RE: Gandi Kahani सबसे बड़ी मर्डर मिस्ट्री
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" मिस्त्री की, आमा, मिस्त्री की भला हमे क्या ज़रूरत है, ये मकान जिसकी छत के नीचे इस वक़्त तुम खड़े हो, 1857 मे बनवाया था, ठीक तब जब अंग्रेज़ो से आज़ादी के लिए पहली बार पंगा लिया गया था, तब से अब तक ज्यो का त्यो खड़ा है, मरम्मत की भी ज़रूरत नही है, फिर मिस्त्री की ज़रूरत क्यो पड़ेगी "
" क्या कहता है आपका दिमाग़ " विकास ने विजय की बातो पर ज़रा भी ध्यान दिए बगैर अपना सवाल किया," क्या अपने बेटे और नौकरानी की हत्या सरकार दंपति ने ही की है "
" हे लाल लंगोटे वाले, हमारे दिलजले को ये क्या हो गया है " हाथ जोड़कर विजय ने कमरे के लॅंटार की तरफ देखा और कहता चला गया," एक ही साँस मे कभी पेस्ट्री की बात कर रहा है, कभी मिस्त्री की और ना जाने कभी किसकी हत्या और कौन सी सरकार के दंपति की, क्या इसे मेंटल डॉक्टर की दरकार है "
" प्लीज़ गुरु, मेरे सवाल का जवाब दो "
" देते है, देना पड़ेगा, नही देंगे तो तुम एक ही घूँसे मे हमारी नाक का मालूदा बना सकते हो क्योंकि हम सॉफ-सॉफ महसूस कर रहे है कि तुम्हारा दिमाग़ अपनी जगह से सरक चुका है और सरके हुवे दिमाग़ का मानव जो कर जाए कम है, पूछो.... बल्कि धोऊ, धोऊ, क्या धोना है "
" मैंने ये पूछा कि क्या आपके ख़याल से कान्हा और मीना की हत्या राजन सरकार और उसकी पत्नी इंदु सरकार ने की है "
" आमा यार, क्यो हलकान कर रहे हो हमे, हमे क्या पता कि कौन कान्हा, कौन मीना, कौन राजन और कौन इंदु सरकार "
" मज़ाक मत करो गुरु "
" हम तुम्हे मज़ाक करते नज़र आ रहे है " उसने अपने उस जिस्म की तरफ इशारा करते हुवे कहा जिस पर अभी सिर्फ़ एक लाल लंगोटे जैसा अंडरवेर था," ये कपड़े पहनकर हम तुमसे मज़ाक करेंगे, तुम हमारी साली लगती हो या भाभी "
" मैं नही मान सकता कि जो नाम आज इस देश के बच्चे-बच्चे की ज़ुबान पर है, वे आपने ना सुना हो "
" नही मान सकते तो ना मानो, हमारे ठेंगे से, हम ने ये नाम नही सुने तो नही सुने, कोई ज़बरदस्ती है कि हम सबके नाम सुने "
" मैं कान्हा मर्डर मिस्टरी की बात कर रहा हू गुरु "
" तुम तो यार फिर पेस्ट्री की बात करने लगे, तुम्हे तो किसी मेंटल डॉक्टर को दिखाना ही पड़ेगा, आओ... हमारे साथ आओ " कहते हुए विजय ने विकास का बाजू पकड़ा और उसे दरवाजे की तरफ खींचता सा बोला," एक मेंटल डॉक्टर अपना यादि है, घबराओ मत, वह तुम्हे बिल्कुल दुरुस्त कर देगा, इतना दुरुस्त कि सारे जीवन के लिए पेस्ट्री खाना भूल जाओगे "
अभी वे दरवाजे के नज़दीक ही पहुचे थे और विकास ने कुछ कहने के लिए मुँह खोला ही था कि बाहर से कदमो की ऐसी आवाज़ सुनाई दी जो हर कदम के साथ दरवाजे के करीब आ रही थी.
और विजय इस तरह उच्छल पड़ा जैसे अचानक बिच्छू ने डॅंक मार दिया हो, मुँह से चीख सी निकली थी," बापू जान, ये तो बापू जान है दिलजले " विकास को छोड़ कर उसने अपने दोनो हाथो से अपनी छाती पर इस तरह कैंची बनाई जैसे कोई निर्वस्त्र महिला अपने जिस्म को धाँकने की कोशिश कर रही हो, साथ ही बौखलाकर चारो तरफ देखता हुआ बोला," कहा छुपु, कहा छुप्कर अपनी अस्मत बचाऊ "
कदमो की आवाज़ निरंतर दरवाजे की तरफ आ रही थी.
उनमे से एक आवाज़ पोलीस के भारी बूट्स की थी.
विजय शायद उसे ही सुनकर समझ गया था कि आने वाला ठाकुर निर्भय सिंग है.
विकास हकबकाया सा खड़ा था जबकि विजय बुदबुदा रहा था," जल तू जलाल तू.. आई बाला को टाल तू "
पर बला टलने वाली कहाँ थी.
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ठाकुर निर्भय सिंग दरवाजे पर नज़र आए.
मगर विजय उससे पहले ही जंप मारकर खुद को सोफे की पुष्ट के पीछे छुपा चुका था.
विकास चौंका था.
ये लिखा जाए कि चौंका भी बुरी तरह था तो ग़लत ना होगा क्योंकि उसने देखा था कि ठाकुर साहब अकेले नही थे.
उनके साथ भारी-भरकम चेहरे वाला एक और आदमी भी था.
उस आदमी को विकास ने देखते ही पहचान लिया था.
पहचानता भी क्यू नही.
उस आदमी को तो आज देश का बच्चा-बच्चा पहचानता था.
बार-बार टीवी पर जो दिखाया जा रहा था उसे.
करीब-करीब रोज अख़बारो मे उसकी फोटो छप रही थी.
वह राजन था, राजन सरकार.
वही, जिसके बारे मे विकास विजय से बाते करने आया था, वही, जिस पर अपने ही बेटे और नौकरानी की हत्या का आरोप लगा था.
राजन सरकार.
यहाँ.
ठाकुर साहब के साथ.
बात विकास के भेजे मे नही घुसी थी.
बुरी तरह चौंकने का कारण भी यही था.
" तुम लोग यहाँ " ठाकुर साहब ने विकास और मोंटो की तरफ देखते हुवे सामान्य स्वर मे पूछा.
लड़का अपनी लंबी-लंबी टाँगो के बल पर दो ही कदमो मे ठाकुर साहब के करीब पहुचा और झुक कर चरण स्पर्श किए.
उधर, ठाकुर साहब को देखते ही धनुष्टानकार ने अपनी उंगलियो के बीच सुलगते हुवे सिगार को सोफे की पुष्ट के पीछे डाला और एक ही जंप मे ठाकुर साहब के कदमो मे आ गिरा.
उसे देखकर उनके साथ मौजूद शख्स यानी कि राजन सरकार के मुँह से निकला," ये शायद धनुष्टानकार है "
" हाँ " ठाकुर साहब ने संक्षिप्त सा जवाब दिया.
" मैंने इसके बारे मे पढ़ा है "
" बताया नही तुमने " ठाकुर साहब ने विकास से पूछा," तुम लोग यहाँ क्या कर रहे हो "
विकास ने कहा," विजय अंकल से मिलने आए थे "
" कहाँ है वो"
विकास चुप, लेकिन मौका लगते ही पूरणसिंघ बोल पड़ा," यही है साहब, मालिक इस सोफे के पीछे है "
एक बार तो ठाकुर साहब के मुँह से निकल गया," सोफे के पीछे, क्यो " लेकिन फिर तुरंत ही उन्हे ये ख़याल आ गया कि ज़रूर विजय कोई उट-पटांग हरकत करेगा और कम से कम राजन की मौजूदगी मे वह ऐसा कुछ ना करे इसलिए बहुत ही सामान्य और प्यार भरे लहजे मे उसे आगाह सा किया," हम अपने एक बचपन के दोस्त को तुमसे मिलाने लाए है विजय "
" पर मैं नही मिल सकता बापूजान " सोफे के पीछे से विजय की ऐसी आवाज़ आई जैसे अभी रो देगा.
ठाकुर साहब को गुस्सा आया मगर उसे दबाकर अपने लहजे को प्यार की चाशनी मे डुबोते हुवे बोले," क्यो नही मिल सकते "
" क्योंकि हमारी इज़्ज़त लूट जाएगी "
" इज़्ज़त लूट जाएगी " ठाकुर साहब के दिमाग़ मे गुस्से के कीटाणु कुलबुलाए लेकिन फिर बड़ी सख्ती से उन्हे कुचलते हुवे बड़े प्यार से बोले," हम समझे नही बेटे कि तुम क्या कह रहे हो "
" समझो बापूजान, हमारी मजबूरी को समझने की कोशिश करो " सोफे के पीछे से आवाज़ आई," तुम हमारे इस ताजमहल के किसी और कमरे मे चले जाओ, हम वही पधारते है "
" क्यो, अभी और इसी कमरे मे क्यो नही मिल सकते "
" समझाओ ना दिलजले, बापूजान को तुम्ही समझा सकते हो "
ठाकुर साहब ने कुछ कहने के लिए मुँह खोला ही था कि विकास ने कहा," आइए नानु, हम किसी और कमरे मे चलते है, अंकल ठीक कह रहे है, वो कुछ देर मे वही पहुच जाएँगे "
" पर ऐसा क्यू " ठाकुर साहब ने कहा," इसी कमरे मे मिल लेगा तो क्या फ़र्क पड़ जाएगा, और फिर, ये क्या बात हुई कि हमारे आते ही वह सोफे के पीछे जा छुपा, घर आए मेहमान का स्वागत करने का ये कौनसा तरीका है "
इस बार विकास से पहले ही पूरणसिंघ बोल पड़ा," साहब, हम बताए कि मालिक आपके सामने क्यो नही आ रहे है "
सोफे के पीछे से आवाज़ आई," हम बाहर निकले तो सबसे पहले नाश्ते मे तेरा ही मुरब्बा बनाकर चबाएँगे पूरे शेर "
" ज़रूर चबा जाना मालिक लेकिन मेरी गर्दन पकड़कर आपने जो झोट लगाए थे, उनका मैं आपको पूरा मज़ा चखाउन्गा "
" माफी माँगते है यार, हमारी इज़्ज़त से खिलवाड़ ना कर "
ठाकुर साहब थोड़े से झल्ला गये," ये सब क्या हो रहा है "
" आप खुद ही सोफे के पीछे झाँक कर देख लीजिए साहब " पूरणसिंघ ने तपाक से कहा," सबकुछ समझ जाएँगे "
ठाकुर साहब को इस बात पर गुस्सा तो बहुत आ रहा था कि उन्हे आया जानकार विजय सोफे के पीछे जा छुपा था और अब बार-बार कहने के बावजूद सामने नही आ रहा था मगर वे बात को और ज़्यादा नही बढ़ाना चाहते थे इसलिए खुद सोफे की तरफ बढ़ते हुवे बोले," तुमने शायद सुना नही विजय, हम अकेले नही आए है, हमारे साथ हमारे बचपन का दोस्त भी है "
ये बात विजय को बताकर वे एक प्रकार से आगाह कर रहे थे कि वह कोई बदतमीज़ी ना करे.
भला वे क्या जानते थे कि इस वक़्त तो वाकयि सामने ना आना विजय की मजबूरी थी.
सोफे के करीब पहूचकर उन्होने उसके पीछे झाँका.
जिस हालत मे विजय था, उसे देखकर वे चौंक पड़े.
और.... जब उन्होने विजय को देख ही लिया तो विजय भी एक झटके से खड़ा हो गया.
ना सिर्फ़ खड़ा हो गया बल्कि एक टाँग हवा मे घूमाकर सोफे की एक सीट पर रखी और जंप सी लगाकर सोफे के सामने आ गया.
उसे उस हालत मे देखकर ठाकुर साहब सकपका कर रह गये थे जबकि राजन सरकार हक्का-बक्का था.
विकास के होंठो पर मुस्कान थी.
पूरणसिंघ मुँह पर हाथ रखकर हंस रहा था.
धनुष्टानकार तो मानो लोट-पोट ही हुआ जा रहा था.
उस वक़्त विजय के जिस्म पर कोई लोच नही थी.
पूरा जिस्म लाठी की तरह तना हुआ था और फिर वो घुटनो को मोडे बगैर लाठी की तरह चलता हुआ ठाकुर साहब के करीब पहुचा तथा उनके पैरो की तरफ झुकते हुवे बोला," पानी लागू बापूजान "
" ये...ये किस हालत मे हो तुम " बौखलाए हुवे ठाकुर साहब के मुँह से बस यही शब्द निकल सके.
" क्यो, हमारी हालत मे कौन सा नुक्स है " वह सीधा होता हुआ बोला," उसी हालत मे है जिसमे आदमी का बच्चा पैदा होता है और उस हालत मे रहना कौन सा जुर्म है, ओह...सॉरी " उसने अपने अंडरवेर की तरफ देखते हुए कहा," ये कच्छा हमारे जिस्म पर एक्सट्रा है, इसे भी उतार देते है " कहने के साथ विजय के हाथ अपने अंडरवेर की तरफ बढ़े ही थे कि ठाकुर साहब चीख पड़े," विजय "
" जी पिताजी " वह तुरंत सावधान की मुद्रा मे खड़ा हो गया.
" ये क्या बदतमीज़ी है "
" जब कमीज़ ही नही पहन रखी है तो हम बद्कमीजि कैसे कर सकते है बापूजान, बद्कमीजि आपने शुरू की, हम तो इज़्ज़त बचाने की खातिर सोफे के पीछे जा छुपे थे, हमारे लाख अनुनय-विनय के बावजूद आप नही माने और वही पहुच गये "
" ओके, ओके " एक बार फिर ठाकुर साहब ने बात को ना बढ़ाने की मंशा से, जल्दी से कहा," हमे नही मालूम था कि हमारे आने से पहले तुम कसरत कर रहे थे, तुमसे कुछ बाते करनी है, हम यही बैठते है, जल्दी से चेंज करके आ जाओ "
" कौन सा पहनकर आउ "
" मतलब "
" अगर आपको हमारा ये लाल वाला लंगोट पसंद नही है तो कोई बात नही, हमारे पास हर कलर का लंगोट है, हरा, नीला, पीला, नीला, सफेद और बैंगनी भी, जिस भी कलर का कहे, पहनकर हाजिर होते है, पर महरूण कलर के लंगोट की चाय्स मत रख देना क्योंकि काफ़ी ढूँढने पर भी बाजार मे वो नही मिला "
राजन सरकार साथ ना होता तो अब तक ठाकुर साहब विजय के चेहरे पर कम से कम एक घूँसा तो जड़ ही चुके होते, उसकी मौजूदगी के कारण खिसियानी सी हँसी हंसते हुवे बोले," मज़ाक मत करो विजय और जल्दी से ढंग के कपड़े पहनकर आओ "
" ढंग के कपड़े " विजय चिहुन्का," आपको ये ढंग के कपड़े नही लग रहे है जो इस वक़्त हम ने पहन रखे है "
" विजय " ठाकुर साहब का लहज़ा थोड़ा सख़्त हुआ," हम ने जो कहा है, वो करो "
" नही करता " विजय भी अकड़कर खड़ा हो गया.
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