RE: Gandi Kahani सबसे बड़ी मर्डर मिस्ट्री
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" दीपाली को भी बेटी कहते थे "
" ओफ़कौर्स "
" अंकिता को भी "
" हां-हां, आप सबके लिए अलग-अलग क्यो पूछ रहे है "
विजय ने अचानक बात घुमाई," पर तुम्हारे और दीपाली के टाँके की बात हमारी समझ मे नही आई "
" मतलब " उत्सव चौंका.
" दीपाली से कयि गुना ज़्यादा खूबसूरत तो अंकिता है "
" तो "
" उससे टांका क्यो नही भिड़ाया तुमने "
उत्सव के चेहरे पर बड़ी मोहक मुस्कान उभरी, बोला," शायद आपको कभी किसी से प्यार नही हुआ "
" जी नही " कहते वक़्त विजय के समूचे चेहरे पर सुर्खी दौड़ गयी, नज़रे झुका ली उसने और अपने दाए हाथ के अंगूठे के नाख़ून से बाए हाथ के अंगूठे के नाख़ून को कुरेदता हुआ-सा उन्ही पर दृष्टि केंद्रित किए 16 साल की कन्या की मानिंद बोला," उम्र के इस पड़ाव पर पहुच गये है लेकिन किसी को देखकर दिल का झुनझुना साला तन्तनाया ही नही "
" इसलिए आपने ऐसी बात कही "
" कैसी बात "
" कि अंकिता के रहते मैंने दीपाली से मोहब्बत क्यो की "
" क्यो की "
" क्योंकि मैंने मोहब्बत की नही, हो गयी "
" हो गयी "
" ये तो आपने भी सुना होगा, मोहब्बत की नही जाती, हो जाती है, जिसे होती है, खुद उसे ही पता नही होता कि कब हो गयी, जब तक नही हुई थी तब तक मैं भी इस बात को गप्प मानता था "
" यानी तुमने मोहब्बत की नही, हो गयी "
" हंड्रेड पर्सेंट करेक्ट और.... "
" और "
" अब आप समझ सकते है कि अंकिता दीपाली से क्यादा खूबसूरत आपके लिए होगी, मेरे लिए नही है "
" सच्चाई जो है, सो है, हमारी बात छोड़ो, एक लाख लोगो से भी पुछोगे की अंकिता और दीपाली मे से कौन ज़्यादा खूबसूरत है तो सब अंकिता को ही बताएँगे "
" मुझे दुख है कि आप अब भी मेरी बात के मर्म को नही समझ पा रहे है, खैर, अब तो यही कहूँगा कि भले ही सारा जमाना अंकिता को खूबसूरत बताता रहे पर मेरे लिए दीपाली ज़्यादा खूबसूरत है "
" या कोई और वजह है "
" और वजह क्या होती "
विजय ने वो बात कह दी जिसकी भूमिका बाँधी थी," ऐसा तो नही कि उसका टांका बिजलानी साहब के साथ भिड़ा था "
विजय के शब्द सुनकर भौचक्का रह गया वो, ऐसे अंदाज मे विजय की तरफ देखा जैसे किसी पागल को देख रहा हो और फिर लगभग चीख ही पड़ा," ये क्या बकवास कर रहे है आप, हम लोगो के और सर के बीच का रिश्ता मालूम भी है आपको, मैं बता चुका हू कि वे हम सबको औलाद की तरह प्यार करते थे "
" सॉरी यार, हम तो ऐसे ही फेंक रहे थे, तुम्हे कुछ ज़्यादा ही बुरी लग गयी, खैर, तुम जा सकते हो, अपनी दीपाली को भेज दो "
वो एक झटके से उठा और भन्नया हुआ-सा, तेज कदमो के साथ बाहर चला गया.
उसके बाद दीपाली के आने तक कोई कुछ ना बोला.
विजय ने दीपाली को भी उसी कुर्सी पर बिठाया और बिजलानी के बारे मे चन्द सवाल किए.
उसके जवाब भी वही थे जो उत्सव के थे.
अंकिता और बिजलानी के संबंधो के बारे मे उससे इतना खुल कर तो कुछ नही पूछा परंतु घुमा-फिरा कर जानना ज़रूर चाहा.
नतीजा ये निकला की उसकी जानकारी के मुताबिक भी अंकिता और बिजलानी के बीच वैसा कोई संबंध नही था.
अंततः उसने अंकिता को भेजने के लिए कहा.
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एक मारुति वन फ्लॅट नंबर. ए-74 के सामने रुकी, ए-74 के गेट पर ब्रास के अक्षरो से लिखा था 'राजन सरकार'.
ड्राइविंग सीट पर बैठे लड़के ने पूछा," यही है ना "
" ह...हां " कंडक्टर सीट पर बैठे लड़के की आवाज़ मे जोश था.
ड्राइविंग कर रहे लड़के ने वॅन आगे बढ़ा दी.
ऐसा होते देख कंडक्टर सीट पर बैठे लड़के ने कहा," क...क्या कर रहा है छीकु, मैंने बताया ना, राजन सरकार का फ्लॅट ये ही है "
" काम करने से पहले आसपास का मुआयना करना मेरा शगल है, भागने मे आसानी रहती है "
कंडक्टर सीट पर बैठा लड़का चुप हो गया.
पर वे दो नही थे, चार थे.
दो पिच्छली सीट पर बैठे चौकस नज़र आ रहे थे.
चारो की आयु 20-25 के बीच.
जिस्मो पर सस्ते से कपड़े.
घिसी-पीटी जीन्स और गंदी टी-शर्ट्स.
पैरो मे सस्ते पी.टी. शूज.
यदि ये लिखा जाए कि उनमे से किसी की भी आर्थिक स्तिथि मारुति वन का मालिक होने की नही लगती थी तो ग़लत ना होगा लेकिन लंबे कद का चीकू नाम का जो लड़का वॅन ड्राइव कर रहा था, उसका अंदाज बता रहा था कि कम से कम इस कार्य मे वो दक्ष है.
कंडक्टर सीट पर बैठे कसरती जिस्म वाले लड़के के दाए हाथ की उंगलियो मे एक सुलगी हुई बीड़ी थी, जिसमे वो बार-बार सुत्ते लगा रहा था, पीछे बैठे दोनो लड़को मे से एक अपने दांतो के बीच खैनि दबाए हुवे था, दूसरा गुटखा चबा रहा था.
उनमे से एक पतला था, दूसरा मोटा.
सभी के चेहरो पर तनाव नज़र आ रहा था.
किसी पर कम, किसी पर ज़्यादा, सबसे कम तनाव ड्राइविंग कर रहे चीकू के चेहरे पर था, उसी ने कहा," सब चुप क्यो हो गये सालो, फूँक सर्की हुई है क्या "
" हां यार " पीछे बैठे मोटे ने इसलिए मुँह उपर उठाते हुवे कहा ताकि गुट्खे का पीक गिरे नही," डर तो लग रहा है थोड़ा-थोड़ा "
" दिल तो मेरा भी ढोलक की तरह बज रहा है " उसकी बगल मे बैठे खैनि चबा रहे पतले लड़के ने कहा था.
" डरोगे तो कैसे काम चलेगा " बीड़ी के सुत्ते लगा रहे लड़के ने कहा," तुम ये काम अपने दोस्त के लिए कर रहे हो "
" वो तो ठीक है चंदू पर भूल मत जाइयो " लगातार ड्राइविंग कर रहे चीकू ने कहा था," कमाई के बगैर तो मैं नही छ्चोड़ूँगा "
" वो तो तेरी पहली शर्त है और मैंने कबूल की है "
" तो डरो मत यारो " चीकू पुनः बोला," तुम भले ही पहली बार ऐसे काम पर निकले हो मगर मैं पहले भी कयि बार कर चुका हू, पब्लिक साली डरपोक है इसलिए ऐसे काम बड़ी आसानी से हो जाते है, दूसरो के लिए कोई अपनी जान जोखिम मे नही डालता "
मोटे ने पूछा," हमे भी हिस्सा मिलेगा ना "
" बराबर का "
" मुझे हिस्सा-विस्सा नही चाहिए " पतला बोला," मैं तो ये काम अपने यार के लिए कर रहा हू, क्यू चंदू "
" मुझे मालूम है बॉब्बी कि तू मेरा पक्का यार है " चंदू ने बीड़ी को वॅन से बाहर फेंकते हुवे कहा," सबसे पहले तुझी से तो ज़िक्र किया था मैंने, तूने ही बंटी और चीकू को जुटाया "
" इसलिए तो....कम से कम तुझे नही डरना चाहिए " ड्राइविंग कर रहा चीकू बोला," बहरहाल, आज हम तेरे लिए वो काम करने जा रहे है जिसे तू लंबे समय से करना चाह रहा था लेकिन हिम्मत और साधन ना होने की वजह से नही कर पा रहा था "
इस वक़्त वन एक बहुत बड़े पार्क के चारो तरफ बनी कम चौड़ी सड़क पर थी, सड़क के दाई तरफ छोटे-छोटे बंग्लॉ जैसे नज़र आने वाले करीब-करीब एक ही नक्शे के ड्यूप्लेक्स फ्लॅट थे.
तीन मोड़ पार करने के बाद चीकू वॅन को पार्क के उस चौथे सिरे की ओर बढ़ाता ले गया जिसका मोड़ पार करने के बाद उसे पुनः उस लेन मे पहुच जाना था जिसमे ए-74 था.
धूप तेज थी, शायद इसलिए पार्क और उसके चारो तरफ की सड़क की तो बात ही दूर, किसी फ्लॅट के बाहर भी कोई व्यक्ति नज़र नही आ रहा था.
बॉब्बी बोला," यहा तो ऐसा सन्नाटा पसरा पड़ा है जैसे दिन के नही बल्कि रात के साढ़े 3 बजे हो "
" इसे कहते है एक्सपीरियेन्स " चीकू गर्व से मुकुराया," दिन के इस समय ऐसी कॉलोनियो मे अक्सर सन्नाटा ही रहता है क्योंकि ज़्यादातर मर्द काम पर गये होते है, घरो मे केवल महिलाए होती है और वे भी बाहर निकलने की बजाय ए.सी चलाकर सास-बहू के नाटक देखना ज़्यादा पसंद करती है, अतः ऐसे कामो के लिए ये समय सबसे मुफ़ीद होता है "
तीनो चुप रहे.
चीकू वन की रफ़्तार धीमी करता हुआ बोला," हम पहुचने वाले है दोस्तो और इस बार काम करके ही लौटेंगे, डरने की ज़रूरत नही है क्योंकि हमारे दिलो मे पनपा डर ना केवल हमारा काम बिगाड़ देगा बल्कि उल्टा हमे ही फँसा देगा, यकीन रखो, कुछ नही होगा, हमे बस ये कोशिश करनी है की ज़्यादा शोर-शराबा ना हो "
इस बार भी कोई कुछ ना बोला.
तीनो के चेहरे पर मौजूद तनाव मे इज़ाफा हो गया था.
चीकू ने वन पुनः ए-74 के सामने रोक दी.
" उतरो, यहाँ ज़्यादा देर खड़े रहना ख़तरनाक हो सकता है, जितनी जल्दी हो सके काम करके निकल जाना ही मुनासिब होता है " उसने एंजिन ऑफ करते हुवे कहा था," वॅन के दरवाजे खुलने और बंद होने की आवाज़ नही होनी चाहिए, बल्कि बीच वाला गेट खुला छोड़ देना ताकि उस वक़्त खोलने मे टाइम वेस्ट ना हो "
वैसा ही किया गया.
गुटखे वाले ने पीक ठुका, खैनि वाले ने खैनि का चूरा.
तेज़ी से लपक कर वे ए-74 के लोहे वाले गेट पर पहुचे.
उसे चीकू ने बगैर ज़रा भी आहट किए खोला और चारो तेज़ी के साथ फ्लॅट के लकड़ी वाले दरवाजे की तरफ बढ़ गये जो छोटे से शेड के नीचे था, करीब पहुचते ही चारो दीवार से लाठी की तरह टेक लगाकर सीधे खड़े हो गये.
दो बाए, दो दाए.
चीकू ने फुसफुसाकर चंदू से कहा," तू क्यो छुप गया साले, तुझे तो दरवाजा खुलवाना है, सामने आकर बेल बजा "
चंदू को अचानक जाने क्या याद आया कि उसके जबड़े भींच गये, चेहरे पर सख्ती के भाव काबिज होते चले गये और आखो मे अजीब किस्म की हिंसा और दृढ़ता के भाव नज़र आने लगे.
वो पूरे कॉन्फिडेन्स के साथ बंद दरवाजे के सामने आ डटा और कॉल्लबेल स्विच पर अंगूठा रख दिया.
अंदर से बेल बजने की आवाज़ आई.
उसने बेल स्विच से अंगूठा हटाया, अंदर खामोशी छा गयी.
सभी दरवाजा खुलने का इंतजार कर रहे थे.
सभी के दिल आसामानया गति से धधक रहे थे लेकिन अंदर छायि खामोशी इतनी लंबी हो गयी की चीकू ने चंदू को पुनः बेल बजाने का इशारा किया.
चंदू का हाथ बेल स्विच की तरफ बढ़ा ही था कि अंदर से एक महिला की आवाज़ आई," कौन "
" मैं हूँ इंदु आंटी " उसकी आवाज़ साधी हुई थी," चंदू "
" तुम " चौंकी हुई सी इस आवाज़ के साथ दरवाजा खुल गया.
45 से 50 के बीच की एक औरत नज़र आई.
वो लंबे चेहरे और लंबी नाक वाली एक साँवली औरत थी.
बालो की बाहरी लटे सफेद हो गयी थी.
जिस्म पर सलवार-सूट.
चंदू की तरफ देखते हुवे उसने लगभग गुस्से मे पूछा था," यहाँ क्यो आया है "
" म...मैं आपसे माफी माँगने आया हू इंदु आंटी " इस बार चंदू की आवाज़ थोड़ी लड़खड़ा गयी थी.
वो गुर्राई," अब किस बात की माफी माँगने आया है "
" मैंने पिच्छले दिनो आपके और अंकल के साथ जो व्यवहार किया, वो नही करना चाहिए था "
" हमें तेरी माफी की ज़रूरत नही.... "
इंदु सरकार अपना सेंटेन्स पूरा नही कर सकी बल्कि अगर ये लिखा जाए तो ज़्यादा जायज़ होगा कि उसके मुँह से निकलने वाले आगे के शब्द एक लंबी चीख मे तब्दील हो गये थे.
कारण था, चंदू को एक तरफ धकेलकर अचानक ही चीकू का ना केवल उसके सामने आ जाना बल्कि बिजली की सी फुर्ती से उसे पूरी बेरहमी के साथ पीछे की तरफ धकेल देना.
इंदु सरकार अचानक खुद पर टूट पड़ी इस मुसीबत के बारे मे समझ भी ना पाई थी कि चीख के साथ फ्लॅट के अंदर जा गिरी.
पलक झपकते ही सबसे पहले चीकू, उसके पीछे चंदू और फिर बॉब्बी-बंटी फ्लॅट के अंदर जा धम्के.
" दरवाजा बंद करो " लगभग चीखती सी आवाज़ मे कहता चीकू फर्श पर पड़ी इंदु पर झपटा था.
इधर उसने अपने दाए हाथ से उसका मुँह दबोचा, उधर बंटी ने दरवाजा अंदर से बंद कर लिया था.
इंदु सरकार विस्फारित नेत्रो से उन सबकी तरफ देख रही थी जबकि चीकू ने ख़ूँख़ार लहजे मे कहा," ज़्यादा चीखी-चिल्लाई तो यही काम तमाम कर दूँगा "
इंदु का सर क्योंकि ज़ोर से फर्श से टकराया था इसलिए वहाँ से खून बहने लगा था और मुँह भींचा होने के कारण वो ठीक से साँस नही ले पा रही थी इसलिए छटपटा रही थी.
चीकू चीखा," जल्दी से इंजेक्षन लगा बॉब्बी "
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