Gandi Kahani सबसे बड़ी मर्डर मिस्ट्री
11-23-2020, 01:55 PM,
#4
RE: Gandi Kahani सबसे बड़ी मर्डर मिस्ट्री


4

उन्होने आँखे तरेरि," तुम नही मानोगे "
" एक से लाख नही मानूँगा क्योंकि..... "
" क्योंकि "
" हम ने तो बचने की बहुत कोशिश की लेकिन आप हमारी इज़्ज़त का जुलूस निकालकर ही माने और इज़्ज़त का जुलूस जब निकल ही गया है तो अब काहे की लाज-शरम "

कहने के साथ ही वो पसर कर सोफे पर बैठ गया और आगे बोला," लीजिए, हम विराजमान हो गये, आप भी पधारिये और अपने दोस्त को भी पधारवाइए, नही पधारणा है तो खड़े-खड़े फरमाइए, कैसे आना हुआ "
" मज़ाक मत करो विजय " अब ठाकुर साहब को अपने दिमाग़ पर काबू रखना भारी पड़ रहा था," ढंग के कपड़े पहनकर आओ "
एकाएक विजय राजन सरकार से मुखातिब हुआ," आप हमारे बापूजान के परम मित्र है "
राजन सरकार ने स्वीकृति मे गर्दन हिलाई.
" आप ही बताइए, क्या आपको हमारे इस कच्छे मे कोई कमी नज़र आती है जो हम ने पहन रखा है, कोई छेद-वेद है इसमे "
" व...विजय " ठाकुर साहब के हलक से दहाड़ निकली.
विजय ने बड़े आराम से कहा," हम आपसे नही आपके मित्र से बात कर रहे है " और पुनः राजन सरकार से बोला," आप बताइए, क्या कही से कुछ चमक रहा है "
राजन सरकार की हँसी छूट गयी.
मुँह से निकला," नही "
" हमारे पूछने पर तो बापूजान इस तरह भड़क रहे है जैसे कि सांड़ को लाल कपड़ा दिखाया जा रहा हो, आप ही पूछिए कि हमारे इस कपड़े मे इन्हे क्या बुराई नज़र आ रही है, आप इनके दोस्त है, शायद ये आप पर ना भड़के "
अब अगर ये लिखा जाए तो बिल्कुल ग़लत ना होगा कि ठाकुर साहब के संयम का बाँध टूट गया.
चेहरा सुर्ख हो गया था उनका.
जिस्म गुस्से की ज़्यादती के कारण काँपने लगा था, हलक से वह दहाड़ निकल पड़ी जिसे बहुत मुश्किल से दबाए हुवे थे," तुम कपड़े चेंज करके आते होया नही "
विजय ने पुनः बहुत आराम से और शांत स्वर मे कहा," हम आपसे नही आपके दोस्त से बात कर रहे है "
उसके इस अंदाज ने तो मानो ठाकुर साहब के गुस्से की आग मे घी ही डाल दिया, भन्नाये हुवे से वो विजय की तरफ लपके ही थे कि राजन सरकार ने रोकते हुवे कहा," नो निर्भय, उत्तेजित होने की ज़रूरत नही है, मैंने विजय के मजाकिया स्वाभाव के बारे मे काफ़ी पढ़ा है, समझ सकता हू कि...... "
" मज़ाक, ये मज़ाक है " ठाकुर साहब उखड़ चुके थे," इसे मज़ाक नही, हद दर्जे की बदतमीज़ी कहते है, हिमाकत कहते है, हमे छोड़ दो राजन, आज

हम इसे बता ही दे कि अपने पिता से किस तरह से बात की जाती है "
" छोड़ दो राजन अंकल " विजय सोफे से उच्छला और इस तरह डटकर खड़ा हो गया जैसे अखाड़े मे किसी पहलवान का मुकाबला करने के लिए तैयार हो," आज छोड़ ही दो बापूजान को, हो जाए दो-दो हाथ, मिल्क का मिल्क हो जाए और वॉटर का वॉटर "
" उफ्फ " ठाकुर साहब झल्ला उठे," ऐसा कपूत भगवान कभी किसी को ना दे, राजन, मैंने तुझसे पहले ही कहा था कि ये तेरी कोई मदद नही कर सकता मगर तू ही नही माना, कहने लगा कि तेरी मदद इसके अलावा कोई और कर ही नही सकता, क्या अब भी तू अपने उसी विचार पर कायम है "
" हां " राजन बोला," मुझे पूरा विश्वास है कि मेरे केस मे केवल ये और सिर्फ़ ये ही कुछ कर सकता है "
" तू पागल हो गया है "
" निर्भय प्लीज़, गुस्से को काबू मे करो "
ठाकुर साहब विजय को आग्नेय नेत्रो से घूरते हुवे गुर्राए," जब तक ये हमारी आँखो के सामने है तब तक ऐसा हो ही नही सकता कि हम हमारे गुस्से पर काबू रख पाए, बडो से बात करने की तमीज़ भी नही सीखी है इसने, अब हम यहाँ एक मिनिट भी नही ठहर सकते, तुझे चलना है तो चल नही चलना है तो मर यही "
राजन सरकार ने तुरंत कुछ नही कहा, हालात को समझने की कोशिश की और ये बात उसकी समझ मे आ गयी कि जो मौहोल बन रहा है उसमे कम से कम ठाकुर साहब की मौजूदगी मे कोई सार्थक बात नही हो सकेगी, अतः शांत और संयत स्वर मे बोला," ठीक है, तू जा, मैं विजय से बात करके आता हू "
ठाकुर साहब की सुर्ख आँखो मे अस्चर्य के भाव उभर आए जो ये बता रहे थे कि उन्हे राजन सरकार से ऐसे फ़ैसले की उम्मीद बिल्कुल भी नही थी जबकि राजन के होंठो पर मंद-मंद मुस्कान थी.
ठाकुर साहब के मुँह से निकला," एकाध बार पहले भी ऐसा हो चुका है, मेरे किसी दोस्त को इसकी मदद की दरकार हुई और मेरे मना करने के बावजूद भी मुझे सिफारिश के लिए ज़बरदस्ती खींचकर इसके पास ले आया, हमारी समझ मे आजतक नही आया कि ऐसा क्यो होता है, ये नालायक भला किसी की क्या मदद कर सकता है, और तेरा केस, तेरा केस तो ऐसा है राजन कि दुनिया के इस सबसे बड़े गधे की तो बिसात ही क्या है, खुद भगवान भी धरती पर उतर आए तो भी
तेरी कोई मदद नही कर सकते "

" बात तो तेरी ठीक है, तेरा ही क्यो, सबका यही कहना है कि हालात के जिस चक्रव्यूह मे मैं फँस गया हू उसमे से मुझे भगवान भी नही निकाल सकता, फिर भी जाने क्यो मुझे पूरा विश्वास है कि उस चक्रव्यूह से मुझे ये तेरा नलायक बेटा ही निकाल सकता है "
" तो मर यही, हम जा रहे है " भन्नाये हुवे ठाकुर साहब ने कहा और पलटकर तेज कदमो के साथ दरवाजे की तरफ बढ़ गये. फिर अचानक जाने क्या सोचकर ठितके.
पलते और गुस्से भरी आँखो से विजय को घूरते हुवे बोले," तू सुन ही चुका है कि ये मूर्ख हमारा बचपन का दोस्त है, पता नही क्या सोचकर तेरी मदद हासिल करने आया है, हमारे काफ़ी मना करने के बावजूद नही माना और ज़िद करके हमे यहाँ ले आया, अगर तुझे लगे कि ये एक पर्सेंट भी सच बोल रहा है तो क़ानून के दायरे मे रहकर, एक बार फिर सुन, क़ानून के दायरे मे रहकर जो मदद संभव हो, वो करना "
इतना कहने के बाद वे बाहर निकल गये.
विजय धम्म से सोफे पर जा गिरा.
अंदाज ऐसा था जैसे कि बहुत बड़ी मुसीबत से छुटकारा पाया हो.

---------------------------------

ठाकुर निर्भय सिंग के जाने के बाद कम से कम दो मिनिट तक कमरे मे पूरी तरह से सन्नाटा छाया रहा.
किसी के मुँह से बोल ना फुट सका.

विकास जानता था कि विजय गुरु ठाकुर साहब के साथ वैसी वाहियात बाते और हरकते क्यो करते है.
उस वजह को जानने के कारण दिल की गहराईयो मे जब विजय के कॅरक्टर के बारे मे सोचता था तो अंदर ही अंदर उसकी महानता को महसूस करके रोमांचित हो उठता था मगर फिर भी उसे लगता था की कभी-कभी गुरु कुछ ज़्यादा ही कर जाते है.

धनुष्टानकार और पूरणसिंघ की समझ मे ख़ासतौर पर ठाकुर साहब के प्रति विजय का व्यवहार कभी नही आया था और बेचारे राजन सरकार को तो पता ही क्या था. वह तो बस इतना ही जानता था कि उसके दोस्त ठाकुर निर्भय सिंग की अपने बेटे से नही बनती है, इसके बावजूद जब उसे अपने चारो तरफ फैले अंधेरे के बीच विजय रोशनी की किरण के रूप मे नज़र आया तो वो ठाकुर साहब के पास पहुच गया क्योंकि डाइरेक्ट विजय से वह कभी नही मिला था.

भले ही अपने पिता के प्रति विजय का व्यवहार उसे भी पसंद नही आया था मगर मजबूर इंसान आख़िर मजबूर ही होता है.
उसका स्वार्थ क्योंकि विजय से ही साधने वाला था इसलिए ठाकुर साहब के जाने के बाद भी वो वही डाटा रहा.
अपनी बात कहने के लिए जब उसने विजय की तरफ देखा तो दंग रह गया क्योंकि सोफे पर पड़ा विजय बकायदा खर्राटे ले रहा था.
उसने विकास, धनुष्टानकार और पूरणसिंघ की तरफ देखा.
चेहरे पर ऐसे भाव थे जैसे इस सवाल का जवाब चाहता हो कि क्या कोई इतनी टेन्षन के बाद इतनी जल्दी इतनी निसचिंत-ता की नींद सो सकता है.
जब कही से भी उत्तर मिलता नज़र ना आया तो सोफे की तरफ बढ़ता वो सामान्य स्वर मे बोला," मिस्टर विजय "
विजय ने फाटाक से आँखे खोल दी और हकबकाए अंदाज मे चारो तरफ देखता हुआ बोला," हमारी चौखट का घंटा किसने पीटा "
" मैंने " राजन सरकार ने कहा.
विजय एक झटके से उठ बैठा और अपने दाए पैर के घुटने को मॉड्कर बाए पैर की जाँघ पर रखता हुआ बोला," कारण "
" समझ ही गये होगे कि मैं यहाँ क्यो आया हू "
" हम अंतर्यामी नही है "
" म...मतलब "
" तू यहाँ खड़ा हमे टुकूर-टुकूर क्या घूर रहा है पूरे शेर " विजय ने एकाएक पूरणसिंघ से कहा," किचन मे जाकर जमालघोटा बना, हमारे पेट मे चूहे मटरगश्ती कर रहे है " फिर एकाएक राजन से मुखातिब हुआ," क्या आप जमालघोटा लेना पसंद करेंगे "
" ज...जी " राजन सरकार सकपकाया.
" ज़्यादातर बीमारिया पेट के हाइवे से गुजरती हुई ही शरीर के बाकी हिस्सो तक पहुचती है और जमालघोटा पेट को इस तरह सॉफ कर देता है जैसे बिल्ली ने राबड़ी की कटोरी चाट ली हो इसलिए हम रोज जमाल्घोटे की एक खुराक लेते है, आप हमारे दडबे पर आए है, मेहमान है हमारे और मेहमान की खातिरदारी करना हमारा फ़र्ज़ भले ही ना हो लेकिन हमारा क़र्ज़ ज़रूर है "
" नही, शुक्रिया "
" क्या नही, आप जमाल्घोटे के बारे मे उगले गये हमारे ज्ञान से असेह्मत है या जमालघोटा लेने से इनकार कर रहे है "
" मुझे जमालघोटा नही चाहिए "
" यानी आप हमे अतिथि देव भाव का सुख नही देंगे "
" मेरे लिए तो तुम्हारी तरफ से यही सम्मान काफ़ी होगा कि मेरी बात धैर्य से सुन लो और.... "
" और "
" मेरी मदद करो "
इस बार विजय ने तुरंत कुछ नही कहा, बस टुकूर-टुकूर राजन सरकार की तरफ देखता रहा.
इस बीच पूरणसिंघ को तो जैसे निजात मिल गयी थी, वह बगैर कुछ कहे कमरे से इस तरह गायब हो गया जैसे कभी था ही नही.
" तो क्या फर्मा रहे थे हम " राजन सरकार पर निगाह केंद्रित किए हुए विजय ने एक बार फिर अपनी ज़ुबान को कष्ट दिया," ये की हम अंतर्यामी नही है, हमे कैसे मालूम कि आप अपनी तशरीफ़ का टोकरा सिर पर उठाए क्यो घूम रहे है और उसे हमारे दौलतखाने पर लाकर क्यो पटक दिया "
" तुमने मेरे बेटे कान्हा और नौकरानी मीना के मर्डर केस के बारे मे टीवी पर देखा होगा और अख़बारो मे पढ़ा होगा "
" मीडीया उसका इतना कचूमर निकाल चुका है कि उसे तो हर आँख-कान वाले ने देखा, पढ़ा और सुना है "
" उसी संबंध मे आया हू "
" कहिए, क्या कहना है "
" मैं और इंदु बेकसूर है "
" गप्प "
राजन सरकार ऐसा सकपकाया कि मुँह से शब्द ना फुट सके.
" कोरी गप्प हांकने आए है आप "
" नही विजय, कम से कम तुम तो वैसा ना कहो जैसे कि सब कह रहे है " राजन सरकार के चेहरे पर ऐसे भाव उभर आए थे जैसे कि अभी रो देगा," तुम मेरी एक्मात्र और आख़िरी उम्मीद हो "
" मतलब "
" निर्भय तुम्हे बता ही चुका है कि मैं और वो बचपन के दोस्त है, मदद के लिए जब मैं उसके पास पहुचा तो उसने कहा,' देखो राजन, दोस्ती अपनी जगह,क़ानून अपनी जगह, भले ही मैं तेरा चाहे कितना पुराना दोस्त होउ लेकिन क़ानून के खिलाफ जाकर मैं तेरी कोई मदद नही करूँगा ' मैंने कहा,' मैं क्या अपने दोस्त को जानता नही हू, मैं केस मे तेरी सिफारिश के लिए नही आया हू बल्कि तेरे पास आने का मकसद है तेरे बेटे की मदद हासिल करना ' मेरी बात सुनकर निर्भय बुरी तरह चौंक पड़ा, उसने कहा,' वो नलायक भला तेरी क्या मदद कर सकता है ' मैंने कहा,' तुम बस एक बार मुझे उसके पास ले चलो और उसे मेरा परिचय करा दो, जो बाते करनी होगी मैं कर लूँगा ' निर्भय ने मुझे समझाने की काफ़ी कोशिश की, कहा कि तुम मेरी तो क्या दुनिया मे किसी की भी मदद करने की काबिलियत नही रखते मगर मैं नही माना और उससे ज़िद करता रहा, अंततः उसे मुझे लेकर यहा आना ही पड़ा "
" यहा आने के लिए आप इतने पगलाए हुए क्यो थे "
" क्योंकि इस दुनिया मे तुम वो अकेले शख्स हो जो सच्चाई को सामने लाने की काबिलियत रखता है "
" सच्चाई तो सारी दुनिया के सामने आ ही चुकी है, कोर्ट के फ़ैसले के बाद अब इस क़िस्से मे बचता ही क्या है "
" सच्चाई ये नही है विजय कि कान्हा और मीना का मर्डर मैंने और इंदु ने किया है "
" आप कोर्ट की अवमानना कर रहे है "
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RE: Gandi Kahani सबसे बड़ी मर्डर मिस्ट्री - by desiaks - 11-23-2020, 01:55 PM

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