पड़ी है अंकल, आज और कल तो बिल्कुल फुर्सत नहीं है, पर आप कहिये ना, क्या हुआ?
तो वो बोले- यार, मेरा लैपटॉप काम नहीं कर रहा है, आकर उसे देख ले, और इतने दिन हो गए हमने साथ में खाना नहीं खाया तो डिनर भी साथ में करेंगे.
मैंने कहा- ठीक है अंकल ! मैं शनिवार को आ जाऊँगा, साथ खायेंगे,
वो बोले- बहुत अच्छे !
और हमारी बात खत्म हो गई.
रमेश अंकल जिंदादिल इंसान हैं, हमेशा उनके चेहरे पर एक मुस्कुराहट होती ही है, दुःख करना तो जैसे उनको आता ही नहीं था. उनके साथ रहो तो लगता है कि जिंदगी सच में पूरी तरह से जीने के लिए होती है और नंदिनी आंटी भी बिल्कुल वैसे ही खुशमिजाज और आज में जीने वाली महिला हैं.
शनीवार को मैं अंकल के घर जाने की तैयारी में था, तभी अंकल का फोन आया, बोले- सॉरी यार, आज मिलना नहीं हो सकता, मैं अभी नई दिल्ही के लिए निकल रहा हूँ, फिलहाल मुम्बई हवाई अड्डे पर हूँ.
मैंने पूछा- हुआ क्या है?
तो बोले- स्क्रैप के माल में एक लाट जले हुए लोहे का आ गया है, उसके चक्कर में जाना है, नहीं गया तो काफी नुकसान हो जायेगा.
अंकल का भंगार आयात करने का काम है.
मैंने कहा- ठीक है अंकल, आप जाओ, वो जरूरी है, कोई कागजात रह गए हों तो मुझे बता दीजियेगा, मैं आप को मेल कर दूँगा.
अंकल बोले- वो तो ठीक है लेकिन तू घर चले जाना यार ! नंदिनी तुम दोनों को बहुत मिस करती है, तुम दोनों चले जाते हो तो उसे भी अच्छा लगता है.
मैंने कहा- आप बेकिफ्र जाओ, अंकल मैं और ईशा दोनों चले जायेंगे.
उनसे बात करने के बाद मैंने ईशा को फोन किया और कहा- आज रमेश अंकल के यहाँ चलना है नंदिनी आंटी से मिलने ! अंकल घर पर नहीं हैं.
तो वो बोली- आना तुझे है गधे ! मैं तो यही पर हूँ.
मैंने कहा- ठीक है, मैं भी आता हूँ !
और मैं काम खत्म करके उनके यहाँ जाने के लिए निकल गया. रास्ते में मैंने एक पीला गुलाब भी खरीद लिया था जो आंटी को बहुत पसंद है.
जब मैं उनके घर पहुँचा तो करीब आठ बज चुके थे, मैंने वहाँ जाकर आंटी को हमेशा की तरह “हे गोर्जियस ए रोज फॉर यू !(आप के लिए गुलाब) कहते हुए उनको पीला गुलाब दिया और उन्होंने हमेशा की तरह खुशी खुशी लिया.
फिर आंटी ने मुझ से कहा- तुम बैठो, मैं खाना लगाती हूँ, तीनों साथ में खा लेंगे !
तो ईशा बीच में ही बोल पड़ी- अभी बैठो नहीं ! यह पहले तो जाकर नहायेगा और शेव भी करेगा, कैसा जानवर बना पड़ा है.
और सच भी यही था कि मैं पिछले 6 दिनों से कॉलेज के प्रोजेक्ट की वजहसे, ना ठीक से सोया था ना ही मैंने शेव की थी और ना ही खाना ठीक से खाया था, नहाने की बात तो दूर की है.
मैंने कहा- ठीक है मेरी माँ, पहले नहा ही लेता हूँ मैं.
और मैं नहाने के लिए बाथरूम में जाने लगा तो ईशा ने मुझे लोवर और टीशर्ट दिए और बोली- नहाने के बाद यही पहन लेना, हल्का लगेगा !
और साथ में शेविंग किट भी दे दी. मैं अंकल के यहाँ कई बार रुका था तो वहाँ पर नहाना मेरे लिए कोई बड़ी बात नहीं थी और मैं नंदिनी आंटी और अंकल दोनों से ही खुला हुआ था तो यह मेरे लिए सामान्य ही था.
जब मैं नहा कर आया तो बड़ा अच्छा महसूस हो रहा था और खाने की मेज देखी तो मन और खुश हो गया क्योंकि आंटी ने मेरे पसंद का ही खाना बनाया हुआ था.
खाना खाते हुए एक बार आंटी ने मुझ से ईशा और मेरे रिश्ते के बारे में पूछ लिया कि हम दोनो के रिश्ते में कोई और बात भी है क्या अब?
तब तो मेरे गले में निवाला अटक ही गया था, सच मैं बोल नहीं सकता था और झूठ बोलना मुझे पसंद नहीं था तो मैंने बात को अनसुना ही कर दिया और आंटी ने भी दोबारा सवाल नहीं किया.
उसके बाद हम तीनों ही पीने के लिए बैठ गए. ईशा और मैं तो पीते ही थे और आंटी भी हमारे साथ कभी कभी पी लेती थी. उस वक्त आंटी ने बताया कि उन्हें मेरे और ईशा के बारे में सब पता है, ईशा ने ही उन्हें बताया था.
मेरे पास बोलने को कुछ था नहीं तो मैं चुप ही रहा.
बियर पीने के बाद एक तो मुझे थकान थी, दूसरा नींद पूरी नहीं हुई, खाना ज्यादा खा लिया ऊपर से थोड़ी ज्यादा भी बियर पी ली तो मेरी हालत खराब हो चुकी थी, मैंने ईशा से कहा- मुझे मेरे कमरे में छोड़ दे यार ! मैं घर जाऊँगा नहीं और बाइक चलाने जैसे हालात मेरी है नहीं !वैसे भी माँ और शिप्रा दोनो दिदी से मिलने मुम्बई गये थे डैड बिजनेस ट्रिप पर थे घर मे कोई नही था.
तो आंटी बोली- आज तू यही सो जा ! सुबह चले जाना, ईशा को भी घर जाना है उसके.
मैंने कहा- ठीक है !
और उसके बाद मुझे कब नींद लगी, कब सुबह हुई, पता भी नहीं चला. रात में अगर मैं उठा भी तो सिर्फ लघु शंका के लिए और फिर सो गया.
सुबह सुबह सात बजे के आस पास उठ कर सारी (लघु तथा दीर्घ) शंकाओं का समाधान करा और फिर से सो गया.
फिर मेरी नींद करीब 11 बजे खुली लेकिन जब मैंने उठने की कोशिश की तो उठ नहीं पाया.
वजह थी मेरे हाथ रस्सी से बंधे हुए थे, पलंग के दोनो किनारों की तरफ और मेरे पैरों का भी वही हाल था.
मुझे लगा कि यह ईशा की ही शरारत है, वो घर पर भी ऐसे ही परेशान करती रहती थी मुझे हर बार नई शरारतों से तो मैंने ईशा को आवाज देना शुरू कर दिया.
मेरी आवाज सुन कर ईशा तो नहीं आई पर आंटी आ गई.
मैंने उनसे कहा- “कहाँ है वो गधी, आज उसे नहीं छोडूंगा.
तो आंटी बोली- वो अभी तक आई नहीं है.
मुझे कुछ समझ नहीं आया पर मैंने आंटी से कहा- अच्छा ठीक है पर मुझे खोलिए तो !
तो आंटी बोली “अगर खोलना ही होता तो इतनी प्यार से बांधती क्यों तुमको?
आंटी की बात सुन कर मेरा माथा घूम गया कि चक्कर क्या है.
मैंने आंटी से कहा- क्या कह रही हो आंटी?
तो बोली- सच कह रही हूँ, मैंने ही बांधा है और खोलने के लिए नहीं बाँधा.
“पर क्यों?” मैंने सवाल किया.
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