RE: Gandi Kahani सबसे बड़ी मर्डर मिस्ट्री
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" हम विजय थे ग्रेट है पूरे शेर, हम सबकुछ कर सकते है, अच्छे-ख़ासे ओमलेट को आंटे की तरह गून्थ्कर फिर से अंडा बना सकते है, दही को दूध मे तब्दील कर सकते है, चाहे तो बनी-बनाई रोटी को चक्की मे डालकर फिर से गेहू बना सकते है और काले जादू के ज़ोर से तुझे वापिस तेरी माँ के गर्भ मे पहुचा सकते है "
पूरणसिंघ के मुँह से बोल ना फूटा, वह टकटकी लगाए अपने सामने उल्टे लटके विजय को बस देखता रहा.
उस विजय को जिसके जिस्म पर इस वक़्त सिर्फ़ लाल रंग का लंगोट जैसा अंडरवेर था.
उस विजय को जिसके पूरे जिस्म पर इतना सरसो का तेल लगा हुआ था जैसे वो उससे नाहया हुआ हो.
उस विजय को जिसके जिस्म पर चोट के वे निशान सॉफ नज़र आ रहे थे जो विभिन्न मिशन्स के दौरान उसे लगी थी.
और उस विजय को जिसके दोनो पैर इस वक़्त लोहे के उन कुंडो मे फँसे हुवे थे जिनसे जुड़ी जंजीरो के दूसरे सिरे कमरे के लंतर से जॉइंट कुंडो से जुड़े हुवे थे.
पैरो को कुंडे मे फँसाए वह उल्टा लटका हुआ था.
उसका पुराना नौकर पूरणसिंघ फर्श पर सीधा खड़ा मुँह उठाए उसकी तरफ देख रहा था.
चेहरे पर ऐसे भाव थे जैसे कि उस पल को कोस रहा हो जिस पल वह इस कमरे मे आया था.
उसने बस ये पूछने का गुनाह किया था कि 'आप नाश्ते मे क्या लेंगे' विजय ने तपाक से कहा था 'चिन्टियो का मुर्रब्बा'.
पूरणसिंघ बौखला गया था.
बात उसकी समझ मे नही आई थी इसलिए मुँह से ये लफ़्ज निकल पड़े," छींतियो का मुर्राबा कैसे बन सकता है मालिक "
विजय ने कहा," हम बना सकते है चिटियो का मुर्रब्बा "
पूरणसिंघ ने कहा था," ऐसा भला आप कैसे कर सकते है "
बस.
इसी सवाल के जवाब मे उसे विजय की उपरोक्त स्पीच सुनने को मिली थी, कभी समाप्त ना होने वाली स्पीच.
पूरणसिंघ को सूझा नही कि वो जवाब मे क्या कहे इसलिए चुपचाप विजय की तरफ देखता रह गया था लेकिन उसे विजय ही कौन कहे जो सामने वाले को चुप ही रहने दे, बोला," गूंगी का गुड क्यू बना रखा है पूरे शेर, चौन्च खोल, कुछ तो बोल "
" क्या बोलू मालिक, मेरी तो कुछ समझ मे ही नही आ रहा "
" सम्धन नही आ रही " विजय चिहुका," अबे घोनचू, सम्धन तब आती है जब आदमी का बच्चा अपने बेटे या बेटी की शादी करता है, औलाद की मदर इन लॉ को सम्धन कहा जाता है और तू तो हमारी तरह चिर कुँवारा है, आज तक तूने चूहे का बच्चा भी पैदा नही किया तो फिर सम्धन कैसे आ जाएगी "
पूरणसिंघ अपने बाल नोचने पर आमादा हो गया, बोला," मैं सम्धन की नही, समझ की बात कर रहा हू मालिक "
विजय ने कुछ कहने के लिए मुँह खोला ही था कि कमरे के बाहर से आवाज़ आई," कहाँ हो गुरु "
" अबे " विजय इस तरह हड़बड़ाया जैसे बहुत बड़ी आफ़त आ गयी हो," बेमौसम के मेंढक की तरह दिलजला कहाँ से टपक पड़ा "
पूरणसिंघ को तो जैसे विजय के सामने से हटने के लिए मुँह माँगी मुराद मिल गयी थी, वो ये कहता हुआ दरवाजे की तरफ लपका," मैं देखता हू मालिक "
मगर, दरवाजे तक पहुच नही सका पूरणसिंघ.
विजय ने बहुत ही तेज़ी से अपने जिस्म को एक जोरदार झटका दिया था, उसके परिणामस्वरूप एक लंबे झोट के साथ हवा मे तैरता उसका उल्टा जिस्म दरवाजे के नज़दीक पहुच चुके पूरणसिंघ के ठीक उपर पहुचा और फिर उसने नीचे की तरफ लटक रहे अपने दोनो हाथ बढ़ाकर ठीक इस तरह पूरणसिंघ की गर्दन अपनी भुजाओ मे लपेट ली जैसे बाज हवा मे परवाज़ करते हुवे कबूतर को दबोच लेता है.
अचानक खुद पर टूट पड़ी आफ़त के कारण पूरणसिंघ के हलक से चीख निकल गयी थी मगर चीखने और छटपटाने से ज़्यादा वह कुछ भी तो नही कर सका.
उसे दबोचे विजय ठीक उस तरह लंबे-लंबे झोट ले रहा था जैसे सावन के महीने मे महिलाए पेड़ पर झूले डालकर झूलती है.
फ़र्क था तो केवल इतना कि वे रस्सी या पटरी पर सीधी बैठी होती है जबकि विजय अपने विचित्र झूले पर उल्टा लटका हुआ था और पूरणसिंघ को दबोचे हुवे था.
दरवाजे पर पहुच चुके विकास ने जब उस दृश्य को देखा तो हैरान रह गया, कम से कम पहली नज़र मे उसकी समझ मे बिल्कुल नही आया था कि विजय गुरु आख़िर कर क्या रहे है.
विकास के गठे हुवे जिस्म पर इस वक़्त पीले रंग की ऐसी पॅंट थी जो नीचे से उसकी टगो से चिपकी हुई थी और उपर यानी की जाँघो के नज़दीक से थोड़ी फूली हुई थी.
काले रंग की हाफ-बाजू की टी-शर्ट मे उसके मसल्स सॉफ नज़र आ रहे थे, उसका पेट अंदर था, सीना बाहर.
पैरो मे सफेद रंग के रीबॉक के शूस पहने वह कमरे के दरवाजे पर खड़ा उस विचित्र दृश्य को देख रहा था.
माहौल मे पूरणसिंघ की चीखे गूँज रही थी मगर विजय रुकने को तैयार नही था, रुकना तो दूर वह अपने झोटो को और तेज किए जा रहा था, इतना तेज कि अब वह कमरे की दीवारो से बार-बार लगभग टच सा हो रहा था.
विकास की समझ मे शुरू मे विजय की इस हरकत का मतलब भले ही नही आया हो मगर अब.. दिमाग़ के सक्रिय होते ही समझ गया कि विजय गुरु की जो हरकत एक नज़र मे मूर्खतापूर्ण नज़र आ रही थी, उसके पीछे गहरा राज़ है.
दो मिनिट इंतजार करते रहने के बाद विकास बोला," बस गुरु, बहुत हो गया, अब छ्चोड़ दो पूरणसिंघ अंकल को "
" अजी ऐसे-कैसे छोड़ दे " विजय ने उसे उसी तरह झुलाते हुवे कहा," तेरी आवाज़ सुनते ही जैसे इस साले के हाथ बटेर लग गयी, हमारे हुकुम के बगैर हमे अकेला छोड़कर जा रहा था, हम ने जमूरे को पकड़ लिया, अभी तो सुर से सुर मिलाकर हरियाली तीज के गीत गाने है "
" जो गुनाह इन्होने किया था उसकी सज़ा पूरी हो चुकी है गुरु, प्लीज़ छोड़ दो बेचारे को "
" तुम रिक्वेस्ट कर रहे हो तो ऐसा ही कर देते है, पूरे शेर को लपकने के लिए तैयार हो जाओ "
" लपकने के लिए "
" लपकोगे नही तो इस पोज़िशन मे छोड़ने पर राम नाम सत्य नही हो जाएगा पूरे शेर का "
" बात तो ठीक... "
विकास का वाक्य पूरा नही हो पाया था क्योंकि उससे पहले ही विजय ने 'लो' कहने के साथ ही पूरणसिंघ को छोड़ दिया था.
मुँह से निकलने वाली बहुत ही लंबी चीख के साथ पूरणसिंघ का जिस्म हवा मे लहराकार फर्श की तरफ बढ़ा और इसमे शक नही कि अगर विकास ने हैरतअंगेज़ फुर्ती के साथ उसे लपक ना लिया होता तो उसे काफ़ी चोटे आती.
विकास उस वक़्त भी पूरणसिंघ को अपनी बाहो मे भरे गिरने से बचाने की कोशिश कर रहा था जब झोट लेते हुवे विजय ने तत्काल ताली बजाई और कहा," वेल डन दिलजले, वेल डन, तुम उतनी फुर्ती दिखाने के इम्तिहान मे पास हो गये हो जितनी हम चाहते थे "
" आपका भी जवाब नही गुरु " विकास ने पूरणसिंघ को सोफे पर बिठाते हुवे कहा," मेरा इम्तिहान लेने के चक्कर मे अगर पूरणसिंघ अंकल को चोट आ जाती तो "
" नही आ सकती थी दिलजले क्योंकि हमे अपनी बछिया के दाँत पता है " इन शब्दो के साथ ही उसने झोट छोटे कर लिए थे.
सोफे पर बैठे हुवे पूरणसिंघ को अब भी ऐसा लग रहा था जैसे विजय के फंदे मे फँसा हवा मे झूल रहा हो.
चक्कर से आ रहे थे उसे इसलिए सोफे पर लेट गया.
उधर, विजय का झूला रुक चुका था.
अपने शरीर को अजीब ढंग से उसने उपर की तरफ उछाला और दोनो जंजीरो को हाथो से पकड़ लिया, अपने पैर गोल कुंडे से निकाले और सीधा होकर फर्श पर कूद गया.
विकास आगे बढ़ा, श्रद्धापूर्वक उसके चरण स्पर्श करते हुवे बोला," प्रणाम गुरुदेव "
" वो तो ठीक है प्यारे दिलजले, मगर आज अकेले कैसे "
सीधे खड़े होते हुवे विकास ने पूछा," क्या मतलब "
" बंदर कहाँ गया "
जवाब विकास ने नही बल्कि दरवाजे से उभरने वाली बंदर की ची-ची ने दिया था, विजय के साथ ही विकास ने भी उधर देखा.
वाहा धनुष्टानकार मौजूद था, मौजूद ही नही था, विजय पर घुड़क भी रहा था.
चेहरे पर गुस्से के चिन्ह थे.
उसके गुस्से की वजह जानते ही विजय सकपका गया, तुरंत बोला," अरे तौबा, मेरे बाप की तौबा मोंटो प्यारे, कसम काले चिड़ीमार की, मैंने तुम्हे बंदर नही कहा "
अजीब नमूना था वह जिसे धनुषटंकार कहा जाता था.
जिस्म से बंदर, मन-मश्तिश्क से इंसान.
हमेशा की तरह इस वक़्त भी वह शानदार सूट मे था, पैरो मे नन्हे-नन्हे किंतु चमकदार जूते थे, अपने हाथो से उसने कान पकड़े, फुर्ती से उठक-बैठक लगाई और फिर विजय को भी वैसा ही करने का इशारा किया.
विजय जानता था कि धनुषटंकार की तरफ से उसे ये सज़ा बंदर कहने की है. गनीमत थी कि वह सज़ा दे रहा था वरना होता ये था कि खुद को बंदर कहने वाले के गाल पर धनुषटंकार करारा चाँटा रसीद कर देता था.
" लो मोंटो प्यारे, हमे माफ़ करो, अपना दिल सॉफ करो " कहने के साथ ही विजय ने कान पकड़कर उठक-बैठक लगानी शुरू कर दी और उसकी इस हरकत पर विकास के गुलाब की पंखुड़ियो से होंठ शरारती अंदाज मे फैल गये.
दरवाजे पर खड़ा धनुष टंकार खुश हो गया.
ख़ुसी का इज़हार करने का उसके पास एक ही तरीका था और वही उसने किया, यानी कोट की जेब से पव्वा निकालकर ढक्कन खोला, दो घूँट हलक मे उंड़ेली और ढक्कन बंद करके पववा जेब मे रखने के बाद मटकने लगा.
विजय अभी मुश्किल से तीन या चार उठक-बैठक ही लगा पाया था कि धनुष टंकार का जिस्म हवा मे लहराकर विजय की गर्दन पर आ गिरा.
" अबे..अबे...क्या करते हो गान्डीव प्यारे " विजय कहता ही रह गया जबकि उसके सीने पर सवार धनुष टंकार गले मे बाँहे डाले उसके चेहरे पर चुंबनो की झड़ी लगाता चला गया.
ये था धनुषटंकार के प्यार करने का तरीका.
चुंबनो से पेट भरने के बाद धनुष टंकार वहाँ से कूदकर उस सोफे की पुष्ट पर जा बैठा जिस पर लेटा पूरणसिंघ अब स्तिथि बेहतर होने के कारण बैठा हुआ था.
और जिस समय मोंटो जेब से एक सिगार निकालकर सुलगा रहा था उस समय विकास ने विजय से पूछा," तो ये प्रॅक्टीस हो रही थी गुरु कि आप कितनी देर तक उल्टे लटक सकते है "
" सोलाह आने ग़लत " विजय ने तपाक से कहा," सावन आने वाला है ना, हम तो ये देख रहे थे कि अपनी कल्लो भाटीयारिं के साथ किस तरह पींगे बढ़ानी है "
" आप मुझे बेवकूफ़ नही बना सकते "
" फिर किसे बना सकते है " विजय ने शुतुरमुर्ग की तरह गर्दन लंबी करके महामूर्ख की तरह पलके झपकाई.
" सारी दुनिया को, मैं दावे के साथ कह सकता हू कि आप ना केवल उल्टे लटकने की प्रॅक्टीस कर रहे थे बल्कि ये भी आजमा रहे थे कि इस पोज़िशन मे कितना वेट उठाकर कितने लंबे झोट कितनी देर तक लगा सकते है, इसलिए आपने पूरणसिंघ अंकल को उठाया, मैं दावे के साथ कह सकता हू कि आपकी मूर्खतापूर्ण हर्कतो के पीछे अक्सर ऐसी ही सार्थक बाते छुपी होती है "
" कह सकते हो तो कहो, रोका किस बागडबिल्ले ने है, मगर ये तो बताओ थर्मस कहाँ है "
" थर्मस " वाकाई विकास का दिमाग़ चकरा गया.
" सुबह-सुबह आए हो, गुरु के लिए चाय-वाय तो लाए ही होगे "
विकास ठहाका लगाकर हंस पड़ा," आपका भी जवाब नही गुरु, घर आए मेहमान को चाय पिलाने से तो गये, उल्टे उसी से पूच रहे हो कि थर्मस कहाँ है और... "
" हां-हां, भौंको जितना भौंकने की हसरत है, भौंको "
" अब सुबह नही है, दोपहर के 11 बज रहे है "
" घड़ी पर तो बजते ही रहते है लेकिन तुम्हारे चेहरे पर 12 क्यो बजे है दिलजले, सुबह-सुबह तूलाराशि ने ठोक दिया क्या "
इस बार विकास थोड़ा सीरीयस नज़र आया," मैं आपसे उस मर्डर मिस्टरी पर चर्चा करने आया हू गुरु जिसने राजनगर को ही नही, सारे मुल्क को हिलाकर रख दिया है, जिसे इस देश की सबसे बड़ी मर्डर मिस्टरी कहा जा रहा है "
" कौन सी पेस्ट्री की बात कर रहे हो यार, हम ने तो आज तक ऐसी कोई पेस्ट्री नही खाई जिसे देश की सबसे बड़ी पेस्ट्री कहा जाए "
" मैं पेस्ट्री की नही, मिस्टरी की बात कर रहा हू गुरु "
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