RE: Gandi Kahani सबसे बड़ी मर्डर मिस्ट्री
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" मैंने तो नही देखी "
" ज़रूर गाड़ी वही छोड़ दी होगी जहाँ मैं कूदी थी, वहाँ से पैदल मेरा पीछे किया होगा, अब ऑटो मे गाड़ी तक गया होगा "
" शायद ऐसा ही हो "
माँ ने अंकिता से पूछा," पर तुझे क्या हुआ है "
" उसे देखकर मैं भी डर गयी थी मम्मी, बहुत करीब आ गया था मेरे, बस मुझे देख नही सका "
" मेरी बच्ची " माँ ने लड़की को छोड़कर अंकिता का सिर बाँहो मे भर लिया था," तुझे बाहर नही जाना चाहिए था "
" मुझे क्या पता था कि उससे आमना-सामना हो जाएगा "
" पर तुम्हे डरने की कोई ज़रूरत नही थी " लड़की बोली," वो मुझे ढूँढ रहा था, पीछे पड़ गया है मेरे "
" तुमने कहा था ना, उसके पास रेवोल्वेर है "
" हां, है "
" शायद इसलिए डर गयी थी "
" क्या उसने रेवोल्वेर हाथ मे ले रखा था "
" नही, ऐसा तो नही था, पर अब निसचिंत रहो, वो वापिस नही आएगा, समझ ही नही सका है कि तुम कहाँ गायब हो गयी हो "
" हो सकता है कि आसपास ही रहे और मेरे निकलते ही.... "
" अभी निकलने की कोई ज़रूरत नही है "
इस बार लड़की कुछ नही बोली.
सिर्फ़ देखती रह गयी अंकिता की तरफ.
चेहरे पर ऐसे भाव थे जैसे उसकी एहसानमंद हो.
अंकिता खुद को काफ़ी हद तक संभाल चुकी थी.
माँ से कहा," मम्मी, क्या आप मेरे कमरे से फर्स्ट-एड बॉक्स उठा लाएँगी, देखना, कितनी चोटे लगी हुई है बेचारी को "
माँ अंकिता के रूम की तरफ चली गयी.
" अब बताओ " अंकिता पूछने लगी," नाम क्या है तुम्हारा "
" संगया " उसने कहा.
" वो कौन है "
" अमरकांत शेखावत "
" कौन अमरकांत शेखावत "
" आज राजनगर का बहुत बड़ा बिल्डर है, दो साल पहले तक रामनगर मे ही रहता था और मेरे पापा का दोस्त था "
" तुम रामनगर की रहने वाली हो "
उसने स्वीकृति मे गर्दन हिलाई.
" तो यहाँ, राजनगर मे क्यो हो "
" वही लेकर आया था "
" मतलब "
" 6 महीने पहले एक आक्सिडेंट मे पापा की मृत्यु हो गयी थी, उसके बाद बस मैं और मम्मी रह गये थे, घर मे कमाने वाले पापा ही थे, 3 महीने पहले शेखावत अंकल... "
" अंकल "
" मैं उन्हे अंकल ही कहती थी, पापा के दोस्त थे ना, और वे भी मुझे बेटी ही पुकारते थे लेकिन....लेकिन... " वो बात अधूरी छोड़कर वो फफक-फफक कर रो पड़ी.
अंकिता ने उसका सिर अपनी बाँहो मे भरा और अपनी छाती से लगाती धाँढस बंधाने वाले अंदाज मे बोली," रोओ मत, मन छोटा ना करो, तुम्हारी कहानी को मैं काफ़ी हद तक समझ चुकी हू लेकिन फिर भी, तुम्हारे मुँह से सुनना चाहती हू, बताओ, क्या हुआ, तुम्हारे अंकल ऐसे आदमी मे कब और कैसे तब्दील हुए जिससे इस कदर डरी हुई हो "
" 3 महीने पहले वे हमारे घर पहुचे, माँ से कहा की राजनगर मे मेरा काम अच्छा-ख़ासा चल रहा है, कयि लड़के-लड़किया ऑफीस मे काम करते है, संगया भी वही कर लेगी, मैं 10 हज़ार दूँगा तो घर का खर्चा भी चल जाएगा, ज़रूरत तो हमे थी ही लेकिन मम्मी ने कहा, बात तो ठीक है शेखावत भैया, मगर संगया वहाँ रहेगी कहाँ, मैं तो इस पुश्तैनी घर को छोड़कर राजनगर जा नही सकती, तुम्हे तो मालूम है, मेरा देवर गुंडा-लफंगा है, उसकी आँखे तभी से इस घर पर गढ़ी है जब वे जिंदा थे, हम दोनो राजनगर चले गये तो वो इस पर कब्जा कर लेगा.
तब अंकल ने कहा, रहने की चिंता क्यो करती हो भाभी, जैसे और एम्प्लाइज को फ्लॅट दिए हुए है, इसे भी दे दूँगा, मेरी बेटी जैसी है, आराम से रहेगी "
" मतलब मीठी-मीठी बाते बनाई "
" हां " संगया बोली," वे बाते माँ को भी अच्छी लगी, मुझे भी, क्योंकि हमारी सारी समस्याए हल हो रही थी.
वे मुझे राजनगर ले आए.
तब पता लगा कि उन्होने किसी एंप्लायी को फ्लॅट नही दे रखा है, सब अपने घर से सर्विस करने आते है लेकिन मुझे तो एक कमरे का छोटा सा फ्लॅट दिला ही दिया.
मैंने इस किस्म की छोटी-मोटी बातो पर ध्यान नही दिया और काम करने लगी.
उन्होने मुझे रिसेप्षनिस्ट का काम सौंपा था.
कुछ दिन तक सब ठीक रहा मगर धीरे-धीरे मैं चेंज महसूस करने लगी, उन्होने मुझे बेटी कहना छोड़ दिया था.
संगया कहने लगे थे.
अपनी तरफ देखते हुवे उनकी नज़रो मे भी चेंज महसूस करने लगी थी मगर अपनी ज़रूरत के कारण उस सबको इग्नोर कर रही थी, आज शाम उन्होने कहा कि तुम्हे मेरे साथ हॉलिडे इन्न चलना है, वहाँ एक पार्टी से डील होनी है.
मेरे पास इनकार करने की कोई वजह नही थी.
वे मुझे अपने साथ गाड़ी मे ही हॉलिडे इन्न ले गये लेकिन वहाँ कोई पार्टी नज़र नही आई, उनके फोन पर पार्टी का फोन आ गया था कि आज की मीटिंग कॅन्सल है "
" पहले ही से कोई मीटिंग नही होगी " अंकिता कह उठी," वो फोन भी नाटक होगा "
" अब तो ऐसा ही लग रहा है "
" आगे "
" बोले, आ ही गये है तो यही डिन्नर कर लेते है.
मैं ना ना कह सकी और ना हां.
उन्होने डिन्नर का ऑर्डर दे दिया.
डिन्नर से पहले दो पेग आ गये.
मैंने कहा, मैं तो पीती नही हू अंकल.
वे बोले, अरे पियो ना यार, कब तक नही पियोगी, अब तुम बालिग हो गयी हो.
इतना ही नही, उन्होने काफ़ी ज़िद की लेकिन मैंने नही पी.
उन्होने कयि पेग पिए.
फिर डिन्नर किया.
वे बहकी-बहकी बाते करने लगे थे.
मैंने सोचा, नशा हो गया है.
फिर जब गाड़ी मे लौट रहे थे तो छेड़-छाड़ शुरू कर दी.
मैंने विरोध किया.
वे नही माने.
छेड़-छाड़ बदतमीज़ी मे चेंज हो गयी और ऐसा लेवेल आ गया जब मुझे सख्ती से कहना पड़ा, मुझे ये सब पसंद नही है अंकल, मैं कल ही रामनगर लौट जाउन्गि.
ये सुनकर उनके तेवर बदल गये.
जेब से रेवोल्वेर निकाल लिया.
एक हाथ से ड्राइविंग करते हुवे रेवोल्वेर मुझपर तां दिया और गुर्राए, मुझे क्या गधा समझ रखा है तूने जो हर महीने 10000 रुपये दे रहा हू और फ्लॅट भी दे रखा है, अपने पैसे की पूरी कीमत वसूल करनी आती है मुझे, नही मानी और ज़्यादा ना-नुकुर की तो भेजे मे गोली उतार दूँगा.
मैं बुरी तरह डर गयी थी.
इतनी ज़्यादा की दरवाजा खोलकर चलती गाड़ी से कूद गयी.
दूर तक लुढ़कति चली गयी थी मैं.
इस बात की उम्मीद शायद उन्होने भी नही की थी कि मैं ऐसा कर सकती हू, मैंने टाइयर्स के सड़क पर घिसटने की आवाज़ सुनी लेकिन उधर देखा तक नही और जिधर मुँह उठा बस भागती चली गयी, जाने कैसे आपके फ्लॅट पर आ गयी और बेल बजा दी "
अंकिता ने कुछ कहने के लिए मुँह खोला ही था कि माँ फर्स्ट एड बॉक्स लेकर आ गयी, वो जो कहना चाहती थी उसे स्थगित किया तथा स्पिरिट से संगया के जख़्मो को सॉफ करती बोली," ये आज रात यही रहेगी मम्मी, मेरे साथ, मेरे कमरे मे "
" क...क्या बात कर रही हो बेहन " चौंक कर कहते हुए संगया की आँखो मे आँसू आ गये थे," आप ऐसा क्यो करेंगी "
" कहाँ जाओगी " उसने जख़्मो पर मरहम लगाना शुरू किया.
संगया चुप रह गयी.
अंकिता ने और मरहम लगाते हुवे आगे कहा," उस फ्लॅट मे जाना तो स्यूयिसाइड करने जैसा होगा जो शेखावत ने दिला रखा है और राजनगर मे तुम्हारे पास कोई दूसरा ठिकाना नही है "
भीगी आँखो से वो अंकिता की तरफ बस देखती रही.
" वैसे भी, एक लड़की, दूसरी लड़की की मदद नही करेगी तो कौन करेगा " अंकिता कहती चली गयी," कल मैं तुम्हे खुद रामनगर की बस मे बिताकर आउन्गि "
संगया अब भी चुप रही.
" पर बात क्या है बेटी " माँ ने पूछा," हुआ क्या था "
अंकिता ने सन्छेप मे बता दिया.
माँ बोली," बिल्कुल ठीक फ़ैसला किया तूने, रात मे ये कही नही जाएगी और सुबह खुद रामनगर की बस मे बिठाना "
उसके बाद तब, जब मा अपने कमरे मे चली गयी और अंकिता संगया को अपने कमरे मे ले आई.
संगया ना-नुकुर करती रही लेकिन अंकिता ने उसे अपने कपड़े दिए, संगया ने उसका सलवार-सूट पहना और दोनो बेड पर बैठ गयी, अंकिता ने कहा," जब तुम मुझे सबकुछ बता रही थी तब मैंने बीच मे कहा था कि मैं तुम्हारी पूरी कहानी समझ चुकी हू लेकिन तुम्हारे मुँह से सुनना चाहती हू, जानती हो ऐसा क्यो कहा था "
संगया ने इनकार मे गर्दन हिलाई.
" क्योंकि सारे मर्द ऐसे ही होते है "
" क्या मतलब " संगया ने चौंकते हुए पूछा," क्या तुम्हारे साथ भी कोई ऐसा हादसा पेश आया था "
" ठीक ऐसा तो नही लेकिन ऐसा ही कह सकती हो "
" मैं समझी नही "
" वे मेरे पिता के दोस्त तो नही लेकिन मेरी बचपन की फ्रेंड के पिता थे, मैं भी उन्हे अंकल ही कहती थी और वे मुझे बेटी.
जैसे तुम्हारे पिता की असमय मृत्यु हो गयी, वैसा ही मेरे पिता के साथ भी हुआ था.
मैं और माँ अनाथ हो गये.
घर चलाने के लिए मैं नौकरी के लिए भटकने लगी.
पर ज़रूरतमंद के लिए नौकरी मिलना इतना आसान नही होता, मेरी फ्रेंड ने जब मेरी परेशानी देखी तो अपने पिता से बात की, वे तैयार हो गये.
मेरे और माँ के लिए इससे ज़्यादा ख़ुसी की बात क्या हो सकती थी, घर की ज़रूरत भी पूरी हो रही थी और मुझे पिता जैसे अंकल की छत्रछाया मे रहना था.
शुरू मे सब ठीक रहा लेकिन ठीक वैसे ही, जैसे तुम्हारे साथ हुआ, अंकल का व्यवहार बदलने लगा.
शुरू मे तो मुझे लगा कि शायद मेरा भरम है लेकिन जब उन्होने 2 नंबर के जोक्स और फिज़िकल छेड़खानी शुरू कर दी तो मुझे शॉक लगा, मैं तनाव मे रहने लगी.
कभी सोचती माँ को बताउ, कभी सोचती फ्रेंड से ज़िक्र करू पर कुछ निस्चय नही कर पा रही थी और ये भी नही समझ पा रही थी की उनसे भी विरोध करू तो कैसे.
किन शब्दो मे.
शायद मेरे किसी से ज़िक्र ना करने और विरोध ना करने से उनका हौंसला बढ़ गया, अब वे मुझे कुछ ज़्यादा ही फोन करने लगे.
रात को एक-एक और डेढ़-डेढ़ बजे भी फोन कर देते.
उस वक़्त वे नशे मे होते थे और ऐसी बाते करते थे जो एक पिता अपनी बेटी के साथ नही कर सकता.
जब मैं अंकल कहती तो वे कहते, ये क्या अंकल-अंकल की रट लगा रखी है अंकिता, अब तुम बड़ी हो गयी हो, हमे हमारे नाम से पुकारो करो.
अपनी कहानी को तुम्हारी कहानी से इसलिए अलग कहूँगी क्योंकि उन्होने कभी ज़बरदस्ती करने की कोशिश नही की.
उनकी कोशिश मेरी सहमति बनाने की ही थी लेकिन धीरे-धीरे स्तिथिया इतनी विकट हो गयी की मुझे लगा कोई फ़ैसला लेना पड़ेगा.
पर समझ नही पा रही थी कि क्या फ़ैसला लूँ.
नौकरी छोड़ने का मतलब था, घर के किचन को उजाड़ देना.
माँ से ज़िक्र करती तो पता नही उन्हे इस उम्र मे कितना बड़ा झटका लगता "
संगया बोली," तुम्हे अपनी फ्रेंड से ज़िक्र करना चाहिए था "
" वही किया, लेकिन " अंकिता की आँखे शुन्य मे स्थिर हो गयी और उनमे आँसू उमड़ आए.
वो कुछ बोल नही पाई.
होंठ काँप रहे थे.
" क्या हुआ बेहन " संगया ने पूछा.
" मेरी उस बेवकूफी का ऐसा परिणाम निकला कि आजतक पछता रही हू, सोचती हू कि.... "
वो फफक-फफक कर रो पड़ी.
अब, संगया ने उसे धाँढस बँधाया," रोओ मत बेहन, दिल छोटा ना करो, पर ऐसा हुआ क्या था "
" अब वो इस दुनिया मे नही है " उसने रोते-रोते कहा.
संगया जैसे शॉक्ड रह गयी," क...क्या "
" और मैं खुद को उनकी मौत का ज़िम्मेदार मानती हू, ना मैं वो बेवकूफी करती, ना वो ऐसा करते, संगया, इतना बड़ा गुनाह तो नही किया था उन्होने की मैंने उनकी जान ही ले ली "
" बताओ तो सही बेहन, हुआ क्या "
" मैंने फ्रेंड से ज़िक्र किया, वो तो बुरी तरह भड़क गयी, सीधा अपने पापा के पास पहुच गयी और वो सब कहा जो शायद उसे नही कहना चाहिए था, ये तक कि अगर आप अंकिता के बारे मे ऐसा सोच सकते है तो मेरे बारे मे भी सोच सकते है, और.... उसकी बाते शायद उनके दिल मे जा लगी, अपनी ग़लती का गहरा एहसास ही नही हुआ बल्कि अपने प्रति ग्लानि मे डूब गये, ऐसा ना होता तो उन्होने इतना बड़ा कदम ना उठाया होता "
" क्या किया उन्होने "
" आत्महत्या "
" माइ गॉड " संगया के मुँह से बस यही निकला.
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