RE: Gandi Kahani सबसे बड़ी मर्डर मिस्ट्री
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" और यदि वे कल्पना कर सकते है तो मैं कल्पना क्यो नही कर सकता " विकास दुगने जोश के साथ बोला," उनकी कल्पना के आधार पर अगर एक कोर्ट सरकार दंपति को सज़ा सुना सकती है तो मेरी कल्पना के आधार पर उससे बड़ी कोर्ट इन्हे बरी क्यो नही कर सकती, बहरहाल, क़ानून ये कहता है कि भले ही 100 मुजरिम छूट जाए पर एक भी बेगुनाह को सज़ा नही होनी चाहिए, बड़ी कोर्ट से इन्हे बेनेफिट ऑफ डाउट क्यो नही मिल सकता "
" अब तुम कुछ ज़्यादा ही स्मार्ट बनने की कोशिश कर रहे हो दिलजले, जिन साक्ष्यो को तुम परिस्तिथिजन्य साक्ष्य कहकर हवा मे उड़ाने की कोशिश कर रहे हो या बहुत हल्के मे ले रहे हो वो इतने हल्के है नही क्योंकि कम से कम 20 साक्ष्य ऐसे है जिनके बेस पर कोर्ट ने पोलीस की स्टोरी को सच माना है "
" वे सारे साक्ष्य खड़े किए गये भी तो हो सकते है "
" कौन करेगा ऐसा "
" असल हत्यारा....या हत्यारे "
" और इसमे ये सरकार साहब भी शामिल होंगे "
विकास थोड़ा सकपकाया," अपने ही खिलाफ साक्ष्य खड़े करने मे भला ये क्यो शामिल होने लगे "
" उन 20 मे से कम से कम एक साक्ष्य तो हम ऐसा बता ही सकते है जिसे इन्होने खुद खड़ा किया है "
" ऐसा कौन सा साक्ष्य है "
" अपनी स्टोरी के तहत पोलीस ने भले ही ये साबित किया हो कि नौकरानी.... यानी मीना की हत्या भी कान्हा के बेडरूम मे ही कर दी गयी थी लेकिन उसकी लाश वहाँ से बरामद नही हुई थी, उसे दो दिन बाद शहर के बाहर के कूड़े के ढेर से बरामद किया गया था "
" और ये कहा गया कि हत्या करने के बाद सरकार दंपति ने ही उसे वहाँ पहुचाया था "
" हम कुछ और कहना चाहते है प्यारे "
" कहिए "
" उसकी शिनाख्त के लिए सरकार-ए-आली को कूड़े के ढेर पर ले जाया गया, लाश को देखकर इन्होने पहचानने से इनकार कर दिया, कहा कि मैं नही कह सकता कि ये लाश मीना की ही है जबकि लाश ज़रा भी खराब नही हुई थी, सरासर पहचानने योग्य थी, इन्ही के पड़ोसियो और मीना के बेटे ने पहचानी भी, ऐसा कैसे हो सकता है कि ये अपनी उस नौकरानी को ना पहचानते हो जो 6 महीने से ना केवल इनके घर मे काम कर रही थी बल्कि फ्लॅट मे ही रहती थी "
विकास सकपका गया.
उसे जवाब नही सूझा था.
" अब बताओ, क्या ये साक्ष्य इन्होने खुद खड़ा नही किया, अगर ये कातिल नही है, यदि इनके दिल मे कोई चोर नही था तो मीना की लाश को पचानने से इनकार क्यो किया "
विकास की ज़ुबान पर तो जैसे ताला लग गया था लेकिन राजन ने कहा," ऐसा कहने के लिए हमारे वकील ने कहा था "
" व..वकील ने " विजय चौंका.
" ये बात वकील ने मुझसे उसी समय कह दी थी जब पोलीस मेरे पास आई थी और मुझे बताया था कि वहाँ से एक औरत की लाश मिली है जहा नगर निगम शहर भर का कूड़ा डालता है और मुझे उसकी शिनाख्त के लिए चलना होगा, वकील ने कहा था कि लाश मीना की हो या ना हो, तुम्हे यही कहना है कि मैं उसे नही पहचानता क्योंकि तुम्हारे द्वारा ये कहते ही कि लाश मीना की है पोलीस तुम्ही को कातिल मान लेगी और तुम पर अपना शिकंजा कस लेगी, ऐसे हालात मे एक आम आदमी के सामने अपने वकील का कहा मानने के अलावा कोई चारा नही होता क्योंकि वो स्वयं क़ानून की पेचीदिगियों को नही समझता "
" बात तो सोलाह आने दुरुस्त है " विजय ने किसी बुजुर्ग की तरह गर्दन हिलाई," वैसे हालात मे एक आम आदमी वही करता है जो उसके वकील की सलाह होती है मगर ज़रूरत से कुछ ज़्यादा ही समझदार तुम्हारा वकील था कौन "
" तुमने अख़बारो मे नाम पढ़ा होगा, अशोक बिजलानी "
" देखा गुरु, आपको उन 20 परिस्थितिजन्य साक्ष्यो मे से एक का जवाब मिल गया जिसके आधार पर सरकार दंपति को दोषी माना गया है " विकास उत्साह से भर गया था," हो सकता है आगे चलकर दूसरे परिस्तिथिजन्य साक्ष्यो के जवाब भी मिल जाए लेकिन उसके लिए हमे निकलना तो पड़ेगा ही "
" अगर तुम इतनी ही ज़िद कर रहे हो दिलजले तो चलो... निकल पड़ते है, देखा जाएगा जो होगा यानी कि उस कहावत को चरितार्थ करते है कि चढ़ जेया बेटा सूली पर, भली करेगा राम "
विकास की आँखे चमकने लगी जबकि राजन सरकार ख़ुसी के मारे मानो पागल होने वाला था, उसके मुँह से चीख-सी निकली थी," म...मैं तुम्हारी बातो का मतलब नही समझा विजय, क्या इस बात का मतलब ये है कि तुम रियिन्वेस्टिगेशन के लिए तैयार हो गये हो, मेरी रिक्वेस्ट मान ली है तुमने "
" पर इसका मतलब ये नही है मेरी सरकार कि हम ने आपको बेकसूर मान लिया है " विजय ने कहा," हमारी खोपड़ी अब भी तुम्हे और तुम्हारी बीवी को ही कातिल कह रही है, हम ने 3 वजहो से निकलने का फ़ैसला लिया है, पहला, आपकी सिफारिश हमारे बापूजान ने की है, दूसरा, दिलजले की बात दिल से जा लगी है, और तीसरा, आजकल ठलुये है यानी कोई काम नही है, कोई काम नही है तो यही सही, वैसे हम सबसे पहले अशोक बिजलानी नाम के उस आला वकील से मिलना चाहेंगे जिसने तुम्हे नौकरानी की लाश को ना पहचानने की सलाह दी थी "
" थॅंक यू... थॅंक यू सो मच विजय " ख़ुसी से उच्छल पड़ा राजन सरकार, उछल्कर विजय को बाँहो मे भर लिया उसने और मोंटो की तरह उसके चेहरे पर चुंबनो की झड़ी लगा दी.
काश, विजय को इल्म होता कि अशोक बिजलानी की कोठी पर पहूचकर उसके दिमाग़ की सोचने-समझने का काम करने वाली सारी नसें हड़ताल पर चली जाने वाली थी.
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अशोक बिजलनीि की कोठी वसंत कुंज जैसे महँगे इलाक़े मे थी, हालाँकि वहाँ सभी कोठिया शानदार थी मगर बिजलानी की कोठी का तो जैसे जवाब ना था, लोहे वाले गेट के बाई तरफ वाले काले ग्रनाइट पत्थर से मंधे पिल्लर के बीचो-बीच सिल्वर कलर के अक्षरो से 'अशोक बिजलानी' लिखा था.
बंद गेट को खुलवाने के लिए राजन सरकार के ड्राइवर ने हॉर्न बजाया, उसकी ब्लू कलर की संतरो कोठी के बाहर बने रॅंप पर खड़ी थी, उसके पीछे खड़ी थी, लाल और सफेद रंग की पजेरो.
ड्राइविंग सीट पर विकास था. बगल वाली सीट पर विजय और पिच्छली सीट पर धनुष्टानकार पसरा सिगार का धुवा उड़ा रहा था.
ये गाड़ी विकास ने पिच्छले हफ्ते खरीदी थी और अपनी कोठी से विजय उसी मे सवार हो गया था.
एक वर्दीधारी दरबान ने गेट थोड़ा-सा खोलकर बाहर झाँका.
शायद वो राजन सरकार की गाड़ी को पहचानता था इसलिए गेट को पूरा खोलने का उपक्रम किया मगर सिर्फ़ उपक्रम ही किया, खोला नही, क्योंकि तभी उसकी नज़र सैन्ट्रो के पीछे खड़ी पजेरो पर पड़ गयी थी और वो उसे नही पहचानता था.
राजन सरकार समझ गया कि वो क्यो हिचक गया है इसलिए गाड़ी के अंदर से ही दरबान को अपने करीब आने का इशारा किया.
दरबान संतरो के नज़दीक पहुचा.
राजन ने अपनी तरफ का काँच उतारकर कहा," वो हमारे साथ है, आने दो "
दरबान ने स्वीकृति मे गर्दन हिलाई.
वापस गाते की तरफ गया और पूरा गेट खोल दिया.
गेट पार करने के बाद दोनो गाड़ियाँ ड्राइव-वे पर फिसलती चली गयी, दोनो तरफ पहरेदारो की मानिंद खड़े अशोक के लंबे-लंबे वृक्ष हवा के पारो पर सवार होकर झूम रहे थे, उनके पार नज़र आ रहा था हरभरा लॉन और जगह-जगह खिले रंग-बिरंगे फूल.
ड्राइव वे सीधा था और वहाँ तक था जहाँ खूबसूरत इमारत का पोर्च नज़र आ रहा था, ये कहा जाए तब भी ग़लत ना होगा कि पोर्च भी देखने लायक था.
लंबे-लंबे 4 पिल्लर्स पर टिका हुआ था वो और छत ज़मीन से करीब 24 फीट उपर थी, इतना विशाल कि उसके नीचे 4 गाड़िया पार्क की जा सकती थी.
एक साइड मे कयि लग्जरी गाड़िया खड़ी थी.
राजन सरकार के ड्राइवर ने पोर्च के ठीक बीच मे पहूचकर संतरो रोकी, विकास ने पजेरो उसके पीछे.
सैन्ट्रो से राजन सरकार और पजेरो से विजय-विकास निकले.
धनुष्टानकार विकास के कंधे पर सवार था.
" आओ विजय " कहने के साथ राजन सरकार इस तरह इमारत के मुख्यद्वार की तरफ बढ़ा था जैसे यहाँ अक्सर आता रहता हो और इमारत के मुकम्मल भूगोल से वाकिफ़ हो.
मुख्यद्वार पार करने के बाद वे 5 फुट चौड़ी और करीब 20 फुट लंबी गॅलरी मे पहुचे.
गॅलरी के उस पार लॉबी का एक हिस्सा और कुछ सीढ़िया नज़र आ रही थी परंतु वे लॉबी की तरफ नही बढ़े बल्कि उससे पहले ही गॅलरी की दाई दीवार मे एक दरवाजा था.
राजन सरकार ने उसे खोला और अंदर दाखिल हो गया.
विजय-विकास ने अनुसरण किया.
वो काफ़ी बड़ा कमरा था जिसे ऑफीस का रूप दिया गया था, बीचो-बीच विशाल और चमकदार ऑफीस टेबल पड़ी थी.
टेबल के दोनो अन्द्रूनि किनारो पर फाइल्स का ढेर नज़र आ रहा था और उसके पीछे पड़ी थी चमड़ा मंधी रिवॉल्विंग चेर.
चेर इस वक़्त खाली थी मगर विशाल मेज के दाई तरफ एक युवक और युवती अपेक्षाकृत छोटी मेज के पीछे पड़ी चेर्स पर बैठे फाइल्स का अध्ययन कर रहे थे.
युवक के जिस्म पर सफेद पॅंट-शर्ट और काला कोट था जबकि युवती सफेद सूट पर काला कोट पहने हुए थी.
उनके ठीक सामने लेकिन विशाल मेज के पार यानी मेज के बाई तरफ एक युवती कंप्यूटर पर काम कर रही थी.
उसके जिस्म पर वकील वाली ड्रेस नही थी.
वो केले के तने जैसी अपनी टाँगो मे जीन्स और जिस्म के उपरी हिस्से मे लाल रंग का टॉप पहने हुए थी.
टॉप का उपर वाला बटन खुला हुआ था, उसके कारण दोनो पर्वतो के बीच की घाटी दृष्टिगोचर हो रही थी.
निहायत ही खूबसूरत लड़की थी वो.
कमरे की हर दीवार के साथ बड़ी-बड़ी अलमारिया लगी हुई थी और उमने करीने से सजी थी, क़ानून की मोटी-मोटी किताबे.
विशाल मेज और उसके पीछे पड़ी रिवॉल्विंग चेर के पीछे एक बड़ी खिड़की थी, खिड़की पर ग्रिल और काँच लगा हुआ था.
काँच के पार लॉन नज़र आ रहा था.
कमरे मे मौजूद तीनो व्यक्तियो ने आहट सुनकर दरवाजे की तरफ देखा और देखते ही रह गये.
ख़ासतौर पर विकास के कंधे पर बैठे धनुष्टानकार को.
उनके चेहरो पर कौतूहूल के भाव उभरे थे.
राजन सरकार ने अशोक बिजलानी की खाली कुर्सी की तरफ इशारा करते हुवे कहा," कुछ देर पहले बिजलानी ने कहा था कि वह ऑफीस मे ही मिलेगा "
" वे अंदर है राजन अंकल, इंटरकम पर हमे आपके आगमन के बारे मे बता चुके है " लड़की ने कहा," बैठिए "
राजन विज़िटर चेर पर बैठता हुआ बोला," बैठो विजय "
" हम बैठते कभी नही जनाब, हमेशा पधारते है और ये लीजिए, पधार गये " कहने के साथ विजय दूसरी विज़िटर्स चेर पर बैठ गया था, विकास तीसरी पर जबकि धनुष्टानकार विशाल मेज के एक कोने पर पसर गया था.
लड़के ने कहा," नो...वहाँ नही "
धनुष्टानकार दाँत किटकिटा कर उस पर घुड़का.
लड़का ही नही, दोनो लड़किया भी डर गयी थी, हंसते हुए विकास ने कहा था," उसे ना ही छेड़ो तो बेहतर होगा "
" लेकिन " जीन्स और लाल टॉप वाली लड़की बोली," सर नाराज़ होंगे, प्लीज़, उसे वहाँ से हटा लीजिए "
" हमारा कहना तो ये मानता नही " विजय बोला," हां, लड़कियो का कहना मान जाता है, ख़ासतौर पर खूबसूरत लड़की का, बशर्ते लड़की प्यार से कहे, वैसे इसे नाम से ही पुकारो तो बेहतर होगा, इसका नाम मोंटो है "
" म...मोंटो "
" हां, इसे प्यार से कहकर देखो कि मोंटो प्लीज़, वो बैठने की जगह नही है, मेज पर मत बैठ, शायद मान जाए "
लड़की के चेहरे पर हैरत के भाव काबिज हो गये, विजय की तरफ उसने ऐसे अंदाज मे देखा था जैसे यकीन ना कर पा रही हो कि उसने वही कहा था जो उसने सुना जबकि विजय ने पुनः कहा," उसे वहाँ से हटाने का बस यही एक तरीका है "
उस लड़की के मुँह से तब भी बोल ना फूटा जबकि सफेद सूट, काले कोट वाली लड़की ने कहा," प्लीज़ मिस्टर. मोंटो, मैं आपसे रिक्वेस्ट करती हू कि आप वहाँ से हट जाए "
उसका इतना कहना था कि मोंटो के मुँह से ऐसी किल्कारी निकली जैसे खुश हो गया हो और फिर उसी लड़की के नही बल्कि दूसरी लड़की और युवक के मुँह से भी चीख निकल गयी क्योंकि धनुष्टानकार ने मेज से सीधी जंप उस लड़की पर लगाई थी, इससे पहले की कोई कुछ समझ पाता, वो लड़की के कंधे पर ही सवार नही हो गया बल्कि उसके फूले-फूले गोरे गालो पर एक चुंबन भी जड़ डाला और फिर उछल्कर वापिस विकास के कंधे पर जा बैठा.
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