RE: Gandi Kahani सबसे बड़ी मर्डर मिस्ट्री
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विकास चौंका.
इसलिए, क्योंकि उसकी जानकारी मे ये बात विजय से किसी ने नही कही थी, फिर विजय गुरु ने ये क्यों कहा कि मैंने सुना है, ये बात विजय ने कब, किससे सुन ली और नही सुनी तो राजन सरकार से ऐसा क्यो कहा.
विकास समझने की कोशिश कर ही रहा था कि राजन सरकार की आवाज़ कानो मे पड़ी," मैंने तो ऐसा किसी से नही कहा "
" भले ही ना कहा हो लेकिन ये सच है या नही "
" सच तो ये है कि सोकर उठने पर मैं किसी किस्म के दर्द को महसूस करने की स्तिति मे ही नही था, उठा ही इंदु की चीख सुनकर था, उसके बाद जो कुछ हुआ, बता ही चुका हू, किसी किस्म के सिरदर्द को महसूस करने के हालात ही कहाँ थे "
" बाद मे महसूस किया हो "
" इतना मौका ही नही मिला "
" सरकारनी ने भी सिरदर्द की शिकायत नही की "
" नही " राजन सरकार ने कहा," तुम्ही सोचो विजय, हो भी रहा होगा तो क्या वो समय वैसी बाते करने का था, हमारे सामने हमारा बेटा मरा पड़ा था और हम सिरदर्द की बाते करते "
विजय बड़बड़ाया," बात तो ठीक है "
" सिरदर्द की बात कहाँ से आ गयी गुरु " विकास कहे बगैर ना रह सका," कम से कम मेरे सामने तो किसी ने आपसे..... "
" छोड़ो दिलजले " विजय ने उसकी बात काटी," तुम क्यो हमारे सिर मे दर्द किए दे रहे हो "
विकास चुप रह गया क्योंकि समझ चुका था कि विजय राजन सरकार के सामने इस विषय पर डिस्कशन नही चाहता था लेकिन उसके जहाँ मे ये बात अटक कर रह गयी थी कि विजय के दिमाग़ मे सिरदर्द वाली बात कहाँ से पैदा हो गयी.
ये तो सोचा ही नही जा सकता था कि विजय गुरु कोई ऐसा सवाल करेंगे जिसका कोई आधार ना हो.
इस सवाल का आधार क्या था.
काफ़ी सोचने के बावजूद विकास को जवाब नही मिला जबकि विजय ने राजन से अगला सवाल किया था," अशोक बिजलानी ने राघवन की मौजूदगी मे आपसे ये कहा था कि आपको आइजी को फोन करना चाहिए था क्योंकि वे आपके बचपन के दोस्त है "
" हां, कहा था "
" ये बात उसने तभी क्यो कही जब राघवन वहाँ पहुच चुका, उससे काफ़ी पहले भी कह सकता था "
" इस बारे मे मैं क्या कह सकता हू पर.... "
" पर "
" क्या फ़र्क हुआ दोनो बातो मे, अगर उसने पहले नही कही, राघवन के सामने कही तो इससे क्या फ़र्क पड़ गया "
" फ़र्क ये पड़ गया जनाब कि जो बात आपसे कही गयी, वो आपसे नही कही गयी थी बल्कि बिजलानी द्वारा राघवन को ये बताया गया था कि आइजी साहब तुम्हारे बचपन के दोस्त है "
" मैं अब भी नही समझा कि तुम क्या कहना चाहते हो "
" ये बात राघवन के सामने उसे प्रभावित करने के लिए कही गयी थी, उसे ये समझाने के लिए कही गयी थी कि राजन सरकार के बारे मे कोई भी उल्टी-सीधी बात दिमाग़ मे लाने से पहले याद रखना, उनकी एप्रोच उसके आइजी तक है "
" हो सकता है कि बिजलानी की मंशा यही रही हो पर उस वक़्त मुझे ऐसा नही लगा था, मुझे यही लगा था कि क्योंकि उसे मालूम है कि आइजी मेरे बचपन के दोस्त है, ये बात उसने इसलिए कही "
" जब आप फोन करने लगे तो उसने रोक क्यो दिया "
" कहा कि फोन करने की ज़रूरत नही है क्योंकि राघवन वही कर रहा है जो ऐसे मौके पर इनस्पेक्टर को करना चाहिए "
" बात वही सिद्ध हुई, उसका मकसद आइजी को मौकायेवार्दात पर बुलाना नही बल्कि राघवन को ये सुनाना था कि वे आपके बचपन के दोस्त है "
" ऐसा था भी तो क्या ग़लत किया उसने, संकट के समय हर दोस्त का फ़र्ज़ अपने दोस्त की मदद करना है, उसी मंशा से उसने राघवन को प्रभावित करने के लिए ऐसा कहा होगा ताकि वो सही दिशा मे इन्वेस्टिगेशन करे "
" सही दिशा मे नही " विजय ने कहा," हक़ीकत ये है कि राघवन को प्रभावित करके दिशा भटकाई जा रही थी, उसे फ्लॅट की जाँच-पड़ताल करने का मौका नही दिया गया, डॉग स्क्वाड और फिंगरप्रिंट्स एक्सपर्ट तक को बुलाने का मौका नही दिया गया, आइजी के नाम पर एसएसपी और डीआइजी पर भी यही प्रेशर डाला गया कि फ्लॅट की जाँच-पड़ताल करने की जगह मीना को तलाश करने की कोशिश की जाए, प्रेशर मे आए अधिकारियो ने वही किया यानी की बिजलानी का प्लान कामयाब हो गया "
" मुझे दुख है कि तुम अब भी राघवन के ही तरीके से सोच रहे हो, सच्चाई ये है कि वो किसी प्लॅनिंग के तहत नही किया गया था, जो हमे ठीक लग रहा था, हम चाहते थे कि वही किया जाए, मेरे ख़याल से भी उस वक़्त मीना की तलाश करना फ्लॅट की जाँच-पड़ताल करने से ज़्यादा इम्पोर्टेंट था "
" एक जून को कान्हा ने आपको एक ई-मैल भेजा था "
" राघवन ने उस ई-मैल को लेकर बवाल खड़ा कर दिया है, ये साबित कर दिया है कि ई-मैल से ये सिद्ध होता है कि मुझे कान्हा और मीना के संबंधो के बारे मे पहले से मालूम था और कान्हा ने उसी के लिए माफी माँगी थी जबकि मैं बार-बार कह चुका हू कि उसने विस्की पीने की वजह से माफी माँगी थी, मैंने उसे समझाया था कि ड्रिंक बालिग होने के बाद करनी चाहिए "
" ओके " विजय ने कहा," अब एक ऐसे सवाल का जवाब दीजिए जो शुरू से हमारी खोपड़ी मे इस तरह अटका हुआ है जैसे बंदर पेड़ की डाल पर लटका हुआ हो "
" ऐसा कौन सा सवाल है "
" आपने हमारे बापूजान को हम तक लाने के लिए कौन से जादू का इस्तेमाल किया "
" इसमे जादू वाली क्या बात है, मैंने कहा, उसे मानना पड़ा, ये बात अलग है कि काफ़ी मशहककत करनी पड़ी थी "
" उसी मशहककत के बारे मे जानना चाहते है क्योंकि हम अपने बापूजान को बहुत अच्छी तरह जानते है, वे किसी हालत मे उस शख्स की मदद नही कर सकते जो उनकी नज़र मे अपराधी हो और आप उनकी नज़र मे अपराधी ही नही थे बल्कि ऐसे अपराधी थे जिनकी गिरफ्तारी ही उनके आदेश पर हुई थी, जिन्हे एक-एक चीज़ के बारे मे पता था, ऐसी हालत मे आपने उन्हे हमारे पास आने के लिए कौन से जादू से तैयार किया "
" मैं फिर कहूँगा, उसमे जादू जैसी कोई बात नही थी " राजन सरकार कहता चला गया," जब मैंने निर्भय से कहा कि इस दुनिया मे तेरा बेटा एक्मात्र ऐसा शख्स है जो मुझे न्याय दिला सकता है तो वो दो कारनो से चौंका, पहला, मैं उसके नालायक बेटे के बारे मे इतनी बड़ी बात कह रहा था, दूसरा, मैं कोर्ट के फ़ैसले के बाद भी खुद को बेगुनाह बता रहा था, वो बोला तेरे बार-बार खुद को बेगुनाह कहने से कोई लाभ नही होने वाला है राजन, मुझे मालूम है कितनी चीज़ें तुझे और सिर्फ़ इंदु भाभी को हत्यारा साबित कर रही है, इसलिए मैंने खुद तुझे गिरफ्तार करने का हुकुम दिया, ऐसी हालत मे मैं कैसे मान सकता हू कि तू बेगुनाह हो सकता है " तब मैंने कहा," मानता हू कि बहुत-सी चीज़ें बल्कि सभी चीज़ें मेरे और इंदु की तरफ इशारा कर रही है, इसलिए तू भी हमे हत्यारा समझ रहा है पर ये तो तू भी मानेगा, केवल परिस्तिथियो के आधार पर हमे हत्यारा माना जा रहा है, इस बात को कोर्ट ने भी स्वीकार किया है कि हमारे खिलाफ सबूत नही है, जवाब मे उसने कहा, हालात बता रहे है कि सबूत तुमने चालाकी से मिटाए है, मैं बोला, यही फ़र्क है, तू कह रहा है कि हम ने सबूत मिटाए है और मेरा कहना है कि हमे किसी ने बड़ी चालाकी से फँसाया है, उसने ये भी साबित किया है कि सबूत हम ने मिटाए है, निर्भय, मैं तेरे पास ये रिक्वेस्ट लेकर नही आया हू कि तू क़ानून के विरुद्ध जाकर मेरी मदद कर या अपने पड़ का दुरुपयोग कर, तू भी जानता है कि क़ानून हर मुलजिम को अंतिम समय तक खुद को बेगुनाह साबित करने की कोशिश का राइट देता है, मैं तेरे पास अपने उसी राइट का इस्तेमाल करने की रिक्वेस्ट लेकर आया हू, मुझे लगता है कि तेरा बेटा अगर इस केस की रियिन्वेस्टिगेशन करे तो मेरे बेटे को इंसाफ़ मिल सकता है, भला तू मुझे मेरा राइट इस्तेमाल करने से कैसे रोक सकता है, मैं किसी ग़ैरक़ानूनी तरीके से खुद को बेगुनाह साबित करने की बात नही कर रहा बल्कि ये कह रहा हू कि अगर विजय इस केस की रियिन्वेस्टिगेशन करे तो.... मुझे विश्वास है कि तस्वीर बदल सकती है, हक़ीकत सामने आ सकती है, तब उसने कहा, पहले तो मुझे यही नही लग रहा कि हक़ीकत उससे अलग है जो सिद्ध हुई है, दूसरी बात, यदि एक पर्सेंट इस बात को मान भी लूँ तो ये बात बहुत ही हास्यपाद लग रही है कि मेरा नलायक बेटा इस केस की तस्वीर बदल सकता है, तब मैंने कहा, इस मामले मे बहस करने से कोई फ़ायदा नही है, मैं केवल ये रिक्वेस्ट लेकर आया हू कि तू मुझे विजय के पास ले चल और दोस्त होने के नाते तुझे मेरी ये बात माननी ही पड़ेगी क्योंकि मैं तेरे पास कोई नाजायज़ मदद माँगने नही आया हू, वो इसके बाद भी बहुत कुछ कहता रहा पर अंततः इस तर्क के बाद मेरी बात माननी ही पड़ी कि क़ानून मुझे अंतिम समय तक खुदको बेगुनाह साबित करने का राइट देता है और इस काम मे वो मदद करता है तो कोई नाजायज़ काम नही करता, तब वो बेमन से ही सही लेकिन मुझे तुम्हारे पास लेकर गया "
विजय चुप रह गया.
विकास तो पहले से ही चुप था मगर उसका दिमाग़ शांत नही था, वो बराबर सोचे जा रहा था कि विजय गुरु ने राजन सरकार से सिरदर्द के बारे मे क्यो पूछा.
सिरदर्द की बात ही कहाँ से आ गयी.
जवाब नदारद था.
विकास ने फ़ैसला कर लिया कि पहला मौका मिलते ही विजय गुरु से इस बारे मे पूछेगा, उस वक़्त तो विकास ने कल्पना भी नही की थी कि कुछ ही देर मे उसके सामने एक ऐसा प्रस्श्न आने वाला है जो उसके दिमाग़ की उन सभी नसों को झकझोरकर रख देगा जिन पर सोचने-समझने की ज़िम्मेदारी है.
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वो मौका तब आया जब विजय ने पजेरो एक व्यस्त चौराहे से पहले फूटपाथ पर रुकवाई, उसे रुकता देख रघुनाथ की गाड़ी, पोलीस की जीप और राजन सरकार की सेटरो भी रुक गयी.
विजय, विकास, धनुष्टानकार और राजन सरकार को पजेरो से उतरता देखकर रघुनाथ और राघवन भी उनके करीब आ गये.
" आज की सभा यहीं समाप्त होती है " विजय ने एकसाथ सबको संबोधित किया था," सभी देवता अपने-अपने घर जाए और हमे भी अपने निवास स्थान पर जाने की अनुमति दे "
" ऐसा कैसे हो सकता है " राजन सरकार चिहुक उठा था," मैं तो तब तक तुम्हारे साथ ही रहूँगा जब तक इंदु नही मिल जाती "
" मरा हुआ साँप बनकर हमारे गले मे मत पडो सरकार-ए-आली " विजय ने कहा," इसमे कोई शक नही कि हम आपकी धरमपत्नी को सुरक्षित बरामद करने की भरपूर कोशिश करेंगे लेकिन इसका ये मतलब नही है कि हम तुम्हे अपने गले मे लटकाए घूमेंगे और फिर, तुम्हे 5 लाख का इंतज़ाम भी तो करना है "
" 5 लाख का इंतज़ाम "
" धरमपत्नी चाहिए तो उन्हे देने ही पड़ेंगे "
चौंकते हुए रघुनाथ ने पूछा," विजय, क्या तुम सचमुच उन्हे फिरौती देने के बारे मे सोच रहे हो "
" सरकारनी की जान की कीमत के बदले मे 5 लाख की औकात ही क्या है....क्यो सरकार-ए-आली "
" ब..बात तो ठीक है लेकिन.... "
" लेकिन "
" क्या गॅरेंटी है कि वे 5 लाख लेने के बाद भी.... "
विजय ने उसकी बात काटी," कोई गॅरेंटी नही है "
" फ...फिर " राजन सरकार का चेहरा पीला पड़ गया था.
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