RE: Gandi Kahani सबसे बड़ी मर्डर मिस्ट्री
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स्विफ्ट रिंग रोड की तरफ जा रही थी.
एक निस्चित दूरी रखे अशरफ की गाड़ी उसका पीछा कर रही थी, उसके पीछे विजय ने अपनी गाड़ी लगा दी, फिर, जाने क्या सोचकर उसने अपनी गाड़ी की रफ़्तार बढ़ाई और अशरफ की गाड़ी को ओवर्टेक करते हुए इशारा किया कि उसके पीछे ही रहे, तभी राजन सरकार के फोन ने दो बार 'टिंग-टिंग' की आवाज़ की.
विजय ने कॉल रिसीव की.
दूसरी तरफ से लघ्भग गुर्रकार पूछा गया," मेरे मना करने के बावजूद फोन क्यू काटा "
" म...मैंने नही काटा, अपने आप कट गया था " उसने राजन सरकार की आवाज़ मे कहा," शायद नेटवर्क की प्राब्लम... "
" कहाँ पहुचा "
" रिंग रोड पर हूँ "
" रिंग रोड पर कहाँ "
" मक्डोनल्ड के सामने से गुजर रहा हू "
" आगे जाकर अंबेडकर रोड पर मूड "
" एक ही बार मे बता दो ना कि कहाँ पहुचना है "
" ज़्यादा स्मार्ट बनने की कोशिश मत कर " पुनः कड़क लहजे मे कहा गया," जो कहता हू वो करता रह और फोन मत काटना, मैं रास्ता बताता रहूँगा "
" ठीक है " विजय ने केवल इतना ही कहा.
कुछ देर बाद उसने स्विफ्ट को अंबेडकर रोड पर मुड़ते हुए देखा.
विजय समझ गया कि राजन सरकार कॉन्फरेन्सिंग पर है.
किडनॅपर की तरफ से रास्ता बताया जाता रहा, राजन सरकार कॉन्फरेन्सिंग पर सुनकर उन्ही रास्तो पर बढ़ता रहा और विजय तथा अशरफ की गाड़िया सावधानी से उसके पीछे लगी रही.
वो सिलसिला करीब 25 मिनिट चला.
अब वे शहर से काफ़ी बाहर निकल आए थे, वहाँ स्ट्रीट लाइट्स भी नही थी लेकिन चाँदनी रात होने के कारण दोनो तरफ दूर-दूर तक फैले खेत सॉफ नज़र आ रहे थे.
कुछ देर बाद हाइवे छोड़ कर एक पतली सड़क पर मुड़ने का हुकुम मिला, स्विफ्ट उसी तरफ मूड गयी.
किडनॅपर की तरफ से पुनः कहा गया," 2 कीलोमेटेर चलने के बाद तुझे एक खंडहर दिखाई देगा, गाड़ी बाहर ही रोक कर खंडहर मे आना है, हम तुझसे खुद संपर्क कर लेंगे "
विजय ने कहा," मुझे बहुत डर लग रहा है "
" डर मत बेटा, 5 लाख लाया है तो किस बात का डर, हम पैसे लेकर तेरी बीवी तुझे सौंप देंगे "
" मुझे खंडहर नज़र आने लगा है "
" आ जा " कहने के बाद फोन काट दिया गया.
विजय ने कहा," उन्होने फोन काट दिया है सरकार-ए-आली, अब आप बोल सकते है "
" तुम कहाँ हो " राजन सरकार की घबराई हुई आवाज़ उभरी.
" चिंता मत करो, आपके पीछे ही हू "
" मुझे तो कोई गाड़ी नज़र नही आ रही "
" अगर आपको नज़र आ गयी तो उन्हे भी नज़र आ जाएगी और ऐसा हो गया तो सारे किए-कराए पर पानी फिर जाएगा "
" मतलब "
" हमारी हेडलाइट्स ऑफ है "
" विजय, कोई ऐसा काम मत करना जिससे इंदु की जान ख़तरे मे पड़ जाए, भले ही 5 लाख चले जाए, मुझे इंदु चाहिए "
" और मुझे वे चाहिए जिन्होने ये हरकत की है " कहने के बाद विजय ने सिर्फ़ फोन ही नही काटा बल्कि गाड़ी भी रोक दी.
गाड़ी रोकने का कारण था, स्विफ्ट का खंडहर के सामने पहुच जाना बल्कि रुक जाना.
अशरफ ने अपनी गाड़ी ठीक उसके पीछे पहूचकर रोकी थी.
उसने भी हेडलाइट्स ऑफ कर रखी थी.
अशरफ के साथ विक्रम, नाहर और परवेज़ भी दौड़ते हुवे विजय के करीब पहुचे, उन सबकी नज़रे अभी तक ओन स्विफ्ट क्ज़ाइर की टेल लाइट्स पर थी.
" अब " अशरफ ने पूछा.
" मेरे अनुमान से वे 4 होंगे " विजय ने कहा," एक भी बच कर नही निकलना चाहिए "
तभी स्विफ्ट की टेल लाइट्स ऑफ हो गयी.
" आओ " कहने के साथ वो तेज़ी से स्विफ्ट की टेल लाइट्स की तरफ बढ़ा.
चारो ने उसे फॉलो किया.
चाँदनी रात के बावजूद दूरी ज़्यादा होने के कारण वे राजन को सिर्फ़ एक परछाई के रूप मे देख सकते थे, उस परछाई के रूप मे जो गाड़ी से निकालकर खंडहर की तरफ बढ़ी थी.
उसके हाथ मे एक सूटकेस था.
तभी स्विफ्ट की डिकी खुली.
" अरे " अशरफ चौंका," उसमे कोई है "
विजय बोला," दिलजला होना चाहिए "
" ओह " नाहर के मुँह से निकला," वो भी है "
विजय ने जवाब देना ज़रूरी नही समझा.
वे तेज़ी से खंडहर की तरफ बढ़ रहे थे.
उस खंडहर की तरफ जिसके टूटे-फुट, उँचे-उँचे बुरज चारो तरफ छाए सन्नाटे मे बड़े भयावह लग रहे थे, एक दीवार तो ज़मीन से करीब 40 फुट उपर तक चली गयी थी, वे ज्यो-ज्यो नज़दीक पहुचते जा रहे थे, खंडहर की आकृति स्पष्ट होती जा रही थी.
राजन सरकार ही नही, विकास भी उनकी आँखो से ओझल हो चुका था, स्विफ्ट के करीब पहूचकर विजय ज़मीन पर लेट गया और बोला," लेट जाओ प्यारो वरना देख लिए जाओगे "
सबने वैसा ही किया.
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चीकू और बंटी खंडहर के मलबे से करीब 40 फुट उपर थे, खंडहर की सबसे उँची और विशाल दीवार के शीर्ष पर.
बुरज के नज़दीक.
जहाँ वे थे, वहाँ कही छत थी, कही से टूट चुकी थी.
वहाँ वे बुरज के पीछे मौजूद उन सीढ़ियो के ज़रिए पहुचे थे जो बीच-बीच मे से टूटी हुई थी.
उनके नज़दीक एक प्लास्टिक की कुर्सी थी और कुर्सी के साथ रस्सियो से बँधी थी इंदु सरकार.
अपनी इच्छा से वो हिल-डुल तक नही सकती थी.
मुँह पर टेप चिपका हुआ था.
चारो तरफ चाँदनी छितकी पड़ी थी, इसके बावजूद ना वे विजय आंड कंपनी को देख सके और ना ही विकास को, क्योंकि उन सबने खुद को मलबे के ढेर पर चिपका रखा था.
रेंगते हुवे आगे बढ़ रहे थे वे.
अकेला राजन सरकार था जो मलबे पर दो पैरो से चल रहा था और इसलिए दीवार के शीर्ष पर खड़े चीकू और बंटी उसे परछाई के रूप मे देख सकते थे.
एकाएक छीकु ने अपने हाथ मे मौजूद टॉर्च का रुख़ राजन सरकार की तरफ किया और ऑन कर दी.
उसके ऑन होते ही स्वाभाविक रूप से राजन सरकार की दृष्टि उपर की तरफ उठ गयी.
विजय आंड कंपनी ने भी उधर देखा था.
विकास ने भी.
टॉर्च के प्रकाश का गोल दायरा मलबे पर इधर-उधर थिरक रहा था, चीकू ने कहा," इस रोशनी को फॉलो कर सेठ, यही तुझे तेरी बीवी तक पहुचा सकती है "
राजन सरकार प्रकाश के दायरे की तरफ बढ़ने लगा और प्रकाश का दायरा था कि जितना वो उसके करीब पहचता, दायरा उतना ही और आगे सरक जाता, उसे फॉलो करता-करता राजन सरकार उस दीवार की जड़ मे पहुच गया जिसके शीर्ष पर चीकू और बंटी थे.
प्रकाश दायरा दीवार के शीर्ष से नीचे लटकी एक रस्सी पर स्थिर हो गया, चीकू की आवाज़ गूँजी," सूटकेस को इस रस्सी मे बाँध दे सेठ "
राजन के मुँह से कांपति आवाज़ निकली," प....पहले इंदु "
" मुझे मालूम था तू ये कहेगा, देख, ये रही तेरी इंदु " उसके शब्दो के साथ प्रकाश दायरा बड़ी तेज़ी से घूमा और जहा स्थिर हुआ वहाँ का दृश्य देखकर विजय जैसे शख्स के भी रोंगटे खड़े हो गये.
एक दूसरी रस्सी से बँधी प्लास्टिक की वो कुर्सी दीवार के साथ हवा मे झूल रही थी जिस पर इंदु बँधी हुई थी.
उसमे बँधी रस्सी को बंटी पकड़े हुए था.
" य...ये क्या कर रहे हो " राजन सरकार के हलक से चीख-सी निकल गयी थी," ये क्या कर रहे हो तुम, रस्सी को उपर खीँचो, कुर्सी उलट गयी तो, नही, तुम इंदु को नुकसान नही पहुचा सकते, मैं पाँच लाख लेकर आया हू "
" डर मत, डर मत सेठ " छीकु ने हंसते हुवे कहा," अगर तूने कोई गड़बड़ नही की तो ना तो कुर्सी उल्टी होगी, ना ही इतनी ज़ोर से नीचे जाकर गिरेगी कि तेरी बीवी की लीला ही ख़तम हो जाए, मेरे साथी ने इसे पकड़ रखा है "
" पर तुम ऐसा क्यो कर रहे हो "
" ताकि आदान-प्रदान साथ-साथ हो " चीकू बोला," तूने अभी तक सूटकेस इस दूसरी रस्सी मे नही बाँधा, जल्दी बाँध, जैसे-जैसे मैं इस रस्सी को उपर खींचुँगा, वैसे-वैसे मेरा साथी कुर्सी को नीचे लटकता जाएगा, इधर सूटकेस उपर पहुचेगा उधर तेरी बीवी तेरे पहलू मे, हिसाब बराबर, खेल ख़तम, पैसा हजम "
राजन सरकार ने बगैर ज़रा भी देर किए सूटकेस रस्सी मे बाँध दिया और.... वही हुआ जैसा चीकू ने कहा था, एक तरफ से सूटकेस उपर जाने लगा, दूसरी तरफ से कुर्सी नीचे आने लगी.
इस प्रक्रिया मे 10 मिनिट लगे लेकिन अंततः सूटकेस उपर पहुचा, कुर्सी के चारो पाए मलबे के ढेर पर आ टिके.
टॉर्च ऑफ हो चुकी थी.
राजन सरकार 'इंदु-इंदु' पुकारता कुर्सी के नज़दीक पहुचा और उसके मुँह पर चिपके टेप को हटाने के लिए हाथ बढ़ाया ही था की एक कड़क आवाज़ को सन्नाटे ने चीरा," रुक जा सेठ "
ये आवाज़ दीवार के शीर्ष से नही बल्कि ठीक उसके पीछे से आई थी, वो पलट-ता हुआ बोला," सी..चंदू, तू चंदू है क्या "
" ठीक पहचाना सेठ " टूटी हुई दीवार के पीछे से एक ऐसी परछाई निकलकर सामने आई जिसके हाथ मे रेवोल्वेर था," ठीक पहचाना तूने, मैं चंदू ही हूँ "
" त...तूने किया है ये सब "
" अब भी कोई शक रह गया है "
" पर क्यो, तूने ऐसा क्यो किया "
" तू तो एक नंबर का गधा निकला सेठ, सारे पत्ते खुलने के बाद भी नही समझा कि मैंने ये सब क्यो किया "
" त..तू ग़लतफहमी का शिकार है, हम ने मीना को नही मारा "
" हां, अब समझा, अब समझा तू " चंदू के हलक से आग-सी निकली थी," अब ये भी समझ कि मैंने तुझे स्विफ्ट मे ही क्यो बुलाया, मेरी माँ की लाश को इशी मे डालकर कूड़े के ढेर पर ले गया था ना कुत्ते, अब मैं तुम दोनो की लाशों को उसी गाड़ी मे डालकर उसी कूड़े के ढेर पर ले जाउन्गा "
" न...नही, तू ऐसा नही कर सकता चंदू, हम ने तेरी माँ को... "
" टॉर्च ऑन कर बॉब्बी " चंदू राजन सरकार की बात काट-ता गुर्राया," इसका चेहरा दिखा मुझे, मैं देखना चाहता हू कि मरते वक़्त इसके चेहरे पर कितना पीलापन होगा "
चंदू की परछाई के पीछे से एक टॉर्च ऑन हुई.
उसकी तेज रोशनी सीधे राजन सरकार के चेहरे पर पड़ी थी.
उसकी आँखे चुन्धिया गयी.
उसने अपने बाजू से उन्हे ढकने की कोशिश की.
" हराम्जादे " चंदू बुरी तरह जज्बाती होकर दहाडा था," मैंने तुझे यहाँ 5 लाख के लिए नही बुलाया था बल्कि... "
सेंटेन्स अधूरा रह गया उसका, आगे के शब्द चीख मे तब्दील हो गये ऑर, उस अकेले की ही चीख नही गूँजी थी वहाँ.
उसके साथ बॉब्बी की भी चीख गूँजी थी.
कारण था, दोनो पर एक साथ दो लोगो का हमला.
उन दोनो मे एक विकास था, दूसरा अशरफ.
चंदू के हाथ से छिटक कर रेवोल्वेर ना जाने कहाँ जा गिरा.
उसे लिए विकास मलबे के ढेर पर लुढ़कता चला गया था, इधर, अशरफ का शिकार उसके पंजे मे था और वो नाहर था जिसने लपक कर मलबे पर लुढ़कति वो ऑन टॉर्च उठा ली थी जो अचानक हमला होने के कारण बॉब्बी के हाथ से छूट कर गिरी थी.
कहाँ कल-परसो के लौन्डे और कहाँ विकास और अशरफ जैसे महारथी, सारा खंडहर चंदू और बॉब्बी की चीखो से गूँज उठा.
यही मंज़र दीवार के शीर्ष पर था.
वहाँ, जहाँ विजय, परवेज़ और विक्रम कहर बनकर चीकू और बंटी पर टूटे, पहले उन्होने मुकाबला करने की कोशिश की लेकिन जब ऐसे प्रहार होने लगे जिन्हे झेलना उनके वश मे नही था तो मैन्दान छोड़कर भागने लगे परंतु उन्हे भागने तक नही दिया गया.
चारो को दबोच लिया गया था.
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