RE: Gandi Kahani सबसे बड़ी मर्डर मिस्ट्री
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जो कुछ हुआ, पलक झपकते ही हो गया था और... जब लड़की की समझ मे आया कि क्या हो गया है तो डर के साथ-साथ चेहरे पर शरम की सुर्खी भी फैलती चली गयी जबकि धनुष्टानकार ने अपने छोटे से कोट की जेब से पव्वा निकाला, खोला और मुँह से लगाकर गटगट कयि घूँट पी गया.
दोनो लकड़िया और युवक उसे हैरत से देख रहे थे.
शायद इसलिए क्योंकि ऐसा करामाती बंदर उन्होने पहले कभी नही देखा था, आँखो मे अस्चर्य लिए वे उसे देखते रह गये थे, कमरे के हालात थोड़े सामान्य हुए तो विजय बोला," देखा, हम ने कहा था ना कि ये लड़कियो का कहना फ़ौरन मानता है " फिर उसने लाल टॉप वाली लड़की की तरफ देखा और बोला," ये ही शब्द अगर तुमने कहे होते तो ये इससे डबल खुश होता और एक किस के बाद पीछा नही छोड़ता बल्कि अब तक किस ही ले रहा होता "
किसी के मुँह से बोल ना फुट सका.
थोड़े गॅप के बाद राजन सरकार ने कहा," बिजलानी को बता दो कि हम आ गये है "
लड़के ने मेज पर रखे इन्स्ट्रुमेंट का रिसीवर उठाया.
एक बटन दबाया और दूसरी तरफ से रिसीवर उठाए जाने का इंतजार करने लगा, शायद रिसीवर उठाया गया क्योंकि उसने बहुत ही शालीन स्वर मे कहा था," राजन अंकल आ गये है सर "
"......................." शायद दूसरी तरफ से कुछ पूछा गया था.
" जी हां " लड़के ने कहा," उनके साथ दो लोग और भी है और एक बंदर भी है "
बंदर शब्द सुनते ही धनुष्टानकार भड़क उठा, लड़के के गाल पर चाँटा जड़ने के लिए विकास के कंधे से उच्छलने वाला ही था कि मौके की नज़ाकत को देखते हुवे विकास ने उसे इस तरह पकड़ लिया कि वो वो ना कर सके जो करना चाहता था.
लड़का रिसीवर क्रेडेल पर रख चुका था जबकि धनुष्टानकार विकास की पकड़ से निकलने के लिए संघर्ष करने के साथ बार-बार लड़के पर घुड़क रहा था.
लड़का घबरा गया, चेहरे पर ख़ौफ़ के भाव लिए बोला," अब इसे क्या हुआ, मुझ पर क्यो... "
" हम ने इसलिए बताया था हुजूर-ए-आला कि इसका नाम मोंटो है " विजय बोला," उस शब्द से इसे नफ़रत है जो तुमने रिसीवर पर बोला, फ़ौरन से पहले माफी माँग लो वरना ये तुम्हारी टिक्का-बोटी करके खा जाएगा और डकार भी नही लेगा "
सबकुछ बताया जाने के बावजूद लड़के की समझ मे कुछ नही आया था इसलिए वो किनकर्तव्यविमूढ़ सा खड़ा रह गया जबकि धनुष्टानकार हर पल उग्र होता जा रहा था.
विकास ने लड़के को दाँत-ते हुवे कहा," जो गुरु ने कहा है, वो करो बेवकूफ़, अब मेरे लिए इसे संभालना मुश्किल हो रहा है "
हकबकाया हुआ लड़का धनुष्टानकार की तरफ देखता हुआ बोला," सॉरी मिस्टर. मोंटो "
मोंटो कुछ और ज़ोर से घुड़का.
" ऐसे नही " विजय बोला," दोनो हाथो से अपने दोनो कान पकड़कर पूरी श्रद्धा से माफी माँगो "
घबराए हुवे लड़के ने अपने दोनो कान पकड़ते हुवे कहा," मुझे माफ़ कर दो मोंटो जी, मुझे मालूम नही था कि... "
आगे का सेंटेन्स उसने खुद ही अधूरा छोड़ दिया.
मोंटो के चेहरे पर अब कुछ संतुष्टि के भाव नज़र आए, एक बार फिर उसने जेब से पव्वा निकालकर मुँह से लगा लिया.
वो दो या तीन घूँट ही पी पाया था कि,
'धाय'
ऐसी आवाज़ हुई जैसे कही गोली चली हो.
विजय वो पहला शख्स था जो कुर्सी से उछल्कर ना सिर्फ़ दरवाजे की तरफ लपका बल्कि उसे पार करके गॅलरी मे पहुचा.
उसके पीछे विकास था.
विकास के कंधे पर धनुष्टानकार.
कोठी के अन्द्रूनि हिस्से से यानी लॉबी की तरफ से दो औरतो के चीखने-चिल्लाने की आवाज़े आने लगी थी.
विजय-विकास उसी तरफ लपके और अब... विकास के कंधे से कूदकर धनुष्टानकार उनसे आगे-आगे दौड़ रहा था.
बिजलानी के स्टाफ की दोनो लड़किया और लड़का हकबकाए हुए से उनके पीछे दौड़ रहे थे.
वे लॉबी मे पहुचे.
औरतो के चीखने-चिल्लाने की आवाज़े उपर से आ रही थी, अब तो ऐसा भी लग रहा था जैसे वे किसी बंद दरवाजे को पीट रही हो, विजय-विकास सीढ़ियो की तरफ लपके जबकि धनुष्टानकार उनसे आगे-आगे रेलिंग पर दौड़ा चला जा रहा था.
चीख-चिल्लहटो का पीछा करते हुए वे उपर, एक ऐसी गॅलरी मे पहुचे जिसके दोनो तरफ कयि दरवाजे थे.
चीखती-चिल्लाति दोनो औरते एक ऐसे दरवाजे को ज़ोर-ज़ोर से पीट रही थी जो अंदर से बंद था.
एक अढेढ़ थी.
दूसरी युवा.
अढेढ़ के जिस्म पर साड़ी थी.
युवा ने साइलेक्स और कुरती पहनी हुई थी.
युवा लड़की बार-बार चिल्ला रही थी," खोलो... खोलो पापा, मुझे आपसे कोई शिकायत नही है "
" क्या हुआ, क्या हुआ " विजय-विकास उनके करीब जा पहुचे.
वे चौंकी.
पलटकर उनकी तरफ देखा.
चेहरे दहशत और आँसुओ से सारॉबार थे.
उनमे से कोई भी विजय-विकास को पहचानती नही थी फिर भी ये सवाल नही किया कि वे कौन है और उनके घर मे कहाँ से आ घुसे क्योंकि जहाँ मे इससे कही बड़े सवाल दहक रहे थे.
लड़की ने वही कहा भी," पापा के कमरे मे गोली चली है "
" क्या वे अंदर है " विकास ने पूछा.
ख़ौफ़ की ज़्यादती के कारण युवा लड़की सिर्फ़ स्वीकृति मे गर्दन हिला सकी.
विकास ने पलटकर विजय की तरफ देखा.
अनिष्ट की आशंका दोनो को हो चुकी थी.
अभी वे कोई फ़ैसला नही कर पाए थे कि धनुष्टानकार ने फर्श से पहली जंप विकास के कंधे पर लगाई, वहाँ एक भी क्षण गँवाए बगैर दूसरी जंप दरवाजे के ठीक उपर मौजूद वेंटिलेटर पर.
वहाँ लोहे की रोड पर मूव करने वाला काँच का पल्ला लगा हुआ था, धनुष्टानकार उसके बीच से होते हुवे दूसरी तरफ यानी की कमरे के अंदर कूद गया.
तब तक बिजलानी का स्टाफ भी वहाँ पहुच चुका था.
कुछ देर बाद अंदर की तरफ से बंद दरवाजा सरकने की आवाज़ आई और धनुष्टानकार ने पूरा दरवाजा खोल दिया.
सबकी नज़र बेड पर पड़े बिजलानी के जिस्म पर पड़ी.
चीखती हुई उसकी पत्नी और बेटी उस तरफ लपकी ही थी कि विजय ने एक साथ दोनो के बाजू पकड़ते हुवे कहा," प्लीज़ उनके नज़दीक मत जाइएगा "
" छोड़ो...छोड़ो मुझे " लेडकी ने विजय के बन्धनो से निकलने की पूरी कोशिश की," पापा जिंदा हो सकते है "
" वो मर चुके है " विजय ने कहा.
कुछ देर तक लड़की आँखे फ़ाडे विजय की तरफ देखती रह गयी, फिर ह्य्स्टीरियाइ अंदाज मे चिल्लाई," नही, ऐसा नही हो सकता, मेरे पापा नही मर सकते, तुम झूठ बोल रहे हो "
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लाश बेड पर औंधे मुँह पड़ी थी.
चेहरे का जो हिस्सा चमक रहा था वो खून से लथपथ था.
बाई तरफ की कनपटी पर बने गोली के जख्म से बहता खून अब भी चेहरे से होता हुआ बूँद-बूँद करके बेड पर बिछि पीले रंग की उस चादर को भिगो रहा था जिस पर गुलाब के बड़े-बड़े फूल बने हुवे थे.
जाहिर है की गोली लगते ही खून काफ़ी तेज़ी से बहा होगा इसलिए चेहरा और चादर खून से तर-बतर थे.
कलाइया शरीर के दोनो तरफ फैली हुई थी.
बाए हाथ मे रिवॉल्वार था.
तर्जनी ट्रिग्गर पर.
कनपटी मे घुसने के बाद गोली शायद अंदर ही कही अटक गयी थी क्योंकि सिर मे कोई जखम नही था.
एक दीवार पर टंगा एलसीडी ऑन था.
उसपर आजतक चल रहा था.
बेड की दाई दराज पर कप-प्लेट रखे थे.
लाश के करीब एक मोबाइल पड़ा था.
विजय ने उसे उठा लिया.
वो निरीक्षण कर चुका था, कमरे मे उस रोशनदान के अलावा कोई और रोशनदान नही था जिसके माध्यम से धनुष्टानकार अंदर दाखिल हुआ था.
बेड के ठीक सामने वाली दीवार मे एक विंडो ज़रूर थी जिसकी चौखटो मे फँसा एक काफ़ी बड़ा काँच लगा हुआ था.
काँच के पार, नीचे, हरा-भरा लॉन और बीच-बीच मे खिले रंग-बिरंगे फूल ही नही बल्कि वो फॉल भी नज़र आ रहा था जो इस वक़्त शांत था परंतु कल्पना की जा सकती थी की जब वो ऑन होता होगा तो कमरे से कितना दिलकश नज़ारा नज़र आता होगा.
दाई दीवार पर चन्द फॅमिली फोटोग्रॅफ लगे हुवे थे जिनमे अशोक बिजलानी, उसकी पत्नी और बेटी नज़र आ रहे थे.
उनमे एक फोटो ऐसा भी था जिसमे बिजलानी की पीठ नज़र आ रही थी, सामने नज़र आ रहे पेड़ पर एक तीतर बैठा हुआ था और बिजलानी अपने दाए हाथ मे मौजूद रिवॉल्वार से तितर पर निशाना लगाता नज़र आ रहा था.
विजय ने तुरंत पहचान लिया, फोटो मे वही रिवॉल्वार था जो इस वक़्त लाश के हाथ मे था.
बाई तरफ वाली दीवार मे एक दरवाजा था.
विजय दरवाजे को खोलकर देख चुका था बल्कि एक चक्कर अंदर भी लगा आया था.
वो बाथरूम था और उसके अंदर सामने वाली दीवार मे बाहर की तरफ खुलने वाला ठीक वैसा ही रोशनदान था जिसके ज़रिए धनुष्टानकार कमरे मे दाखिल हुआ था.
इस वक़्त कमरे मे लाश के अलावा केवल विजय, विकास और धनुष्टानकार थे, राजन सरकार सहित बाकी सबको उन्होने गॅलरी मे मौजूद एक अन्य कमरे मे पहुचकर दरवाजा बंद कर दिया था.
हालाँकि उन्हे काफ़ी मशक्कत करनी पड़ी थी मगर करनी ही थी क्योंकि घटनास्थल से छेड़-छाड़ नही की जा सकती थी.
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कुछ देर बाद जब वहाँ पोलीस पहुचि तो कमरे का निरीक्षण करके वे तीनो वापिस गॅलरी मे आ चुके थे.
पोलीस के साथ रघुनाथ भी था.
हालाँकि कत्ल की वारदात पर सीधे रघुनाथ के पहुचने का कोई औचित्य नही था, कम से कम प्राथमिक स्तर पर ये काम क्षेत्रो के थानेदार का था लेकिन क्योंकि विजय का फोन सीधा उसी के पास पहुचा था, इसलिए उसे आना पड़ा.
विकास और धनुष्टानकार को देखकर रघुनाथ चौंका, शब्द मुँह से फिसलते चले गये," तुम यहाँ क्या कर रहे हो "
विजय बीच मे टपका," ये हमारे लांगेड़ू है "
" लांगेड़ू " रघुनाथ भन्नाया," ये क्या होता है "
" बात समझाई जाने के बावजूद तुम्हारी समझदानी मे नही घुसेगी तुलाराशि, फिर भी कोशिश करते है " विजय कहता चला गया," लांगेड़ू उन्हे कहते है जो किसी बड़े आदमी के पीछे उसकी दुम की तरह लगे रहते है, हर उस जगह पाए जाते है जहा वो बड़ा आदमी पाया जाता है, हर नेता के साथ तुमने कुछ ऐसे चेहरे देखे होंगे जो हर जगह पाए जाते है, उन्हे लांगेड़ू कहते है "
रघुनाथ इस बार कुछ बोला नही.
बस कड़ी नज़रो से विजय को घूरता रहा.
कुछ देर तक तो विजय ने उसकी नज़रो को बर्दाश्त किया फिर आँख मारता हुआ बोला," मोहब्बत भरी इन नज़रो से इतनी देर तक ना देखो रघु डार्लिंग, हमारा दिल सीना फाड़कर बाहर निकल आया तो वापिस अपनी जगह पर फिट करना मुश्किल हो जाएगा "
रघनाथ सकपकाया.
उसे लगा, विजय अपनी सदाबहार बकवास शुरू करने वाला है, जानता था, अगर एक बार वो शुरू हो गया तो काबू मे लाना मुश्किल हो जाएगा और कम से कम इस वक़्त, स्टाफ के सामने वो नही चाहता था कि विजय शुरू हो जाए इसलिए तुरंत ही मतलब की बात पर आता हुआ बोला," तुम लोग यहाँ क्यो आए थे "
" जी आए नही, लाए गये थे " विजय ने किसी मुलाज़िम की तरह गर्दन झुककर बेहद शराफ़त से जवाब दिया था.
" कौन लाया था "
" राजन सरकार "
" कौन राजन सरकार "
" अएल्लो, जिसे आज की डेट मे हिन्दुस्तान का बच्चा-बच्चा जान चुका है, उसे अपने सुपेरिटेंडेंट ऑफ पोलीस नही जानते, इसलिए हम तुम्हे सूपर ईडियट कहते है रघु डार्लिंग "
" बकवास मत करो विजय " रघुनाथ भड़का," सीधे-सीधे जवाब दो कि राजन सरकार कौन है "
विकास बोला," गुरु उन राजन सरकार की बात कर रहे है पापा जिन पर अपने बेटे और नौकरानी की हत्या का आरोप है "
" वो...वो राजन सरकार " रघुनाथ चौंका और पुनः विजय की तरफ पलट-ता हुआ बोला," उससे तुम्हारा क्या संबंध "
" कैसी बात कर रहे हो रघु डार्लिंग, हमे क्या समलैंगिक समझ रखा है जो पुरुषो से संबंध रखेंगे "
" तुम नही मानोगे " रघुनाथ गुर्राया.
" मान तो तुम नही रहे हो तुलाराशि, हम से ये पूछने का क्या मतलब है कि राजन सरकार से हमारा क्या संबंध है "
" मेरा मतलब था कि राजन सरकार के साथ तुम यहाँ क्यो आए "
" ये हुई ना बात "
" जवाब दो "
विजय ने छाती फूला कर कहा," हम उन्हे बेगुनाह साबित करने अपने दडबे से बाहर निकल आए है "
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